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एंटीबायोटिक का दुरुपयोग बढ़ा रहा सेप्सिस से पीड़ित मरीजों की संख्या, शरीर में हो रहे ये बदलाव तो हो जाएं सचेत - World Sepsis Day 2024

सेप्सिस कई बार जानलेवा हो जाती है. इस बीमारी के प्रति जागरूकता के लिए हर साल 13 सितंबर को वर्ल्ड सेप्सिस डे मनाया जाता है. इस मौके पर केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. वेद प्रकाश ने अहम जानकारियां ईटीवी भारत से साझा कीं. पढ़ें विस्तृत खबर...

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 13, 2024, 9:36 AM IST

विश्व सेप्सिस दिवस  2024 पर ईटीवी भारत की विशेष खबर.
विश्व सेप्सिस दिवस 2024 पर ईटीवी भारत की विशेष खबर. (Photo Credit: ETV Bharat)
विश्व सेप्सिस दिवस 2024 पर लखनऊ संवाददाता की खास खबर. (Video Credit : ETV Bharat)

लखनऊ : सेप्सिस की त्वरित पहचान और सटीक इलाज सेप्सिस के ऊपर विजय प्राप्त करने का बड़ा तरीका है. एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग भविष्य के लिए घातक है. सेप्सिस की सही समय पर पहचान, जीवन सुरक्षा के लिए रामबाण है. विश्व सेप्सिस दिवस के मौके पर यह बातें ईटीवी भारत से केजीएमयू के क्रिटिकल केयर एवं पलमोनरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. वेद प्रकाश ने साझा कीं. इस बार की थीम "प्रतिरक्षा प्रणाली: सेप्सिस के खिलाफ लड़ाई में दोधारी तलवार" रखी गई है.

प्रो. वेद प्रकाश ने बताया कि सेप्सिस सभी उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों को प्रभावित करता है. इसकी घटनाएं बढ़ रही हैं. बीते कुछ दशकों में अत्यधिक वृद्धि देखी गई है. सेप्सिस से प्रति वर्ष लगभग 5 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं. सेप्सिस के प्रमुख कारकों को समझना महत्वपूर्ण है. सेप्सिस निमोनिया (फेफडों में संकमण) मूत्र मार्ग में होने वाला संक्रमण या ऑपरेशन की जगह होने वाले संक्रमण की वजह से होता है. सेप्सिस के लिए प्रमुख रूप से भागर (डायबिटीज) कैंसर के मरीज एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करने वाली दवाइयां जैसे स्टेरोइड खाने वाले मरीज ज्यादा प्रभावित होते हैं.

प्रो. वेद प्रकाश के अनुसार सेप्सिस एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दा है. नवीनतम अनुमान के मुताबिक सालाना लगभग 5 करोड़ लोगों को सेप्सिस होती है. इनमें लगभग 1 करोड़ 10 लाख मरीजों की मृत्यु हो जाती है. यह वैश्विक स्तर पर 5 में से 1 मौत का सबसे बड़ा कारण है. सेप्सिस से वैश्विक अर्थव्यवस्था को सालाना लगभग 5 लाख 15 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है. इसमें प्रत्यक्ष चिकित्सा लागत के साथ-साथ अप्रत्यक्ष लागत जैसे सम्मिलित हैं. पिछले दशकों में सेप्सिस की घटनाओं में थोड़ी कमी आई है, लेकिन मृत्यु दर चिंताजनक रूप से अधिक बनी हुई है. वैश्विक स्तर पर सेप्सिस के सभी मामलों में से लगभग 40 प्रतिशत मामले पांच साल से कम उम्र के बच्चों के होते हैं.

प्रो. वेद प्रकाश के मुताबिक नए अध्ययन के अनुसार भारत में आईसीयू में आधे से अधिक मरीज सेप्सिस से पीड़ित हैं. पिछले एक दशक में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं. एक अध्ययन में देशभर के 35 आईसीयू से लिए गए 677 मरीजों में से 56 प्रतिशत से अधिक मरीजों में सेप्सिस पाया गया. इसमें अधिक चिंता की बात यह थी कि 45 प्रतिशत मामलों में संक्रमण बहु-दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण हुआ था.

"विश्व सेप्सिस दिवस" वर्ष 2012 में स्थापित ग्लोबल सेप्सिस एलायंस की एक पहल है. विश्व सेप्सिस दिवस हर साल 13 सितंबर को आयोजित किया जाता है और यह दुनिया भर के लोगों के लिए सेप्सिस के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होने का एक अवसर देता है. सेप्सिस के कारण दुनिया भर में सालाना कम से कम 1 करोड़ 10 लाख मौतें होती हैं. फिर भी सेप्सिस के बारे में सिर्फ 7-50 प्रतिशत लोग ही ज्ञान रखते हैं. सेप्सिस को टीकाकरण और अच्छी देखभाल से रोका जा सकता है और शीघ्र पहचान और उपचार से सेप्सिस मृत्यु दर को 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. ज्ञान की यह कमी सेप्सिस को दुनिया भर में मौत का नंबर एक रोकथाम योग्य कारण बनाती है.

सेप्सिस के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य : बुजुर्गों और नवजात शिशुओं में सेप्सिस होने पर मृत्यु दर भी अधिक होती है. जिसका प्रमुख कारण यह है कि इसमें रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर होता है. सेप्सिस से 50 प्रतिशत तक लोग दीर्घकालिक शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक बीमारी से पीड़ित होते हैं. भारत में प्रतिवर्ष सेप्सिस से लगभग 1 करोड़ 10 लाख व्यक्ति ग्रसित होते हैं. जिनमें लगभग 30 लाख व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है. भारत में सेप्सिस से मृत्यु दर लगभग प्रति एक लाख पर 213 है, जो वैश्विक औसत दर से काफी अधिक है.

सेप्सिस के कारण भारत पर काफी आर्थिक बोझ पड़ता है. प्रत्यक्ष चिकित्सा लागत, जिसमें अस्पताल में भर्ती होना, दवाएं और दीर्घकालिक देखभाल शामिल है. अप्रत्यक्ष लागत के साथ, सालाना लगभग 1 लाख करोड़ रुपये व्यय होते हैं. अध्ययन से यह भी पता चला है कि भारत में आईसीयू के आधे से अधिक मरीज सेप्सिस से पीड़ित हैं और मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण होने वाले सेप्सिस की व्यापकता चिंताजनक रूप से 45 प्रतिशत से भी अधिक है.

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Multi Drug Resistance) : विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है, दवा प्रतिरोधी संक्रमणों से सालाना कम से कम 7 लाख मौतें होती हैं जो सेप्सिस के कारण होती हैं.

लक्षण : बुखार या हाइपोथर्मिया. हृदय गति का बढ़ना. तेजी से सांस लेना एवं सांस फूलना. भ्रम या परिवर्तित मानसिक स्थिति. निम्न रक्तचाप. सांस लेने में कठिनाई.


अंग की खराबी के लक्षण : जैसे-जैसे सेप्सिस बढ़ता है. अंग के कार्यों को खराब कर सकता है. जिससे मूत्र उत्पादन में कमी, पेट में दर्द, पीलिया और थक्के जमने की समस्या जैसे लक्षण पैदा हो सकते हैं.

त्वचा में परिवर्तन : सेप्सिस के कारण त्वचा धब्बेदार या बदरंग हो सकती है. त्वचा पीली, नीली या धब्बेदार दिखाई दे सकती है. छूने पर त्वचा असामान्य रूप से गर्म या ठंडी महसूस हो सकती है.

गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण : सेप्सिस से पीड़ित कुछ व्यक्तियों को मतली, उल्टी, दस्त या पेट में परेशानी का अनुभव होता है.


सेप्टिक शॉक : सबसे गंभीर मामलों में सेप्सिस सेप्टिक शॉक में बदल सकता है. जिसमें बेहद कम रक्तचाप, परिवर्तित चेतना और कई अंग विफलता के लक्षण होते हैं. सेप्टिक शॉक एक जीवन-घातक आपातकाल है.


संक्रमण : मूल संक्रमण में फेफड़ों के संक्रमण या यूटीआई के साथ मूत्र संबंधी लक्षणों के मामले में खांसी जैसे लक्षण हो सकते हैं जो सेप्सिस में बदल सकते हैं.

सेप्सिस की पहचान : सेप्सिस के निदान के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है. इसमें समय पर और सटीक पहचान सुनिश्चित करने के लिए प्रयोगशाला और इमेजिंग अध्ययनों के साथ नैदानिक मूल्यांकन को एकीकृत किया जाता है.

नैदानिक मूल्यांकन : निदान एक संपूर्ण नैदानिक मूल्यांकन से शुरू होता है. जहां स्वास्थ्य सेवा प्रदाता रोगी के चिकित्सा इतिहास, शारीरिक परीक्षण के निष्कर्षों और बुखार, हृदय गति में वृद्धि, तेजी से सांस लेने और बदली हुई मानसिक स्थिति जैसे लक्षणों का मूल्यांकन करते हैं.

संदिग्ध संक्रमण : सेप्सिस के निदान का एक महत्वपूर्ण घटक एक संदिग्ध या पुष्टि किए गए संक्रमण की पहचान करना है.

प्रयोगशाला परीक्षण : सेप्सिस का निदान करने के लिए रक्त परीक्षण आवश्यक है.

सेप्सिस से बचाव : प्रभावी सेप्सिस प्रबंधन रोगी के परिणामों में सुधार लाने और मृत्यु दर को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है. जिसके लिए तेजी से हस्तक्षेप और समन्वित देखभाल की आवश्यकता होती है. सेप्सिस की शीघ्र पहचान महत्वपूर्ण है. स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को तेजी से उपचार शुरू करने के लिए बदली हुई मानसिक स्थिति, तेजी से सांस लेने और हाइपोटेंशन सहित शुरुआती संकेतों और लक्षणों की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. साथ ही संक्रमण के स्रोत का प्रबंधन करना आवश्यक है. इसमें फोड़े-फुन्सियों को निकालने, संक्रमित ऊतक को हटाने या सेप्सिस के अंतर्निहित कारण को संबोधित करने के लिए सर्जिकल प्रक्रियाएं शामिल हो सकती हैं. रक्तचाप को बनाए रखने बीपी को बढ़ाने की दवाइयों के समुचित उपयोग किया जाता है.

यह भी पढ़ें : World Sepsis Day : साइलेंट किलर है सेप्सिस, एंटीबायोटिक दवाएं भी बढ़ा रहीं बीमारी

यह भी पढ़ें : World Sepsis Day: एंटीबायोटिक का अंधाधुंध इस्तेमाल नहीं रोका तो सेप्सिस से होंगी सर्वाधिक मौतें

विश्व सेप्सिस दिवस 2024 पर लखनऊ संवाददाता की खास खबर. (Video Credit : ETV Bharat)

लखनऊ : सेप्सिस की त्वरित पहचान और सटीक इलाज सेप्सिस के ऊपर विजय प्राप्त करने का बड़ा तरीका है. एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग भविष्य के लिए घातक है. सेप्सिस की सही समय पर पहचान, जीवन सुरक्षा के लिए रामबाण है. विश्व सेप्सिस दिवस के मौके पर यह बातें ईटीवी भारत से केजीएमयू के क्रिटिकल केयर एवं पलमोनरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. वेद प्रकाश ने साझा कीं. इस बार की थीम "प्रतिरक्षा प्रणाली: सेप्सिस के खिलाफ लड़ाई में दोधारी तलवार" रखी गई है.

प्रो. वेद प्रकाश ने बताया कि सेप्सिस सभी उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों को प्रभावित करता है. इसकी घटनाएं बढ़ रही हैं. बीते कुछ दशकों में अत्यधिक वृद्धि देखी गई है. सेप्सिस से प्रति वर्ष लगभग 5 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं. सेप्सिस के प्रमुख कारकों को समझना महत्वपूर्ण है. सेप्सिस निमोनिया (फेफडों में संकमण) मूत्र मार्ग में होने वाला संक्रमण या ऑपरेशन की जगह होने वाले संक्रमण की वजह से होता है. सेप्सिस के लिए प्रमुख रूप से भागर (डायबिटीज) कैंसर के मरीज एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करने वाली दवाइयां जैसे स्टेरोइड खाने वाले मरीज ज्यादा प्रभावित होते हैं.

प्रो. वेद प्रकाश के अनुसार सेप्सिस एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दा है. नवीनतम अनुमान के मुताबिक सालाना लगभग 5 करोड़ लोगों को सेप्सिस होती है. इनमें लगभग 1 करोड़ 10 लाख मरीजों की मृत्यु हो जाती है. यह वैश्विक स्तर पर 5 में से 1 मौत का सबसे बड़ा कारण है. सेप्सिस से वैश्विक अर्थव्यवस्था को सालाना लगभग 5 लाख 15 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है. इसमें प्रत्यक्ष चिकित्सा लागत के साथ-साथ अप्रत्यक्ष लागत जैसे सम्मिलित हैं. पिछले दशकों में सेप्सिस की घटनाओं में थोड़ी कमी आई है, लेकिन मृत्यु दर चिंताजनक रूप से अधिक बनी हुई है. वैश्विक स्तर पर सेप्सिस के सभी मामलों में से लगभग 40 प्रतिशत मामले पांच साल से कम उम्र के बच्चों के होते हैं.

प्रो. वेद प्रकाश के मुताबिक नए अध्ययन के अनुसार भारत में आईसीयू में आधे से अधिक मरीज सेप्सिस से पीड़ित हैं. पिछले एक दशक में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं. एक अध्ययन में देशभर के 35 आईसीयू से लिए गए 677 मरीजों में से 56 प्रतिशत से अधिक मरीजों में सेप्सिस पाया गया. इसमें अधिक चिंता की बात यह थी कि 45 प्रतिशत मामलों में संक्रमण बहु-दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण हुआ था.

"विश्व सेप्सिस दिवस" वर्ष 2012 में स्थापित ग्लोबल सेप्सिस एलायंस की एक पहल है. विश्व सेप्सिस दिवस हर साल 13 सितंबर को आयोजित किया जाता है और यह दुनिया भर के लोगों के लिए सेप्सिस के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होने का एक अवसर देता है. सेप्सिस के कारण दुनिया भर में सालाना कम से कम 1 करोड़ 10 लाख मौतें होती हैं. फिर भी सेप्सिस के बारे में सिर्फ 7-50 प्रतिशत लोग ही ज्ञान रखते हैं. सेप्सिस को टीकाकरण और अच्छी देखभाल से रोका जा सकता है और शीघ्र पहचान और उपचार से सेप्सिस मृत्यु दर को 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. ज्ञान की यह कमी सेप्सिस को दुनिया भर में मौत का नंबर एक रोकथाम योग्य कारण बनाती है.

सेप्सिस के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य : बुजुर्गों और नवजात शिशुओं में सेप्सिस होने पर मृत्यु दर भी अधिक होती है. जिसका प्रमुख कारण यह है कि इसमें रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर होता है. सेप्सिस से 50 प्रतिशत तक लोग दीर्घकालिक शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक बीमारी से पीड़ित होते हैं. भारत में प्रतिवर्ष सेप्सिस से लगभग 1 करोड़ 10 लाख व्यक्ति ग्रसित होते हैं. जिनमें लगभग 30 लाख व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है. भारत में सेप्सिस से मृत्यु दर लगभग प्रति एक लाख पर 213 है, जो वैश्विक औसत दर से काफी अधिक है.

सेप्सिस के कारण भारत पर काफी आर्थिक बोझ पड़ता है. प्रत्यक्ष चिकित्सा लागत, जिसमें अस्पताल में भर्ती होना, दवाएं और दीर्घकालिक देखभाल शामिल है. अप्रत्यक्ष लागत के साथ, सालाना लगभग 1 लाख करोड़ रुपये व्यय होते हैं. अध्ययन से यह भी पता चला है कि भारत में आईसीयू के आधे से अधिक मरीज सेप्सिस से पीड़ित हैं और मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण होने वाले सेप्सिस की व्यापकता चिंताजनक रूप से 45 प्रतिशत से भी अधिक है.

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Multi Drug Resistance) : विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है, दवा प्रतिरोधी संक्रमणों से सालाना कम से कम 7 लाख मौतें होती हैं जो सेप्सिस के कारण होती हैं.

लक्षण : बुखार या हाइपोथर्मिया. हृदय गति का बढ़ना. तेजी से सांस लेना एवं सांस फूलना. भ्रम या परिवर्तित मानसिक स्थिति. निम्न रक्तचाप. सांस लेने में कठिनाई.


अंग की खराबी के लक्षण : जैसे-जैसे सेप्सिस बढ़ता है. अंग के कार्यों को खराब कर सकता है. जिससे मूत्र उत्पादन में कमी, पेट में दर्द, पीलिया और थक्के जमने की समस्या जैसे लक्षण पैदा हो सकते हैं.

त्वचा में परिवर्तन : सेप्सिस के कारण त्वचा धब्बेदार या बदरंग हो सकती है. त्वचा पीली, नीली या धब्बेदार दिखाई दे सकती है. छूने पर त्वचा असामान्य रूप से गर्म या ठंडी महसूस हो सकती है.

गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण : सेप्सिस से पीड़ित कुछ व्यक्तियों को मतली, उल्टी, दस्त या पेट में परेशानी का अनुभव होता है.


सेप्टिक शॉक : सबसे गंभीर मामलों में सेप्सिस सेप्टिक शॉक में बदल सकता है. जिसमें बेहद कम रक्तचाप, परिवर्तित चेतना और कई अंग विफलता के लक्षण होते हैं. सेप्टिक शॉक एक जीवन-घातक आपातकाल है.


संक्रमण : मूल संक्रमण में फेफड़ों के संक्रमण या यूटीआई के साथ मूत्र संबंधी लक्षणों के मामले में खांसी जैसे लक्षण हो सकते हैं जो सेप्सिस में बदल सकते हैं.

सेप्सिस की पहचान : सेप्सिस के निदान के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है. इसमें समय पर और सटीक पहचान सुनिश्चित करने के लिए प्रयोगशाला और इमेजिंग अध्ययनों के साथ नैदानिक मूल्यांकन को एकीकृत किया जाता है.

नैदानिक मूल्यांकन : निदान एक संपूर्ण नैदानिक मूल्यांकन से शुरू होता है. जहां स्वास्थ्य सेवा प्रदाता रोगी के चिकित्सा इतिहास, शारीरिक परीक्षण के निष्कर्षों और बुखार, हृदय गति में वृद्धि, तेजी से सांस लेने और बदली हुई मानसिक स्थिति जैसे लक्षणों का मूल्यांकन करते हैं.

संदिग्ध संक्रमण : सेप्सिस के निदान का एक महत्वपूर्ण घटक एक संदिग्ध या पुष्टि किए गए संक्रमण की पहचान करना है.

प्रयोगशाला परीक्षण : सेप्सिस का निदान करने के लिए रक्त परीक्षण आवश्यक है.

सेप्सिस से बचाव : प्रभावी सेप्सिस प्रबंधन रोगी के परिणामों में सुधार लाने और मृत्यु दर को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है. जिसके लिए तेजी से हस्तक्षेप और समन्वित देखभाल की आवश्यकता होती है. सेप्सिस की शीघ्र पहचान महत्वपूर्ण है. स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को तेजी से उपचार शुरू करने के लिए बदली हुई मानसिक स्थिति, तेजी से सांस लेने और हाइपोटेंशन सहित शुरुआती संकेतों और लक्षणों की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. साथ ही संक्रमण के स्रोत का प्रबंधन करना आवश्यक है. इसमें फोड़े-फुन्सियों को निकालने, संक्रमित ऊतक को हटाने या सेप्सिस के अंतर्निहित कारण को संबोधित करने के लिए सर्जिकल प्रक्रियाएं शामिल हो सकती हैं. रक्तचाप को बनाए रखने बीपी को बढ़ाने की दवाइयों के समुचित उपयोग किया जाता है.

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