लखनऊः उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कई ऐसी विरासते हैं, जो आज भी हमारे काम आ रही हैं. इसी में से एक है लखनऊ विश्वविद्यालय, जो 21 जुलाई से अपना 105 वां स्थापना का वर्ष मनाने जा रहा है. यह विश्वविद्यालय पूरे प्रदेश में अपनी शिक्षा और व्यवस्था को लेकर प्रसिद्ध है. ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं कि लखनऊ विश्वविद्यालय के स्थापना के पीछे क्या थी कहानी और इतिहास. आइए जानते हैं...
लखनऊ विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, लखनऊ विश्वविद्यालय स्थापना के लिए अधिनियम पर 25 नवंबर 1920 को मंजूरी मिली थी. इसके सत्र जुलाई 1921 से हुआ था, इसलिए विश्वविद्यालय प्रशासन 25 नवंबर 1920 को अपनी स्थापना की तारीख़ और 21 जुलाई 1920 को स्थापना का वर्ष मानता है. लखनऊ विश्वविद्यालय बड़े इमामबाड़ा के पास स्थित हुसैनाबाद की एक छोटी सी कोठी से हुआ था. जहां पर कैनिंग कॉलेज के नाम से जाना जाता था. हुसैनाबाद की कोठी में शुरू हुआ यह स्कूल आगे चलकर अमीनाबाद के अमीनुद्दीनदौला पार्क, वहां से कैसरबाग के भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय से होते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के मौजूदा कैंपस में स्थित लाल बारादरी में पहुंचा था.
1864 में कैनिंग कॉलेज की हुई थी स्थापनाः गवर्नर जनरल लॉर्ड चार्ल्स कैनिंग की मृत्यु के बाद अवध के ताल्लुकेदारों ने उनके सम्मान में एक स्कूल की स्थापना की योजना बनाई. जिसके लिए 18 अगस्त 1862 में अवध में पहली बैठक हुई. इसके बाद 22 नवंबर को ताल्लुकेदार की दूसरी बैठक में स्कूल की स्थापना पर सहमति बनी. 7 दिसंबर 1862 को तीसरी बैठक में ताल्लुकेदार ने अपने यहां से कर के रूप में प्राप्त हुई रकम की आधी फीस से कैनिंग कॉलेज की शुरुआत कराई. कैनिंग कॉलेज की स्थापना गरीब और आम जन के बच्चों को पढ़ने के लिए किया गया था.

पहले साल सिर्फ 8 छात्र थेः शुरुआत में यह स्कूल कोलकाता विश्वविद्यालय से संबंध था फिर 1887 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय बनने के बाद यह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जुड़ गया. कैंनिग कॉलेज में वर्ष 1864 में डिग्री कक्षाओं की शुरुआत हुई थी. शुरुआत में सिर्फ आठ छात्र ही इसमें पढ़ते थे. अगले साल 1865 में 377, 1866 में 518 ,1867 में 533, 1868 में 621 और 1859 में 666 बच्चे हो गए थे. आज लखनऊ विश्वविद्यालय में 5 जिलों में स्थापित 543 डिग्री कॉलेज को मिलाकर करीब ढाई लाख से अधिक छात्र अध्ययन कर रहे हैं.

1920 में लखनऊ विश्वविद्यालय अस्तित्व में आयाः लखनऊ के नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि ताज इतिहास के मुताबिक 1864 में हुसैनाबाद में कैनिंग कॉलेज के नाम से शुरू हुआ यह विद्यालय बाद में मौजूद मेडिकल कॉलेज (किंग जांच मेडिकल यूनिवर्सिटी) और आईटी कॉलेज को जोड़कर विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया था. शुरुआत में यह कोलकाता विश्वविद्यालय से जुड़ा था. बाद में यह 1887 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जुड़ गया. फिर साल 1920 में लखनऊ विश्वविद्यालय अस्तित्व में आया था. लखनऊ विश्वविद्यालय से क्रिश्चियन कॉलेज 1862, आईटी कॉलेज 1870, आर्ट्स कॉलेज 1911 और केकेसी पीजी कॉलेज 1917 में शुरुआत हुई थी.

पहले कुलपति को मिली थी 3000 की सैलरीः विश्वविद्यालय के पहले कुलपति ज्ञानेंद्रनाथ चक्रवर्ती थे जिन्हें विश्वविद्यालय में 3000 प्रति माह के सैलरी 5 साल के लिए रखा गया था. आगरा कॉलेज के मेजर टीएफओ डोनेल विश्वविद्यालय के पहले रजिस्टर थे, जिन्हें 1200 प्रति माह की सैलरी दी गई थी. लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षक और मौजूदा समय में बीकानेर यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर मनोज दीक्षित बताते हैं कि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और महान समाजवादी चिंतक रहे आचार्य नरेंद्र देव रहे हैं. जिन्होंने छात्रों की हॉस्टल की समस्या को देखते हुए उन्होंने अपना कुलपति का आवास ही खाली कर उसे हॉस्टल बना दिया था और निशातगंज में किराए के मकान पर रहने चले गए थे.

भारत के तीसरे राष्ट्रपति ने भी यहीं से की थी पढ़ाईः प्रोफेसर मनोज दीक्षित के अनुसार, इस विद्यालय से भारत के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन, 9वें राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा पढ़ाई कर चुके हैं. इसके अलावा उत्तराखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पूर्व रक्षा मंत्री कैसी पंथ, पंजाब के मुख्यमंत्री रहे सुरदीप सिंह बरनाला, देश के जाने-माने चिकित्सक डॉक्टर नरेश त्रेहांत, इसरो में वैज्ञानिक और चंद्रयान मिशन में शामिल रितु करिधल, क्रिकेटर सुरेश रैना, पाकिस्तान के कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सज्जाद जहीर, ग्वालियर घराने की राजमाता स्वर्गीय विजय राजेश सिंधिया मौजूदा यूपी की राजनीति के कई बड़े राजनेता इस विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके हैं.
अवध के नवाबों की पहल पर बना विश्वविद्यालयः मनोज दीक्षित ने बताया कि अंग्रेजों के समय में यूपी प्रोविजंस में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना हुआ था. उस समय वहां पर सभी विषयों की पढ़ाई होती थी. लेकिन अवध में नवाबों और अंग्रेजों की बड़ी छावनी होने के कारण यहां पर एक विश्वविद्यालय की कमी समझी जा रही थी. इसके बाद 1920 में अवध के नवाबों ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तर्ज पर लखनऊ में भी एक विश्वविद्यालय की स्थापना की बात सोची थी. इसीके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय बनने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. यग विश्वविद्यालय सभी विषयों के ऑनर्स विषय के पढ़ाई के लिए शुरू हुआ था. मौजूदा समय में 145 से अधिक कोर्स स्नातक और परास्नातक के लिए संचालित होते हैं. इसके अलावा डिप्लोमा कोर्स भी हैं.
पूर्व राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश यहां के छात्रः बता दें कि लखनऊ विश्वविद्यालय का लॉ फैकल्टी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े लॉ आफ फैकेल्टी में आता है. लॉ ऑफ़ फैकेल्टी के डीन प्रोफेसर बीडी सिंह बताते हैं कि मौजूदा समय में हमारी लॉ फैकेल्टी प्रदेश के सभी 21 राज्य विश्वविद्यालय में सबसे बड़ी है. यह लखनऊ यूनिवर्सिटी की भी सबसे बड़ी फैकल्टी में से एक है. 1956 में इस फैकल्टी की स्थापना हुई थी, जिसमें जगमोहन नाथ चक पहले डीन बने थे. प्रोफेसर बीडी सिंह ने बताया कि मौजूदा समय में करीब 11 प्रदेशों के हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस के पद पर हमारे पूर्व छात्र हैं. इस डिपार्टमेंट से भारत के नौवें राष्ट्रपति डॉक्टर संकल्प दयाल शर्मा, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रहे जस्टिस एएस आनंद, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस सगीर अहमद, जस्टिस बृजेश कुमार हमारे पूर्व छात्र रह चुके हैं.
प्रदेश में सबसे पहले मैनेजमेंट की पढ़ाई शुरू हुई थीः लखनऊ विश्वविद्यालय जितना पुराना है, उसके कई डिपार्टमेंट की ख्याति भी उसी के समान है. विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद 1956 में प्रदेश में प्रोफेशनल और मैनेजरियल पढ़ाई के लिए इस विभाग की स्थापना किया गया था. लखनऊ विश्वविद्यालय के डिपार्मेंट ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन को प्रदेश में सबसे पहले एमबीए की पढ़ाई के लिए जाना जाता है.
उपलब्धियांः आज लखनऊ विश्वविद्यालय में टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज (लुम्बा) और इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट साइंसेज (आईएमएस) के तहत एमबीए कोर्सेज की पढ़ाई हो रही है. इस विभाग की बात करें तो इस विश्वास में लखनऊ विश्वविद्यालय के दूसरे विभागों की तुलना में 400 से अधिक जनरल हर साल प्रकाशित होते हैं. जबकि अभी तक इस विभाग में 50000 से अधिक जनरल 4000 से अधिक थीसिस व मनुस्क्रिप्ट पब्लिश हो चुके हैं. यह लखनऊ विश्वविद्यालय के सबसे डिमांडिंग और ख्याति प्राप्त फैकेल्टी में शामिल है.
अभिनव गुप्ता संस्थान अनूठा विभागः लखनऊ विश्वविद्यालय का अभिनव गुप्त इंस्टीट्यूट आफ एस्थेटिक्स एंड शिवा फिलोसॉफी नॉर्थ इंडिया का इकलौता ऐसा फैकल्टी है जो लखनऊ विश्वविद्यालय के अलावा किसी और विश्वविद्यालय में नहीं है. अभिनव गुप्ता द्वारा भगवान शिव के ऊपर उनकी स्टडीज पूरी दुनिया भर में मशहूर है. अभिनव गुप्ता संस्थान लखनऊ विश्वविद्यालय की एक धरोहर में से एक है. जहां पर कश्मीर यूनिवर्सिटी के बाद अभिनव गुप्ता और उनके फिलोसॉफिकल चीजों पर और भगवान शिव को लेकर उनके जो विचार और अनुसंधान है उसे पर रिसर्च और पढ़ाई होती है.
नैक में ए प्लस प्लस ग्रेड मिलाः लखनऊ विश्वविद्यालय पहला विश्वविद्यालय है जिसे नैक में ए डबल प्लस की ग्रेडिंग मिली है. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय ने यह ग्रेडिंग दिलाने और विश्व पटेल पर लाने में काफी मेहनत की है. आलोक कुमार लखनऊ विश्वविद्यालय के पहले ऐसे कुलपति हैं, जिन्हें लगातार दो टर्म कार्यकाल पूरा करने का मौका मिला है. इससे पहले इस विश्वविद्यालय के 100 साल के इतिहास में किसी कुलपति को दोबारा से इस पद पर नियुक्ति नहीं मिली है.
लखनऊ यूनिवर्सिटी का हिस्सा था केजीएमयूः लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डॉक्टर दुर्गेश श्रीवास्तव बताते हैं कि स्थापना के समय आईटी कॉलेज और आज का किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी इसके पार्ट रहे हैं. किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी 80 के दशक में लखनऊ विश्वविद्यालय से अलग कर एक पूर्ण विश्वविद्यालय के तौर पर स्थापित हुआ था. इससे पहले विश्वविद्यालय की डिग्री किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को दी जाती थी. मेडिकल कॉलेज के अलग होने के बाद आज भी लखनऊ विश्वविद्यालय में यूनानी और आयुर्वेद जैसे चिकित्सा शिक्षा के दूसरे विद्या की पढ़ाई होती है. ऐसे में यह विश्वविद्यालय एक तरह से सभी विषयों को पढ़ने वाला एक पूर्ण विश्वविद्यालय के तौर पर उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में जाना जाता है.