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'पढ़ाई से ज्यादा एंटरटेनमेंट में हो रहा AI का इस्तेमाल'; LU के शोध में सामने आईं हैरान करने वाली जानकारियां - LUCKNOW UNIVERSITY RESEARCH AI

लखनऊ के कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों को शोध में किया गया शामिल, 21.3 फीसद युवा ही कर रहे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की पढ़ाई.

लखनऊ विश्वविद्यालय ने एआई पर किया शोध.
लखनऊ विश्वविद्यालय ने एआई पर किया शोध. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : April 29, 2025 at 5:22 PM IST

5 Min Read

लखनऊ : एआई का इस्तेमाल पुरुष या महिलाएं ज्यादातर एंटरटेनमेंट और कम्युनिकेशन के लिए कर रहे हैं. पढ़ाई और करियर संवारने में इसका इस्तेमाल अभी अधिक नहीं हो पा रहा है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की वजह से लोगों के बीच नियमित संवाद में भी कमी आ रही है.

लखनऊ विश्वविद्यालय की तरफ से किए गए शोध में इन बातों का पता चला है. कोरोना काल से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का दायरा बढ़ा. इसके बाद एआई से संबंधित गैजेट्स या एप्लीकेशन हर हाथ तक पहुंच तो गए लेकिन करियर-पढ़ाई और मनोरंजन के लिए इसका इस्तेमाल करने वालों की संख्या में फासला साफ तौर पर नजर आता है.

समाजशास्त्र विभाग ने जाना लोगों का रुझान : वर्ष 2025 में प्रयागराज महाकुंभ मेले में तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए सरकार की तरफ से चैटबॉट आधारित ऐप लांच किया गया था. लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग की तरफ से लखनऊवासियों के बीच एआई के इस्तेमाल को लेकर किए गए शोध में सरकारी, गैरसरकारी शिक्षण संस्थाओं, वर्क फ्राम होम करने वाले, सरकारी व कारपोरेट सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारियों को शामिल किया गया.

शोध में गृहणी महिलाओं को भी इसकी जगह दी गई. मध्यम व निम्र आय वर्ग में 15 से 30 वर्ष की आयु के लोगों को शामिल किया गया, जिनकी आय एक से 15 लाख रुपये थी. समाजशास्त्र विभाग के प्रमुख प्रो. डीआर साहू के निर्देशन में शोध छात्रा एशना वर्मा की तरफ से 'आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और रोजमर्रा जिंदगी की प्रवृत्तिया' विषय पर समाजशास्त्रीय अध्ययन नाम से लखनऊ शहर के युवाओं पर शोध किया गया.

शोध में इतने लोगों को किया गया शामिल.
शोध में इतने लोगों को किया गया शामिल. (Photo Credit; ETV Bharat)

साइंस की अपेक्षा आर्ट्स स्टूडेंट में एआई के प्रति जागरूकता कम : शोध के दौरान देखा गया कि 21.3 फीसद युवा ही एआई एजुकेशन ले रहे हैं. चाहे वह वोकेशनल के रूप में हो या सेलेबस का हिस्सा हो. साइंस की अपेक्षा आर्ट्स स्टूडेंट में एआई के प्रति कम जागरूकता देखने को मिली. हालांकि इसके प्रति लोगों में उत्सुकता तो देखने को तो मिली पर पढ़ाई और करियर बनाने में इसका इस्तेमाल कैसे किया जाय, इसके प्रति लोगों में जिज्ञासा कम देखी गई.

शोध के दौरान यह भी देखा गया कि सरकारी या गैरसरकारी संस्थाओं में केवल कारपोरेट सेक्टर में ही एआई का इस्तेमाल हो रहा है. वहां किसी न किसी रूप में इसकी बाध्यता है.

हर स्मार्टफोन धारक का एआई से कनेक्शन : लखनऊ में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 60 से 70 फीसद है. स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले लोग किसी न किसी तरह से एआई की गिरफ्त में हैं. उदाहरण के तौर पर वाट्सएप हो या फिर फेसबुक इन पर मेटा एआई का वर्चस्व है. गूगल का अपना एआई है. चैट जीपीटी को तो आर्टिकल लिखने में महारत हासिल है. घरों में एलेक्सा, गूगल असिस्टेंट जैसे उपकरण एआई का हिस्सा हैं.

इतने प्रतिशत लोग करते हैं गैजेट्स का इस्तेमाल.
इतने प्रतिशत लोग करते हैं गैजेट्स का इस्तेमाल. (Photo Credit; ETV Bharat)

इन संस्थानों में किया गया शोध : शोध में लखनऊ विश्वविद्यालय, केजीएम, एकेटीयू, राजकीय ब्वॉयज और गर्ल्स कालेज, एमिटी यूनिवर्सिटी, बीबीडी, एसआरएम, बीएनसीईटी व एचसीएल सहित अन्य स्टार्टअप कंपनियों में काम करने वाले वर्किंग प्रोफेशनल्स को शामिल किया गया.

सरकारी में जानते तो हैं पर ऑफिशियली नहीं करते इस्तेमाल : शोध के दौरान जब सरकारी कर्मियों से एआई के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे जानते हैं, पर विभागीय कार्यों में इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं. पर्सनल यूज करते हैं. वहीं कारपोरेट सेक्टर में कोडिंग, चैट जीपीटी का इस्तेमाल किए जाने की बात को लोगों ने स्वीकार किया.

सरकारी स्कूलों में इंग्लिश मीडियम तक एआई सीमित : शोध के दौरान पाया गया कि सरकारी स्कूलों में इंग्लिश मीडियम के बच्चे एआई के बारे में जानते तो हैं, पर हिंदी मीडियम के स्कूल इसकी पहुंच से दूर हैं. वहीं सीबीएसई सहित अन्य बोर्ड के स्कूलों में सिलेबस का हिस्सा होने से बच्चे इससे परिचित मिले. इनमें सीबीएसई के 53, आईएससी के 25, आईसीएसई के 14 और यूपी बोर्ड के 29 बच्चे शामिल किए गए थे.

सरकारी विभागों में एआई का इस्तेमाल न के बराबर.
सरकारी विभागों में एआई का इस्तेमाल न के बराबर. (Photo Credit; ETV Bharat)

62.6 फीसद लोग रेगुलेशन लाने के पक्ष में : शोध के दौरान 62.6 फीसद लोगों का मानना था कि एआई की विश्वसनीयता को बरकरार रखने के लिए सरकार को रेगुलेशन लाना चाहिए. 55 फीसद लोग निश्चित नहीं थे. वहीं 20.8 फीसद लोगों का कहना था कि इससे समानता बढ़ेगी. जबकि 23.4 फीसद लोगों का मानना था कि इससे समानता कम होगी. वहीं जब यह पूछा गया कि एआई पर कितना विश्वास करते हैं या यह गलतियां कर सकती है या नहीं, तो जवाब में 29.1 फीसद का मानना था कि गलतियां सम्भव हैं.

एआई के चलते रोजगार के अवसर कम होंगे : शोध के दौरान एआई के आने से रोजगार में कमी होगी या बढ़ोतरी, जब इस बारे में लोगों से पूछा गया तो 39.7 फीसद लोगों ने माना बढ़ोतरी होगी. वहीं 49.4 फीसद लोगों का मानना था कि रोजगार के अवसर कम होंगे.

समझ में आने पर बढ़ जाएगा प्रयोग : लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के एचओडी प्रो. डीआर साहू ने बताया कि जब भी कोई नई टेक्रोलॉजी आती है तो उसके प्रति उत्सुकता बढ़ जाती है. एआई को लेकर शहरों में जागरूकता तो है, लेकिन गांवों में इसका प्रयोग एंटरटेनमेंट के लिए हो रहा है. यूथ को जब इसकी उपयोगिता समझ में आ जाएगी तो इसका प्रयोग स्वत: बढ़ जाएगा.

यह भी पढ़ें : AI और 3D तकनीक से होगा राम मनोहर लोहिया संस्थान में किडनी और बोनमैरो ट्रांसप्लांट

लखनऊ : एआई का इस्तेमाल पुरुष या महिलाएं ज्यादातर एंटरटेनमेंट और कम्युनिकेशन के लिए कर रहे हैं. पढ़ाई और करियर संवारने में इसका इस्तेमाल अभी अधिक नहीं हो पा रहा है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की वजह से लोगों के बीच नियमित संवाद में भी कमी आ रही है.

लखनऊ विश्वविद्यालय की तरफ से किए गए शोध में इन बातों का पता चला है. कोरोना काल से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का दायरा बढ़ा. इसके बाद एआई से संबंधित गैजेट्स या एप्लीकेशन हर हाथ तक पहुंच तो गए लेकिन करियर-पढ़ाई और मनोरंजन के लिए इसका इस्तेमाल करने वालों की संख्या में फासला साफ तौर पर नजर आता है.

समाजशास्त्र विभाग ने जाना लोगों का रुझान : वर्ष 2025 में प्रयागराज महाकुंभ मेले में तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए सरकार की तरफ से चैटबॉट आधारित ऐप लांच किया गया था. लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग की तरफ से लखनऊवासियों के बीच एआई के इस्तेमाल को लेकर किए गए शोध में सरकारी, गैरसरकारी शिक्षण संस्थाओं, वर्क फ्राम होम करने वाले, सरकारी व कारपोरेट सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारियों को शामिल किया गया.

शोध में गृहणी महिलाओं को भी इसकी जगह दी गई. मध्यम व निम्र आय वर्ग में 15 से 30 वर्ष की आयु के लोगों को शामिल किया गया, जिनकी आय एक से 15 लाख रुपये थी. समाजशास्त्र विभाग के प्रमुख प्रो. डीआर साहू के निर्देशन में शोध छात्रा एशना वर्मा की तरफ से 'आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और रोजमर्रा जिंदगी की प्रवृत्तिया' विषय पर समाजशास्त्रीय अध्ययन नाम से लखनऊ शहर के युवाओं पर शोध किया गया.

शोध में इतने लोगों को किया गया शामिल.
शोध में इतने लोगों को किया गया शामिल. (Photo Credit; ETV Bharat)

साइंस की अपेक्षा आर्ट्स स्टूडेंट में एआई के प्रति जागरूकता कम : शोध के दौरान देखा गया कि 21.3 फीसद युवा ही एआई एजुकेशन ले रहे हैं. चाहे वह वोकेशनल के रूप में हो या सेलेबस का हिस्सा हो. साइंस की अपेक्षा आर्ट्स स्टूडेंट में एआई के प्रति कम जागरूकता देखने को मिली. हालांकि इसके प्रति लोगों में उत्सुकता तो देखने को तो मिली पर पढ़ाई और करियर बनाने में इसका इस्तेमाल कैसे किया जाय, इसके प्रति लोगों में जिज्ञासा कम देखी गई.

शोध के दौरान यह भी देखा गया कि सरकारी या गैरसरकारी संस्थाओं में केवल कारपोरेट सेक्टर में ही एआई का इस्तेमाल हो रहा है. वहां किसी न किसी रूप में इसकी बाध्यता है.

हर स्मार्टफोन धारक का एआई से कनेक्शन : लखनऊ में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 60 से 70 फीसद है. स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले लोग किसी न किसी तरह से एआई की गिरफ्त में हैं. उदाहरण के तौर पर वाट्सएप हो या फिर फेसबुक इन पर मेटा एआई का वर्चस्व है. गूगल का अपना एआई है. चैट जीपीटी को तो आर्टिकल लिखने में महारत हासिल है. घरों में एलेक्सा, गूगल असिस्टेंट जैसे उपकरण एआई का हिस्सा हैं.

इतने प्रतिशत लोग करते हैं गैजेट्स का इस्तेमाल.
इतने प्रतिशत लोग करते हैं गैजेट्स का इस्तेमाल. (Photo Credit; ETV Bharat)

इन संस्थानों में किया गया शोध : शोध में लखनऊ विश्वविद्यालय, केजीएम, एकेटीयू, राजकीय ब्वॉयज और गर्ल्स कालेज, एमिटी यूनिवर्सिटी, बीबीडी, एसआरएम, बीएनसीईटी व एचसीएल सहित अन्य स्टार्टअप कंपनियों में काम करने वाले वर्किंग प्रोफेशनल्स को शामिल किया गया.

सरकारी में जानते तो हैं पर ऑफिशियली नहीं करते इस्तेमाल : शोध के दौरान जब सरकारी कर्मियों से एआई के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे जानते हैं, पर विभागीय कार्यों में इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं. पर्सनल यूज करते हैं. वहीं कारपोरेट सेक्टर में कोडिंग, चैट जीपीटी का इस्तेमाल किए जाने की बात को लोगों ने स्वीकार किया.

सरकारी स्कूलों में इंग्लिश मीडियम तक एआई सीमित : शोध के दौरान पाया गया कि सरकारी स्कूलों में इंग्लिश मीडियम के बच्चे एआई के बारे में जानते तो हैं, पर हिंदी मीडियम के स्कूल इसकी पहुंच से दूर हैं. वहीं सीबीएसई सहित अन्य बोर्ड के स्कूलों में सिलेबस का हिस्सा होने से बच्चे इससे परिचित मिले. इनमें सीबीएसई के 53, आईएससी के 25, आईसीएसई के 14 और यूपी बोर्ड के 29 बच्चे शामिल किए गए थे.

सरकारी विभागों में एआई का इस्तेमाल न के बराबर.
सरकारी विभागों में एआई का इस्तेमाल न के बराबर. (Photo Credit; ETV Bharat)

62.6 फीसद लोग रेगुलेशन लाने के पक्ष में : शोध के दौरान 62.6 फीसद लोगों का मानना था कि एआई की विश्वसनीयता को बरकरार रखने के लिए सरकार को रेगुलेशन लाना चाहिए. 55 फीसद लोग निश्चित नहीं थे. वहीं 20.8 फीसद लोगों का कहना था कि इससे समानता बढ़ेगी. जबकि 23.4 फीसद लोगों का मानना था कि इससे समानता कम होगी. वहीं जब यह पूछा गया कि एआई पर कितना विश्वास करते हैं या यह गलतियां कर सकती है या नहीं, तो जवाब में 29.1 फीसद का मानना था कि गलतियां सम्भव हैं.

एआई के चलते रोजगार के अवसर कम होंगे : शोध के दौरान एआई के आने से रोजगार में कमी होगी या बढ़ोतरी, जब इस बारे में लोगों से पूछा गया तो 39.7 फीसद लोगों ने माना बढ़ोतरी होगी. वहीं 49.4 फीसद लोगों का मानना था कि रोजगार के अवसर कम होंगे.

समझ में आने पर बढ़ जाएगा प्रयोग : लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के एचओडी प्रो. डीआर साहू ने बताया कि जब भी कोई नई टेक्रोलॉजी आती है तो उसके प्रति उत्सुकता बढ़ जाती है. एआई को लेकर शहरों में जागरूकता तो है, लेकिन गांवों में इसका प्रयोग एंटरटेनमेंट के लिए हो रहा है. यूथ को जब इसकी उपयोगिता समझ में आ जाएगी तो इसका प्रयोग स्वत: बढ़ जाएगा.

यह भी पढ़ें : AI और 3D तकनीक से होगा राम मनोहर लोहिया संस्थान में किडनी और बोनमैरो ट्रांसप्लांट

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