नई दिल्ली: दिल्ली के नंद नगरी स्थित आईटीआई के लाइब्रेरियन द्वारा छह साल पहले संस्थान के ही क्राफ्ट इंस्ट्रक्टर के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों को उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने खारिज कर दिया है. उन्होंने कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम अधिनियम, 2013 के तहत कानूनी प्रावधान महिला कर्मचारियों की गरिमा और सुरक्षा की रक्षा के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इसका आह्वान वास्तविक आधार पर होना चाहिए.
दरअसल, 1 मई, 2019 को नंद नगरी आईटीआई के लाइब्रेरियन से एक शिकायत प्राप्त हुई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अपीलकर्ता 'बिना आधिकारिक काम के अक्सर लाइब्रेरी जाती थी, अनुचित टिप्पणियां करती थी, बिना सहमति के अपनी और अन्य महिला सहकर्मियों की तस्वीरें और वीडियो लेती थी और कथित तौर पर उन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड करती थी.' उन्होंने उन पर शारीरिक दुर्व्यवहार और धमकी देने का भी आरोप लगाया था. इस संबंध में की गई शिकायत को आंतरिक जांच समिति ने आईटीआई में कार्यरत एक क्राफ्ट इंस्ट्रक्टर को बिना उनकी सहमति के टिप्पणियां पास करने, तस्वीरें लेने और उनके वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड करने के आरोप में दोषी ठहराया था.
प्राधिकारी को सेवा से हटाया गया: बाद में अपील प्राधिकारी के रूप में उपराज्यपाल ने पाया कि कई अन्य महिला सहकर्मियों और आईटीआई के प्रिंसिपल की तरफ से उनके पक्ष में गवाही देने के बावजूद, आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) ने पाया कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप 'आंशिक रूप से साबित' हुए थे और अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने जुर्माना लगाया और उसे सेवा से हटा दिया था.
विश्वसनीयता को करता है कमजोर: उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने अब आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम अधिनियम, 2013 के तहत कानूनी प्रावधान महिला कर्मचारियों की गरिमा और सुरक्षा की रक्षा के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इसका आह्वान वास्तविक आधार पर होना चाहिए. एलजी ने कहा कि 'कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम अधिनियम के तहत सुरक्षा उपायों का दुरुपयोग या गलत इस्तेमाल, न केवल गलत तरीके से लक्षित लोगों के करियर को प्रभावित करता है, बल्कि वास्तविक पीड़ितों और पुष्ट शिकायतों के लिए बनाए गए तंत्र की विश्वसनीयता को भी कमजोर करता है.'
सबूत नहीं आया सामने: मामला इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (ICC) को भेजा गया, जिसने जुलाई 2020 में आरोपों को 'सही' पाया और अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की. हालांकि, बाद में विभागीय जांच में, ICC ने दिसंबर 2023 में निष्कर्ष निकाला कि आरोप 'आंशिक रूप से सिद्ध' थे. इसमें उल्लेख किया गया है कि लंच ब्रेक के दौरान एक महिला स्टाफ सदस्य के अनुरोध पर लाइब्रेरी में एक छोटा वीडियो बनाया गया था और ऐसा कोई सबूत सामने नहीं आया कि इसे किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया गया था. तत्कालीन प्रिंसिपल और महिला स्टाफ सदस्यों सहित कई गवाहों ने स्पष्ट किया कि रिकॉर्डिंग के समय कोई आपत्ति नहीं थी और माहौल अनौपचारिक और सौहार्दपूर्ण लग रहा था. अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और 'सेवा से हटाने' का कठोर दंड लगाया, जो कि सरकार के तहत भविष्य में रोजगार के लिए अयोग्यता नहीं होगी.
आरोप है निराधार: अपीलकर्ता ने इसे केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के सामने चुनौती दी और उसके निर्देश पर मार्च 2025 में उपराज्यपाल के सामने अपील की गई. अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उसके पास 30 वर्षों से अधिक का बेदाग सेवा रिकॉर्ड है, जिसमें कोई पूर्व अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं है और आरोप निराधार है. यह पाया गया कि शिकायतकर्ता ने भी वीडियो कॉन्फ्रेंस में भाग लिया और बाद में इसे एक सहकर्मी से प्राप्त किया और इसका उपयोग अपने स्वयं के मुद्दों को कवर करने के लिए किया.
प्रतिष्ठा को करता है प्रभावित: अपीलकर्ता को दोषमुक्त करते हुए, उपराज्यपाल ने देखा कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम अधिनियम के तहत सुरक्षा उपायों का दुरुपयोग या गलत इस्तेमाल न केवल गलत तरीके से लक्षित लोगों के करियर और प्रतिष्ठा को प्रभावित करता है, बल्कि वास्तविक पीड़ितों के लिए तंत्र की विश्वसनीयता को भी कमजोर करता है. उन्होंने कहा, 'जबकि इस अधिनियम का उद्देश्य सुरक्षित और सम्मानजनक कामकाजी माहौल सुनिश्चित करना है, लेकिन इसका गलत इस्तेमाल इसकी भावना और प्रभावशीलता को कमजोर करता है. इस तरह के अतिक्रमण से कार्यस्थलों में लैंगिक भेदभाव पैदा होने की संभावना है, जो अधिनियम के अंतर्निहित दर्शन के खिलाफ है.
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