नवीन उनियाल, देहरादून: प्रदेश में लेपर्ड इंसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बन रहे हैं और किसी भी वन्यजीव की तुलना में ये इंसानों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं. उधर पहली बार बाघों की गणना के साथ गुलदारों की भी गणना करने का निर्णय लिया गया है. ताकि वैज्ञानिक रूप से होने वाली इस गणना में गुलदारों (लेपर्ड) की सटीक गिनती हो सके और देश और राज्य के सामने भी लेपर्ड का सही आंकड़ा आ सके.
लेपर्ड के हमले के बढ़े मामले: वैसे तो सबसे खतरनाक शिकारी के रूप में टाइगर की गिनती होती है, लेकिन उत्तराखंड में टाइगर से ज्यादा लेपर्ड की दहशत है. राज्य के पहाड़ी जिलों से लेकर मैदानी क्षेत्रों तक लेपर्ड इंसानों को अपना निवाला बना रहे हैं. स्थिति यह है कि किसी भी वन्यजीव के मुकाबले लेपर्ड ने इंसानों पर सबसे ज्यादा हमले किए हैं. बड़ी बात यह भी है कि अब लेपर्ड इंसानों के घरों में भी घुसने लगे हैं और इंसानों से इसका डर भी खत्म होता जा रहा है.
इंसानों की मौत ही नहीं घायल करने में भी सबसे आगे: उत्तराखंड में लेपर्ड का आतंक इस कदर है कि ये ना केवल इंसानों पर हमला करके इनकी मौत की वजह बन रहे हैं, बल्कि इंसानों को बड़ी संख्या में घायल भी कर रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि राज्य स्थापना के बाद से अब तक सैकड़ों लोग गुलदारों के हमले में अपनी जान गंवा चुके हैं. उधर घायल होने वालों का आंकड़ा हजारों में हैं.

राज्य में लेपर्ड के हमले के आंकड़े: उत्तराखंड में राज्य स्थापना से लेकर अब तक करीब 24 सालों में 534 लोग लेपर्ड के हमले में अपनी जान गंवा चुके हैं. इसी तरह लेपर्ड के हमले में 2052 लोग घायल भी हुए हैं. बात केवल साल 2025 की करें तो अभी करीब 3 महीने में ही लेपर्ड के हमले में एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है, जबकि 18 लोग घायल हो चुके हैं. पिछले 5 सालों के रिकॉर्ड पर नजर डालें तो साल 2024 में लेपर्ड के हमले में 14 लोगों की मौत हुई और 127 लोग घायल हुए. साल 2023 में 18 लोग मारे गए और 100 लोग घायल हुए. इसी तरह साल 2022 में लेपर्ड ने 22 लोगों को अपना निवाला बनाया, जबकि 18 लोग हमले में घायल हुए. साल 2021 में 23 लोगों की मौत हुई और 98 लोगों को लेपर्ड ने घायल किया. साल 2020 में 30 लोग मारे गए और 100 लोग घायल हुए.

लेपर्ड समय के साथ-साथ इंसानों की आदतों के कारण इंसानी बस्ती के करीब पहुंच गया है और इसके कारण इंसानों को लेकर उसका डर भी खत्म हो गया है. हालांकि वन विभाग लोगों को जागरूक कर रहा है और समस्या के समाधान के लिए समय-समय पर जरूरी कदम भी उठा रहा है.
आरके मिश्रा, पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ
लोगों के लिए चल रहा लिविंग विद द लेपर्ड प्रोग्राम: उत्तराखंड वन विभाग गुलदारों की समस्या को देखते हुए राज्य भर में लिविंग विद द लेपर्ड प्रोग्राम भी चला रहा है. इसका मकसद आम लोगों को लेपर्ड के साथ कैसे जीना है, इसकी जानकारी देना है. साथ ही लेपर्ड की क्षेत्र में मौजूदगी को देखते हुए किस तरह से सावधानियां बरतनी है, इसको लेकर भी उन्हें जागरूक करना है.

इंसानी बस्तियों के आसपास रहना लेपर्ड को पसंद: लेपर्ड लोगों की आदतों के कारण ही इंसानी बस्तियों के पास पहुंच रहा है. एक तरफ खाली होते गांव उसे रिहायशी इलाकों की तरफ खींच रहे हैं तो वहीं लोगों का खाद्य पदार्थ को आसपास फेंकना भी वन्यजीवों को आकर्षित कर रहा है. इन्हीं के लिए लेपर्ड भी उनके पीछे रिहायशी क्षेत्र में आ रहा है. दरअसल अब न केवल लेपर्ड को गांव या रिहायशी इलाकों में झाड़ियों में आसानी से छिपने का मौका मिल रहा है, बल्कि आसान शिकार भी मिल रहा है.

टाइगर के साथ लेपर्ड की भी होगी गिनती: उत्तराखंड में 2800 से लेकर 3000 लेपर्ड मौजूद हैं. हालांकि पूर्व में इनकी गिनती हुई है, लेकिन अब और भी बेहतर वैज्ञानिक तरीके से इनकी गिनती होने जा रही है. यह पहला मौका होगा जब ऑल इंडिया टाइगर इंटीमेशन के साथ न केवल टाइगर बल्कि लेपर्ड की भी गिनती की जाएगी. राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली टाइगर की गिनती बेहद वैज्ञानिक तरीके से होती है और इसलिए इसे सटीक भी माना जाता है. खास बात यह है कि इस बार लेपर्ड की भी इसी के साथ गिनती की जाएगी, जिससे गुलदारों की सटीक गिनती हो पाएगी.

छोटे जानवरों का शिकार कर सरवाइव कर सकता है लेपर्ड: माना जाता है कि लेपर्ड कहीं भी आसानी से खुद को जीवित रख पाता है. सरवाइव करने की यही खासियत लेपर्ड की तेजी से संख्या बढ़ा रही है. बड़ी बात यह है कि जंगलों के अलावा इंसानी बस्तियों के आसपास भी इसे और आसानी से शिकार मिल जाता है. जिसके कारण घात लगाकर हमला करने वाला यह शिकारी कई बार इंसानों पर भी हमला कर देता है.
लेपर्ड छोटे जीवों को खाकर भी खुद को सरवाइव कर लेता है, इसमें खरगोश और चूहों का शिकार भी इसके सरवाइव करने के लिए काफी होता है. यही कारण है कि इनकी संख्या बढ़ रही है. जिस तरह पर्वतीय जिलों में पलायन हो रहा है, उसके बाद तमाम पलायन वाले गांवों में भी लेपर्ड का वास स्थल बन रहा है और इससे मानव वन्यजीव संघर्ष की स्थितियां भी पैदा हो रही है.
डॉ. राकेश नौटियाल, पशु चिकित्सक, राजाजी टाइगर रिजर्व
उत्तराखंड में यदि वन्यजीवों का इंसानों पर हमले का आंकड़ा तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो लेपर्ड बाकी वन्यजीवों से इंसानों को नुकसान पहुंचाने में काफी ऊपर है. बाकी कोई भी वन्यजीव इसके मुकाबले इंसानों को हानि पहुंचाने के मामले में आधे पर भी नहीं है. इस तरह यह कहना गलत नहीं है कि उत्तराखंड के लिए सबसे घातक शिकारी यदि कोई है तो वह लेपर्ड ही है.
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