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चौहान वंश की विरासत को बचाने की दरकार, 1000 वर्ष पुरानी बावड़ियां हो रहीं दुर्दशा का शिकार - LEGACY OF AJMER

चौहान वंश की निशानियों को भी अजमेर में नहीं मिल पा रहा संरक्षण. बावड़ियां अब केवल कचरा पात्र बन गई हैं. देखिए ये रिपोर्ट...

Legacy of Chauhan Dynasty
बावड़ियां हो रहीं दुर्दशा का शिकार (ETV Bharat Ajmer)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : June 5, 2025 at 2:46 PM IST

7 Min Read

अजमेर: राजस्थान के अजमेर को चौहान वंश के राजा अजयपाल ने बसाया था. पहाड़ी पर गढ़ बिठली का निर्माण करवाया. वहीं, प्रजा के लिए पहाड़ी के नीचे परकोटा बनवाया और पेय जल के लिए भी कई प्राकृतिक स्रोतों पर बावड़ियां और तालाब बनवाए, लेकिन अफसोस की बात यह है कि इन बावड़ी और तालाब को संरक्षण नहीं मिला.

प्रशासन की बेरुखी के कारण यह बावड़ियां लोगों के लिए कचरा पात्र बन गईं हैं. स्थानीय जागरूक लोग चाहते हैं कि 1000 वर्ष पुरानी इन ऐतिहासिक बावड़ियों को पुरातत्व विभाग से संरक्षण मिले. वहीं, इसमें कचरा डालने पर अंकुश लगे, ताकि इसके जल को फिल्टर कर आसपास के क्षेत्र में पेयजल के लिए दिया जा सके.

बड़-बुजुर्ग क्या कहते हैं, सुनिए... (ETV Bharat Ajmer)

दरअसल, अजमेर में चौहान वंश का शासन रहा है. अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वंशजों ने अजमेर को बसाया था. चौहान वंश के राजाओं ने अजमेर में आमजन के लिए सुरक्षा के साथ-साथ पेयजल की भी व्यवस्था की. परकोटे के अलावा लोगों की प्यास बुझाने के लिए कुएं, बावड़ियां और तालाब बनवाए, लेकिन अफसोस की बात यह है कि इस वीरासत को संजोया नहीं जा सका. इस कारण यह ऐतिहासिक वीरासत दुर्दशा का शिकार हो रही है. इनमें पहाड़गंज क्षेत्र के नजदीक मलूसर बावड़िया है. यहां नजदीक ही दो बावड़ियां हैं, लेकिन दोनों की अलग-अलग खूबी है.

बड़ी सी दिखने वाली बावड़ी को छोटी और छोटे आकार में दिखने वाली बावड़ी बड़ी बावड़ी के रूप में जानी जाती है. बड़ी बावड़ी के पानी को लोग पवित्र मानते हैं. मान्यता है कि बावड़ी के पानी में नहाने से बड़े से बड़ा चर्म रोग भी मिट जाता है. स्थानीय बुजुर्ग रतन कुमार बताते हैं कि दोनों बावड़ियां चौहान वंश के समय से हैं. यहां पहाड़ से निकलते झरने का पानी इन बावड़ियों से होकर आगे निकल जाया करता था. बावड़ी के आसपास बाग-बगीचे थे, जो इसकी खूबसूरती को चार चांद लगाते थे.

Bawdi Condition in Ajmer
बावड़ियों की स्थिति (ETV Bharat GFX)

उन्होंने बताया कि बड़े-बुजुर्गों से सुना है कि चौहान वंश के समय उनकी रानियां, दासियों के साथ बाग-बगीचों में भ्रमण करने और स्नान करने के लिए यहां आया करती थीं. स्थानीय बुजुर्ग रतन कुमार बताते हैं कि वक्त के साथ यहां बाग-बगीचे नहीं रहे और रिहायशी क्षेत्र बावड़ियों के चारों ओर बन गया है. उन्होंने बताया कि कभी-कभार नगर निगम की ओर से और क्षेत्र के जागरूक लोगों के सहयोग से बावड़ियों में सफाई होती है, लेकिन यह नाकाफी है. लोगों में जागरूकता नहीं है, इसलिए लोग बावड़ियों में कचरा डाल देते है. उन्होंने कहा कि इन बावड़ियों को उनके ऐतिहासिक महत्व के अनुसार ही संरक्षण मिलना चाहिए. उन्होंने यह भी बताया कि बड़ी बावड़ी के पानी में 7 दिन तक नहाने से चर्म रोग खत्म हो जाता है. राजस्थान ही नहीं, बल्कि अन्य कई राज्यों से चर्म रोग से पीड़ित लोग यहां आते हैं और ठीक होकर जाते हैं.

पढ़ें : आमेर महल और जंतर मंतर: इतिहास, खूबसूरती व विरासत का अद्भुत संगम, हर दिन खींच रहे हैं सैलानियों की भीड़ - AMER FORT AND JANTAR MANTAR

कभी परियां स्नान के लिए आती थीं और अब केवल गंदगी : स्थानीय मुकेश सुबलानीया बताते हैं कि चौहान वंश की वीरासत के रूप में दोनों बावड़ियां हैं. सुबलानीया ने बताया कि तत्कालीन समय में परकोटे में रहने वाले लोग यहां से पेयजल के लिए पानी लिया करते थे. उन्होंने बताया कि बड़ी बावड़ी काफी गहरी है. बड़ी बावड़ी के पानी से चर्म रोग दूर हो जाते हैं. चर्म रोग से पीड़ित लोग यहां रहकर 7 दिन तक बावड़ी के पानी से स्नान करते हैं और उन्हें चमत्कारी फायदा होता है. उन्होंने बताया कि बड़े बुजुर्गों से सुना है कि यहां चौहान वंश की रानियां भी स्नान के लिए आया करती थीं. वहीं, तत्कालीन समय में यह स्थान इतना खूबसूरत था कि यहां परियां भी स्नान के लिए आती थीं, लेकिन यह अनमोल विरासत दुर्दशा का शिकार हो रही है.

Shiv Temple in Badi Bawdi
बड़ी बावड़ी के एक कोने में स्थित शिव मंदिर (ETV Bharat Ajmer)

अनमोल विरासत को संरक्षण की दरकार : स्थानीय निवासी हेमराज बताते हैं कि इन बावड़ियों के नजदीक ही चौहान वंश के समय घोड़ों को बांधा जाता था. पहाड़ी से होकर बावड़ी से होते हुए यहां झरने का पानी बाह करता था. यह स्थान काफी खूबसूरत था. अब चौहान वंश के समय की यह दोनों ऐतिहासिक बावड़ियां दुर्दशा का शिकार हो रही हैं. इन दोनों बावड़ियों को संरक्षण मिलना चाहिए. हमारी अनमोल विरासत को संरक्षित रखना भी शासन और प्रशासन का दायित्व है.

स्थाई रूप से मिले संरक्षण : स्थानीय राजू सुबलानीया बताते हैं कि इतिहास को संजोकर रखना और उसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना हम सब का दायित्व है. स्थानीय लोग अपने स्तर पर इन धरोहर को बचाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन शासन और प्रशासन को भी इन अनमोल विरासत को स्थाई रूप से संरक्षित करना चाहिए. पुरातत्व विभाग इन बावड़ियों को अपने अधीन ले, ताकि अजमेर के चौहान वंश से जुड़ी इन विरासत को बचाया जा सके.

सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल : दोनों ऐतिहासिक बावड़ियों के आसपास के क्षेत्र में एक भी मुस्लिम परिवार यहां नहीं रहता. आसपास की बस्तियों में हिंदू रहते हैं. बावजूद इसके, बड़ी बावड़ी के एक कोने में एक मजार की हिफाजत और व्यवस्था का कार्य भी यहां हिंदू करते हैं. बता दें कि बड़ी बावड़ी के पानी में चर्म रोग को खत्म करने की तासीर है. बावड़ी के एक कोने पर पीर की मजार है. स्थानीय लोग बताते हैं कि यह मजार पीर हसन हुसैन की है. वहीं, बावड़ी के दूसरे कोने पर भगवान शिव का मंदिर है. दोनों धार्मिक स्थानों की देखभाल हिंदू ही करते हैं.

Mazar in Badi Bawdi
बड़ी बावड़ी के एक कोने में स्थित मजार (ETV Bharat Ajmer)

पूजा और खाद्य सामग्री डालकर बावड़ी के पानी को दूषित कर रहे लोग : मछलियां परजीवी पक्षी होती हैं. बावजूद इसके, लोग मछलियों के लिए पानी में ब्रेड डालते हैं, जिससे मछलियों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है. मेलुसार बावड़ी में भी लोग श्रद्धा के नाम पर मछलियों को ब्रेड डालते हैं. खाद्य सामग्री से बावड़ी का पानी दूषित होता है. वहीं, मछलियों को भी नुकसान होता है. लोगों के बावड़ियों में कचरा डालने पर कोई रोक नहीं है. हालांकि, नगर निगम की ओर से यहां पर एक बोर्ड लगाया गया है, लेकिन कचरा डालने के लिए आदतन लोगों पर अंकुश लगाने के लिए कभी कोई प्रभावी कार्रवाई यहां नहीं हुई है.

क्या कहते हैं जानकार ? : सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय में ज्योग्राफी विभाग में अध्यक्ष अजय कुमार शर्मा बताते हैं कि अजमेर नैसर्गिक दृष्टि से काफी खूबसूरत रहा है. मलूसर मे प्राकृतिक जल स्रोत रहा है. यहां पहाड़ों से झरना बहता था. चारों ओर हरियाली थी. चौहान वंश के समय से यह स्थान रमणिक रहा है. चौहान वंश के बाद मांडू के सुल्तान मोहम्मद खिलजी ने सन 1455 में अजमेर पर अधिकार कर लिया था.

उसने मल्लू खान को अजमेर का सूबेदार बनाया था. मल्लू खान का वास्तविक नाम युसूफ खान था, लेकिन स्थानीय लोग मल्लू खान के नाम से ही उसे जानते थे. उन्होंने यह भी बताया कि तारागढ़ पहाड़ी से लेकर बड़े मलूसर तक धरती के नीचे सुरंग थी, जो बाद में बंद हो गई. उन्होंने यह भी बताया कि छोटा मलूसर बावड़ी की तरह और बड़ा मलूसर छोटे तालाब की तरह था, जिसमें दो कुएं थे. इसमें जल की आवक भूमिगत है. इसकी गहराई 15 से 25 फुट तक है. जबकि छोटी मलूसर बावड़ी को पताल तोड़ बावड़ी भी कहते हैं. तत्कालीन समय के सूबेदार ने इस सुंदर और रमन के स्थान को विकसित किया था.

अजमेर: राजस्थान के अजमेर को चौहान वंश के राजा अजयपाल ने बसाया था. पहाड़ी पर गढ़ बिठली का निर्माण करवाया. वहीं, प्रजा के लिए पहाड़ी के नीचे परकोटा बनवाया और पेय जल के लिए भी कई प्राकृतिक स्रोतों पर बावड़ियां और तालाब बनवाए, लेकिन अफसोस की बात यह है कि इन बावड़ी और तालाब को संरक्षण नहीं मिला.

प्रशासन की बेरुखी के कारण यह बावड़ियां लोगों के लिए कचरा पात्र बन गईं हैं. स्थानीय जागरूक लोग चाहते हैं कि 1000 वर्ष पुरानी इन ऐतिहासिक बावड़ियों को पुरातत्व विभाग से संरक्षण मिले. वहीं, इसमें कचरा डालने पर अंकुश लगे, ताकि इसके जल को फिल्टर कर आसपास के क्षेत्र में पेयजल के लिए दिया जा सके.

बड़-बुजुर्ग क्या कहते हैं, सुनिए... (ETV Bharat Ajmer)

दरअसल, अजमेर में चौहान वंश का शासन रहा है. अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वंशजों ने अजमेर को बसाया था. चौहान वंश के राजाओं ने अजमेर में आमजन के लिए सुरक्षा के साथ-साथ पेयजल की भी व्यवस्था की. परकोटे के अलावा लोगों की प्यास बुझाने के लिए कुएं, बावड़ियां और तालाब बनवाए, लेकिन अफसोस की बात यह है कि इस वीरासत को संजोया नहीं जा सका. इस कारण यह ऐतिहासिक वीरासत दुर्दशा का शिकार हो रही है. इनमें पहाड़गंज क्षेत्र के नजदीक मलूसर बावड़िया है. यहां नजदीक ही दो बावड़ियां हैं, लेकिन दोनों की अलग-अलग खूबी है.

बड़ी सी दिखने वाली बावड़ी को छोटी और छोटे आकार में दिखने वाली बावड़ी बड़ी बावड़ी के रूप में जानी जाती है. बड़ी बावड़ी के पानी को लोग पवित्र मानते हैं. मान्यता है कि बावड़ी के पानी में नहाने से बड़े से बड़ा चर्म रोग भी मिट जाता है. स्थानीय बुजुर्ग रतन कुमार बताते हैं कि दोनों बावड़ियां चौहान वंश के समय से हैं. यहां पहाड़ से निकलते झरने का पानी इन बावड़ियों से होकर आगे निकल जाया करता था. बावड़ी के आसपास बाग-बगीचे थे, जो इसकी खूबसूरती को चार चांद लगाते थे.

Bawdi Condition in Ajmer
बावड़ियों की स्थिति (ETV Bharat GFX)

उन्होंने बताया कि बड़े-बुजुर्गों से सुना है कि चौहान वंश के समय उनकी रानियां, दासियों के साथ बाग-बगीचों में भ्रमण करने और स्नान करने के लिए यहां आया करती थीं. स्थानीय बुजुर्ग रतन कुमार बताते हैं कि वक्त के साथ यहां बाग-बगीचे नहीं रहे और रिहायशी क्षेत्र बावड़ियों के चारों ओर बन गया है. उन्होंने बताया कि कभी-कभार नगर निगम की ओर से और क्षेत्र के जागरूक लोगों के सहयोग से बावड़ियों में सफाई होती है, लेकिन यह नाकाफी है. लोगों में जागरूकता नहीं है, इसलिए लोग बावड़ियों में कचरा डाल देते है. उन्होंने कहा कि इन बावड़ियों को उनके ऐतिहासिक महत्व के अनुसार ही संरक्षण मिलना चाहिए. उन्होंने यह भी बताया कि बड़ी बावड़ी के पानी में 7 दिन तक नहाने से चर्म रोग खत्म हो जाता है. राजस्थान ही नहीं, बल्कि अन्य कई राज्यों से चर्म रोग से पीड़ित लोग यहां आते हैं और ठीक होकर जाते हैं.

पढ़ें : आमेर महल और जंतर मंतर: इतिहास, खूबसूरती व विरासत का अद्भुत संगम, हर दिन खींच रहे हैं सैलानियों की भीड़ - AMER FORT AND JANTAR MANTAR

कभी परियां स्नान के लिए आती थीं और अब केवल गंदगी : स्थानीय मुकेश सुबलानीया बताते हैं कि चौहान वंश की वीरासत के रूप में दोनों बावड़ियां हैं. सुबलानीया ने बताया कि तत्कालीन समय में परकोटे में रहने वाले लोग यहां से पेयजल के लिए पानी लिया करते थे. उन्होंने बताया कि बड़ी बावड़ी काफी गहरी है. बड़ी बावड़ी के पानी से चर्म रोग दूर हो जाते हैं. चर्म रोग से पीड़ित लोग यहां रहकर 7 दिन तक बावड़ी के पानी से स्नान करते हैं और उन्हें चमत्कारी फायदा होता है. उन्होंने बताया कि बड़े बुजुर्गों से सुना है कि यहां चौहान वंश की रानियां भी स्नान के लिए आया करती थीं. वहीं, तत्कालीन समय में यह स्थान इतना खूबसूरत था कि यहां परियां भी स्नान के लिए आती थीं, लेकिन यह अनमोल विरासत दुर्दशा का शिकार हो रही है.

Shiv Temple in Badi Bawdi
बड़ी बावड़ी के एक कोने में स्थित शिव मंदिर (ETV Bharat Ajmer)

अनमोल विरासत को संरक्षण की दरकार : स्थानीय निवासी हेमराज बताते हैं कि इन बावड़ियों के नजदीक ही चौहान वंश के समय घोड़ों को बांधा जाता था. पहाड़ी से होकर बावड़ी से होते हुए यहां झरने का पानी बाह करता था. यह स्थान काफी खूबसूरत था. अब चौहान वंश के समय की यह दोनों ऐतिहासिक बावड़ियां दुर्दशा का शिकार हो रही हैं. इन दोनों बावड़ियों को संरक्षण मिलना चाहिए. हमारी अनमोल विरासत को संरक्षित रखना भी शासन और प्रशासन का दायित्व है.

स्थाई रूप से मिले संरक्षण : स्थानीय राजू सुबलानीया बताते हैं कि इतिहास को संजोकर रखना और उसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना हम सब का दायित्व है. स्थानीय लोग अपने स्तर पर इन धरोहर को बचाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन शासन और प्रशासन को भी इन अनमोल विरासत को स्थाई रूप से संरक्षित करना चाहिए. पुरातत्व विभाग इन बावड़ियों को अपने अधीन ले, ताकि अजमेर के चौहान वंश से जुड़ी इन विरासत को बचाया जा सके.

सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल : दोनों ऐतिहासिक बावड़ियों के आसपास के क्षेत्र में एक भी मुस्लिम परिवार यहां नहीं रहता. आसपास की बस्तियों में हिंदू रहते हैं. बावजूद इसके, बड़ी बावड़ी के एक कोने में एक मजार की हिफाजत और व्यवस्था का कार्य भी यहां हिंदू करते हैं. बता दें कि बड़ी बावड़ी के पानी में चर्म रोग को खत्म करने की तासीर है. बावड़ी के एक कोने पर पीर की मजार है. स्थानीय लोग बताते हैं कि यह मजार पीर हसन हुसैन की है. वहीं, बावड़ी के दूसरे कोने पर भगवान शिव का मंदिर है. दोनों धार्मिक स्थानों की देखभाल हिंदू ही करते हैं.

Mazar in Badi Bawdi
बड़ी बावड़ी के एक कोने में स्थित मजार (ETV Bharat Ajmer)

पूजा और खाद्य सामग्री डालकर बावड़ी के पानी को दूषित कर रहे लोग : मछलियां परजीवी पक्षी होती हैं. बावजूद इसके, लोग मछलियों के लिए पानी में ब्रेड डालते हैं, जिससे मछलियों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है. मेलुसार बावड़ी में भी लोग श्रद्धा के नाम पर मछलियों को ब्रेड डालते हैं. खाद्य सामग्री से बावड़ी का पानी दूषित होता है. वहीं, मछलियों को भी नुकसान होता है. लोगों के बावड़ियों में कचरा डालने पर कोई रोक नहीं है. हालांकि, नगर निगम की ओर से यहां पर एक बोर्ड लगाया गया है, लेकिन कचरा डालने के लिए आदतन लोगों पर अंकुश लगाने के लिए कभी कोई प्रभावी कार्रवाई यहां नहीं हुई है.

क्या कहते हैं जानकार ? : सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय में ज्योग्राफी विभाग में अध्यक्ष अजय कुमार शर्मा बताते हैं कि अजमेर नैसर्गिक दृष्टि से काफी खूबसूरत रहा है. मलूसर मे प्राकृतिक जल स्रोत रहा है. यहां पहाड़ों से झरना बहता था. चारों ओर हरियाली थी. चौहान वंश के समय से यह स्थान रमणिक रहा है. चौहान वंश के बाद मांडू के सुल्तान मोहम्मद खिलजी ने सन 1455 में अजमेर पर अधिकार कर लिया था.

उसने मल्लू खान को अजमेर का सूबेदार बनाया था. मल्लू खान का वास्तविक नाम युसूफ खान था, लेकिन स्थानीय लोग मल्लू खान के नाम से ही उसे जानते थे. उन्होंने यह भी बताया कि तारागढ़ पहाड़ी से लेकर बड़े मलूसर तक धरती के नीचे सुरंग थी, जो बाद में बंद हो गई. उन्होंने यह भी बताया कि छोटा मलूसर बावड़ी की तरह और बड़ा मलूसर छोटे तालाब की तरह था, जिसमें दो कुएं थे. इसमें जल की आवक भूमिगत है. इसकी गहराई 15 से 25 फुट तक है. जबकि छोटी मलूसर बावड़ी को पताल तोड़ बावड़ी भी कहते हैं. तत्कालीन समय के सूबेदार ने इस सुंदर और रमन के स्थान को विकसित किया था.

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