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चतरा के शुभम ने रचा इतिहास! गांव के लिए छोड़ा लाखों रुपये का पैकेज, अब खेती कर हुए मालामाल - FARMING HIS SOURCE OF INCOME

चतरा के कुमार शुभम सिंह ने मल्टीनेशनल सॉफ्टवेयर कंपनी में लाखों रुपये का पैकेज छोड़कर गांव की मिट्टी को चुना है.

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Published : April 9, 2025 at 2:31 PM IST

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चतरा: सिमरिया प्रखंड के सोहरकला गांव में रहने वाले कुमार शुभम सिंह की कहानी किसी प्रेरणादायक किताब के पन्नों से कम नहीं है. बीटेक और एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद मल्टीनेशनल सॉफ्टवेयर कंपनी में लाखों रुपये के पैकेज पर नौकरी करने वाले कुमार शुभम सिंह ने शहर की चमक-दमक को ठुकरा कर अपने गांव की मिट्टी को चुना.

चतरा के शुभम ने रचा इतिहास! (Etv bharat)

2011 में जब वह अपने गांव लौटे, तो उनके मन में एक ही संकल्प था पर्यावरण संरक्षण और गांव के विकास के लिए कुछ करना. आज उनकी मेहनत और लगन ने न केवल सोहरकला को हरियाली से आच्छादित किया है, बल्कि गांव के दर्जनों युवाओं को रोजगार भी दिया है. शुभम की कहानी पर्यावरण, कृषि, पशुपालन और सामाजिक उत्थान का एक अनूठा संगम है

kumar shubham singh
गाय को दुलार करते शुभम सिंह (Etv bharat)

शहर से गांव की ओर: एक साहसिक कदम

कुमार शुभम सिंह के पिता विनय कुमार सिंह सरकारी नौकरी में थे. शुभम ने हजारीबाग से 12वीं की पढ़ाई पूरी की और 2003 में बीटेक के लिए दिल्ली चले गए. इसके बाद 2007 में पुणे से एमबीए की डिग्री हासिल की. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने विभिन्न मल्टीनेशनल कंपनियों में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम किया. लाखों रुपये की तनख्वाह और शहर की आधुनिक सुविधाओं के बीच उनकी जिंदगी रंगीन थी, लेकिन उनके मन में कुछ कमी थी.

kumar shubham singh
कुत्ते को दुलार करते शुभम सिंह (Etv bharat)

शुभम को शहर की चकाचौंध नहीं कर पाई प्रभावित

शुभम बताते हैं, कि शहर में चकाचौंध ने मेरा मन अंदर से भर दिया था. गांव की मिट्टी मुझे बार-बार अपनी ओर खींच रही थी. आखिरकार, उन्होंने नौकरी छोड़कर गांव लौटने का फैसला किया. यह फैसला उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प ने उन्हें एक नई राह दिखाई. पर्यावरण संरक्षण का संकल्प गांव लौटने के बाद शुभम ने देखा कि चतरा के जंगलों में अंधाधुंध पेड़ों की कटाई हो रही है.

kumar shubham singh
मेमने के बच्चों को संभाले हुए शुभम सिंह (Etv bharat)

पर्यावरण को हो रहे नुकसान ने अंदर से उन्हें झकझोर दिया. उन्होंने प्रण लिया कि वह अपने क्षेत्र को फिर से हरा-भरा करेंगे. 2012 में उन्होंने साढ़े 7 एकड़ बंजर जमीन पर पौधारोपण शुरू किया. लाल और सफेद चंदन, सागवान, शीशम, गम्हार, महोगनी, आम, नींबू, नाशपाती जैसे 8,000 से अधिक पौधे लगाए, जो आज विशाल वृक्षों में बदल चुके हैं. ये पेड़ न केवल पर्यावरण को संतुलित कर रहे हैं, बल्कि फल और लकड़ी के रूप में आर्थिक लाभ भी दे रहे हैं.

शुभम कहते हैं, कि मेरा मंत्र है पौधे लगाओ, हरियाली लाओ और समृद्ध हो जाओ. शुभम लाल व सफेद चंदन के 400, सागवान के बेशकीमती 1100, शीशम के 1100, गम्हार के 1100, महुगनी के 1100, आम के 600, नींबू के 1000, नाशपाती के 100 एवं अन्य पौधे लगाए. अब ये पौधे पेड़ के रूप में तब्दील होकर हरियाली बिखेर रहे और फल भी दे रहे हैं.

kumar shubham singh
खाट पर बैठे कुमार शुभम सिंह (Etv bharat)

कृषि और पशुपालन से जोड़ा पर्यावरण को शुभम ने पर्यावरण संरक्षण को केवल पौधारोपण तक सीमित नहीं रखा. उन्होंने इसे आधुनिक कृषि और पशुपालन से जोड़ा. वह दो एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. इसके अलावा, गाय, बकरी, भैंस, बत्तख, देसी मुर्गी, कड़कनाथ मुर्गी और मछली पालन भी कर रहे हैं. शुभम बताते हैं कि बत्तख और कड़कनाथ मुर्गियों से प्रतिदिन एक हजार अंडे मिलते हैं, जिससे अच्छी आमदनी हो रही है. इसके साथ ही, वह जर्मन जैसी विभिन्न नस्लों के कुत्तों की ब्रीडिंग भी कर रहे हैं, जो उनकी आय का एक और स्रोत है. आम जैसे फलदार पेड़ों से भी वह अच्छी कमाई कर रहे हैं.

kumar shubham singh
मुर्गी पालन (Etv bharat)

शुभम की खासियत यह है कि वह पारंपरिक और आधुनिक कृषि का मिश्रण करते हैं. वह लगातार नए प्रयोग करते रहते हैं, जिससे उनकी खेती और पशुपालन की तकनीक और अधिक प्रभावी हो रही है. उनकी इस पहल ने न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया, बल्कि गांव के अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा का काम किया.

रोजगार सृजन: गांव के युवाओं के लिए नई उम्मीद

शुभम की पहल का सबसे बड़ा प्रभाव गांव के युवाओं पर पड़ा है. उनके प्रयासों से गांव के एक दर्जन से अधिक युवाओं को रोजगार मिला है. सुचिता देवी, जो शुभम के यहां मजदूरी करती हैं, कहती हैं, पहले हमारे पास कोई रोजगार नहीं था. कुमार शुभम सिंह जी ने हमें काम दिया. अब मैं अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पा रही हूं. इसी तरह, अब्बास अंसारी, जो पहले कोलकाता में सिलाई का काम करते थे, अब गांव में ही शुभम के साथ काम कर रहे हैं. वह कहते हैं, अब गांव में ही अच्छी तनख्वाह मिल रही है. हमें बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती.

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हिसाब किताब रखते हुए कुमार शुभम सिंह (Etv bharat)

स्थानीय ग्रामीण रवि शंकर सिंह, कुमार शुभम सिंह की तारीफ करते हुए कहते हैं, शुभम ने पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ गांव के लोगों को रोजगार देने का काम किया है. यह काबिले तारीफ है. उनके प्रयासों से हमारा गांव हरा-भरा हो रहा है और युवाओं को रोजगार मिल रहा है.दादी सावित्री देवी से मिली प्रेरणा

दादी से मिली गांव में फिर से बसने की प्रेरणा

शुभम बताते हैं कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी प्रेरणा उनकी दादी सावित्री देवी से मिली है. सावित्री देवी एकीकृत बिहार में महिला एवं बाल आयोग की चेयरमैन रह चुकी है. 1990 के दशक में जब माओवाद अपने चरम पर था और लोग गांव छोड़कर पलायन कर रहे थे, तब सावित्री देवी ने सोहरकला नहीं छोड़ा, वह राइफल लेकर खेतों में काम करती थीं और गांव की मिट्टी से उनका गहरा लगाव था. शुभम अपनी दादी से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने सॉफ्टवेयर कंपनी की नौकरी छोड़कर गांव लौटने का फैसला किया. दादी के साथ मिलकर खेती शुरू की और धीरे-धीरे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम बढ़ाया.

भविष्य की योजना और संदेश शुभम का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण और आधुनिक कृषि के जरिए वह न केवल अपने गांव को समृद्ध करना चाहते हैं, बल्कि अन्य गांवों के लिए भी एक मॉडल प्रस्तुत करना चाहते हैं. वह कहते हैं, पर्यावरण की रक्षा और भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए हमें अभी से काम शुरू करना होगा. पौधे लगाना और उन्हें वृक्ष में तब्दील करना मेरा मिशन है. वह गांव के लोगों को भी पौधारोपण और आधुनिक खेती के लिए प्रेरित करते हैं.

शुभम की कहानी उन युवाओं के लिए एक मिसाल है, जो शहरों की चमक-दमक में खोकर अपने गांव और पर्यावरण को भूल जाते हैं. उन्होंने साबित किया है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो गांव की मिट्टी भी सोना उगल सकती है. पर्यावरण संरक्षण, आधुनिक कृषि और रोजगार सृजन के जरिए शुभम ने न केवल अपने गांव को बदला, बल्कि समाज के सामने एक नया दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया. उनकी यह यात्रा हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो अपने छोटे-छोटे प्रयासों से बड़ा बदलाव लाना चाहता है.

यह भी पढ़े: टेक्नोलॉजी की मदद से नष्ट की जा रही है अफीम की खेती, सैटेलाइट से की जा रही निगरानी

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चतरा के शुभम ने रचा इतिहास! (Etv bharat)

2011 में जब वह अपने गांव लौटे, तो उनके मन में एक ही संकल्प था पर्यावरण संरक्षण और गांव के विकास के लिए कुछ करना. आज उनकी मेहनत और लगन ने न केवल सोहरकला को हरियाली से आच्छादित किया है, बल्कि गांव के दर्जनों युवाओं को रोजगार भी दिया है. शुभम की कहानी पर्यावरण, कृषि, पशुपालन और सामाजिक उत्थान का एक अनूठा संगम है

kumar shubham singh
गाय को दुलार करते शुभम सिंह (Etv bharat)

शहर से गांव की ओर: एक साहसिक कदम

कुमार शुभम सिंह के पिता विनय कुमार सिंह सरकारी नौकरी में थे. शुभम ने हजारीबाग से 12वीं की पढ़ाई पूरी की और 2003 में बीटेक के लिए दिल्ली चले गए. इसके बाद 2007 में पुणे से एमबीए की डिग्री हासिल की. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने विभिन्न मल्टीनेशनल कंपनियों में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम किया. लाखों रुपये की तनख्वाह और शहर की आधुनिक सुविधाओं के बीच उनकी जिंदगी रंगीन थी, लेकिन उनके मन में कुछ कमी थी.

kumar shubham singh
कुत्ते को दुलार करते शुभम सिंह (Etv bharat)

शुभम को शहर की चकाचौंध नहीं कर पाई प्रभावित

शुभम बताते हैं, कि शहर में चकाचौंध ने मेरा मन अंदर से भर दिया था. गांव की मिट्टी मुझे बार-बार अपनी ओर खींच रही थी. आखिरकार, उन्होंने नौकरी छोड़कर गांव लौटने का फैसला किया. यह फैसला उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प ने उन्हें एक नई राह दिखाई. पर्यावरण संरक्षण का संकल्प गांव लौटने के बाद शुभम ने देखा कि चतरा के जंगलों में अंधाधुंध पेड़ों की कटाई हो रही है.

kumar shubham singh
मेमने के बच्चों को संभाले हुए शुभम सिंह (Etv bharat)

पर्यावरण को हो रहे नुकसान ने अंदर से उन्हें झकझोर दिया. उन्होंने प्रण लिया कि वह अपने क्षेत्र को फिर से हरा-भरा करेंगे. 2012 में उन्होंने साढ़े 7 एकड़ बंजर जमीन पर पौधारोपण शुरू किया. लाल और सफेद चंदन, सागवान, शीशम, गम्हार, महोगनी, आम, नींबू, नाशपाती जैसे 8,000 से अधिक पौधे लगाए, जो आज विशाल वृक्षों में बदल चुके हैं. ये पेड़ न केवल पर्यावरण को संतुलित कर रहे हैं, बल्कि फल और लकड़ी के रूप में आर्थिक लाभ भी दे रहे हैं.

शुभम कहते हैं, कि मेरा मंत्र है पौधे लगाओ, हरियाली लाओ और समृद्ध हो जाओ. शुभम लाल व सफेद चंदन के 400, सागवान के बेशकीमती 1100, शीशम के 1100, गम्हार के 1100, महुगनी के 1100, आम के 600, नींबू के 1000, नाशपाती के 100 एवं अन्य पौधे लगाए. अब ये पौधे पेड़ के रूप में तब्दील होकर हरियाली बिखेर रहे और फल भी दे रहे हैं.

kumar shubham singh
खाट पर बैठे कुमार शुभम सिंह (Etv bharat)

कृषि और पशुपालन से जोड़ा पर्यावरण को शुभम ने पर्यावरण संरक्षण को केवल पौधारोपण तक सीमित नहीं रखा. उन्होंने इसे आधुनिक कृषि और पशुपालन से जोड़ा. वह दो एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. इसके अलावा, गाय, बकरी, भैंस, बत्तख, देसी मुर्गी, कड़कनाथ मुर्गी और मछली पालन भी कर रहे हैं. शुभम बताते हैं कि बत्तख और कड़कनाथ मुर्गियों से प्रतिदिन एक हजार अंडे मिलते हैं, जिससे अच्छी आमदनी हो रही है. इसके साथ ही, वह जर्मन जैसी विभिन्न नस्लों के कुत्तों की ब्रीडिंग भी कर रहे हैं, जो उनकी आय का एक और स्रोत है. आम जैसे फलदार पेड़ों से भी वह अच्छी कमाई कर रहे हैं.

kumar shubham singh
मुर्गी पालन (Etv bharat)

शुभम की खासियत यह है कि वह पारंपरिक और आधुनिक कृषि का मिश्रण करते हैं. वह लगातार नए प्रयोग करते रहते हैं, जिससे उनकी खेती और पशुपालन की तकनीक और अधिक प्रभावी हो रही है. उनकी इस पहल ने न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया, बल्कि गांव के अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा का काम किया.

रोजगार सृजन: गांव के युवाओं के लिए नई उम्मीद

शुभम की पहल का सबसे बड़ा प्रभाव गांव के युवाओं पर पड़ा है. उनके प्रयासों से गांव के एक दर्जन से अधिक युवाओं को रोजगार मिला है. सुचिता देवी, जो शुभम के यहां मजदूरी करती हैं, कहती हैं, पहले हमारे पास कोई रोजगार नहीं था. कुमार शुभम सिंह जी ने हमें काम दिया. अब मैं अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पा रही हूं. इसी तरह, अब्बास अंसारी, जो पहले कोलकाता में सिलाई का काम करते थे, अब गांव में ही शुभम के साथ काम कर रहे हैं. वह कहते हैं, अब गांव में ही अच्छी तनख्वाह मिल रही है. हमें बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती.

kumar shubham singh
हिसाब किताब रखते हुए कुमार शुभम सिंह (Etv bharat)

स्थानीय ग्रामीण रवि शंकर सिंह, कुमार शुभम सिंह की तारीफ करते हुए कहते हैं, शुभम ने पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ गांव के लोगों को रोजगार देने का काम किया है. यह काबिले तारीफ है. उनके प्रयासों से हमारा गांव हरा-भरा हो रहा है और युवाओं को रोजगार मिल रहा है.दादी सावित्री देवी से मिली प्रेरणा

दादी से मिली गांव में फिर से बसने की प्रेरणा

शुभम बताते हैं कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी प्रेरणा उनकी दादी सावित्री देवी से मिली है. सावित्री देवी एकीकृत बिहार में महिला एवं बाल आयोग की चेयरमैन रह चुकी है. 1990 के दशक में जब माओवाद अपने चरम पर था और लोग गांव छोड़कर पलायन कर रहे थे, तब सावित्री देवी ने सोहरकला नहीं छोड़ा, वह राइफल लेकर खेतों में काम करती थीं और गांव की मिट्टी से उनका गहरा लगाव था. शुभम अपनी दादी से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने सॉफ्टवेयर कंपनी की नौकरी छोड़कर गांव लौटने का फैसला किया. दादी के साथ मिलकर खेती शुरू की और धीरे-धीरे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम बढ़ाया.

भविष्य की योजना और संदेश शुभम का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण और आधुनिक कृषि के जरिए वह न केवल अपने गांव को समृद्ध करना चाहते हैं, बल्कि अन्य गांवों के लिए भी एक मॉडल प्रस्तुत करना चाहते हैं. वह कहते हैं, पर्यावरण की रक्षा और भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए हमें अभी से काम शुरू करना होगा. पौधे लगाना और उन्हें वृक्ष में तब्दील करना मेरा मिशन है. वह गांव के लोगों को भी पौधारोपण और आधुनिक खेती के लिए प्रेरित करते हैं.

शुभम की कहानी उन युवाओं के लिए एक मिसाल है, जो शहरों की चमक-दमक में खोकर अपने गांव और पर्यावरण को भूल जाते हैं. उन्होंने साबित किया है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो गांव की मिट्टी भी सोना उगल सकती है. पर्यावरण संरक्षण, आधुनिक कृषि और रोजगार सृजन के जरिए शुभम ने न केवल अपने गांव को बदला, बल्कि समाज के सामने एक नया दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया. उनकी यह यात्रा हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो अपने छोटे-छोटे प्रयासों से बड़ा बदलाव लाना चाहता है.

यह भी पढ़े: टेक्नोलॉजी की मदद से नष्ट की जा रही है अफीम की खेती, सैटेलाइट से की जा रही निगरानी

अफीम को लेकर खतरे में थानेदार, ग्राम प्रधान के जेल जाने से किसान भी खौफ में

खूंटी एसपी की अफीम को लेकर थाना प्रभारियों को हिदायत, कहा- एक्शन लें वरना कार्रवाई के लिए रहे तैयार

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