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यारों के यार.. खाने के शौकीन.. ऐसे हैं मस्तमौला लालू प्रसाद यादव, विपक्षी भी कायल - LALU PRASAD YADAV

लालू यादव के अदाज से भला कौन नहीं परिचित हैं. विपक्षी भी उनके कायल रहते हैं. पढ़ें यह विशेष रिपोर्ट.

LALU PRASAD YADAV
लालू यादव का जन्मदिन (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : June 11, 2025 at 7:04 AM IST

8 Min Read

पटना : लालू प्रसाद आज 78 साल के हो गए हैं. राष्ट्रीय जनता दल ने लालू प्रसाद के 78 वां जन्मदिन को 'सामाजिक सद्भावना दिवस' के रूप में मनाने का फैसला किया है. एक गरीब परिवार से निकलकर न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में अपनी राजनीतिक पहचान बनाने वाले लालू प्रसाद के राजनीतिक जीवन के कई ऐसे पहलू हैं जो उनको खास बनाता है.

लालू प्रसाद अपनी राजनीतिक शैली के लिए हमेशा सुर्खियों में रहे. लालू प्रसाद की राजनीतिक जीवन के कई ऐसे अंश हुए पहलू हैं जो उन्हें आम से खास बनाता है. लालू प्रसाद के राजनीतिक जीवन को लेकर ईटीवी भारत ने बिहार की राजनीति के वरिष्ठ नेताओं में से एक और लालू प्रसाद के छात्र जीवन से सहयोगी रहे वशिष्ठ नारायण सिंह से खास बातचीत की. वशिष्ठ नारायण सिंह ने कई ऐसी जानकारी साझा की जो अभी तक लालू प्रसाद के राजनीतिक जीवन के अनछुए पहलू हैं.

वशिष्ठ नारायण सिंह से बातचीत (ETV Bharat)

'छात्र जीवन से ही लोकप्रिय' : जदयू के पूर्व राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह ने बताया कि लालू यादव जेपी आंदोलन के अग्रणी नेताओं में रहे. छात्रों की समस्या को लेकर उन्होंने राजनीतिक संघर्ष शुरू किया. उनके इसी संघर्ष को देखते हुए जेपी ने उन्हें संचालन समिति का वरिष्ठ सदस्य बनाया. 1977 से लेकर 1995 तक लालू प्रसाद ने बिहार का नेतृत्व किया.

''लालू यादव के बोलने की भाषा ग्रामीण परिवेश से निकलने वाले आम लोगों की भाषा का परिचायक बना. अपने सामाजिक जीवन में उन्होंने सबों के साथ अच्छा संबंध बना कर रखा. मैं उनके स्वस्थ रहने की कामना करता हूं.''- वशिष्ठ नारायण सिंह, जदयू के वरिष्ठ नेता

सहयोगियों के साथ अच्छा संबंध : वशिष्ठ नारायण सिंह ने बताया कि जब लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उनके मंत्रिमंडल में मैं भी मंत्री बना. मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ कैसे बेहतर तालमेल बनाया जाए यह कोई लालू प्रसाद से सीखे. सरकार को चलाने के लिए अपने सभी मंत्रियों के साथ विचार करते थे. साथ बैठकर खाना खाना यह उनकी पुरानी आदत थी.

बिना पैसे दिए नाश्ता : वशिष्ठ नारायण सिंह ने लालू प्रसाद से जुड़ी हुई एक रोचक जानकारी साझा की. उन्होंने घटना का जिक्र करते हुए कहा कि आरा में एक कार्यक्रम तय हुआ था. आरा जाने के क्रम में लालू प्रसाद ने पूछा कि वहां पर कुछ खाने पीने की व्यवस्था हुई है या नहीं. तो उन्होंने बताया कि 1 बजे का कार्यक्रम है इसीलिए खाने पीने की व्यवस्था नहीं रखी गई है. लालू प्रसाद ने बताया कि तो ठीक है रास्ते में ही कुछ खा लिया जाए.

मनेर के रास्ते में लालू प्रसाद अपना काफिला रोककर एक होटल में पहुंचे. मैं भी उनके साथ था. होटल में हम लोगों के सामने मिठाई और समोसा खाने के लिए लाया गया. जैसे ही नाश्ता आया लालू प्रसाद ने होटल मालिक के सामने ही कहा कि वशिष्ठ भाई इनके होटल में कई बार नाश्ता किए हैं, ई आदमी कभी हमसे पैसा नहीं लेता है.

होटल मालिक भी बोला कि आप कोई रोज थोड़े आते हैं. नाश्ता कर जब बिना पैसा दिए गाड़ी में जब हम लोग बैठे तो मैंने लालू यादव से कहा कि तुम तो हद कर दिए, पैसा क्यों नहीं दिए? लालू यादव ने कहा कि वशिष्ठ भाई इसीलिए तो पहले कह दिए थे कि आदमी हमसे पैसा नहीं लेता है पैसा नहीं ना देना पड़ा... और फिर वह हंसने लगे.

'दोस्ती निभाने की कला' : वशिष्ठ नारायण सिंह ने लालू प्रसाद के बारे में कहा कि बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव वैसे नेता हैं जो दोस्ती निभाना जानते हैं. लालू प्रसाद की सरकार से 1994 उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. उनको इस बात की जानकारी हो गई थी कि वशिष्ठ नारायण सिंह मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाले हैं तो उन्होंने कई बार उनसे आग्रह किया कि वह इस्तीफा नहीं दें. बाद में जब उन्होंने इस्तीफा दे दिया तब उन्होंने उनसे आग्रह किया कि मंत्रिमंडल से तो अपने इस्तीफा दे दिया मेरा आग्रह है कि आप पार्टी नहीं छोड़े.

''बिहार की राजनीति में लालू यादव ऐसे नेता बने जो लोगों के आम बोलचाल की भाषा में उनके साथ संवाद करते थे. यही कारण है कि उनके भाषण का असर गांव और कई लोगों को ज्यादा पसंद आता था.''- वशिष्ठ नारायण सिंह, जदयू के वरिष्ठ नेता

पुदीना खिचड़ी के शौकीन : वशिष्ठ नारायण सिंह ने बताया कि लालू प्रसाद खाने-पीने के शुरू से शौकीन रहे हैं. न केवल खाना खाने में बल्कि खाना बनाने में भी लालू प्रसाद रुचि लेते थे. एक बार उनके साथ हम लोग बैठे थे. अचानक लालू प्रसाद को खिचड़ी खाने का मन किया. लालू प्रसाद खुद खिचड़ी बनाना शुरू किये. खिचड़ी में कई तरीके का मशाले को डाला गया. खासकर पुदीना डालकर जो खिचड़ी बनाया वह बहुत ही शानदार बना.

कप प्लेट निशान का प्रचार : राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने लालू यादव के भाषण कला को लेकर बताया कि उनके जैसा भाषण देने वाला और लोगों से संपर्क स्थापित करने वाला राजनेता अब दोबारा बिरले ही पैदा होंगे. शिवानंद तिवारी ने बताया था कि जब जनता दल में टूट हुई थी और लालू प्रसाद के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनता दल बना था, कुछ समय के लिए पार्टी का चुनाव चिह्न कप प्लेट मिला था.

इसी बीच बिहार विधानसभा उपचुनाव की घोषणा हुई. पार्टी की तरफ से रामकृपाल यादव को उम्मीदवार बनाया गया. लालू प्रसाद का फोन आया कि बाबा रामकृपाल के चुनाव प्रचार में साथ चलना है. मैं इस बात को लेकर परेशान था कि नया चुनाव चिह्न मिला है और भाषण देना है तो लोगों को कैसे समझाऊंगा. सभा स्थल पर पहुंचा तो लोगों की भारी भीड़ जुटी हुई थी. रामकृपाल यादव के पक्ष में मैंने भाषण दिया.

जब लालू प्रसाद बोलने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि गरीबों और मजदूरों के लिए जमींदारों और सामंती लोगों के घर में चाय के लिए टूटी-फूटी या जिसका उपयोग नहीं होता है वैसे कप में उनको चाय दिया जाता है. लेकिन जब लालू प्रसाद का शासन आया तो आप अब उन्हीं सामंती सोच के लोगों के सामने कब और प्लेट में चाय बैठकर पीते हैं तो इसका विरोध करने वाला कोई नहीं है.

''लालू प्रसाद सहज रूप से कप और प्लेट चुनाव चिन्ह को आम लोगों तक कैसे पहुंचा दिया यह मैंने भी नहीं सोचा था. लालू प्रसाद के इतना बोलते ही भाषण सुन रहे लोग ताली बजाने लगे. तो ऐसे लालू प्रसाद यादव अपने समस्त लोगों के साथ सहज रूप से कनेक्ट होते थे."- शिवानंद तिवारी, राजद के वरिष्ठ नेता

लालू प्रसाद की जीवनी : लालू प्रसाद यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में एक मध्यमवर्गीय यादव परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम कुंदन राय और माता का नाम मरछिया देवी था. लालू प्रसाद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से पूरी की और बाद में पटना विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक किया.

लालू प्रसाद का राजनीतिक सफर : लालू प्रसाद ने छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी थी. वे 1974 के जेपी आंदोलन में शामिल हुए, जिसने उन्हें एक जुझारू नेता के रूप में स्थापित किया.1977 में वे पहली बार लोकसभा के सदस्य चुने गए.

बिहार के मुख्यमंत्री बने : 1990 में लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने और उनकी सरकार ने गरीबों, पिछड़ों और दलितों के उत्थान के लिए कई योजनाएं शुरू कीं. उनकी छवि एक जननायक के रूप में बनी. उन्होंने अपने कार्यकाल में पिछड़ों को न केवल बोलने का अधिकार दिया बल्कि सामाजिक रूप से मुख्य धारा में जोड़ने का काम किया.

हालांकि 1996 में चारा घोटाला के आरोपों के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर सबको चौंका दिया. रेल मंत्री के रूप में 2004 में जब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार बनी, तो लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री बने. उनके कार्यकाल में भारतीय रेलवे में कई सुधार किए गए. गरीबों के लिए गरीब रथ जैसी ट्रेन चला कर उन्हें एक संदेश देने का प्रयास किया कि एसी बोगी में अब गरीब भी सफर कर सकते हैं.

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पटना : लालू प्रसाद आज 78 साल के हो गए हैं. राष्ट्रीय जनता दल ने लालू प्रसाद के 78 वां जन्मदिन को 'सामाजिक सद्भावना दिवस' के रूप में मनाने का फैसला किया है. एक गरीब परिवार से निकलकर न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में अपनी राजनीतिक पहचान बनाने वाले लालू प्रसाद के राजनीतिक जीवन के कई ऐसे पहलू हैं जो उनको खास बनाता है.

लालू प्रसाद अपनी राजनीतिक शैली के लिए हमेशा सुर्खियों में रहे. लालू प्रसाद की राजनीतिक जीवन के कई ऐसे अंश हुए पहलू हैं जो उन्हें आम से खास बनाता है. लालू प्रसाद के राजनीतिक जीवन को लेकर ईटीवी भारत ने बिहार की राजनीति के वरिष्ठ नेताओं में से एक और लालू प्रसाद के छात्र जीवन से सहयोगी रहे वशिष्ठ नारायण सिंह से खास बातचीत की. वशिष्ठ नारायण सिंह ने कई ऐसी जानकारी साझा की जो अभी तक लालू प्रसाद के राजनीतिक जीवन के अनछुए पहलू हैं.

वशिष्ठ नारायण सिंह से बातचीत (ETV Bharat)

'छात्र जीवन से ही लोकप्रिय' : जदयू के पूर्व राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह ने बताया कि लालू यादव जेपी आंदोलन के अग्रणी नेताओं में रहे. छात्रों की समस्या को लेकर उन्होंने राजनीतिक संघर्ष शुरू किया. उनके इसी संघर्ष को देखते हुए जेपी ने उन्हें संचालन समिति का वरिष्ठ सदस्य बनाया. 1977 से लेकर 1995 तक लालू प्रसाद ने बिहार का नेतृत्व किया.

''लालू यादव के बोलने की भाषा ग्रामीण परिवेश से निकलने वाले आम लोगों की भाषा का परिचायक बना. अपने सामाजिक जीवन में उन्होंने सबों के साथ अच्छा संबंध बना कर रखा. मैं उनके स्वस्थ रहने की कामना करता हूं.''- वशिष्ठ नारायण सिंह, जदयू के वरिष्ठ नेता

सहयोगियों के साथ अच्छा संबंध : वशिष्ठ नारायण सिंह ने बताया कि जब लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उनके मंत्रिमंडल में मैं भी मंत्री बना. मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ कैसे बेहतर तालमेल बनाया जाए यह कोई लालू प्रसाद से सीखे. सरकार को चलाने के लिए अपने सभी मंत्रियों के साथ विचार करते थे. साथ बैठकर खाना खाना यह उनकी पुरानी आदत थी.

बिना पैसे दिए नाश्ता : वशिष्ठ नारायण सिंह ने लालू प्रसाद से जुड़ी हुई एक रोचक जानकारी साझा की. उन्होंने घटना का जिक्र करते हुए कहा कि आरा में एक कार्यक्रम तय हुआ था. आरा जाने के क्रम में लालू प्रसाद ने पूछा कि वहां पर कुछ खाने पीने की व्यवस्था हुई है या नहीं. तो उन्होंने बताया कि 1 बजे का कार्यक्रम है इसीलिए खाने पीने की व्यवस्था नहीं रखी गई है. लालू प्रसाद ने बताया कि तो ठीक है रास्ते में ही कुछ खा लिया जाए.

मनेर के रास्ते में लालू प्रसाद अपना काफिला रोककर एक होटल में पहुंचे. मैं भी उनके साथ था. होटल में हम लोगों के सामने मिठाई और समोसा खाने के लिए लाया गया. जैसे ही नाश्ता आया लालू प्रसाद ने होटल मालिक के सामने ही कहा कि वशिष्ठ भाई इनके होटल में कई बार नाश्ता किए हैं, ई आदमी कभी हमसे पैसा नहीं लेता है.

होटल मालिक भी बोला कि आप कोई रोज थोड़े आते हैं. नाश्ता कर जब बिना पैसा दिए गाड़ी में जब हम लोग बैठे तो मैंने लालू यादव से कहा कि तुम तो हद कर दिए, पैसा क्यों नहीं दिए? लालू यादव ने कहा कि वशिष्ठ भाई इसीलिए तो पहले कह दिए थे कि आदमी हमसे पैसा नहीं लेता है पैसा नहीं ना देना पड़ा... और फिर वह हंसने लगे.

'दोस्ती निभाने की कला' : वशिष्ठ नारायण सिंह ने लालू प्रसाद के बारे में कहा कि बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव वैसे नेता हैं जो दोस्ती निभाना जानते हैं. लालू प्रसाद की सरकार से 1994 उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. उनको इस बात की जानकारी हो गई थी कि वशिष्ठ नारायण सिंह मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाले हैं तो उन्होंने कई बार उनसे आग्रह किया कि वह इस्तीफा नहीं दें. बाद में जब उन्होंने इस्तीफा दे दिया तब उन्होंने उनसे आग्रह किया कि मंत्रिमंडल से तो अपने इस्तीफा दे दिया मेरा आग्रह है कि आप पार्टी नहीं छोड़े.

''बिहार की राजनीति में लालू यादव ऐसे नेता बने जो लोगों के आम बोलचाल की भाषा में उनके साथ संवाद करते थे. यही कारण है कि उनके भाषण का असर गांव और कई लोगों को ज्यादा पसंद आता था.''- वशिष्ठ नारायण सिंह, जदयू के वरिष्ठ नेता

पुदीना खिचड़ी के शौकीन : वशिष्ठ नारायण सिंह ने बताया कि लालू प्रसाद खाने-पीने के शुरू से शौकीन रहे हैं. न केवल खाना खाने में बल्कि खाना बनाने में भी लालू प्रसाद रुचि लेते थे. एक बार उनके साथ हम लोग बैठे थे. अचानक लालू प्रसाद को खिचड़ी खाने का मन किया. लालू प्रसाद खुद खिचड़ी बनाना शुरू किये. खिचड़ी में कई तरीके का मशाले को डाला गया. खासकर पुदीना डालकर जो खिचड़ी बनाया वह बहुत ही शानदार बना.

कप प्लेट निशान का प्रचार : राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने लालू यादव के भाषण कला को लेकर बताया कि उनके जैसा भाषण देने वाला और लोगों से संपर्क स्थापित करने वाला राजनेता अब दोबारा बिरले ही पैदा होंगे. शिवानंद तिवारी ने बताया था कि जब जनता दल में टूट हुई थी और लालू प्रसाद के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनता दल बना था, कुछ समय के लिए पार्टी का चुनाव चिह्न कप प्लेट मिला था.

इसी बीच बिहार विधानसभा उपचुनाव की घोषणा हुई. पार्टी की तरफ से रामकृपाल यादव को उम्मीदवार बनाया गया. लालू प्रसाद का फोन आया कि बाबा रामकृपाल के चुनाव प्रचार में साथ चलना है. मैं इस बात को लेकर परेशान था कि नया चुनाव चिह्न मिला है और भाषण देना है तो लोगों को कैसे समझाऊंगा. सभा स्थल पर पहुंचा तो लोगों की भारी भीड़ जुटी हुई थी. रामकृपाल यादव के पक्ष में मैंने भाषण दिया.

जब लालू प्रसाद बोलने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि गरीबों और मजदूरों के लिए जमींदारों और सामंती लोगों के घर में चाय के लिए टूटी-फूटी या जिसका उपयोग नहीं होता है वैसे कप में उनको चाय दिया जाता है. लेकिन जब लालू प्रसाद का शासन आया तो आप अब उन्हीं सामंती सोच के लोगों के सामने कब और प्लेट में चाय बैठकर पीते हैं तो इसका विरोध करने वाला कोई नहीं है.

''लालू प्रसाद सहज रूप से कप और प्लेट चुनाव चिन्ह को आम लोगों तक कैसे पहुंचा दिया यह मैंने भी नहीं सोचा था. लालू प्रसाद के इतना बोलते ही भाषण सुन रहे लोग ताली बजाने लगे. तो ऐसे लालू प्रसाद यादव अपने समस्त लोगों के साथ सहज रूप से कनेक्ट होते थे."- शिवानंद तिवारी, राजद के वरिष्ठ नेता

लालू प्रसाद की जीवनी : लालू प्रसाद यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में एक मध्यमवर्गीय यादव परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम कुंदन राय और माता का नाम मरछिया देवी था. लालू प्रसाद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से पूरी की और बाद में पटना विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक किया.

लालू प्रसाद का राजनीतिक सफर : लालू प्रसाद ने छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी थी. वे 1974 के जेपी आंदोलन में शामिल हुए, जिसने उन्हें एक जुझारू नेता के रूप में स्थापित किया.1977 में वे पहली बार लोकसभा के सदस्य चुने गए.

बिहार के मुख्यमंत्री बने : 1990 में लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने और उनकी सरकार ने गरीबों, पिछड़ों और दलितों के उत्थान के लिए कई योजनाएं शुरू कीं. उनकी छवि एक जननायक के रूप में बनी. उन्होंने अपने कार्यकाल में पिछड़ों को न केवल बोलने का अधिकार दिया बल्कि सामाजिक रूप से मुख्य धारा में जोड़ने का काम किया.

हालांकि 1996 में चारा घोटाला के आरोपों के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर सबको चौंका दिया. रेल मंत्री के रूप में 2004 में जब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार बनी, तो लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री बने. उनके कार्यकाल में भारतीय रेलवे में कई सुधार किए गए. गरीबों के लिए गरीब रथ जैसी ट्रेन चला कर उन्हें एक संदेश देने का प्रयास किया कि एसी बोगी में अब गरीब भी सफर कर सकते हैं.

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