कुल्लू: देशभर में रासायनिक दवाई और खाद के प्रयोग से खेती की भूमि बंजर बनती जा रही है. वहीं, इन खेतों में पैदा होने वाले फल और सब्जियां भी जहरीले बनते जा रहे हैं. ऐसे में देशभर में किसान अब एक बार फिर से प्राकृतिक खेती की ओर मुड़ रहे हैं. ताकि उनके खेत जहर से मुक्त हो सके और फल व सब्जियां भी अच्छी गुणवत्ता की पैदा हो सके.
'प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना'
ऐसे में हिमाचल प्रदेश में भी सरकार द्वारा 'प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना' शुरू की गई है. अब तक हजारों किसान इस योजना से जुड़ चुके हैं और अपने खेतों में प्राकृतिक खेती के माध्यम से कृषि एवं बागवानी उत्पादन कर लाखों की कमाई भी कर रहे हैं. यही नहीं प्राकृतिक खेती के माध्यम से किसान अन्य लोगों को भी प्राकृतिक खेती के बारे में प्रेरित कर रहे हैं. जिसकी मदद से कई पुरुष एवं महिलाएं भी इस विधि को सीख कर रोग मुक्त जीवन शैली अपना रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के बंजार विधानसभा की बात की जाए तो यहां पर भी एक महिला द्वारा पहले तो किचन गार्डन के माध्यम से प्राकृतिक खेती की शुरुआत की गई, लेकिन आज यह महिला 15 बीघा में प्राकृतिक खेती कर रही है और हर साल लाखों की कमाई भी कर रही है. महिला अनीता देवी से प्रेरित होकर अन्य किसान भी इस विधि को अपना रहे हैं.

अनीता नेगी ने 2018 में अपनाई प्राकृतिक खेती की राह
अनीता नेगी जिला कुल्लू के बंजार विधानसभा के तरगाली गांव की रहने वाली है. अनीता नेगी ने साल 2018 में प्राकृतिक खेती के बारे में प्रशिक्षण लिया था और छोटे से खेत पर पहले प्राकृतिक खेती के तहत सब्जियां उगाई. अनीता नेगी को जब अपने खेतों में इसका अच्छा प्रभाव देखने को मिला तो उन्होंने तीन बीघा खेती पर सेब का बगीचा लगाया और इसके बीच में विभिन्न प्रकार की फसलें भी उगाई. उसका परिणाम भी काफी सकारात्मक रहा और आज अनीता नेगी 13 बीघा से अधिक भूमि पर प्राकृतिक खेती कर आत्मनिर्भर बनी हुई है.

रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल खेतों को नुकसान
बंजार की महिला किसान अनीता नेगी ने कहा कि पहले वो अपने खेतों में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करती थी. खेत में लहसुन, गोभी, मटर और टमाटर उगाती थी, जिससे ठीक ठाक मुनाफा भी होता था, लेकिन बाद में रासायनिक खेती के चलते इसके दुष्प्रभाव देखने को मिले और जमीन भी ठोस होने लगी. रासायनिक दवाओं के दुष्प्रभाव से उनके शरीर में भी कई समस्या आने लगी और कृषि का उत्पादन भी कम होने लगा.
सफल महिला किसान के कूप में अपनी पहचान बना चुकी अनीता ने कहा, "साल 2018 में बंजार में प्राकृतिक खेती के बारे में आयोजित एक कैंप में उन्होंने भाग लिया और प्राकृतिक खेती के बारे में सीखा. शुरुआती दौर में अनीता ने 12 बिस्वा जमीन से शुरुआत की और गोबर खाद का इस्तेमाल करना शुरू किया. इसका भूमि पर काफी अच्छा असर देखने को मिला और जो जमीन जो पहले बंजर हो चुकी थी, वो गोबर की खाद डालने के बाद धीरे-धीरे उर्वरक बन गई. इसके बाद मैंने 3 बीघा में प्राकृतिक कृषि का एक मॉडल तैयार किया. जिसमें मुख्य फसल सेब है, लेकिन इसके साथ-साथ मिश्रित खेती भी करती हूं और साल में उस खेत में 10-12 फसलें भी उगाती हूं".
फलदार पौधों की नर्सरी से अनीता को हो रही अच्छी कमाई
अनीता नेगी ने बताया कि अब उन्होंने नर्सरी का काम भी शुरू किया है. इससे पहले साल 2020-21 में उन्होंने सेब के 1500 पेड़ लगाए थे. अगले साल यह संख्या 15,000 हुई और फिर 20,000 पेड़ लगाए गए. इस बार उन्होंने विभिन्न फलों के 40,000 पौधे तैयार किए हैं. इन पेड़ों की अच्छी गुणवत्ता देखकर लोग इन्हें खरीद रहे हैं. ऐसे में अब वो प्राकृतिक खेती के माध्यम से सिर्फ फसल ही नहीं, बल्कि फलदार पौधों की नर्सरी से भी अच्छी कमाई कर रही हैं.

गोबर और गोमूत्र से तैयार खाद का इस्तेमाल
अनीता नेगी ने बताया कि रासायनिक खेती में हमारा खर्चा 50,000 रुपये से 1 लाख तक चला जाता था. लेकिन जब से प्राकृतिक खेती शुरू की है. तब से खर्चा केवल 10,000-15,000 रुपये तक ही रहता है. वही, प्राकृतिक खेती के लिए उन्होंने एक देसी गाय भी खरीदी हैं. वहीं, गाय के गोबर और गोमूत्र से वह खाद तैयार करती हैं. जिस कारण अब उनके खेत में उत्पादन भी बेहतर हुआ है.
प्राकृतिक खेती से तैयार सेब की कीमत ज्यादा
अनीता नेगी ने बताया कि प्राकृतिक खेती से तैयार सेब की फसल बाजार में 200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक जाती हैं. जिससे सालाना 4-5 लाख रुपये की कमाई हो जाती है. इसके अलावा उन्हें अच्छा मुनाफा नर्सरी से हो रहा है. नर्सरी से भी वह हर साल 30 से 35 लाख रुपए की आमदनी हासिल कर रही हैं. अनीता का कहना हैं कि शुरुआती दौर में उनके परिवार वाले प्राकृतिक खेती के पक्ष में नहीं थे. लेकिन मैंने पहले छह महीने मेहनत की और उन्हें दिखाया कि यह मिट्टी कैसे उपजाऊ बन सकती है. जब उन्होंने नतीजे देखे तो वे भी मेरे साथ खड़े हो गए और आज पूरा परिवार मिलकर इस काम में लगा है.

2019 में अनीता को मिली मास्टर ट्रेनर की जिम्मेदारी
प्राकृतिक खेती में सफलता के बाद अनीता नेगी को 2019 में बंजार ब्लॉक की मास्टर ट्रेनर की जिम्मेदारी दी गई. वे अब तक 36 प्रशिक्षण शिविरों में 500 से अधिक किसानों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं. जिनमें से 70 प्रतिशत महिलाएं हैं. इनमें से करीब 200 महिलाएं किचन गार्डन से लेकर खेतों तक जैविक खेती कर रही हैं और वह भी अब हर साल लाखों रुपये कमा रही हैं.
वही बंजार घाटी की महिला किसान भावना चौहान ने कहा, "रासायनिक दवाओं से पहले तो फसल अच्छी होती है, लेकिन बाद में इसके दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं. ऐसे में प्राकृतिक खेती से भूमि को नया जीवन मिल रहा है और प्राकृतिक खेती से तैयार होने वाले फसल व बागवानी उत्पादों की गुणवत्ता भी काफी बेहतर है. प्राकृतिक खेती से तैयार होने वाले पेड़ पौधों की सेहत भी काफी अच्छी होती है और फसल का भी अच्छा उत्पादन हो रहा है".
आयुर्वेद विभाग में तैनात डॉक्टर मनीष सूद ने कहा, "रासायनिक दवाओं में काफी खतरनाक केमिकल का उपयोग किया जाता है. जिससे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. गोबर और गोमूत्र से जहां कृषि के क्षेत्र में नया बदलाव देखने को मिल रहे हैं तो वहीं आयुर्वेद की दवाओं में भी गोमूत्र का उपयोग किया जाता है. ऐसे में गोमूत्र से बनी दवाओं से व्यक्ति के चर्म रोग सहित अन्य बीमारियों को भी ठीक किया जाता है".
प्राकृतिक खेती से तैयार उत्पादों को मिल रहे अच्छे दाम
आत्मा परियोजना के निदेशक डॉक्टर रितु गुप्ता ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में लाखों किसान अब प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं. इसके अलावा प्राकृतिक खेती के बारे में भी किसानों को जागरूक किया जा रहा है और विभिन्न जगह प्रशिक्षण शिविर भी लगाए जा रहे हैं. अनीता नेगी जैसी महिलाओं के प्रयास से प्राकृतिक खेती को भी बल मिला है. प्राकृतिक खेती से लोगों की भूमि जहर मुक्त हो रही है और प्राकृतिक खेती के उत्पादों को भी बाजार में अच्छे दाम मिल रहे हैं.
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