कुल्लू(बालकृष्ण शर्मा): आज के दौर में स्वरोजगार से जुड़कर युवा अपने घर-आंगन में ही खुद का सफल कारोबार खड़ा कर रहे हैं. इससे न सिर्फ उनकी बेरोजगारी दूर हो रही है, बल्कि अपने साथ वो दूसरों को भी रोजगार का मौका दे रहे हैं. सेब उत्पादन के लिए मशहूर हिमाचल प्रदेश इन दिनों पहाड़ी मधुमक्खी पालन में भी अपनी पहचान बना रहा है. यही वजह है कि अब यहां के युवा पहाड़ी मधुमक्खी पालन में अपना हाथ आजमा रहे हैं. जिससे न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है, बल्कि वो कामयाबी की 'शहद' भी चख रहे हैं. साथ ही सेब के पेड़ में फ्लावरिंग प्रक्रिया पोलिनेशन में यह मधुमक्खी सहायक साबित हो रही है.
मधुमक्खी पालन से दविंद्र को हो रही लाखों की आय
आइए आज हम आपको हिमाचल के एक ऐसे युवा से मिलाते हैं, जिन्होंने पहाड़ी मधुमक्खी पालन को अपना स्वरोजगार बनाया और आज अपनी सफलता की कहानी लिख रहे हैं. ये हैं हिमाचल के कुल्लू जिले की पिछली हार पंचायत के नेरी गांव के रहने वाले दविंद्र ठाकुर, जिन्होंने मधुमक्खी पालन कर अपना स्वरोजगार अर्जित किया है. वहीं, मधुमक्खी पालन से उनकी सेब की फसल में भी 30% तक की बढ़ोतरी हुई है. जिससे दविंद्र को डबल फायदा हो रहा है. पहाड़ी मधुमक्खी द्वारा तैयार शहद से दविंद्र ठाकुर को लाखों रुपए की आय हो रही है.


5 साल पहले दविंद्र ने शुरु किया मधुमक्खी पालन
बता दें कि दविंद्र ठाकुर ने 5 साल पहले मधुमक्खी पालन की ओर अपना कदम बढ़ाया था. मात्र दो बक्से से उन्होंने इसकी शुरुआत की थी. दविंद्र ने इसके लिए पहाड़ी मधुमक्खी को ही चुना. क्योंकि पहाड़ी मधुमक्खी बर्फीले मौसम में भी रह सकती है. जबकि इटली से आई मधुमक्खियां ठंड सहन नहीं कर पाती है. हालांकि, गर्मियों के सीजन के दौरान हरियाणा, राजस्थान से कुछ मधुमक्खी पालक इटली से लाई मधुमक्खियों के बॉक्स को लेकर हिमाचल पहुंचते हैं और 3 महीने के बाद वह वापस चले जाते हैं. ऐसे में बाकी समय फलदार पेड़ों और पौधों की पोलिनेशन के लिए मधुमक्खी का होना भी काफी आवश्यक है. दविंद्र ठाकुर ने पहाड़ी मधुमक्खी पालन शुरू किया और आज वह करीब 60 बॉक्स में मधुमक्खी पालन का कार्य कर रहे हैं. दविंद्र ने मधुमक्खी पालन के लिए सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के लिए भी आवेदन किया है, लेकिन अभी तक फिलहाल उन्हें सब्सिडी का लाभ नहीं मिल पाया है.

अपने स्वरोजगार को लेकर दविंद्र ठाकुर ने कहा, "पहाड़ी मधुमक्खी हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. यह मधुमक्खी पहाड़ के हर मौसम में पोलिनेशन की प्रक्रिया को पूरा करती है. हालांकि, जहां दूसरी मधुमक्खियां अधिक शहद का उत्पादन करती है. वहीं, पहाड़ी मधुमक्खी कम मात्रा में शहद का उत्पादन करती है. लेकिन पहाड़ी मधुमक्खी के शहद का दाम बाजार में अधिक मिलता है. क्योंकि औषधीय दवाओं में इसका प्रयोग होता है. जहां दूसरी मधुमक्खियों का शहद बाजार में 400 से ₹500 प्रति किलो तक मिल जाता है. वहीं, पहाड़ी मधुमक्खी के शहद के दाम बाजार में 2000 रुपए प्रति किलो तक मिल रहे हैं, जिससे उन्हें अच्छी आय मिल रही है. वो 60 बॉक्स से हर साल 200 किलो तक शहद का उत्पादन कर रहे हैं".
दविंद्र ने आरएसईटीआई के तहत ली मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग
दविंद्र ठाकुर ने बताया कि साल 2022 में उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक के ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरएसईटीआई) द्वारा दी जा रही मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग ली थी. उन्होंने जर्मनी की एक संस्था के माध्यम से भी इसका प्रशिक्षण लिया था. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुल्लू उत्पादक मंडल का भी उन्हें काफी सहयोग मिला. आज वह आरएसईटीआई ट्रेनिंग के मास्टर ट्रेनर हैं और हिमाचल प्रदेश के विभिन्न इलाकों में जाकर किसानों को मधुमक्खी पालन का भी प्रशिक्षण देते हैं. उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा भी मधुमक्खी पालन के लिए 80% तक सब्सिडी दी जाती है और मधुमक्खी पालन के लिए 50 बॉक्स उपलब्ध करवाए जाते हैं. एक बक्से में 20 से 25000 तक मधुमक्खियां रहती है. ऐसे में उन्होंने दो बक्से से काम शुरू किया था और आज उनके पास 60 से अधिक बक्से हैं, जिनमें पहाड़ी मधुमक्खियों द्वारा शहद का उत्पादन किया है.


बेहतर पोलिनेशन के लिए मधुमक्खियों का होना आवश्यक
दविंद्र ठाकुर ने बताया कि सेब की फसल में बेहतर पोलिनेशन के लिए मधुमक्खियों का होना आवश्यक है. ऐसे में पहाड़ों पर मधुमक्खियां ना होने के चलते अधिकतर बागवान बाहरी राज्यों से लाई जाने वाली मधुमक्खियों के बक्से पर निर्भर हैं. उन्होंने जब यह कार्य शुरू किया तो इससे उनकी सेब की फसल में भी अच्छा असर देखने को मिला. आज 5 सालों के भीतर उनकी सेब का उत्पादन पहले से 30% अधिक हो गयी है. इसके अलावा पंचायत में अन्य सेब के बगीचों में भी इसका अच्छा असर हुआ है.


पहाड़ी मधुमक्खियों के कारण पोलिनेशन की प्रक्रिया हुई बेहतर
दविंद्र ठाकुर का कहना है कि आज कई बागवान मधुमक्खियों के बक्से को किराए पर ले जाने के लिए भी आते हैं, लेकिन वह बगीचे और स्थानीय जंगल को देखते हुए किसी को भी यह बक्से किराए पर नहीं देते. सेब के अलावा भी यहां कई पेड़ पौधे पाए जाते हैं, जिन्हें पोलिनेशन की आवश्यकता है. ऐसे में उनके द्वारा पाली गई पहाड़ी मधुमक्खियों के माध्यम से पूरे इलाके में पोलिनेशन की प्रक्रिया भी अच्छी बनी हुई है और अन्य लोगों के सेब के बगीचों में भी इसके बेहतर परिणाम देखने को मिल रहे हैं.
कीट विज्ञान विशेषज्ञ डॉक्टर हरीश कुमार शर्मा ने कहा, "पहाड़ी मधुमक्खी ठंडे इलाकों में भी आसानी से रह लेती हैं. जबकि दूसरी इटेलियन मधुमक्खियों को कुछ समय के बाद शिफ्ट करना पड़ता है. क्योंकि पहाड़ी मधुमक्खी कम फूलों से भी परागण की प्रक्रिया को पूरा कर लेती हैं. दूसरी किस्म की मधुमक्खी की तादाद भी काफी अधिक होती है और उन्हें उन्हें परागण की प्रक्रिया के लिए अधिक स्थान की आवश्यकता होती हैं, लेकिन शहद का उत्पादन इटेलियन मधुमक्खी द्वारा अधिक किया जाता हैं और यह मधुमक्खियां गर्म इलाकों में ज्यादा पाई जाती हैं".
आयुर्वेद विभाग के डॉक्टर मनीष सूद का कहना है, "आयुर्वेद में शहद के कई औषधीय लाभ बताए गए हैं. पहाड़ों पर कई प्रकार के औषधीय फूल और पौधे पाए जाते है. ऐसे में पहाड़ी मधुमक्खी द्वारा इन फूलों पर परागण की प्रक्रिया की जाती हैं. इसके अलावा पहाड़ों में पेड़ों पर रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल भी बहुत कम किया जाता हैं. इसलिए इन फूलों से तैयार शहद की लोगों के बीच अधिक मांग रहती है. आयुर्वेद में भी शहद का कई बीमारियों में उपयोग बताया गया है".
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