लखनऊ : आपने अपने आसपास ऐसे लोगों को जरूर देखा होगा, जो नींद में खर्राटे लेते हैं. खर्राटे भरी नींद भले ही सुकून का कारण बनती है, लेकिन इससे कई बार आपके पार्टनर या फिर बच्चों को परेशानी हो जाती है. हालांकि जब लोगों को पता चलता है कि वह बहुत तेज खर्राटे लेते हैं, तो उन्हें भी अजीब लगता है. कई बार तो व्यक्ति की आंख खुद के खर्राटे से ही खुल जाती है.
सिविल अस्पताल हो या दूसरे बड़े मेडिकल संस्थानों में खर्राटे लेने से परेशान मरीज इलाज कराने तक पहुंच रहे हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक, खर्राटे तब आते हैं जब सोते समय व्यक्ति की सांस लेने के रास्ते में रुकावट पैदा होती है, जिसके कारण हवा के फ्लो से गले के ऊतकों में कंपन होता है. यह कई कारणों से हो सकता है, जैसे कि गले के ऊतकों का भारी होना, जीभ का बड़ा आधार या नाक में रुकावट.
लाइफ स्टाइल में बदलाव से आते हैं खर्राटे : खर्राटे का इलाज कई तरीकों से किया जा सकता है, जिनमें घरेलू उपचार, लाइफ स्टाइल में बदलाव और कुछ मामलों में इलाज भी शामिल है. इसके अलावा कई ऐसी अत्याधुनिक मशीन भी हैं, जिनके जरिए मरीज को मॉनिटर किया जाता है. उस हिसाब से उनके आगे का ट्रीटमेंट शुरू किया जाता है.
सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉ. राजेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि खर्राटे आने के कई कारण होता है. कभी-कभी किसी को सांस लेने में तकलीफ होती है या रुकावट होती है जिसकी वजह से खर्राटे आते हैं. कई लोगों का वजन उनकी लंबाई और उम्र के हिसाब से अधिक होता है, उसकी वजह से भी खर्राटे आते हैं. खर्राटे लेना किसी भी तरह से सेहत के लिए ठीक नहीं है.

सेहत पर पड़ता है असर : डॉ. राजेश ने कहा, अगर किसी व्यक्ति को खर्राटे आते हैं तो उसकी लाइफ स्टाइल ठीक नहीं है. रुटीन सही नहीं है. जिसके कारण उसकी सेहत पर असर पड़ा है. यह कई बड़ी बीमारियों का संकेत देती हैं. ऐसे लोगों में हाई ब्लड प्रेशर का खतरा हमेशा बना रहता है. फेफड़ों के वैस्कुलर फंक्शन खराब होने का भी खतरा बना रहता है.
उन्होंने कहा कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सोते समय खर्राटे लेते हैं और कुछ ही पल में उनकी आंखें खुद के ही खर्राटे से खुल जाती है. उसके बाद वह दोबारा सोते हैं यानी अपने ही खर्राटे को वह महसूस कर लेते हैं. उन्होंने कहा कि स्लीप एपनिया वह स्थिति है, जिसमें सोते समय सांस नहीं आती है. स्लीप एपनिया होने के पीछे का मुख्य कारण वायु मार्ग में रुकावट (ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया) हो सकता है. इसके अतिरिक्त मस्तिष्क का सांस पर नियंत्रण न होना भी इस समस्या का कारण है.
उन्होंने कहा कि यह रोग बुजुर्ग पुरुषों में बहुत आम है, लेकिन वर्तमान में हर उम्र के लोग इस स्थिति का सामना कर रहे हैं. महिलाओं में मेनोपॉज के बाद यह समस्या अधिक गंभीर हो गई है.

रोजाना 10-15 मरीज आ रहे : सिविल अस्पताल के सीनियर ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. पंकज ने बताया कि खर्राटे से निजात पाने के लिए रोजाना 10 से 15 मरीज ओपीडी में आते हैं. जिनकी यह शिकायत होती है कि उन्हें भयानक खर्राटे आते हैं और वह इससे निजात पाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि खर्राटे आना कोई छोटी बात नहीं है, यह आपकी पूरी दिनचर्या को दर्शाता है और आपकी बिगड़ी लाइफ स्टाइल को दिखाता है. खर्राटे आने के बहुत सारे कारण होते हैं. किसी को वजन की वजह से खर्राटे आते हैं तो किसी को सांस लेते समय रूकावट होती है.
उन्होंने कहा कि मोटे व्यक्ति को सबसे अधिक खर्राटे की शिकायत होती है. ओपीडी में जो भी मरीज आते हैं उनमें देखा जाता है कि जिनका वजन अधिक होता है, वह खर्राटे लेते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों में कार्डियक अरेस्ट आने की संभावनाएं अधिक रहती है. उन्होंने कहा कि एक इंटरनेशनल लेवल के रिसर्च में पाया गया कि जो अपनी सेहत का ख्याल नहीं रखते हैं और उन्हें खर्राटे आते हैं, उन्हें फेफड़ों में समस्या हो सकती है. कई बार फेफड़ा कैंसर होने की संभावना भी बढ़ जाती है.

सी-पैप सबसे अच्छा ट्रीटमेंट : उन्होंने कहा कि इसके सुधार के लिए कई ट्रीटमेंट हैं. सबसे अच्छा ट्रीटमेंट कंटीन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (सी-पैप) होता है. उन्होंने बताया कि यह एक तरह की मशीन है. जिस पर व्यक्ति को डीप स्लीपिंग मोड पर किया जाता है और उसकी काउंसलिंग के तहत उसका पूरा ट्रीटमेंट किया जाता है.
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पल्मोनरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. सूर्यकांत त्रिपाठी ने बताया कि खर्राटे से परेशान मरीजों काको अत्याधुनिक उपकरण के तहत इलाज कराया जाता है. सी-पैप मशीन ट्रीटमेंट सबसे बेहतर उपाय है. उन्होंने कहा कि हाल ही में शिकागो में खर्राटे पर इंटरनेशनल लेवल पर रिसर्च किया गया. जिसमें पाया गया कि जिन व्यक्तियों को खर्राटे आते हैं, उनको फेफड़ा कैंसर होने की संभावना अधिक होती है.
हालांकि, उत्तर प्रदेश में इस तरह के मामले अभी नहीं आए हैं. कुछ अन्य राज्यों में गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में इस तरह के मरीज मिले हैं. विभाग फेफड़े कैंसर से पीड़ित मरीजों पर रिसर्च कर रहा है. जो भी मरीज भर्ती हैं, उनकी काउंसलिंग की जा रही है जिससे यह पता चल सकें कि मरीज के फेफड़े कैंसर का मुख्य कारण क्या है.

महंगा नहीं इलाज : उन्होंने कहा कि केजीएमयू , पीजीआई और लोहिया यह बड़े मेडिकल संस्थान हैं, जहां पर इसका इलाज होता है. अत्याधुनिक ट्रीटमेंट उपलब्ध है, जिससे मरीज खर्राटों से निजात पा सकता है. इस संस्थान में ट्रीटमेंट का बहुत अधिक खर्च नहीं आता है या निर्भर करता है कि मरीज को किस स्तर की दिक्कत है. इसके लिए बहुत सारी दवाई उपलब्ध है. लेकिन, दवाइयां लॉन्ग टर्म के लिए नहीं होती है. 10 हजार से 50 हजार के बीच में मरीज का इलाज हो जाएगा. कई बार इससे काम भी कीमत में मरीज का ट्रीटमेंट होता है. अगर कोई मरीज किसी सरकारी योजना के तहत ट्रीटमेंट कराता है तो उसका निशुल्क इलाज होता है.
होती है यह दिक्कत -
- दिन में बहुत ज्यादा आलस आए.
- ध्यान लगाना मुश्किल हो.
- सुबह सिर में दर्द हो.
- गले में खराश हो.
- रात में हांफने लगें या दम घुटने लगे.
इन दिक्कतों के कारण आते हैं खर्राटे-
टॉन्सिल, साइनस भी कारक : कुछ लोगों में खर्राटे टॉन्सिल या एडेनोइड्स के बढ़ने, साइनस की सूजन या नाक की हड्डी के मुड़ने के कारण भी हो सकते हैं. ऐसे में मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है.
मांसपेशियों का शिथिल होना : जब आप सोते हैं, तो आपके गले की मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं, जिससे हवा के मार्ग में रुकावट पैदा हो सकती है.
ऊतकों का फड़कना : गले और नाक के ऊतक (जैसे मोटा ओंठ, मुलायम तालु) हवा के प्रभाव से कंपन करते हैं, जिससे खर्राटों की आवाज आती है.
वायुमार्ग का संकुचन : यदि आपका वायुमार्ग छोटा या संकीर्ण है, तो हवा के प्रवाह में बाधा आ सकती है.
शारीरिक संरचना : कुछ लोगों में वायुमार्ग की शारीरिक संरचना के कारण भी खर्राटे आ सकते हैं, जैसे कि छोटा मुंह, मोटा मुलायम तालु, या मोटा ओंठ.
वजन बढ़ना : लम्बाई व उम्र के हिसाब से अधिक वजन खासकर गर्दन के आसपास, वायुमार्ग पर दबाव डाल सकता है, जिससे खर्राटे आ सकते हैं.
शराब और दवाएं : शराब और कुछ दवाएं ऐसी होती हैं जो गले की मांसपेशियों को आराम देती हैं, जिससे वायुमार्ग सिकुड़ सकता है.
एलर्जी या सर्दी : नाक जाम और गले में सूजन भी खर्राटों को ट्रिगर कर सकती है.