गया: ईद उल अजहा जिसे बकरीद भी कहा जाता है, बकरीद त्याग, सच्चाई और अच्छे रास्ते पर चलने की भावना पैदा करता है. ये इस्लाम धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. बकरीद के तीन दिनों तक मुसलमान कुर्बानी की रसम निभाकर पैगंबर इब्राहिम की ऐतिहासिक फैसले और त्याग को याद करते हैं. इस्लाम धर्म में कोई भी त्योहार की तारिख अरबी कैलेंडर और 'चंद्रमा के दिखने' पर आधारित डेट के अनुसार मनाया जाता है.
कब दिखा जिल हिज्जा का चांद: देश में 28 मई 2025 को इस बार अरबी महीना 'जिल हिज्जा' का चांद दिखा था, चांद दिखने के दस दिन बाद को बकरीद मनाई जाती है. इस बार 2025 में 7 जून को भारत समेत कई देशों में बकरीद मनाई जा रही है. ईद की तरह ही ईद उल अजहा की सूरज निकलने के बाद नमाज अदा की जाती है. नमाज के बाद ही कुर्बानी की रस्म शुरू होती है.
तीन दिनों तक होती है कुर्बानी: अरबी कैलेंडर के दसवीं तारीख को ईद उल अजहा की पहले नमाज अदा की जाती है, फिर कुर्बानी शुरू होती है. कुर्बानी तीन दिनों तक चलती है, 10, 11 और 12 जिल हिज्जा तक कुर्बानी होती है. यानी इस बार 7 जून से कुर्बानी की रस्म शुरू होगी जो 9 को खत्म होगी. तीन दिनों में किसी भी दिन मुसलमान कुर्बानी कर सकते हैं लेकिन पहले दिन करना खास बताया गया है.
ईद उल अजहा का इतिहास: बकरीद का मूल भाव पैगंबर इब्राहिम की एक परीक्षा से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने प्रिय पुत्र इस्माइल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी देने का निश्चय किया था. इस्लाम धर्म के एक विद्वान सलाहुद्दीन फरहाद कहते हैं कि इस दिन हजरत इब्राहिम को अल्लाह की ओर से जो सपना आया कि अपने बेटे पैगंबर इस्माइल अलैहिस्सलाम को जबह कर रहे हैं, उसी सपने पर पैगंबर इब्राहिम ने अमल किया था, उन्होने जो सपना देखा था वो साधारण सपना नहीं था, बल्कि अल्लाह का आदेश था.

सपने को हकीकत में बदला: पैगंबर इब्राहिम ने अपने सपने के संबंध में अपने बेटे पैगंबर इस्माइल को बताया. कहा कि आल्हा का हुक्म है कि तुम्हारी कुर्बानी दें, हालांकि पिता पैगंबर इब्राहिम के लिए भी आसान नहीं था क्योंकि पैगंबर इब्राहिम को 100 की उम्र में इस्माइल की शक्ल में पुत्र की प्राप्ति हुई थी. इकलौते बेटे की कुर्बानी के लिए वो तैयार हो गए थे.
पैगंबर इब्राहीम बेटे की कुर्बानी देने को हुए तैयार: पिता की बातों को सुनकर बेटे ने भी खुशी खुशी कहा, 'अब्बा जान, जो हुक्म आपको दिया गया है उसे पूरा कीजिए,अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे सब्र करने वालों में पाएंगे.' तभी पैगंबर इब्राहीम ने अल्लाह की आज्ञा मानकर उसका पालन किया और अपने बेटे को लेकर कुर्बानी के लिए निकल गए.
पैगंबर इब्राहीम की ली गई परीक्षा: पैगंबर इब्राहीम अपने बेटे को एक जगह पर ले जा कर मूंह के बल लेटा कर कुर्बान करने का प्रयास करने लगें, तभी अल्लाह ने उन्हें रोक दिया. कहा जाता है कि एक दुंबा (बकड़ा) भेजा ताकि उसकी कुर्बानी दी जाए. अल्लाह का यह आदेश पैगंबर इब्राहीम के लिए एक परीक्षा थी, जिसमें वह सफल हुए.

बकरीद मां की ममता का दिन: बकरीद के संबंध में खानकाह मोनामिया चिश्तिया के संचालक सैयद अता फैसल कहते हैं कि बकरीद कुरबानी, प्रेम, मां की ममता और अल्लाह के हुक्म को मानने के रूप में जाना जाता है. बकरीद के अवसर पर इस्लाम धर्म के पवित्र स्थान मक्का में हज होता है, जो कि आर्थिक रूप से समर्थ मुसलमान के लिए अनिवार्य है.
बकरीद मां की ममता का दिन: हज के दौरान की प्रक्रिया में एक प्रक्रिया जिसे अरबी में 'सई' कहा जाता है. जब पैगंबर इब्राहिम की पत्नी बीबी हाजरा अपने पुत्र पैगंबर इस्माइल को प्यासा देखकर तड़प गई और मक्का के रेगिस्तान की पहाड़ियों जिसका नाम 'साफा मरवा पहाड़ी' है उस के बीच पानी की तलाश में दौड़ने लगी.
"बीबी हाजरा अपने पुत्र पैगंबर इस्माइल को प्यासा देखकर तड़पकर दैड़ने लगी तो अल्लाह ने इस मां को दौड़ता देख हर हाजी के लिए सफा मरवा पहाड़ी की दौड़ लगाना अनिवार्य कर दिया. जिसके बिना हज पूरा नहीं हो सकता."- सैयद अता फैसल, संचालक, खानकाह मोनामिया चिश्तिया
पैगंबर इब्राहिम के समय से हो रही कुर्बानी: पैगंबर इब्राहिम और उनके पुत्र इस्माइल से जुड़ी याद के लिए अल्लाह ने जानवर की कुर्बानी को ये दुनिया जब तक है तब तक के लिए जारी रखने का आदेश दिया था. तब से लेकर आजतक कुर्बानी का सिलसिला चल रहा है. सलाहुद्दीन फरहाद कहते हैं कि इसका उद्देश्य त्याग की भावना जगाना और अल्लाह की राह में अपना सबकुछ कुर्बान कर देने की प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति है. कुर्बानी ईमान, सब्र और आज्ञाकारिता का प्रतीक है. ईद की नमाज के बाद जानवर की प्रतिकात्मक कुर्बानी दी जाती है.
किस को करनी होती है कुर्बानी: वही व्यक्ति कुर्बानी कर सकता है जो समझदार और वयस्क हो, जिसके पास अपनी जरूरत से ज्यादा धन हो. कम से कम यह धन साढ़े बावन तोला चांदी या उसकी कीमत के बराबर होना चाहिए. यह वह न्यूनतम धन है जो कुर्बानी को फर्ज बनाता है, इस में पुरुष और महिला दोनों शामिल हैं जो कुर्बानी कर सकते हैं.
क्या है कुर्बानी के फर्ज की शर्ते: कुर्बानी करने के लिए कुछ शर्त है. जिसमें शख्स का समझदार और वयस्क होना, अपनी जरूरत से अधिक धन होना, कुर्बानी बकरीद के तीन दिनों तक ही की जासकती है. ईद की नमाज से पहले अगर कोई कुर्बानी करता है तो वो सदका होगा ना कि कुर्बानी इसलिए नमाज के बाद ही कुर्बानी की जाती है. घर के परिवार का जिम्मेदार व्यक्ति पूरे परिवार की ओर से कुर्बानी कर सकता है. विकलांग या बुजुर्ग व्यक्तियों वाले परिवार में 5 साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली माताएं ऐसे लोगों पर कुर्बानी करना अनिवार्य नहीं है.
कुर्बानी में क्या है जायज: सलाहुद्दीन फरहाद कहते हैं कि बकरे के अलावा कई ऐसे जानवर हैं, जिनकी कुर्बानी इस्लाम में जायज है. वहीं जो जानवर बीमार हो उनकी कुर्बानी देना जायज नहीं है. इसके अलावा गर्भवती जानवर की कुर्बानी को भी इस्लाम में मना किया गया है. इस्लाम धर्म के अनुसार कुर्बानी के लिए बकरा, बकरी और भेड़ की उम्र 1 साल होना जरूरी है. कुर्बानी के लिए कोई एक जानवर फर्ज नहीं है, कुर्बानी के समय कोई दिखावा न करें, बल्कि अल्लाह की इबादत समझ कर कुर्बानी करना चाहिए.
कुर्बानी के समय क्या नहीं करें: जामिया बरकत ए मंसूर के सचिव मौलाना अफान जामी कहते हैं कि कुर्बानी करते समय कुछ चीजों का ख्याल रखना अनिवार्य है. खासतौर पर सार्वजनिक स्थानों पर कुर्बानी नहीं करनी चाहिए, गली मोहल्लों सड़कों पर या पार्क किसी भी सार्वजनिक स्थान पर कुर्बानी बिल्कुल नहीं करनी चाहिए. ख्याल रखें कि इसमें धार्मिक भावनाओं को ठेस ना पहुंचाएं, किसी भी ऐसे कार्य से बचें जिससे किसी अन्य धर्म या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचे.
"त्योहार आपसी सौहार्द के साथ मनाना चाहिए, आपसी सौहार्द बनाए रखें, सभी समुदायों के साथ भाईचारे और सद्भाव की भावना को बढ़ावा दें. कानून का पालन करें स्थानीय कानून और नियमों का कड़ाई से पालन खुद से करें. निर्धारित स्थानों पर ही कुर्बानी की जाए. कुर्बानी केवल उन्हीं स्थानों पर हो जो जिसके लिए स्थान अधिकृत और निर्धारित किए गए हैं. खुले में या सार्वजनिक स्थानों पर कुर्बानी हरगिज नहीं करें. स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें."- मौलाना अफान जामी, सचिव, जामिया बरकत ए मंसूर
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