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नकली दवाई से बचने के लिए मेडिकल स्टोर पर बरतें सावधानी, जानिए कैसे होता है ठगी का खेल - FAKE MEDICINE BUSINESS

ब्रांडेड दवाई का होता है डॉक्टर के लिए प्रमोशन, इसलिए जेनेरिक दवाई से होती है महंगी, दवाइयों में भी शुरू कर दी गई कमाई

नकली दवाइयों का कारोबार
नकली दवाइयों का कारोबार (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : April 13, 2025 at 4:46 PM IST

10 Min Read

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में अभी हाल ही में ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट और पुलिस ने दवाओं के बहुत बड़े थोक बाजार भागीरथ पैलेस में छापा मार कर नकली दवाई पकड़ी थी. यह पहला मामला नहीं है, जब भगीरथ पैलेस में नकली दवाई पकड़ी गई हो. इससे पहले पिछले साल भी भागीरथ पैलेस और दरियागंज में बड़ी मात्रा में नकली दवाई पकड़ी गई थी. साथ ही दिल्ली के दो निजी अस्पतालों से भी कैंसर और किडनी की 8 करोड रुपये की नकली दवाई पकड़ी गई थी. नकली दवाओं का पकड़ा जाना गंभीर मामला है. इन नकली दवाओं की आड़ में मेडिकल स्टोर संचालक मोटा मुनाफा तो कमाते हैं साथ ही मरीज की जान को भी जोखिम में डाल देते हैं. नकली दवाई के चलते मरीज के परिजन लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी मरीज की बीमारी को ठीक नहीं करा पाते. कई बार तो नकली दवाओं के चलते मरीज की जान भी चली जाती है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर नकली दवाओं से आम आदमी कैसे बचे. भोले भाले लोग डॉक्टर की लिखी हुई दवाओं को लेने के लिए मेडिकल स्टोर पर जाते हैं. लेकिन, कई बार जब उन्हें नकली दवाई थमा दी जाती है, जिसको वो पहचान नहीं पाते हैं उससे बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है.

इसको लेकर रिटेल डिस्ट्रीब्यूटर और केमिस्ट एलायंस (आरडीसीए) के दिल्ली के जोनल हेड डॉक्टर बसंत गोयल का कहना है कि जब भी कोई व्यक्ति मेडिकल स्टोर से दवाई खरीदने जाए तो उसको दवाई का बिल जरूर लेना चाहिए. साथ ही उसे दवाई के बैच नंबर और एक्सपायरी डेट जरूर चेक करनी चाहिए. अगर हम बिल से दवा लेंगे तो कोई भी व्यक्ति हमारे साथ धोखाधड़ी करने से पहले सोचेगा. साथ ही बिल से दवाई लेने में इस बात की संभावना बहुत कम है कि वह आपको नकली दवाई देने का प्रयास करे. नकली दवाई देने का काम वही लोग करते हैं जो बिना बिल के दवा खरीदते हैं तो आगे भी बिना बिल के दवा देते हैं. मरीजों की जान को जोखिम में डालते हैं. डॉक्टर गोयल ने बताया कि दिल्ली में छोटे बड़े 25000 मेडिकल स्टोर संचालक हैं. इन सभी के बीच कोआर्डिनेशन करने का काम आरडीसीए द्वारा किया जाता है. इन सभी मेडिकल स्टोर के खिलाफ नकली दवाई को लेकर जांच करने का अधिकार ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट के पास है. दिल्ली में ड्रग कंट्रोल विभाग के प्रमुख केआर चावला के द्वारा कई बार अभियान चला करके नकली दवाइयां पकड़ी गई हैं यह एक अच्छा प्रयास है. ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट भी आरडीसीए के साथ मिलकर काम करता है. आरडीसीए के अध्यक्ष संदीप नांगिया जी हैं.

ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट में बढ़े स्टाफ: डॉ बसंत गोयल ने बताया कि दिल्ली के ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट के द्वारा समय-समय पर नकली दवाई को लेकर छापामार कार्रवाई की जाती है. लेकिन यह कार्रवाई में लगातार चले इसके लिए जो ड्रग कंट्रोल डिपार्मेंट है, उसमें स्टाफ बढ़ाने की जरूरत है. वहां पर भी स्टाफ की कमी चल रही है. ऐसे में दिल्ली सरकार को ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट में स्टाफ की भर्ती करनी चाहिए, इसके लिए भी हम दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री डॉ पंकज कुमार सिंह से बात करेंगे. ताकि नकली दवा विक्रेताओं के खिलाफ निरंतर कार्रवाई हो सके. डॉक्टर बसंत गोयल ने कहा कि दिल्ली के भागीरथ पैलेस में बड़े स्तर पर नकली दवाओं का कारोबार होता चला रहा है. बहुत बार छापेमारी भी हुई है. लेकिन, पूरी तरह से इस कारोबार पर नकेल कसने में सफलता नहीं मिली है. इसके खिलाफ सख्ती से अभियान चलाया जाना चाहिए.

डॉक्टर बसंत गोयल से बातचीत (ETV Bharat)

डिस्काउंट के पीछे है खेल: कुछ दुकानदार 10 प्रतिशत तो कुछ 20 प्रतिशत तक दवाई पर छूट दे रहे हैं. इस सवाल को लेकर डॉक्टर गोयल ने कहा कि कुछ लोग बिना बिल के दवा खरीदते हैं तो वह आगे भी बिना बिल के डिस्काउंट देकर दवा बेचने का काम कर रहे हैं. लेकिन, इस तरह से दवाई खरीदने में नुकसान की संभावना ज्यादा रहती है. बिना बिल के कई बार नकली दवाई मिलने की आशंका बनी रहती है. जो सही दुकानदार हैं और बिल से दवाई लेते हैं और देते हैं, वह कभी डिस्काउंट नहीं देते हैं. हमारे गोयल मेडिकल पर भी एमआरपी पर ही दवाई दी जाती है. किसी भी तरह का डिस्काउंट हम नहीं देते हैं. इसी तरह और भी मेडिकल स्टोर संचालक हैं, जो बिना डिस्काउंट के दवाई बेचते हैं. आप देख सकते हैं कि जितने भी बड़े अस्पताल हैं, मेदांता हो फोर्टिस हो उन अस्पतालों में भी किसी भी तरह की दवाई पर कोई डिस्काउंट नहीं मिलता है. सभी दवाई एमआरपी पर ही मिलती है. इसलिए मैं दुकानदार भाइयों से भी अपील करना चाहता हूं कि सही बिल से दवाई लें और बिल से दवाई दें. डिस्काउंट के सभी बोर्ड मार्केट से हट जाने चाहिए, मैं कहना चाहता हूं कि सभी मेडिकल स्टोर वाले भाई यह मान करके दवाई दें कि हम खुद ही कस्टमर हैं. अगर गलती से कभी कोई गलत दवाई किसी भी मेडिकल स्टोर संचालक के घर में चली गई और उससे कोई मिशहैपनिंग हो गई तो जिंदगी भर वह अपने आप को माफ नहीं कर पाएंगे. इस बात का भी ध्यान रखें.

सभी दवाओं पर आना शुरू होगा क्यूआर कोड: डॉक्टर बसंत गोयल ने बताया कि अभी कुछ दवाओं पर क्यूआर कोड आना शुरू हो गया है. उसको स्कैन करते ही दवा के बारे में पूरी जानकारी ली जा सकती है. वहीं, आने वाले समय में सभी दवाओं पर क्यूआर कोड आना शुरू हो जाएगा, जिससे लोगों को दवाओं के बारे में जानकारी लेने में मुश्किल नहीं होगी. वह अपने फोन से जैसे ही क्यूयूआर कोड को स्कैन करेंगे उस दवाई के बैच नंबर, एक्सपायरी, मैन्युफैक्चरिंग और साल्ट के बारे में सारी जानकारी आ जाएगी. इससे नकली दवा पर भी रोक लगने की पूरी संभावना है, क्योंकि नकली दवा बनाने वाले दवाई पर क्यूआर कोड देने से बचना चाहेंगे.

पूरे देश में हैं दवाई के एक ही रेट को लेकर पॉलिसी: डॉ बसंत गोयल ने बताया कि पूरे देश में जीएसटी लागू होने के बाद से दवाई के एक ही रेट हैं. दवाई को कॉस्टिंग भी सेम है. लेकिन जब लोग होलसेल में बिना बिल के दवाई खरीदते हैं तो उस पर जीएसटी नहीं देते हैं, जिससे कि वह दवाई उनको सस्ती पड़ जाती है. फिर वह आगे रेटेल में भी लोगों को डिस्काउंट देकर बिना बिल दवाई बेचना शुरू कर देते हैं. इस वजह से एक ही दवाई के अलग-अलग रेट हो जाते हैं. हालांकि, यह व्यवस्था भी बंद होनी चाहिए, क्योंकि दवाई में जो रिटेलर है उनका कुल मार्जिन ही 20 से 22% होता है तो वह आगे 10 से 20% डिस्काउंट कैसे दे सकते हैं. इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि ईमानदारी के साथ सही दवाई हो, सही रेट में बेचे और उस पर अपना जायज मुनाफा कमाए और ग्राहकों के विश्वास को भी बनाए रखें.

ब्रांडेड और जेनेरिक दवा में है सिर्फ नाम का अंतर: आजकल मार्केट में जेनेरिक और ब्रांडेड दवा को लेकर के भी बहुत सारी बातें चलती हैं. इसमें क्या अंतर है? इसको लेकर डॉक्टर बसंत गोयल ने कहा कि जेनेरिक और ब्रांडेड दवा में सिर्फ नाम का अंतर होता है. जेनेरिक दवा उदाहरण के तौर पर पेरासिटामोल जेनेरिक है, क्योंकि वह साल्ट के नाम से मिलती है क्रोसिन इस दवा का ब्रांडेड नाम है, जो कंपनी के नाम से मिल रही है. लेकिन इसमें भी पेरासिटामोल साल्ट ही है. बस अंतर इतना है कि जिस जेनेरिक दवा का रेट 5 रूपये होता है उसी ब्रांडेड दवा का रेट 25 रूपये होता है. इसलिए प्रधानमंत्री जन औषधि योजना में जो दवाएं दी जा रही हैं वह सभी जेनेरिक दवाएं हैं और सस्ते रेट पर जनता को सुलभ तरीके से प्राप्त हो रही हैं. यह भी सरकार का अच्छा प्रयास है.

इसलिए ज्यादा होता है ब्रांडेड दवा का रेट: डॉ बसंत गोयल ने बताया कि पहले जमाना यह था कि मरीज डॉक्टर के पास जाता था. डॉक्टर अपनी फीस लेता था और दवाई लिखता था. बस इतने तक ही बात सीमित होती थी. लेकिन, अब डॉक्टरों ने अपनी फीस लेने के अलावा दवाई में भी कमीशन खाना शुरू कर दिया है. हर मेडिकल स्टोर संचालक से डॉक्टर का कमीशन फिक्स होता है. डॉक्टर वही दवाई लिखते हैं जिसमें उनको ज्यादा कमीशन मिल सके. ब्रांडेड दवा का रेट इसलिए ज्यादा होता है कि वह डॉक्टर को प्रमोट होती है. कंपनी के मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव डॉक्टर के पास जाकर के दवाई का प्रमोशन करते हैं और उन्हें उसमें कितना कमीशन मिल सकता है. इसकी जानकारी देते हैं. इसलिए अपना फायदा कमाने के चक्कर में डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं और उनकी कमीशन की वजह से ही वह दवाएं जनता को अधिक रेट में मिलती हैं. जबकि जेनेरिक दवाई डॉक्टर को प्रमोट नहीं की जाती है. इसलिए डॉक्टर जेनरिक दवाई नहीं लिखते और उनका रेट बहुत कम होता है.

कुछ डॉक्टर करा रहे हैं खुद की दवाई मैन्युफैक्चर: इस सवाल पर कि कई बार डॉक्टर द्वारा लिखे गए पर्चे में से कुछ दवाइयां तो बाहर मिलती हैं. लेकिन, एक-दो दवाइयां बाहर कहीं भी नहीं मिलती. इसके पीछे क्या सच्चाई है? इस सवाल पर डॉक्टर बसंत गोयल ने बताया कि कुछ डॉक्टर ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में एक दो दवाइयां को खुद से भी मैन्युफैक्चर करा लेते हैं. साथ ही उन दवाइयों में एक दो साल्ट का ऐसा कॉबीनेशन बना देते हैं जो बाहर कहीं भी नहीं मिल सकती है. ऐसी दवाइयां में वह मोटा मुनाफा कमाते हैं. लोगों को कहीं और दवाई न मिलने की वजह से मजबूर होने से वह दवाई कई गुना महंगी दामों में खरीदनी पड़ती है. इस तरह का काम भी बहुत से डॉक्टर कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में अभी हाल ही में ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट और पुलिस ने दवाओं के बहुत बड़े थोक बाजार भागीरथ पैलेस में छापा मार कर नकली दवाई पकड़ी थी. यह पहला मामला नहीं है, जब भगीरथ पैलेस में नकली दवाई पकड़ी गई हो. इससे पहले पिछले साल भी भागीरथ पैलेस और दरियागंज में बड़ी मात्रा में नकली दवाई पकड़ी गई थी. साथ ही दिल्ली के दो निजी अस्पतालों से भी कैंसर और किडनी की 8 करोड रुपये की नकली दवाई पकड़ी गई थी. नकली दवाओं का पकड़ा जाना गंभीर मामला है. इन नकली दवाओं की आड़ में मेडिकल स्टोर संचालक मोटा मुनाफा तो कमाते हैं साथ ही मरीज की जान को भी जोखिम में डाल देते हैं. नकली दवाई के चलते मरीज के परिजन लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी मरीज की बीमारी को ठीक नहीं करा पाते. कई बार तो नकली दवाओं के चलते मरीज की जान भी चली जाती है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर नकली दवाओं से आम आदमी कैसे बचे. भोले भाले लोग डॉक्टर की लिखी हुई दवाओं को लेने के लिए मेडिकल स्टोर पर जाते हैं. लेकिन, कई बार जब उन्हें नकली दवाई थमा दी जाती है, जिसको वो पहचान नहीं पाते हैं उससे बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है.

इसको लेकर रिटेल डिस्ट्रीब्यूटर और केमिस्ट एलायंस (आरडीसीए) के दिल्ली के जोनल हेड डॉक्टर बसंत गोयल का कहना है कि जब भी कोई व्यक्ति मेडिकल स्टोर से दवाई खरीदने जाए तो उसको दवाई का बिल जरूर लेना चाहिए. साथ ही उसे दवाई के बैच नंबर और एक्सपायरी डेट जरूर चेक करनी चाहिए. अगर हम बिल से दवा लेंगे तो कोई भी व्यक्ति हमारे साथ धोखाधड़ी करने से पहले सोचेगा. साथ ही बिल से दवाई लेने में इस बात की संभावना बहुत कम है कि वह आपको नकली दवाई देने का प्रयास करे. नकली दवाई देने का काम वही लोग करते हैं जो बिना बिल के दवा खरीदते हैं तो आगे भी बिना बिल के दवा देते हैं. मरीजों की जान को जोखिम में डालते हैं. डॉक्टर गोयल ने बताया कि दिल्ली में छोटे बड़े 25000 मेडिकल स्टोर संचालक हैं. इन सभी के बीच कोआर्डिनेशन करने का काम आरडीसीए द्वारा किया जाता है. इन सभी मेडिकल स्टोर के खिलाफ नकली दवाई को लेकर जांच करने का अधिकार ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट के पास है. दिल्ली में ड्रग कंट्रोल विभाग के प्रमुख केआर चावला के द्वारा कई बार अभियान चला करके नकली दवाइयां पकड़ी गई हैं यह एक अच्छा प्रयास है. ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट भी आरडीसीए के साथ मिलकर काम करता है. आरडीसीए के अध्यक्ष संदीप नांगिया जी हैं.

ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट में बढ़े स्टाफ: डॉ बसंत गोयल ने बताया कि दिल्ली के ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट के द्वारा समय-समय पर नकली दवाई को लेकर छापामार कार्रवाई की जाती है. लेकिन यह कार्रवाई में लगातार चले इसके लिए जो ड्रग कंट्रोल डिपार्मेंट है, उसमें स्टाफ बढ़ाने की जरूरत है. वहां पर भी स्टाफ की कमी चल रही है. ऐसे में दिल्ली सरकार को ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट में स्टाफ की भर्ती करनी चाहिए, इसके लिए भी हम दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री डॉ पंकज कुमार सिंह से बात करेंगे. ताकि नकली दवा विक्रेताओं के खिलाफ निरंतर कार्रवाई हो सके. डॉक्टर बसंत गोयल ने कहा कि दिल्ली के भागीरथ पैलेस में बड़े स्तर पर नकली दवाओं का कारोबार होता चला रहा है. बहुत बार छापेमारी भी हुई है. लेकिन, पूरी तरह से इस कारोबार पर नकेल कसने में सफलता नहीं मिली है. इसके खिलाफ सख्ती से अभियान चलाया जाना चाहिए.

डॉक्टर बसंत गोयल से बातचीत (ETV Bharat)

डिस्काउंट के पीछे है खेल: कुछ दुकानदार 10 प्रतिशत तो कुछ 20 प्रतिशत तक दवाई पर छूट दे रहे हैं. इस सवाल को लेकर डॉक्टर गोयल ने कहा कि कुछ लोग बिना बिल के दवा खरीदते हैं तो वह आगे भी बिना बिल के डिस्काउंट देकर दवा बेचने का काम कर रहे हैं. लेकिन, इस तरह से दवाई खरीदने में नुकसान की संभावना ज्यादा रहती है. बिना बिल के कई बार नकली दवाई मिलने की आशंका बनी रहती है. जो सही दुकानदार हैं और बिल से दवाई लेते हैं और देते हैं, वह कभी डिस्काउंट नहीं देते हैं. हमारे गोयल मेडिकल पर भी एमआरपी पर ही दवाई दी जाती है. किसी भी तरह का डिस्काउंट हम नहीं देते हैं. इसी तरह और भी मेडिकल स्टोर संचालक हैं, जो बिना डिस्काउंट के दवाई बेचते हैं. आप देख सकते हैं कि जितने भी बड़े अस्पताल हैं, मेदांता हो फोर्टिस हो उन अस्पतालों में भी किसी भी तरह की दवाई पर कोई डिस्काउंट नहीं मिलता है. सभी दवाई एमआरपी पर ही मिलती है. इसलिए मैं दुकानदार भाइयों से भी अपील करना चाहता हूं कि सही बिल से दवाई लें और बिल से दवाई दें. डिस्काउंट के सभी बोर्ड मार्केट से हट जाने चाहिए, मैं कहना चाहता हूं कि सभी मेडिकल स्टोर वाले भाई यह मान करके दवाई दें कि हम खुद ही कस्टमर हैं. अगर गलती से कभी कोई गलत दवाई किसी भी मेडिकल स्टोर संचालक के घर में चली गई और उससे कोई मिशहैपनिंग हो गई तो जिंदगी भर वह अपने आप को माफ नहीं कर पाएंगे. इस बात का भी ध्यान रखें.

सभी दवाओं पर आना शुरू होगा क्यूआर कोड: डॉक्टर बसंत गोयल ने बताया कि अभी कुछ दवाओं पर क्यूआर कोड आना शुरू हो गया है. उसको स्कैन करते ही दवा के बारे में पूरी जानकारी ली जा सकती है. वहीं, आने वाले समय में सभी दवाओं पर क्यूआर कोड आना शुरू हो जाएगा, जिससे लोगों को दवाओं के बारे में जानकारी लेने में मुश्किल नहीं होगी. वह अपने फोन से जैसे ही क्यूयूआर कोड को स्कैन करेंगे उस दवाई के बैच नंबर, एक्सपायरी, मैन्युफैक्चरिंग और साल्ट के बारे में सारी जानकारी आ जाएगी. इससे नकली दवा पर भी रोक लगने की पूरी संभावना है, क्योंकि नकली दवा बनाने वाले दवाई पर क्यूआर कोड देने से बचना चाहेंगे.

पूरे देश में हैं दवाई के एक ही रेट को लेकर पॉलिसी: डॉ बसंत गोयल ने बताया कि पूरे देश में जीएसटी लागू होने के बाद से दवाई के एक ही रेट हैं. दवाई को कॉस्टिंग भी सेम है. लेकिन जब लोग होलसेल में बिना बिल के दवाई खरीदते हैं तो उस पर जीएसटी नहीं देते हैं, जिससे कि वह दवाई उनको सस्ती पड़ जाती है. फिर वह आगे रेटेल में भी लोगों को डिस्काउंट देकर बिना बिल दवाई बेचना शुरू कर देते हैं. इस वजह से एक ही दवाई के अलग-अलग रेट हो जाते हैं. हालांकि, यह व्यवस्था भी बंद होनी चाहिए, क्योंकि दवाई में जो रिटेलर है उनका कुल मार्जिन ही 20 से 22% होता है तो वह आगे 10 से 20% डिस्काउंट कैसे दे सकते हैं. इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि ईमानदारी के साथ सही दवाई हो, सही रेट में बेचे और उस पर अपना जायज मुनाफा कमाए और ग्राहकों के विश्वास को भी बनाए रखें.

ब्रांडेड और जेनेरिक दवा में है सिर्फ नाम का अंतर: आजकल मार्केट में जेनेरिक और ब्रांडेड दवा को लेकर के भी बहुत सारी बातें चलती हैं. इसमें क्या अंतर है? इसको लेकर डॉक्टर बसंत गोयल ने कहा कि जेनेरिक और ब्रांडेड दवा में सिर्फ नाम का अंतर होता है. जेनेरिक दवा उदाहरण के तौर पर पेरासिटामोल जेनेरिक है, क्योंकि वह साल्ट के नाम से मिलती है क्रोसिन इस दवा का ब्रांडेड नाम है, जो कंपनी के नाम से मिल रही है. लेकिन इसमें भी पेरासिटामोल साल्ट ही है. बस अंतर इतना है कि जिस जेनेरिक दवा का रेट 5 रूपये होता है उसी ब्रांडेड दवा का रेट 25 रूपये होता है. इसलिए प्रधानमंत्री जन औषधि योजना में जो दवाएं दी जा रही हैं वह सभी जेनेरिक दवाएं हैं और सस्ते रेट पर जनता को सुलभ तरीके से प्राप्त हो रही हैं. यह भी सरकार का अच्छा प्रयास है.

इसलिए ज्यादा होता है ब्रांडेड दवा का रेट: डॉ बसंत गोयल ने बताया कि पहले जमाना यह था कि मरीज डॉक्टर के पास जाता था. डॉक्टर अपनी फीस लेता था और दवाई लिखता था. बस इतने तक ही बात सीमित होती थी. लेकिन, अब डॉक्टरों ने अपनी फीस लेने के अलावा दवाई में भी कमीशन खाना शुरू कर दिया है. हर मेडिकल स्टोर संचालक से डॉक्टर का कमीशन फिक्स होता है. डॉक्टर वही दवाई लिखते हैं जिसमें उनको ज्यादा कमीशन मिल सके. ब्रांडेड दवा का रेट इसलिए ज्यादा होता है कि वह डॉक्टर को प्रमोट होती है. कंपनी के मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव डॉक्टर के पास जाकर के दवाई का प्रमोशन करते हैं और उन्हें उसमें कितना कमीशन मिल सकता है. इसकी जानकारी देते हैं. इसलिए अपना फायदा कमाने के चक्कर में डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं और उनकी कमीशन की वजह से ही वह दवाएं जनता को अधिक रेट में मिलती हैं. जबकि जेनेरिक दवाई डॉक्टर को प्रमोट नहीं की जाती है. इसलिए डॉक्टर जेनरिक दवाई नहीं लिखते और उनका रेट बहुत कम होता है.

कुछ डॉक्टर करा रहे हैं खुद की दवाई मैन्युफैक्चर: इस सवाल पर कि कई बार डॉक्टर द्वारा लिखे गए पर्चे में से कुछ दवाइयां तो बाहर मिलती हैं. लेकिन, एक-दो दवाइयां बाहर कहीं भी नहीं मिलती. इसके पीछे क्या सच्चाई है? इस सवाल पर डॉक्टर बसंत गोयल ने बताया कि कुछ डॉक्टर ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में एक दो दवाइयां को खुद से भी मैन्युफैक्चर करा लेते हैं. साथ ही उन दवाइयों में एक दो साल्ट का ऐसा कॉबीनेशन बना देते हैं जो बाहर कहीं भी नहीं मिल सकती है. ऐसी दवाइयां में वह मोटा मुनाफा कमाते हैं. लोगों को कहीं और दवाई न मिलने की वजह से मजबूर होने से वह दवाई कई गुना महंगी दामों में खरीदनी पड़ती है. इस तरह का काम भी बहुत से डॉक्टर कर रहे हैं.

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