फलोदी : थार के फलोदी का खीचन कस्बा पश्चिमी राजस्थान का 'बर्ड विलेज' कहलता है. यहां पर साइबेरिया से आने वाले डोमिसाइल क्रेन (कुरजां) ने इस कस्बे की अंतरराष्ट्रीय पहचान को और मजबूती दिला दी है. खीचन को रामसर साइट की सूची में शामिल किया गया है. खीचन के साथ ही उदयपुर की मेनार झील को भी शामिल किया गया है. इसके साथ ही प्रदेश में अब कुल चार रामसर साइट्स हैं. इनमें भरतपुर का घना अभ्यारण और सांभर झील भी शामिल हैं. रेगिस्तान में रामसर साइट घोषित होने से जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में बड़ा काम हो सकेगा, लेकिन खीचन में इस साइट को विकसित होने में कई चुनौतियां भी हैं.
जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के वाइल्ड लाइफ रिसर्च एंड कंजर्वेशन अवेयरनेस सेंटर के निदेशक डॉ. हेम सिंह गहलोत ने बताया कि खीचन को यह दर्जा मिलना गौरव की बात है. यहां सबसे पहले सर्वाधिक डोमिसाइल क्रेन आते हैं, जो सबसे लंबा प्रवास यहां करते हैं. क्रेन खीचन के तालाब के अलावा दिन में बाप और मलार रण में जाती है और शाम को वापस लौटती हैं. उन्होंने बताया कि खीचन से कुरजां का एक तरह से आत्मीय लगाव है, लेकिन साथ में चुनौतियां भी हैं. उन्होंने बताया कि करीब 35 साल बाद राजस्थान को नई रामसर साइट्स मिली हैं. इसके साथ ही देश में कुल 91 रामसर साइट्स हो गई हैं. डॉ. गहलोत के मुताबिक यहां इस साल 13 पक्षी के पैरों में रिंग मिली हैं, जिससे भविष्य में यहां पक्षी रिसर्च की अभूतपूर्व संभावना होगी.
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स्टेट अथॉरिटी की वर्किंग शुरू होना जरूरी : डॉ. गहलोत का कहना है कि राज्य में वेटलैंड्स के संरक्षण के लिए राजस्थान स्टेट वेटलैंड्स कंजर्वेशन अथॉरिटी बनी हुई है, जो वन मंत्री की अध्यक्षता में गठित है, लेकिन इसके नियम लागू नहीं हैं. अगर नियम लागू हो जाएं तो जितने भी वेटलैंड्स हैं, उनके लिए अनिवार्य रूप से व्यवस्थाएं बनाने पर काम हो सकता है. खीचन को भी स्टेट ने कंजर्वेशन एरिया घोषित कर रखा है, लेकिन यहां काम नहीं हुए. अब रामसर साइट होने से केंद्र के फंड से काम होने की संभावना रहेगी. इससे वेटलैंड एरिया विकसित होगा. इसके लिए जरूरी है कि स्टेट लेवल के प्राधिकरण की वर्किंग शुरू हो, जिससे सभी साइट्स को फायदा होगा.

1970 से आ रही कुरजां : खीचन में जैन समाज की ओर से कबूतरों का दाना डाला जाता रहा है. रतनलाल मालू नामक व्यक्ति हर दिन कबूतरों को दाना डालते थे. सितंबर के आस पास वहां पर कुछ क्रेन आने लगी, जो फरवरी तक 100 तक पहुंच गई थी. बताया जाता है कि पहले आस पास के खेतों में क्रेन आती थी, जो बाद में धीरे-धीरे खीचन के तालाब की ओर दाना चुगने के लिए आने लगीं. यह क्रम लगातार बढ़ता गया. वर्तमान में खीचन के सेवाराम इस काम में लगे हुए हैं. उनका कहना है कि रामसर साइट का दर्जा मिलने से यहां अब संरक्षण हो सकेगा और पर्यटकों की संख्या भी बढ़ेगी.
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फलोदी की होगी पौ-बारह : फलोदी नया जिला बना है. इस साल जिला प्रशसन ने पहली बार यहां पर कुरजां महोत्सव का भी आयोजन किया. अब रामसर साइट का दर्जा मिलने से इस नए जिले के लिए बड़ी सौगात है. यहां पर अब इको टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा. स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर मिलेंगे. आस पास के तालाबों का भी संरक्षण भी हो सकेगा. अतिक्रमण भी रुकेंगे. आस पास के क्षेत्र में होटल, गेस्ट हाउस और होम स्टे और पर्यटन इकाइयां विकसित होंगी. देसी-विदेशी पर्यटकों का आकर्षण भी बढ़ेगा.
यूं बनती हैं रामसर साइट : फलोदी वन विभाग के एसीएफ केके व्यास के अनुसार ईरान के रामसर शहर में दो फरवरी 1971 को यूनेस्को के जरिए यह क्रियान्वयन हुआ था. इसके तहत दुनिया भर में आर्द्रभूमि और जलवायु परिवर्तन के महत्व को समझते हुए यूनेस्को ने आर्द्र भूमि के संरक्षण के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे, जो 1975 से लागू हुई. इसी के तहत यह दर्जा दिया जाता है. इसका चयन विभिन्न मापदंडों से किया जाता हैं.