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परंपरा और आस्था का प्रतीक कठोरी पर्व, धान की फसल से जुड़ा है त्यौहार - KATHORI PARV SYMBOL OF TRADITIONAL

सरगुजा संभाग में कठोरी पर्व मनाने की परंपरा है.इस पर्व में ग्रामीण धान की फसल लगाने की तैयारी शुरु करते हैं.

Kathori parv symbol of traditional
परंपरा और आस्था का प्रतीक कठोरी पर्व (ETV BHARAT CHHATTISGARH)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : April 19, 2025 at 7:34 PM IST

Updated : April 19, 2025 at 8:27 PM IST

2 Min Read

कोरिया : सरगुजा संभाग के ग्राम नरसिंहपुर में पारंपरिक रीति-रिवाजों और आस्था से परिपूर्ण ‘कठोरी पर्व’ पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया.यह पर्व ग्राम देवता की पूजा अर्चना और आने वाली खेती की अच्छी शुरुआत के लिए विशेष रूप से मनाया जाता है. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में इस पर्व का धार्मिक और कृषि महत्व दोनों ही है.

क्या है कठोरी पर्व ?: नरसिंहपुर सहित सरगुजा अंचल के अधिकतर गांवों में कठोरी पर्व हर साल चैत्र और वैशाख के संधिकाल में मनाया जाता है. इस अवसर पर गांव के तय स्थान से स्थानीय भाषा में 'देवस्थल' कहा जाता है.जहां ग्रामीण इकट्ठे होते हैं. सभी ग्रामवासी सामूहिक रूप से ग्राम देवता की पूजा करते हैं और नई फसल की अच्छी उपज की कामना करते हैं. इसी दिन को प्रतीक मानकर किसान खरीफ फसल विशेषकर धान की बुआई और रोपाई की तैयारी शुरू कर देते हैं.

परंपरा और आस्था का प्रतीक कठोरी पर्व (ETV BHARAT CHHATTISGARH)



ग्राम नरसिंहपुर के निवासी रामकुमार सिंह के मुताबिक उनके गांव में कठोरी पर्व की परंपरागत पूजा हो रही है. इस दिन विशेष रूप से भूमि पूजन होता है. ग्राम देवता को भुजा (भोग) अर्पित किया जाता है. यही दिन है जब गांव में धान की फसल की तैयारी का आरंभ होता है. हम सब मिलकर कामना करते हैं कि इस साल अच्छी फसल हो और गांव में समृद्धि आए.

हमारे यहां कठोरी पर्व को खेती की नींव माना जाता है। पहले महादेवी पार्वती और ग्राम देवता की पूजा होती है, फिर खेतों में काम शुरू होता है. इस दिन को शुभ मानते हुए किसान अपने औजारों की पूजा कर खेत की ओर प्रस्थान करते हैं। यही वह ऊर्जा का दिन है, जिससे पूरे साल की मेहनत जुड़ी होती है- शुकुल ठाकुर,ग्रामीण


आस्था और कृषि का समन्वय : कठोरी पर्व केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि ग्रामीण जीवन के कृषि चक्र का महत्वपूर्ण पड़ाव है. यह पर्व ये संकेत देता है कि अब खेतों की ओर लौटने और नई उम्मीद के साथ मेहनत करने का समय आ गया है.ये न केवल ग्रामीणों की आस्था का केंद्र है, बल्कि प्रकृति और परंपरा से उनके गहरे जुड़ाव का प्रतीक भी है.

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क्या है कठोरी पर्व ?: नरसिंहपुर सहित सरगुजा अंचल के अधिकतर गांवों में कठोरी पर्व हर साल चैत्र और वैशाख के संधिकाल में मनाया जाता है. इस अवसर पर गांव के तय स्थान से स्थानीय भाषा में 'देवस्थल' कहा जाता है.जहां ग्रामीण इकट्ठे होते हैं. सभी ग्रामवासी सामूहिक रूप से ग्राम देवता की पूजा करते हैं और नई फसल की अच्छी उपज की कामना करते हैं. इसी दिन को प्रतीक मानकर किसान खरीफ फसल विशेषकर धान की बुआई और रोपाई की तैयारी शुरू कर देते हैं.

परंपरा और आस्था का प्रतीक कठोरी पर्व (ETV BHARAT CHHATTISGARH)



ग्राम नरसिंहपुर के निवासी रामकुमार सिंह के मुताबिक उनके गांव में कठोरी पर्व की परंपरागत पूजा हो रही है. इस दिन विशेष रूप से भूमि पूजन होता है. ग्राम देवता को भुजा (भोग) अर्पित किया जाता है. यही दिन है जब गांव में धान की फसल की तैयारी का आरंभ होता है. हम सब मिलकर कामना करते हैं कि इस साल अच्छी फसल हो और गांव में समृद्धि आए.

हमारे यहां कठोरी पर्व को खेती की नींव माना जाता है। पहले महादेवी पार्वती और ग्राम देवता की पूजा होती है, फिर खेतों में काम शुरू होता है. इस दिन को शुभ मानते हुए किसान अपने औजारों की पूजा कर खेत की ओर प्रस्थान करते हैं। यही वह ऊर्जा का दिन है, जिससे पूरे साल की मेहनत जुड़ी होती है- शुकुल ठाकुर,ग्रामीण


आस्था और कृषि का समन्वय : कठोरी पर्व केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि ग्रामीण जीवन के कृषि चक्र का महत्वपूर्ण पड़ाव है. यह पर्व ये संकेत देता है कि अब खेतों की ओर लौटने और नई उम्मीद के साथ मेहनत करने का समय आ गया है.ये न केवल ग्रामीणों की आस्था का केंद्र है, बल्कि प्रकृति और परंपरा से उनके गहरे जुड़ाव का प्रतीक भी है.

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Last Updated : April 19, 2025 at 8:27 PM IST
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