शिमला: बाबा भलकू की याद में हिमालय साहित्य, संस्कृति एवं पर्यावरण मंच ने कालका-शिमला साहित्य रेल यात्रा का आयोजन किया. दो दिन तक चलने वाली इस यात्रा में देश के विभिन्न राज्यों से 32 साहित्यकार और लेखक शामिल हैं. यात्रा के दौरान बाबा भलकू को याद किया गया.
शिमला रेलवे स्टेशन पर सभी लेखकों का स्वागत और सम्मान किया गया. स्वास्थ्य मंत्री धनीराम शांडिल ने यात्रा को सुबह 10:55 बजे रवाना किया. पहले दिन लेखक शिमला से बड़ोग जाएंगे और शाम को शिमला लौटेंगे. दूसरे दिन बस से यह यात्रा कुफरी और चायल होती हुई बाबा भलकू के पुश्तैनी गांव झाझा तक जाएगी. इस मौके पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री धनीराम शांडिल भी साहित्य यात्रा में शामिल हुए. उन्होंने कहा कि 'बाबा भलकू उनके क्षेत्र से संबंध रखते थे, जिन्होंने शिमला तक रेल पहुंचाने में अहम योगदान दिया. जब बड़ोग सुरंग बनाने में अंग्रेज इंजीनियर असफल हुए, तब बाबा भलकू ने अपनी छड़ी के सहारे सुरंग का रास्ता दिखाया.'
32 साहित्यकार कर रहे कालका शिमला रेल ट्रैक की यात्रा
हिमालय साहित्य, संस्कृति एवं पर्यावरण मंच के अध्यक्ष एसआर हरनोट ने कहा, 'देशभर के 32 साहित्यकार कालका-शिमला ट्रैक पर यात्रा कर रहे हैं. इस दौरान महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर कविता पाठ और संगोष्ठी होगी. नशे के खिलाफ जागरूकता के लिए कविताओं का मंचन होगा और प्रकृति से जुड़ने का संदेश दिया जाएगा. दूसरे दिन बस से यात्रा कुफरी, चायल से होती हुई झाझा गांव पहुंचेगी, जहां लेखक बाबा भलकू के परिजनों से मिलेंगे और उन्हें सम्मानित करेंगे.'

यात्रा में शामिल हैं ये लेखक
यात्रा में शामिल होने वाले लेखकों में मुंबई से प्रो. हूबनाथ सिंह, रमण मिश्र, डॉ. अर्जुन परत, डॉ. प्रमोद यादव, डॉ. शशि श्रीवास्तव, पटना (बिहार) से इंजीनियर एसपी. सिंह, मध्य प्रदेश के गुना से मधुर कुलश्रेष्ठ और नीलम कुलश्रेष्ठ, कानपुर से राजेश आरोड़ा, फिरोजपुर से हरीश मोंगा, चंडीगढ़ से सुनैनी शर्मा, कीरतपुर पंजाब से सीमा गौतम, सुंदरनगर से प्रियंवदा शर्मा, कांगड़ा से रचना पठानिया, बिलासपुर से अनिल शर्मा नील, सोलन से अंजू आनंद, कुमारसैन से जगदीश बाली और हितेंद्र शर्मा, शिमला से डॉ. विजय लक्ष्मी नेगी, अनिल शमशेरी, दक्ष शुक्ला, स्नेह नेगी, जगदीश कश्यप, लेखराज चौहान, दीप्ति सारस्वत, डॉ. देव कन्या ठाकुर, वंदना राणा, हेमलता शर्मा, शांति स्वरूप शर्मा, वीरेंद्र कुमार, जगदीश गौतम और यादव चंद शामिल हैं.

कालका-शिमला रेलवे ट्रैक का इतिहास
कालका-शिमला रेलवे हेरिटेज ट्रैक का इतिहास अपने आप में अनूठा है. साल 1903 में बना ये रेलवे ट्रैक कालका को शिमला से जोड़ता है. ब्रिटिश शासकों ने अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को जोड़ने के लिए इस ट्रैक का निर्माण करवाया. पहाड़ियों के बीच ट्रेन को शिमला पहुंचाना आसान नहीं था. सोलन के समीप बड़ोग सुरंग के निर्माण में अंग्रेज इंजीनियर कर्नल जेम्स बड़ोग दोनों छोरों को मिलाने में असफल रहे, जिससे रेलवे ट्रैक का काम रुक गया. इससे नाराज ब्रिटिश सरकार ने उन पर एक रुपये का जुर्माना लगाया. असफलता और अपमान से आहत होकर कर्नल बड़ोग ने आत्महत्या कर ली. इसके बाद सुरंग बनाने का काम बाबा भलकू को सौंपा गया.

ब्रिटिश सरकार ने किया सम्मानित
बाबा भलकू ने अपनी छड़ी से पहाड़ और चट्टानों को ठोककर स्थान चिह्नित किया और उनके अनुमान सटीक साबित हुए. उनकी मदद से सुरंग के दोनों छोर मिल गए, और इस तरह सुरंग नंबर 33 पूरी हुई. इसके साथ ही बाबा भलकू का नाम रेलवे इतिहास में अमर हो गया. शिमला गजट में दर्ज है कि ब्रिटिश सरकार ने बाबा भलकू को पगड़ी और मेडल देकर सम्मानित किया था.