कैथल: हाल ही में हरियाणा के कैथल जिले के पोलड़ गांव को खाली करने का नोटिस पुरातत्व विभाग की ओर से जारी किया गया था. इस नोटिस के बाद से ही ये गांव काफी चर्चा में हैं. गांव के लोगों की नींद मानो उड़ गई हो. दरअसल, पुरातत्व विभाग का दावा है कि पोलड़ गांव की जमीन पुरातत्व विभाग की है. इस कारण विभाग गांव को खाली करने के लिए ग्रामीणों से बोल रहे हैं. ऐसे में अब ग्रामीणों को इस बात की चिंता सता रही है कि आखिर वो जाएं तो जाएं कहां?

जानिए पूरा मामला: पोलड़ गांव कैथल जिले की गुहला विधानसभा में पड़ता है. यह गांव कैथल से पंजाब की तरफ जाने वाले मुख्य मार्ग पर स्थित है. इस गांव को साल 2005 से नोटिस मिल रहा है. पुरातत्व विभाग का कहना है कि यहां कि 78 एकड़ जमीन पुरातत्व विभाग की है. पहले करीब तीन बार पुरातत्व विभाग के द्वारा इसकी खुदाई भी की जा चुकी है, लेकिन उस समय यहां पुरातत्व विभाग को कुछ भी नहीं मिला था, लेकिन पुरातत्व विभाग का दावा है कि गांव के नीचे से कुछ हड़प्पा संस्कृति के ऐतिहासिक अंश प्राप्त हो सकते हैं, इसलिए उन्होंने जल्द ग्रामीणों को गांव खाली करने को लेकर नोटिस दिया है.
पहले और अब के नोटिस में अंतर: सबसे पहले ग्रामीणों को साल 2005 में पुरातत्व विभाग की ओर से नोटिस दिया गया था. हालांकि तब के नोटिस में विभाग की ओर से दावा किया गया था कि जहां ये गांव बसा है, वो जमीन पुरातत्व विभाग की है. हालांकि अब विभाग की ओर से जारी नोटिस में सीधा गांव को खाली करने का आदेश दे दिया गया है.

भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय बसा था गांव: पोलड़ के पड़ोसी गांव फिरोजपुर के रहने वाले 70 वर्षीय गजे सिंह ने बताया कि यह गांव भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय बसा था. इस गांव में पहले जंगल हुआ करता था. हालांकि धीरे-धीरे यहां पर लोग रहने लगे. अब ये पूरा गांव बन गया है. साल 2005 के आसपास पुरातत्व विभाग गांव पोलड़ पहुंचा था. यहां पर विभाग ने अपनी जमीन की निशान देही मिलिट्री की मौजूदगी में की थी.
रातो-रात पाकिस्तान से आए थे लोग: पोलड़ गांव के युवक शिशपाल ने बताया कि यहां पर सबसे पहले मेरे दादा आकर बसे थे. जब भारत पाकिस्तान का विभाजन हुआ था, तब दोनों देशों के द्वारा यह बोला गया था कि जो लोग भारत से पाकिस्तान या पाकिस्तान से भारत में जाना चाहते हैं, वह जा सकते हैं. उस समय लड़ाई भी हुई थी, जिसके चलते उन्होंने रातों-रात पाकिस्तान छोड़ा और भारत आ गए थे. दादाजी पाकिस्तान के पंजाब में रहते थे. वहीं से अपने भाई बंधु को लेकर रातों-रात निकले थे, जिसमें उन्होंने अपना सब कुछ वहां पर छोड़ दिया था. वहां पर उनके पास जमीन जायदाद थी. अच्छे घर भी थे. वह वहां पर हर प्रकार से संपन्न थे, लेकिन भारत-पाकिस्तान के बंटवारे ने उनके सभी अरमानों को तोड़ दिया और उनको पाकिस्तान से भारत आना पड़ा था.
"पाकिस्तान से वह जत्थे के साथ करनाल पहुंचे थे.वहां से उनके दादा यहां पोलड़ गांव में आकर बसे थे. यहां पर उनके पास कुछ नहीं था. इस गांव में बहुत ज्यादा बड़े जंगल होते थे. जंगल तोड़कर यहां पर रहने के लिए पहले उन्होंने जगह बनाया, क्योंकि यह काफी ऊंचा स्थान हुआ करता था. पानी से बचाव के लिए उन्होंने यहां पर रहना शुरू किया. शुरू में कच्ची झोपड़ी बनाई और धीरे-धीरे आबादी बढ़ती गई और फिर उन्होंने यहां पर पक्के मकान बना लिए."-शिशपाल, ग्रामीण
बुजुर्ग महिला ने कहा- "रात में नींद नहीं आती": गांव की बुजुर्ग महिला लच्छों देवी ने बताया, "मेरी उम्र करीब 85 वर्ष है. करीब 65 साल पहले मैं शादी होकर इसी गांव में आई थी, क्योंकि मेरे पति उन व्यक्तियों में से थे जो सबसे पहले पाकिस्तान से आने के बाद यहां पर आकर बसे थे. हमारे बच्चे भी यहीं हुए. मैंने अपना पूरा जीवन यहीं पर बिताया है. बड़ी मेहनत करके हमने अपना घर बनाया है, लेकिन अब सरकार ने गांव खाली करने के आदेश दिए हैं. चिंता से रात में नींद नहीं आती. खाना भी नहीं खाया जाता."

विधायक ने दिया आश्वासन: कैथल जिले के गुहला विधानसभा से विधायक देवेंद्र हंस ने पोलड़ गांव को मिले पुरातत्व विभाग की नोटिस को लेकर कहा, "ग्रामीण हमारे पास अपनी समस्या लेकर पहुंचे हैं. यह सभी गरीब तबके के लोग हैं, जिनके बड़े बुजुर्ग पाकिस्तान से आकर यहां पर बसे थे. पुरातत्व विभाग का पहला नोटिस गांव को साल 2005 में मिला था. उससे पहले पुरातत्व विभाग कहां था? अगर उनको पहले ही बता दिया होता तो वह वहां पर अपना घर क्यों बनाते? पुरातत्व विभाग दावा करता है कि यहां से कुछ ऐतिहासिक चीज गांव के नीचे मिट्टी की खुदाई के दौरान निकल सकती है, जिसके चलते पूरे गांव को नोटिस जारी किया गया है और गांव खाली करने का आदेश दिया गया है. हम ग्रामीणों के साथ खड़े हैं. मैं इस मुद्दे पर पुरातत्व विभाग और प्रदेश के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से बातचीत करूंगा, ताकि इस समस्या का कुछ हल निकल सके.

गांव में बसता है गरीब तबका: पोलड़ गांव इस बार से सीवन नगर पालिका में शामिल हो गया है, इसलिए यहां पर ग्राम पंचायत खत्म कर दी गई है. इस बारे में गांव के पूर्व सरपंच सरवन सिंह ने कहा, "गांव में 100 फीसद गरीब तबका रह रहा है. इनके पास ना ही अपनी जमीन जायदाद है और ना ही किसी प्रकार का रोजगार है. यहां पर ग्रामीणों ने पहले अपने कच्चे मकान बनाए हुए थे, लेकिन अब धीरे-धीरे पक्के मकान बनाए हैं. अब पुरातत्व विभाग के द्वारा उनके गांव पर अपनी जमीन होने का दावा किया जा रहा है. हम इस मामले में मुख्यमंत्री से और स्थानीय सांसद से मिलकर बात करेंगे. चाहे कुछ हो जाए, लेकिन गांव को छोड़ना बहुत मुश्किल है, क्योंकि गरीब होने के चलते गांव वाले कहीं पर अब अपना गांव और घर नहीं बना सकते हैं."
करीब 230 घरों को मिल चुका है नोटिस: पूर्व सरपंच प्रतिनिधि जगदीप सिंह ने बताया, "गांव में 206 लोगों को पहले दिन नोटिस आया था, लेकिन उसके बाद से लगातार हर रोज नोटिस आ रहे हैं. अब तक 230 परिवार को नोटिस मिल चुका है. विभाग के द्वारा 78 एकड़ जमीन का दावा किया जा रहा है, जिसमें करीब पूरा गांव आता है. गांव की आबादी करीब 8000 के करीब है. यह नोटिस का दौर साल 2005 से शुरू हुआ था, लेकिन अब पुरातत्व विभाग ने अपना अंतिम फैसला भेजा है कि गांव खाली करें.

"मर जाएंगे पर नहीं करेंगे गांव खाली": जब हमने ग्रामीणों से बातचीत की तो सभी का कहना है कि हम हर प्रयास कर रहे हैं कि किसी भी प्रकार से हमारा गांव बच सके. अगर ऐसा नहीं होता तो हम यहीं पर पले बढ़े हैं. यहीं पर मर जाएंगे, लेकिन गांव नहीं छोड़ेंगे. कुछ ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार उनको मुआवजा देती है या फिर उनको कहीं और मकान बना कर देती है तो वह यहां से गांव छोड़ने पर विचार कर सकते हैं, लेकिन अभी तक विभाग और सरकार की तरफ से कहीं और पर पलायन करने के लिए जगह देना या मुआवजा देने का किसी भी प्रकार की बात नहीं की गई है. ना ही कोई ऐलान नहीं किया गया है.

रावण के दादा की तपोस्थली: गांव के इतिहास की अगर बात करें तो इस गांव का नाम रावण के दादा के नाम पर रखा गया है. इस गांव के लोगों का कहना है कि ये एक ऐतिहासिक गांव है, जिसका धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है. यहां पर रावण के दादा पुलस्त्य मुनि की तपोस्थली रही है और उन्हीं के नाम पर गांव का नाम पोलड़ पड़ा था. ये एक धार्मिक और ऐतिहासिक गांव है, जिसका इतिहास काफी पुराना बताया जाता है.
सरस्वती के तट पर बसा पोलड़ गांव : पोलड़ गांव सरस्वती नदी के तट पर बसा हुआ है. गांव में सरस्वती माता का मंदिर भी है, जिसका निर्माण साल 1960 में किया गया था. सरस्वती बोर्ड के द्वारा सरस्वती नदी पर कंस्ट्रक्शन का काम किया जा रहा है. यहां पर प्राचीन समय में सरस्वती नदी के तट पर मेले का भी आयोजन किया जाता था, जहां पर आसपास से लोग मेले में आते थे.

सरकार दे रही गांव को हर सुविधा: बात अगर गांव की आबादी की करें तो यहां करीब 8 हजार लोग रहते हैं. वहीं, 2000 लोग यहां वोट डालते हैं. इसके साथ ही गांव को ग्राम पंचायत का दर्जा मिला हुआ है. हालांकि पिछले प्लान में ग्राम पंचायत को छोड़कर सीवन नगर पालिका में शामिल किया गया था, जहां पर अब सीवन नगर पालिका के अंदर ये गांव पड़ता है. इतना ही नहीं गांव वालों के वोटर कार्ड, आधार कार्ड, फैमिली आईडी और सभी प्रकार के दस्तावेज बने हुए हैं. गांव में सरकारी स्कूल भी है.

ऐसे में अब इस गांव का और गांव वालों का क्या होगा? क्यां गांव वाले गांव खाली कर देंगे. या फिर सरकार या पुरातत्व विभाग कोई नया निर्णय लेगा?
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