धनोल्टी: देश प्रदेशों में अपने स्थानीय उत्पादों कोदा, झंगोरा, कंडाली जैसे स्थानीय उत्पादों की प्रसिद्धि के बाद उत्तराखंड में इन दिनों काफल की डिमांड काफी बढ़ रही है. काफल की पैदावारी उच्च पहाड़ी क्षेत्रो में होती है. टिहरी जनपद के धनोल्टी विधानसभा के लगडांसू,अग्यारना, तेवा ,बंगसील आदि गांवों में काफल की अच्छी पैदावार देखने को मिलती है.
थत्यूड़ बाजार में जूस कार्नर की दुकान चलाने वाले विशाल रौछेला का कहना है कि अगर काफल जैसे स्थानीय उत्पादों के लिए सरकार के द्वारा बाजार उपलब्ध करवाया जाता तो लोगों को अच्छा लाभ मिलता है. इन दिनों बाजार में काफल की अच्छी डिमांड आ रही है. शहरों में रह रहे लोगों में भी काफल का अच्छा क्रेज देखा जा रहा है.
मैदानी क्षेत्रों में तपतपाती गर्मी के चलते इन पर्यटक काफी संख्या में पहाड़ी क्षेत्रों की ओर रूख कर रहे हैं. काफल का स्वाद उन्हें भी काफी भा रहा है. काफल स्वाद में खट्टा मीठा और रसीला होता है. गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि काफल खाने से पेट की कब्ज भी दूर होती है. स्थानीय बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता खेमराज भट्ट ने बताया काफल का क्रेज ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से ही है. ये अब धीरे धीरे शहरी क्षेत्रो में काफी बढ़ रहा है.
खेमराज भट्ट ने बताया पहले जिस गांव के आसपास काफल होता था उस गांव के लोग अपने नाते रिश्तेदारी में इसे भेजकर खट्टी मिट्ठी यादों को तरो ताजा करते थे. जब भी गांव के लोग रोजगार या किसी काम से शहर जाते थे तो वे काफल लेकर जाते थे.पहाड़ी क्षेत्रो की बात करें तो काफल अभी 150 रूपये किलो तक बिक रहा है. काफल की पैदावारी चैत्र मास के अन्त अप्रैल से जून माह के शुरुआत तक होती है.
उत्तराखंड राजकीय फल है काफल: उत्तराखंड का एक सर्वाधिक लोकप्रिय गीत "बेडू पाको बारामासा, हो नरैण काफल पाको चैता मेरी छैला" में भी काफल का जिक्र किया गया है. ये पहाड़ी फल, पहाड़ों में होने वाला एक जंगली फल है. ये फल गहरे लाल रंग का होता है. साथ ही इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है. काफल का वैज्ञानिक नाम मिरिका एस्कुलेंटा है. इस पहाड़ी फल में तमाम औषधीय गुण होने से इसे उत्तराखंड के राजकीय फल का दर्जा भी प्राप्त है. काफल सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं बल्कि, हिमाचल प्रदेश समेत नेपाल में भी पाया जाता है.
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