
दुलदुल घोड़ी नृत्य बगैर खुशियां अधूरी, देखने के लिए ठिठक जाती है राहगीरों की नजर
जबलपुर में सार्वजनिक धार्मिक आयोजनों की शान दुलदुल घोड़ी नृत्य, बुंदेलखंड की अनोखी लोक परंपरा भा रही मन, सेल्फी लेने खिंचे आ रहे लोग.

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team
Published : October 4, 2025 at 7:52 AM IST
जबलपुर: बुंदेलखंड के लोगों ने दुलदुल घोड़ी जरूर देखी होगी. सार्वजनिक धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में अक्सर दुलदुल घोड़ी का नृत्य होता है. इसमें कुछ लोग घोड़ी का मुखौटा और ढांचा लेकर नाचते हैं. देखने में बिल्कुल ऐसा लगता है कि जैसे कोई आदमी घोड़े पर बैठा हो और घोड़ा डांस कर रहा हो. यह परंपरा राजा महाराजाओं के जमाने से चली आ रही है. पहले लोग केवल इसका नृत्य देखते थे अब दुलदुल घोड़ी के साथ सेल्फी खिंचवाने का भी चलन है.
परंपरा से जुड़ा दुलदुल घोड़ी नृत्य
जबलपुर के सार्वजनिक धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में दुलदुल घोड़ी का डांस एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. दुलदुल घोड़ी में एक आदमी चमकदार वेशभूषा में रहता है. उसके सिर पर मुकुट होता है और हाथों में घोड़े की कमान होती है. घोड़े की जगह घोड़े का मुखौटा होता है, लेकिन देखने में ऐसा लगता है कि यह आदमी घोड़े के ऊपर बैठा हुआ है लेकिन यह घोड़े का एक ढांचा होता है.
पिता से सीखा दुलदुल घोड़ी डांस
शहर निवासी 60 वर्षीय रामलाल चतुर्भुज ने बताया कि "उनके जीवन यापन का साधन दुलदुल घोड़ी का नाच ही है. उन्होंने बचपन से अपने पिताजी को यह नृत्य करते देखा था. उनसे ही यह कला सीखी और उसके बाद इस परंपरा को आगे बढ़ाया. रामलाल का कहना है कि "पहले तो ऐसे लगा कि आज के बदलते दौर में यह परंपरा खत्म हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जबलपुर के लोग धार्मिक सांस्कृतिक और सार्वजनिक आयोजनों के साथ ही पारिवारिक आयोजनों में भी हमें प्रेम से बुलाते हैं."

समय के साथ बदला डांस का तरीका
रामलाल बताते हैं कि "यह एक लोक कला है और जब राजा महाराजाओं का शासन हुआ करता था तब युद्ध के बाद मनोरंजन के लिए दुलदुल घोड़ी का डांस किया जाता था. यह परंपरा राजा-रजवाड़ों के जमाने से चली आ रही है. समय के साथ-साथ दुलदुल घोड़ी नृत्य में कई बदलाव हुए हैं. अब घोड़ी के साथ-साथ उन्होंने मोर की आकृतियां भी बना ली है, क्योंकि अब लोग हमारे साथ खड़े होकर सेल्फी लेते हैं तो घोड़ी के साथ ही उन्हें मोर भी अच्छा लगता है.

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इन राज्यों में फेमस है दुलदुल घोड़ी डांस
बुंदेलखंड के अलावा यह परंपरा गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भी पाई जाती है. यहां पर भी दुलदुल घोड़ी का नृत्य किया जाता है. बुंदेलखंड की परंपरा नाचने गाने की परंपरा है. यहां लोग बात भी गाते हुए करते हैं और हर छोटे बड़े मौके पर नृत्य होता है. हर त्योहार के अलग-अलग किस्म के नृत्य हैं. दुलदुल घोड़ी भी कुछ इसी तरह का ही नृत्य है, जिसे राजा महाराजा मनोरंजन के लिए करवाते थे. राजा महाराजाओं के जाने के लगभग 100 साल बाद भी यह परंपरा आज भी जिंदा है.

