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कचरा समझे जाने वाले 'छिंद' को मिली नई पहचान, हाथों-हाथ खरीद रहे विदेशी - JABALPUR CHHIND LEAVES PRODUCTS

जबलपुर की आदिवासी बेटी लक्ष्मी मिंज ने अपनी कलाकृतियों से मोहा विदेशियों को मन. छिंद के पत्तों से बने प्रोडक्ट खरीदने के लिए मची लूट.

JABALPUR CHHIND LEAVES PRODUCTS
कचरा समझे जाने वाले छिंद को मिली नई पहचान (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : April 9, 2025 at 4:23 PM IST

3 Min Read

जबलपुर: आदिवासियों की कई ऐसी कलाएं हैं, जिनके बारे में अभी तक हमें पूरी जानकारी नहीं है. आदिवासी अपने जीवन यापन में कई पत्तों का इस्तेमाल करते हैं, इन्हीं में से एक छिंद का पत्ता होता है. सामान्य तौर पर इसका इस्तेमाल घरों के झाड़ू बनाने के लिए किया जाता था, लेकिन एक आदिवासी महिला ने इन छिंद के पत्तों से शानदार कलाकृतियां बनाई है, जिन्हें देखने वाले देखते रह जाते हैं. कुंभ आने वाले पर्यटकों ने नील लक्ष्मी की कलाकृति को खूब सराहा. यह आदिवासी महिला इस कला का विस्तार चाहती है, लेकिन उसे कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है.

लक्ष्मी ने खेती के बजाय चुना नया रास्ता

लक्ष्मी मिंज अनूपपुर के आदिवासी इलाके में रहती हैं. लक्ष्मी ने 12वीं तक पढ़ाई की है, उनके परिवार के लोग मजदूरी करके जीवन यापन करते हैं. थोड़ी बहुत जमीन थी लेकिन पर्याप्त संसाधन नहीं होने की वजह से जमीन में पैदावार बहुत कम होती थी, जिसकी वजह से परिवार का लालन पालन करना मुश्किल था, इसलिए लक्ष्मी ने परंपरागत मजदूरी और खेती करने की बजाय कुछ नया करने का फैसला किया.

हाथों हाथ बिक रहे छिंद से बने प्रोडक्ट (ETV Bharat)

छिंद के पत्तों से बनाई चटाई

लक्ष्मी मिंज ने बताया कि " उनके घर के आसपास देसी खजूर जिसे छिंद कहते हैं उसके बहुत अधिक पेड़ थे. इसकी पत्ती नुकीली और बड़ी सख्त होती है. इसका इस्तेमाल सामान्य तौर पर झाड़ू बनाने के लिए किया जाता था, लेकिन उनके परिवार के कुछ लोग इससे चटाई बनाते थे. इन पत्तों से बनी चटाई पर उनके पूर्वज सोते थे. इन पत्तों में कोई ऐसा पदार्थ होता है, जिसकी वजह से बीमारी नहीं होती है. इन बातों को ध्यान रखते हुए मैंने तय किया कि इन्हीं पत्तों से जुड़ा कोई काम करूंगी.

Jabalpur Chhind leaves products
छिंद के पत्तों से तैयार डिजाइनर बैग (ETV Bharat)

कुंभ में आए लोगों को पसंद आए प्रोडक्ट

लक्ष्मी ने छिंद के पत्तों का इस्तेमाल करके बड़ी-बड़ी चटाई बनाई. इसके अलावा लेडीज पर्स, हेयर बक्कल, टोपी और वॉल हैंगिंग्स बनाए. इन सामानों को अमरकंटक आने वाले पर्यटक पसंद करते हैं. वह वहां सड़क किनारे दुकान लगाकर इन्हें बेचती हैं. छिंद के पत्तों का ऐसा प्रयोग इसके पहले किसी ने ही शायद किया हो. लक्ष्मी बताती है कि " वे इसी तरह का सामान बनाकर कुंभ में ले गई थीं, जहां देश-विदेश से आने वाले मेहमान इन सामानों को खूब पसंद कर रहे थे."

tribal girl made mats Chhind leaves
छिंद के पत्तों से बने बैग (ETV Bharat)
Chhind leaves products cap
छिंद के पत्तों से बनी टोपी (ETV Bharat)

असहाय महिलाओं को रोजगार देने का प्रयास

लक्ष्मी मिंज का कहना है कि " वे जिस आदिवासी इलाके से आती हैं. वहां महिलाओं के पास कोई काम नहीं होता है. बहुत सी विधवा महिलाओं को उन्होंने अपनी कला के जरिए रोजगार देने का प्रयास किया था. उन्होंने मजबूर असहाय महिलाओं की मदद के लिए एनजीओ भी बनाया था, लेकिन सरकार से मदद नहीं मिलने के कारण सफल नहीं हुआ. इसके बाद ज्यादातर महिलाओं ने महुआ से शराब बनाना शुरू कर दिया है, इससे न केवल उनका जीवन बर्बाद हो रहा है बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुंचा रहा है."

जबलपुर: आदिवासियों की कई ऐसी कलाएं हैं, जिनके बारे में अभी तक हमें पूरी जानकारी नहीं है. आदिवासी अपने जीवन यापन में कई पत्तों का इस्तेमाल करते हैं, इन्हीं में से एक छिंद का पत्ता होता है. सामान्य तौर पर इसका इस्तेमाल घरों के झाड़ू बनाने के लिए किया जाता था, लेकिन एक आदिवासी महिला ने इन छिंद के पत्तों से शानदार कलाकृतियां बनाई है, जिन्हें देखने वाले देखते रह जाते हैं. कुंभ आने वाले पर्यटकों ने नील लक्ष्मी की कलाकृति को खूब सराहा. यह आदिवासी महिला इस कला का विस्तार चाहती है, लेकिन उसे कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है.

लक्ष्मी ने खेती के बजाय चुना नया रास्ता

लक्ष्मी मिंज अनूपपुर के आदिवासी इलाके में रहती हैं. लक्ष्मी ने 12वीं तक पढ़ाई की है, उनके परिवार के लोग मजदूरी करके जीवन यापन करते हैं. थोड़ी बहुत जमीन थी लेकिन पर्याप्त संसाधन नहीं होने की वजह से जमीन में पैदावार बहुत कम होती थी, जिसकी वजह से परिवार का लालन पालन करना मुश्किल था, इसलिए लक्ष्मी ने परंपरागत मजदूरी और खेती करने की बजाय कुछ नया करने का फैसला किया.

हाथों हाथ बिक रहे छिंद से बने प्रोडक्ट (ETV Bharat)

छिंद के पत्तों से बनाई चटाई

लक्ष्मी मिंज ने बताया कि " उनके घर के आसपास देसी खजूर जिसे छिंद कहते हैं उसके बहुत अधिक पेड़ थे. इसकी पत्ती नुकीली और बड़ी सख्त होती है. इसका इस्तेमाल सामान्य तौर पर झाड़ू बनाने के लिए किया जाता था, लेकिन उनके परिवार के कुछ लोग इससे चटाई बनाते थे. इन पत्तों से बनी चटाई पर उनके पूर्वज सोते थे. इन पत्तों में कोई ऐसा पदार्थ होता है, जिसकी वजह से बीमारी नहीं होती है. इन बातों को ध्यान रखते हुए मैंने तय किया कि इन्हीं पत्तों से जुड़ा कोई काम करूंगी.

Jabalpur Chhind leaves products
छिंद के पत्तों से तैयार डिजाइनर बैग (ETV Bharat)

कुंभ में आए लोगों को पसंद आए प्रोडक्ट

लक्ष्मी ने छिंद के पत्तों का इस्तेमाल करके बड़ी-बड़ी चटाई बनाई. इसके अलावा लेडीज पर्स, हेयर बक्कल, टोपी और वॉल हैंगिंग्स बनाए. इन सामानों को अमरकंटक आने वाले पर्यटक पसंद करते हैं. वह वहां सड़क किनारे दुकान लगाकर इन्हें बेचती हैं. छिंद के पत्तों का ऐसा प्रयोग इसके पहले किसी ने ही शायद किया हो. लक्ष्मी बताती है कि " वे इसी तरह का सामान बनाकर कुंभ में ले गई थीं, जहां देश-विदेश से आने वाले मेहमान इन सामानों को खूब पसंद कर रहे थे."

tribal girl made mats Chhind leaves
छिंद के पत्तों से बने बैग (ETV Bharat)
Chhind leaves products cap
छिंद के पत्तों से बनी टोपी (ETV Bharat)

असहाय महिलाओं को रोजगार देने का प्रयास

लक्ष्मी मिंज का कहना है कि " वे जिस आदिवासी इलाके से आती हैं. वहां महिलाओं के पास कोई काम नहीं होता है. बहुत सी विधवा महिलाओं को उन्होंने अपनी कला के जरिए रोजगार देने का प्रयास किया था. उन्होंने मजबूर असहाय महिलाओं की मदद के लिए एनजीओ भी बनाया था, लेकिन सरकार से मदद नहीं मिलने के कारण सफल नहीं हुआ. इसके बाद ज्यादातर महिलाओं ने महुआ से शराब बनाना शुरू कर दिया है, इससे न केवल उनका जीवन बर्बाद हो रहा है बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुंचा रहा है."

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