बीकानेर : ईरान और इजरायल के बीच शुरू हुए युद्ध के हालात के बाद मध्य एशिया में पूरी तरह से तनाव का माहौल दिख रहा है. इस तनाव का सीधा असर दूसरे देशों की व्यापारिक कारोबार पर भी पड़ रहा है. बीकानेर की ऊन उद्योग पर इस युद्ध के चलते संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
ईरान और इजरायल के बीच युद्ध के चलते दूसरे देशों के औद्योगिक कारोबार पर सीधा असर पड़ रहा है. देश और दुनिया में बीकानेर की वूलन इंडस्ट्रीज का एक बड़ा नाम है. दुनिया में कई देशों में निर्यात होने वाले कारपेट में काम आने वाला ऊनी धागा कच्ची ऊन की प्रोसेसिंग के बाद बीकानेर से यूपी के भदोही में सप्लाई होता है, जहां कारपेट का निर्माण होता है. ये कारपेट दुनिया भर में निर्यात होता है. हालांकि अब बीकानेर में भी कारपेट निर्माण की कई फैक्ट्रियां शुरू हो गई है.
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युद्ध के तनाव से प्रभाव : करीब 60 साल से ऊन कारोबार के जुड़े ऊन कारोबारी राजाराम सारडा कहते हैं कि इस युद्ध के तनाव से अर्थव्यवस्था पर सीधा असर देखने को मिलेगा. उन्होंने कहा कि US डॉलर का दाम बढ़ेगा और दूसरे देशों की करेंसी का दाम कम होगा. इसके अलावा मुख्य तौर पर मिडल ईस्ट के अलावा न्यूजीलैंड की जो ऊन आती है उसका ट्रांसपोर्टेशन का रूट चेंज होने से इसका अतिरिक्त खर्च लगेगा और डिमांड के बाद सप्लाई भी समय पर नहीं होगी. वे कहते हैं कि न्यूज़ीलैंड के अलावा मिडिल ईस्ट से बड़ी मात्रा में ऊन का आयात होता है और ईरान इसमें प्रमुख देश है. युद्ध की वजह से ईरान से अब ऊन की सप्लाई पूरी तरह से बंद हो गई है.


कारपेट लग्जरी आइटम : ऊन व्यवसाय से जुड़े कारोबारी दिलीप कुमार गंगा कहते हैं कि वूलन कारपेट एक लग्जरी आइटम है और युद्ध के हालात में कॉरपेट की डिमांड खत्म हो जाएगी. उन्होंने बताया कि पहले भी रूस और यूक्रेन के युद्ध के चलते स्थितियां ऐसी ही बनी. क्योंकि युद्ध के चलते अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर पड़ता है और अर्थव्यवस्था पर मंदी की मार से वूलन उद्योग भी पिटता रहता है. उन्होंने कहा कि युद्ध के हालात के बाद पहले लिए गए ऑर्डर भी कैंसिल होंगे जिसका असर सीधे तौर पर बीकानेर के ऊन के कारोबारी को भुगतना होगा.

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सरकार करें मदद तो संभव : ऊन कारोबारी निर्मल पारख कहते हैं कि युद्ध के हालात हो या मंदी की मार ऊन उद्योग के सामने हमेशा चुनौतियां रही हैं. पारख ने बताया कि हमारा पूरा कारोबार पूरी तरह से ऊन के आयात पर निर्भर है. वे कहते हैं कि एक समय में बीकानेर एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी हुआ करता था और आज भी हमारे यहां सरकार की स्तर पर कभी भी चारागाह को डेवलप नहीं किया गया और ना ही ऊन उद्योग को कोई विशेष पैकेज इस संकट से उबरने के लिए दिया गया. उन्होंने कहा कि सरकारी स्तर पर बड़े राजस्व देने वाले इस उद्योग को बचाने के लिए कुछ कदम उठाने चाहिए. इसमें स्थानीय भेड़ पालकों को प्रोत्साहित करने के लिए कदम उठाए जाएं. ताकि देसी ऊन उत्पादन ज्यादा हो और हम विदेशी आयात पर निर्भर नहीं होंगे तो प्रतिस्पर्धा में ऊन उद्योग टिक पाएगा.
