जयपुर: राजधानी जयपुर के प्रताप नगर स्थित स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट में बन रहा देश का सबसे बड़ा बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर दिसंबर में मरीजों के लिए शुरू हो जाएगा. करीब 115 करोड़ की लागत से तैयार हो रहे इस ट्रांसप्लांट सेंटर में रक्त कैंसर के साथ-साथ थैलेसीमिया और अन्य रक्त विकार से जूझ रहे मरीजों को इलाज मिल सकेगा. खास बात यह है कि यह इलाज निशुल्क होगा.
स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में बन रहे इस बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर में 50 अत्याधुनिक वार्ड के साथ आईसीयू की सुविधा भी मिल सकेगी. स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के अधीक्षक और वरिष्ठ कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉक्टर संदीप जसूजा का कहना है कि इस कैंसर इंस्टिट्यूट में कैंसर से जुड़ी बीमारियों के इलाज के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं मौजूद हैं. लेकिन इंस्टिट्यूट में बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर को तैयार किया जा रहा है ताकि मरीजों को और बेहतर इलाज मिल सके. पिछले कुछ सालों में राजस्थान में स्वास्थ्य से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर को काफी मजबूत भी किया गया है.
50 ट्रांसप्लांट हो सकेंगे: डॉ जसूजा का कहना है कि करीब 10 साल पहले पायलट प्रोजेक्ट के तहत एसएमएस अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांट की शुरुआत की गई थी. फिलहाल एसएमएस अस्पताल में भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट हो रहे हैं, लेकिन उसके लिए सिर्फ दो बेड ही उपलब्ध हैं. यानी एक महीने में सिर्फ दो बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही संभव हैं, लेकिन कैंसर इंस्टिट्यूट में जैसे ही बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर बनकर तैयार होगा, तो इस सेंटर में एक माह में 50 बोन मैरो ट्रांसप्लांट किए जा सकेंगे.
लंबी वेटिंग: डॉ जसूजा का कहना है कि फिलहाल बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए काफी लंबी वेटिंग चल रही है, क्योंकि ब्लड कैंसर से जूझ रहे कुछ मरीजों के इलाज के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट जरूरी होता, ऐसे में सेंटर के शुरू होते ही यह वेटिंग लिस्ट खत्म होगी और मरीजों को इलाज मिल सकेगा. स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में तकरीबन पांच फ्लोर पर यह सेंटर तैयार किया जा रहा था और इसका कार्य अब अंतिम चरण में है.
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30 से 40 लाख खर्चा: डॉ जसूजा का कहना है कि प्राइवेट अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांट का खर्चा तकरीबन 30-40 लाख रुपए आता है, लेकिन स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में मरीजों के लिए यह इलाज पूर्णतः निशुल्क रहेगा. डॉ जसूजा का कहना है कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट एक लंबा इलाज है. एक मरीज को करीब एक महीने तक भर्ती रहना पड़ता है. उसके बाद ही दूसरे मरीज का नंबर आता है.