नई दिल्ली: हर साल 23 मई को विश्व टर्टल दिवस मनाया जाता है. भारत की नदियों से अब विदेशी प्रजाति के कछुए गायब होते जा रहे है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरा है. दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर और टर्टल संरक्षण पर कई वर्षों से काम कर रहे डॉ. गौरव ने ईटीवी भारत को बतया कि कछुआ यानी टर्टल एक बेहद अनोखा जीव है जो जल व स्थल दोनों में रह सकता है. आइए जानते हैं उन्होंने और क्या बताया.
यमुना से गायब टर्टल, खतरे की घंटी
डॉ. गौरव बताते हैं कि कभी यमुना नदी में घड़ियाल और कई प्रजातियों के टर्टल पाये जाते थे, लेकिन आज ये लगभग गायब हो चुके हैं. यमुना नदी में टर्टल का न दिखना यह बताता है कि नदी कितनी प्रदूषित हो चुकी है. उन्होंने कहा कि कछुए एक प्रकार से संकेतक होते हैं कि नदी कितनी स्वस्थ है. जहां टर्टल होते हैं वहां पानी साफ होता है. यह रेप्टाइल प्रजाति का जीव है और इसकी सख्त खोल वास्तव में इसके शरीर का हिस्सा होता है, जो इसे शिकार से सुरक्षित करती है, लेकिन ये आज मानव अज्ञानता, अवैध व्यापार व इकोसिस्टम के प्रति लापरवाही की वजह से खुद खतरे में है.
अवैध व्यापार बना बड़ा खतरा: करीब 30 प्रजातियों के टर्टल और टॉरटॉइज भारत में पाए जाते हैं, जिनमें से कई शेड्यूल-1 की श्रेणी में आते हैं. इनका व्यापार करना या घर में पालन कानूनी अपराध है. इसके बावजूद भी थाईलैंड, चीन, म्यांमार जैसे देशों में इनके मांस व दवाओं के उपयोग के लिए भारी मांग है. चोरी छिपे इसकी तस्करी भी की जा रही है. भारत से इनकी तस्करी एक गंभीर मुद्दा है. इसके लिए जागरूकता व सख्त कार्रवाई की जरूरत है.
एग्जोटिक कछुए बन रहे नए संकटः पिछले कुछ सालों में भारत में रेड ईयर्ड स्लाइडर और अन्य एग्जोटिक प्रजातियों का ट्रेड बढ़ा है. ये देखने में सुंदर होते है. लोग इन्हें घर के एक्वेरियम में पाल लेते हैं. ये शुरू में छोटे होते हैं, लेकिन कुछ ही सालों में बड़े हो जाते हैं. जब ये टर्टल बड़े हो जाते हैं तो लोग इन्हें घरों से निकालकर तालाबों व नदियों में छोड़ देते हैं. डॉ. गौरव का कहना है कि यह सबसे बड़ी समस्या है. ये विदेशी प्रजाति के टर्टल नदियों में न सिर्फ भारतीय टर्टल व अन्य जलीय जंतुओं को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र भी बिगड़ रहा है. उन्होंने बताया कि रेड ईयर्ड स्लाइडर को विश्व की सबसे आक्रामक प्रजाति के कछुओं में गिना जाता है. ये भारत जैसे देश के लिए बड़े खतरनाक हैं.
क्या कहता हैं कानून? डॉ. गौरव का कहना है भारतीय टर्टल को पालना गैरकानूनी है और ऐसा करते हुए पाए जाने पर 7 साल तक की जेल हो सकती है, लेकिन अधिकतर लोग इस कानून से अंजान हैं. वहीं, एग्जोटिक कछुओं को पालना लीगल है. क्योंकि वे भारतीय वन्य जीव संरक्षण कानून के दायरे में नहीं आते हैं. लेकिन एग्जोटिक कछुए जिस तरीके से भारत की पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा हैं. इन पर भी नियम आवश्यक है.
लोग कछुओं को कर रहे सरेंडर: डॉ. गौरव ने बताया कि वह दिल्ली में कुछ संगठनों के साथ मिलकर एक अनूठा कार्य कर रहे हैं, जिसमें जो लोग अनजाने में टर्टल पाल रहे हैं या जिनके पास एग्जोटिक टर्टल हैं और उन्हें छोड़ना चाहते हैं, वे उन्हें सरेंडर करने की अपील कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि हम उन्हें एक सुरक्षित जगह पर रखते हैं ताकि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे. उन्होंने बताया कि लोगों में यह भी भ्रांति है कि टर्टल हजारों साल जीते हैं लेकिन यह गलत है. ज्यादातर टर्टल की औसत उम्र 30 साल होती है. कुछ 150-160 साल तक भी जी सकते हैं. उन्होंने ये भी बताया कि उनकी टीम यमुना नदी में टर्टल की वापसी के लिए शोध और संरक्षण कार्य कर रही है. उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में टर्टल की कुछ प्रजातियां दोबारा यमुना में दिखेंगी.
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