पटना: जब से वक्फ संशोधन बिल दोनों सदनों से पास हुआ है और कानून बना, तब से इसको लेकर अल्पसंख्यक समाज और मुस्लिम नेताओं में उबाल है. बिहार में इसी साल विधानसभा का चुनाव होना है, लिहाजा सियासत भी खूब हो रही है. यह मसला यहां इसलिए भी जोरदार तरीके से उठ रहा है, क्योंकि सूबे में मुसलमानों की आबादी करीब 18 फीसदी है. ऐसे में दो समाजवादी नेता, जिनके लिए 'सेकुलर' शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, उनका भी इम्तिहान होना है. बात आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हो रही है.
लालू या नीतीश, मुसलमाने किसके साथ होंगे?: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर बिहार में सरकार चला रहे हैं, ऐसे में उनके 'सेकुलर' होने पर हर बार सवाल उठ जाता है. वहीं, लालू यादव को बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ने का लंबे अरसे से एक फायदा मिलता रहा है. चाहे वह MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण की बात कर लें या फिर मुसलमानों को हक और हुकूक दिलाने की बात कर लें. ऐसे में सवाल यह उठता है कि वक्फ संशोधन विधेयक पास होने के बाद बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में किसे फायदा मिलेगा और किसको नुकसान होगा?

कभी दोस्त फिर दुश्मन हुए लालू-नीतीश: बात आज की नहीं है बात पुरानी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालू यादव एक साथ 90 के दशक में राजनीति करते थे, तब लालू-नीतीश सेकुलर होते थे. बाद में जब नीतीश ने अपनी पार्टी बना ली और बीजेपी के साथ तालमेल करके 2005 में बिहार में सरकार बनाई तो नीतीश बड़े भाई की भूमिका में थे. इसलिए बिहार की सत्ता में उनकी हनक थी. यही वजह था कि वह एक सेकुलर नेता के तौर पर जाने जाते रहे थे. यहां तक की अलग-अलग मुद्दों पर नीतीश ने केंद्र सरकार से अपनी अलग राय रखकर बिहार के मुसलमान में यह छवि पेश किया था कि वह मुसलमान के बड़े हिमायती हैं.

क्यों जेडीयू से दूर होने लगे मुसलमान?: चाहे कश्मीर में धारा 370 की बात हो, तीन तलाक का मामला हो, वक्फ बिल का मामला हो, सभी मुद्दों पर नीतीश कुमार ने एक अलग राय रखकर बिहार के मुसलमानों को विश्वास दिलाया कि उनके वह बड़े शुभचिंतक हैं लेकिन केंद्र सरकार की ताकत के सामने नीतीश कुमार बहुत देर तक टिक नहीं पाए. आखिरकार जिन-जिन मसलों का विरोध नीतीश कुमार ने किया था, वह सभी बिल पास होते गए. इसका असर यह हुआ कि नीतीश कुमार से मुसलमान ने दूरी बनानी शुरू कर दी.
2020 में एक भी मुस्लिम विधायक नहीं: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुसलमानों की नाराजगी इस कदर बढ़ी कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड का एक भी कैंडिडेट नहीं जाता, जबकि नीतीश ने 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा था. आलम ये था कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट से चुनाव जीते जमा खान को अपनी पार्टी में शामिल कराकर अल्पसंख्यक विभाग का मंत्री बनाया.

नीतीश को मुसलमानों की 'कभी हां कभी ना': 2005 में नीतीश कुमार को मुसलमान का ठीक-ठाक समर्थन मिला था. मुसलमान में पिछड़ी जाति के मुस्लिम और अति पिछड़ी जाति के मुसलमानों ने उनका भरपूर साथ दिया. हालांकि जेडीयू के 4 ही मुस्लिम विधायक जीत पाए लेकिन वोट प्रतिशत अच्छा था. 2010 में तो मुस्लिम वोटों की बारिश हुई और जेडीयू के 7 मुसलमान विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे. 2015 में भी नीतीश को मुसलमान का ठीक-ठाक साथ मिला और 5 मुस्लिम विधायक जीते लेकिन 2020 में नीतीश कुमार के 11 मुस्लिम उम्मीदवारों में एक भी नहीं जीता.

वक्फ पर जेडीयू से मुसलमान नाराज?: वक्फ संशोधन बिल पर जेडीयू के समर्थन से मुसलमानों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति खासी नाराजगी देखी जा रही है. ऐसे में 2025 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. हालांकि जेडीयू के मुस्लिम नेता इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते है. प्रवक्ता अंजुम आरा कहती हैं कि नीतीश कुमार मुसलमान के मान-सम्मान की पूरी तरह से रक्षा करते हैं. उनके रहते मुसलमान के हितों के साथ कोई भी छेड़छाड़ नहीं कर सकता है. अपने 19 साल के शासनकाल में इस बात को उन्होंने हर बार साबित भी किया है.

"वक्फ अमेंडमेंट बिल में संशोधन बेहतरी के लिए ही हुआ है. जिस तरीके से सच्चर कमेटी ने भी वक्फ की संपत्ति के इनकम को लेकर चिंता जाहिर किया था, उसके मैनेजमेंट को लेकर भी चिंता जाहिर किया था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कभी भी वोट की चिंता नहीं की है. उन्होंने वोटरों की चिंता की है. बिहार के अवाम के हितों के चिंता की है. उनके लिए नीतियां बनाई गई है. विपक्ष सिर्फ लोगों को डरा रहा है. बिहार की मुस्लिम अवाम को यकीन है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनकी बेहतरीन के लिए ही काम करेंगे."- अंजुम आरा, प्रवक्ता, जनता दल यूनाइटेड

मुस्लिम नेताओं में भी नाराजगी!: जेडीयू प्रवक्ता भले ही दावा करें कि मुसलमानों का समर्थन नीतीश कुमार के साथ कायम है लेकिन वक्फ को लेकर किस कदर पार्टी के मुस्लिम नेताओं में नाराजगी है, वह खुलकर सामने आ रही है. गुलाम रसूल बलियाली और गुलाम गौस अपनी बात सार्वजनिक मंच से कह चुके हैं. हालांकि वे सीएम के खिलाफ कुछ भी बोलने से बच रहे हैं. मुस्लिम नेता और मंत्री जमा खान तो बिल के समर्थन में ही खड़े दिखते हैं.
कई मुस्लिम नेताओं ने दिए इस्तीफे: बड़े नेता भले ही पार्टी के अनुशासन या पद के लालच में खुलकर कुछ भी नहीं बोल रहे हैं लेकिन कई ऐसे नेता हैं, जिन्होंने धड़ाधड़ इस्तीफे दिए हैं. इस्तीफा देने वालों में प्रदेश स्तर से लेकर जिला स्तर तक के नेता और कार्यकर्ता शामिल हैं. ढाका के पूर्व विधानसभा प्रत्याशी मोहम्मद कासिम अंसारी, अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की प्रदेश सचिव शाहनवाज मलिक, बेतिया जिला के उपाध्यक्ष नदीम अख्तर, प्रदेश महासचिव सीएन तबरेज सिद्दीकी, प्रदेश पूर्व सचिव एम राजू नायर, मोहम्मद दिलशान, मोहम्मद फिरोज जैसे नेताओं ने इस्तीफा देकर ने केवल बिल का विरोध किया है, बल्कि पार्टी के फैसले पर बड़ा सवाल भी खड़ा किया है.

सीमांचल में जेडीयू की स्थिति: विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए के सभी घटक दलों की निगाह सीमांचल पर होगी. सीमांचल में चार जिले किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया मुस्लिम बहुल इलाका है. इन चार जिलों में 24 विधानसभा सीट है. इसमें से 12 सीटों पर मुसलमान डिसाइडिंग फैक्टर हैं. 2020 में 24 सीटों में से 11 पर एनडीए ने अपना कब्जा जमाया था. महागठबंधन को 8 सीट मिली थी, जबकि ओवैसी की पार्टी (एआईएमआईएम) ने 5 सीटें जीती थी. एक भी मुसलमान प्रत्याशी के नहीं जीत पाने के कारण इस बार भी एनडीए और खासकर जेडीयू की चुनौती कम होती नहीं दिख रही है.

किसके साथ जाएगा मुस्लिम समाज?: वरिष्ठ पत्रकार और मुस्लिम स्कॉलर रहे इरशाद उल हक बताते हैं जिन-जिन दलों ने वक्फ अमेंडमेंट बिल के खिलाफ आवाज उठाई है, उन-उन दलों को इस चुनाव में फायदा मिलता हुआ दिखेगा. इसका सबसे बड़ा खामियाजा जेडीयू, एलजेपीआर और जीतनराम मांझी की हम पार्टी को उठाना पड़ेगा. वे उस दावों को भी खारिज करते हैं, जिसमें कहा जाता है कि मुसलमान तो जनता दल यूनाइटेड को वोट ही नहीं करते. इरशाद उल हक आंकड़ों के हवाले से बताते हैं कि जेडीयू के लिए 2005 से लेकर 2020 के चुनाव में सबसे खराब प्रदर्शन 2020 चुनाव का रहा था. इस खराब प्रदर्शन में भी उसे 13 फीसदी मुसलमान वोट मिला था, यह कुल वोटों का 3:75 प्रतिशत के आसपास है.

"इस बिल के अमेंडमेंट से मुसलमान में नाराजगी है. पसमांदा और अगड़े मुसलमान को लेकर जो भेद दिया गया है, ऐसी स्थिति में वे चंद लोग जो आवाज उठा रहे हैं, इससे पसमांदा मुसलमान का भला होना है, वह मुगालते में हैं. इस बिल के पास हो जाने के बाद जनता दल यूनाइटेड के 3:75 वोटों का नुकसान हुआ है. राष्ट्रीय जनता दल सहित कई दलों ने इस बिल के खिलाफ प्रदर्शन और कोर्ट में याचिका दायर की है. उनके प्रति मुसलमान का समर्थन मिलेगा और उन्हें स्वाभाविक तौर पर फायदा मिलेगा. जो वोट जनता दल यूनाइटेड की तरफ जाने वाला था, वह उधर ना जाकर इंडिया गठबंधन की तरफ शिफ्ट होगा."- इरशाद उल हक, वरिष्ठ पत्रकार

नीतीश की सेकुलर छवि का क्या होगा?: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी एक सेक्युलर छवि बनाने के लिए 2005 से लेकर अब तक मुसलमान के लिए दो दर्जन से अधिक सरकारी योजना लागू की. कब्रिस्तान घेराबंदी से लेकर तलाकशुदा महिलाओं के लिए सहायता, हज यात्रियों के लिए सुविधा, अल्पसंख्यक छात्रावास, उर्दू शिक्षा पर जोर, मुस्लिम सामुदाय की महिलाओं के लिए हुनर और रोजगार की योजना सहित कई और योजनाओं को मंजूरी दी. 2005 से लेकर 2013 तक उनको 'मौलाना नीतीश' भी कहा जाता था लेकिन बाद के दिनों में वह जैसे-जैसे बीजेपी के करीब होते गए, उनकी सेकुलर छवि पर सवाल उठते गए.
चुनाव में वक्फ कितना बड़ा मुद्दा होगा?: ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए गांधी संग्रहालय के संयुक्त सचिव और मुस्लिम स्कॉलर आसिफ वासी कहते हैं कि वक्फ अमेंडमेंट बिल के बाद बिहार में चुनाव जरूर हो रहे हैं लेकिन बिहार में चुनाव हमेशा जाति और धर्म के मुद्दे पर ही होते रहे हैं. उनकी मानें तो वक्फ अमेंडमेंट बिल का असर कुछ खास नहीं होने वाला है. एक मुसलमान होने के नाते में कह सकता हूं वक्फ बोर्ड अमेंडमेंट बिल से सामान्य मुसलमान को क्या फायदा हुआ है? आज तक नहीं हुआ है. पूरे पटना या पूरे बिहार में और करोड़ों-अरबों की संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास है लेकिन सामान्य मुसलमान को कोई फायदा नहीं हुआ है. वह बोर्ड में भी शिया बोर्ड अलग है सुन्नी बोर्ड अलग है.

वक्फ बिल का विरोध क्यों?: इस सवाल पर आसिफ वासी कहते हैं कि अभी स्थिति ऐसी है कि एक ऐसी पार्टी बिल लेकर आई है, जो एक समाज और एक वर्ग को किसी भी तरीके से कंट्रोल करना चाहती है. वह ये भी चाहती है कि यह समुदाय किसी भी एक्टिविटी में शरीक न हो पाए. इसलिए आज हिंदुस्तान का मुसलमान इसका विरोध कर रहा है. वे कहते हैं कि यदि यही बिल दूसरी पार्टी लेकर आती तो कोई विरोध नहीं होता. कोई ऑब्जेक्शन नहीं होता, क्योंकि उनको समझाने का तरीका अलग होता है.
18 फीसदी वोट पर 18 दलों की नजर: बिहार में करीब 18 फीसदी (17.70%) मुसलमान है, जो सीमांचल के अलावे भी कई इलाकों में चुनाव पर असर डालते हैं. हालांकि आसिफ वासी कहते हैं अगर 18 प्रतिशत मुस्लिम वोट है तो 18 पार्टियां भी हैं. कहां कोई मुसलमान एक प्लेटफार्म पर एक साथ वोट कर रहे हैं. यदि 18 फीसदी इधर है तो 78 प्रतिशत उधर भी है.

"चुनाव पर वक्फ बोर्ड का असर बहुत नहीं पड़ेगा. एक ऐसी पार्टी ने इस बिल को लाया है, जिसका समर्थन मुसलमान तो नहीं करते हैं. पहले भी नहीं करते थे और आगे भी नहीं करेंगे. वह तो बार-बार कहते हैं कि हमें मुसलमान के वोट की जरूरत भी नहीं है लेकिन उनके एसोसिएट जो हैं, उन पर असर जरूर पड़ेगा."- आसिफ वसी, मुस्लिम स्कॉलर
सेकुलर और कम्युनल का क्या मतलब?: आसिफ वसी कहते हैं कि अभी कोई किसी के साथ मिल जाए तो वह कम्युनल हो गया, उसके बाद वहां से निकल जाए तो वह सेकुलर हो गया. वे कहते हैं कि सेकुलर का असली मतलब ये है कि जो हर समाज के प्रत्येक व्यक्ति का ख्याल रखें, उसके मान-सम्मान और आस्था का ध्यान रखे लेकिन आजकल इसका अर्थ ही बदल दिया गया है.

लालू-तेजस्वी को मिलेगा फायदा: अगर नीतीश कुमार नहीं तो किसकी तरफ जाएगा मुस्लिम समाज, इस बारे में पत्रकार इरशादुल हक कहते हैं कि वक्फ बोर्ड अमेंडमेंट बिल का फायदा उन दलों को मिलने वाला है, जिन्होंने इसका विरोध किया है. राष्ट्रीय जनता दल ने वक्फ बोर्ड अमेंडमेंट बिल का विरोध किया. कोर्ट में याचिका दायर की, साथ ही लालू और तेजस्वी प्रदर्शन में भी शरीक हुए. ऐसे में जाहिर सी बात है कि लालू यादव और उनकी पार्टी को इसका फायदा मिलेगा.

क्या कहता है आरजेडी?: राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा कहते हैं कि वक्फ अमेंडमेंट बिल को सियासत से जोड़ने की जरूरत ही नहीं है. हमारी गंगा-जमुनी तहजीब है. वे प्रेमचंद की ईदगाह कहानी का जिक्र करते हुए कहते हैं कि हमीद ने चिमटा खरीदा था, क्या कोई बता सकता है कि हामिद ने चिमटा किस दुकान से खरीदा था? हरिंदर के दुकान से खरीदा था या हारून मियां की दुकान से खरीदा था. उसने चिमटा खरीदा था, दुकानदार का नाम नहीं खरीदा था.
"यह सियासत का मसाला नहीं है, यह मोहब्बत का मसला है, मोहब्बत में सियासत नहीं होती. हमलोग गंगा-जमुनी तहजीब को मानने वाले लोग हैं. वक्फ बिल पर हमें जो करना था, वह नेता प्रतिपक्ष ने कर दिया. तेजस्वी यादव ने इस मामले पर लंबी लकीर खींच दी है."- डॉ. मनोज झा, राज्यसभा सांसद सह आरजेडी प्रवक्ता

नीतीश के बाद जेडीयू को कौन संभालेगा?: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर भी हर बार सवाल खड़े होते रहे हैं. तेजस्वी यादव लगातार अपने बयानों में उनके स्वास्थ्य को लेकर सवाल उठा चुके हैं. ऐसे में जेडीयू लगातार इसका खंडन करता रहा है. सीएम के पुत्र निशांत कुमार ने साफ कहा है कि उनके पापा पूरी तरह से स्वस्थ हैं और अगले 5 साल तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे.

'25 से 30 फिर से नीतीश': निशांत के बयान के कुछ समय बाद ही जेडीयू ने एक बड़ा पोस्टर भी लॉन्च किया. जिसमें '25 से 30 फिर से नीतीश' का स्लोगन दिया गया था. हालांकि दूसरा पक्ष देखा जाए तो अब तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार राजनीतिक तौर पर सक्रिय नहीं थे लेकिन इन दिनों वह काफी सक्रिय हैं. मीडिया से बात कर रहे हैं और लोगों से मिल भी रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी के तौर पर उनके पुत्र (निशांत) राजनीति में प्रवेश करने वाले हैं.

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