Bihar Election Results 2025

ETV Bharat / state

कैसा था नवाबों से पहले का लखनऊ? कौन थे शेखजादे, मजबूत किले की जगह कैसे KGMU बना

आज हम लखनऊ को नवाबी शान-ओ-शौकत के साथ याद करते हैं, मगर इस शहर की रूह शेखजादों से भी जुड़ी है.

नवाबों से पहले के लखनऊ की कहानी.
नवाबों से पहले के लखनऊ की कहानी. (Photo Credit; ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : September 6, 2025 at 7:03 AM IST

6 Min Read
Choose ETV Bharat

लखनऊ: जब बात लखनऊ की आती है तो लोगों के जेहन में नवाबी कल्चर, उनके जमाने की इमारतों की शान और तहजीब उबरकर सामने आ जाती है. रूमी दरवाजा, बड़ा इमामबाड़ा, शाही महलात, ये सब नवाबों की देन हैं. लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि नवाबों से पहले लखनऊ कैसा था? किसके हाथों में इसकी बागडोर थी?

वैसे लखनऊ को नवाबी शान-ओ-शौकत के साथ याद किया जाता रहा है. मगर इस शहर की रूह उन शेखजादों से भी जुड़ी है, जिन्होंने यहां अपने लहू-पसीने से किलों और मकबरों की नींव रखी. नादान महल और मच्छी भवन इस बात के गवाह हैं कि लखनऊ की असली कहानी नवाबों से भी पहले शुरू होती है.

नवाबों से पहले के लखनऊ की कहानी. (Video Credit; ETV Bharat)

दरअसल, लखनऊ का इतिहास नवाबी दौर से कहीं ज्यादा पुराना है. यह कहानी उस जमाने की है जब अकबर बादशाह ने अवध को एक सूबा बनाया और यहां गवर्नर नियुक्त किए. यह दौर शेखजादों का था, जिन्होंने न सिर्फ लखनऊ की बुनियादी पहचान गढ़ी बल्कि इस शहर को सत्ता और संस्कृति की नई दिशा दी.

इन्हीं शेखजादों के वंशज आज भी लखनऊ में रहते हैं. शेखजादों के वंशज शेख आमिर रजा ने ईटीवी भारत को बताया कि लोग अक्सर लखनऊ के नवाबों के बारे में बात करते हैं लेकिन, कोई भी वास्तव में इस बारे में बात नहीं करता कि उनसे पहले शहर में कौन था, लखनऊ कैसा था, वहां पर क्या-क्या था.

लखनऊ का नादान महल.
लखनऊ का नादान महल. (Photo Credit; ETV Bharat)

नवाबों से पहले लखनऊ में थे शेखजादे: उन्होंने बताया कि नवाबों के उदय से पहले, लखनऊ की पहचान शेखजादों से थी. सबसे पहले आने वालों में शेख आदम सनानी थे. "सनानी" के नाम से मशहूर यह शख्स 1193 ईस्वी में यहां आए और यहीं से शेखजादों की दास्तान शुरू हुई. उनके बाद शेख अब्दुर रहीम बिजनौरी आए, जिन्हें बादशाह अकबर ने अवध का पहला सूबेदार (राज्यपाल) बनाया था.

इन्हीं की मजार आज भी याहया गंज इलाके में मौजूद मशहूर नादान महल (निदान महल) में है. यह मकबरा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की देखरेख में है और माना जाता है कि यह करीब 700 साल पुराना है. ये उनका अंतिम विश्राम स्थल था, जो आज भी उस युग की याद दिलाता है.

लखनऊ के नादान महल का मकबरा.
लखनऊ के नादान महल का मकबरा. (Photo Credit; ETV Bharat)

क्या है नादान महल की कहानी: शेखजादे आमिर रजा बताते हैं कि शेख अब्दुर रहीम बिजनौरी ने अपनी जिंदगी में ही नादान महल का निर्माण करवाया था और वसीयत की थी कि जब मेरा निधन हो तो मेरा मकबरा यहीं बनवाया जाए. बिजनौरी के निधन के बाद उनकी बेगम ने मुगल शैली में आगरा के लाल पत्थर से मकबरा बनवाया.

जिस पर खूबसूरत नक्काशी, बीच में एक बड़ा गुंबद मौजूद है जो बेहद आकर्षक है. इसी परिसर में उनके पिता शेख इब्राहीम का खंजर स्टोन (सफेद पत्थर) का मकबरा भी स्थापित है. शेख इब्राहीम अपने समय के बड़े सूफी सन्त थे. इस परिसर में लखौरी ईंट के दो अन्य चबूतरे भी बने हैं, जिन पर कुछ मजारात हैं.

लखनऊ के नादान महल का मकबरा.
लखनऊ के नादान महल का मकबरा. (Photo Credit; ETV Bharat)

कैसा दिखता है नादान महल: मकबरा नादान महल एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है. इसमें 12 खम्बे, मध्य में ऊंचा गुम्बद तथा उसके चारों ओर खुला बरामदा है. मकबरे के अन्दर मध्य में दो कब्रें जिन पर संगमरमर और लाल पत्थर का नायाब काम है. कुरआन शरीफ की आयते भी अंकित की गई हैं. गुम्बद आठ पहल का है, जिस पर रंगीन प्लास्टर और टाइल्स लगाकर सुसज्जित किया गया है.

शेखजादों का बिजली पासी से संघर्ष: इतिहासकार रवि भट्ट बताते हैं कि जब अकबर ने शेखजादों को अवध भेजा तो यहां पहले से राजा बिजली पासी का राज था. आल्हा-ऊदल की लड़ाई में बिजली पासी वीरगति को प्राप्त हुए, मगर उनके वारिस लखनऊ पर शासन कर रहे थे. शेखजादों और पासी शासकों में संघर्ष हुआ और अंततः शेखज़ादे विजयी हुए.

लखनऊ का नादान महल.
लखनऊ का नादान महल. (Photo Credit; ETV Bharat)

शेख अब्दुर रहीम बिजनौरी ने 27 सिपाहियों के साथ जीता था युद्ध: शेख अब्दुर रहीम बिजनौरी सिर्फ प्रशासक नहीं, बल्कि बहादुर योद्धा भी थे. आईने अकबरी और अकबरनामा में उनका उल्लेख आता है. गुजरात में बगावत दबाने के लिए उन्होंने महज 27 सिपाहियों के साथ तेज रफ्तार घोड़ों पर सफर किया और जीत हासिल की. एक बार जख्मी होने पर अकबर खुद उनके खेमे में आए और अपने हाथों से मरहम-पट्टी की.

क्या है मच्छी भवन के किले की कहानी: शेखजादे आमिर रजा बताते हैं कि जब शेख अब्दुल रहीम बिजनौरी लखनऊ आए, तो उन्होंने यहां एक विशाल किला बनवाया, जिसे समय के साथ मच्छी भवन कहा जाने लगा. यह किला शेखजादों के लिए शक्ति और पहचान का केंद्र बना रहा. इसके 26 दरवाजे थे. हर दरवाजे पर दो मछलियों की नक्काशी थी. कुल 52 मछलियां किले पर बनवाई गईं. इसलिए इसे मच्छी 52 का नाम दिया गया लेकिन, फिर मच्छी भवन कहा जाने लगा.

लखनऊ के नादान महल का मकबरा.
लखनऊ के नादान महल का मकबरा. (Photo Credit; ETV Bharat)

जहां आज है KGMU वहीं पर था मच्छी किला: बिजनौरी को मछलियों का इतना शौक था कि मुगल दरबार से उन्हें “माही मरातिब” की उपाधि भी मिली थी. यही किला बाद में मच्छी भवन कहलाया. आज जहां किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज (KGMU) है. यहीं पर किला मौजूद था. अंग्रेज़ों ने 1905 में मेडिकल कॉलेज का निर्माण कराया और इस तरह मच्छी भवन इतिहास के पन्नों में समा गया.

ASI की निगरानी में है नादान महल: क्षेत्रीय निवासी अयाज अहमद बताते हैं कि नादान महल लखनऊ का बेहद खूबसूरत और चर्चित मकबरा है. यहां पर शेखजादों की कब्र है. यहां न सिर्फ उत्तर प्रदेश से बल्कि देश और विदेश के पर्यटक आते हैं. इसको नादान महल इसलिए कहते हैं क्योंकि शेखजादे बहुत ही शरीफ थे, इसलिए उनको नादान कहा जाता था.

रिजवान जो यहां की देखरेख करते हैं वह बताते हैं कि फतेहपुर में जब से मकबरे पर बवाल हुआ है तब से यहां पर अजनबी लोगों को ठहरने नहीं दिया जाता है. यह क्षेत्र ऐतिहासिक है और भारतीय पुरातत्व विभाग की निगरानी में है.

ये भी पढ़ेंः लखनऊ के वो 5 राजघराने, जिन्होंने अंग्रेजों को धूल चटवाई; देश को आजाद कराने में निभाई अहम भूमिका