ग्वालियर : आपकी थाली में कितना पोषण है, अब इसका पता सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और एम्स के चिकित्सक लगाएंगे. इसके जरिए आपकी थाली को पोषण युक्त बनाने के लिए एक्सपर्स्ट्स आगे भी रिसर्च कर पाएंगे. इसी को लेकर मंगलवार को ग्वालियर में कृषि विश्वविद्यालय और एम्स भोपाल के साथ-साथ न्यूट्रिशन इंटरनेशनल के बीच एक त्रिपक्षीय एमओयू साइन किया गया.
भोजन के पोषण प्रतिशत पर किया जाएगा शोध
अनुबंध के दौरान कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. अरविन्द शुक्ला, एम्स से कम्युनिटी एंड फेमिली मेडिसिन के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. अरूण महादेयो कोकने, और न्यूट्रिशन इंटरनेशनल की कन्ट्री डायरेक्टर मिनी वर्गीज ने यह अनुबंध साइन किया. अब इस प्रोग्राम के तहत गांव के साथ ही शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा खाये जाने वाले भोजन पर शोध किया जाएगा. इसके माध्यम से यह पता लगाया जाएगा कि उनके शरीर को पोषण देने वाले जरूरी पोषक तत्व उन्हें कितने प्रतिशत मिल रहे हैं?

इसके साथ ही यह भी पता लगाया जाएगा कि क्या उपयुक्त मात्रा में आहार के माध्यम से पोषण प्राप्त हो रहा है? या कौन से पोषक तत्वों की कितनी कमी रह रही है. इसके जरिए कृषि वैज्ञानिक और एम्स के चिकित्सक रिसर्च करेंगे कि भोजन की थाली में उपलब्ध भोजन में किस तरीके से पोषक तत्व बढ़ाए जाएं, जो मानव शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक हों.
मध्यप्रदेश में एनीमिया सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या
भोजन में पोषण की कमी होने के कारण मानव शरीर तरह-तरह की बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है. मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े यह बताते हैं कि एनीमिया एक गंभीर और सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी है. एनीमिया होने के कई कारण हो सकते है लेकिन मध्यप्रदेश में आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया एक बड़ी समस्या है. इसके सबसे ज्यादा मरीज विशेष तौर पर गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली माताओं और प्रजनन आयु की महिलाओं को प्रभावित करती हैं. एनीमिया से पीड़ित व्यक्ति सिरदर्द, ध्यान केन्द्रित करने में कठिनाई, कमजोरी, थकान, कम प्रतिरक्षा क्षमता, भूलने की आदत, हाथ-पैरों में सुन्नता और सांस फूलने जैसे लक्षण अनुभव करता है.

मध्यप्रदेश में एनीमिया के मामले
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-2021) के आंकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश में 6 से 59 माह आयु के लगभग 73 प्रतिशत बच्चे, 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग की 53 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं, 55 प्रतिशत सभी महिलाएंं और 15 से 49 वर्ष के 22 प्रतिशत पुरुष एनीमिक हैं.

फूड फोर्टिफिकेशन से पूरे होंगे पोषक तत्व
एनीमिया जैसी स्वास्थ्य और पोषण संबंधी समस्या की रोकथाम के लिए फूड फोर्टिफिकेशन एक सहायक तकनीक है. फूड फोर्टिफिकेशन एक वैज्ञानिक प्रमाण आधारित वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य और कम लागत वाला तकनीकी उपाय है. यह सुनिश्चित करता है कि लोगों द्वारा उपभोग किए जाने वाले दैनिक भोजन में आवश्यक पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में हों, जिससे लोगों की पोषण आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और एनीमिया जैसी स्थितियों को रोका जा सके.

ग्वालियर में स्थापित होगी टेक्निकल यूनिट
कृषि विश्वविद्यालय कुलगुरु डॉ. अरविंद शुक्ला ने बताया, '' न्यूट्रिशन इंटरनेशनल जो भारत समेत 60 देशों में काम कर रही है, इस संस्था के साथ मिलकर ग्वालियर में एक टेक्निकल सपोर्ट यूनिट इस प्रोग्राम के तहत खोली जाएगी. इसका हेडक्वार्टर ग्वालियर होगा और इसमें राजमाता विजय राजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय और एम्स भोपाल भी मिलकर काम करेंगे. मध्य प्रदेश को एक समय पर बीमारू राज्य माना जाता था समय के साथ साथ हालात सुधरे हैं लेकिन न्यूट्रिशन को लेकर आज भी काफी चिंताएं हैं. इन चिंताओं को दूर करने के लिए एक नई दिशा में कदम रख रहे हैं.''
यूनिवर्सिटी करेगी बायो-फोर्टिफिकेशन पर काम
कुलगुरु ने आगे कहा कि भोजन में पोषक तत्वों की कमी को दो ही तरीकों से दूर किया जा सकता है. या तो उसे फोर्टीफाय किया जाए या बायो फोर्टीफाय. इस प्रोग्राम के तहत कृषि विश्वविद्यालय बायो फोर्टीफिकेशन पर काम करेगा और न्यूट्रिशन इंटरनेशनल और एम्स भोपाल मिलकर फोर्टीफिकेशन पर काम करेंगे. कृषि विश्वविद्यालय कृषि विज्ञान केंद्रों के द्वारा पूरे प्रदेश में सर्वे करेगा, जिससे पता चल सके कि आपकी थाली में किस तरह के पोषक तत्वों की कमी है और किस तरह के तत्वों को इनमें मिलाने की जरूरत है. इसके बाद इनके क्या इफेक्ट होंगे, यह किस तरह काम करेगा या इसका रिजल्ट क्या होगा इस पर आगे का काम एम्स भोपाल द्वारा किया जाएगा.
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