गया: बिहार के गया के मोहड़ा गांव की कहानी चौंकाने वाली है. गर्म कुंड, गर्म सरोवर तो लोगों ने सुना होगा, लेकिन इस गांव में सालों भर सिर्फ गर्म पानी आता है. गांव में हमेशा गर्म पानी निकलता है. ग्रामीण बताते हैं कि 60 से 65 डिग्री सेल्सियस जैसी गर्मी जैसा पानी यहां के चापाकल और कुएं से निकलते हैं.
गया का अनोखा गांव: हालांकि कुएं से चापाकल की अपेक्षा कुछ कम गर्म पानी आता है, क्योंकि कुएं का हिस्सा खुला होता है. मोहड़ा का ये गांव हमेशा गर्म पानी को लेकर लोगों के बीच चर्चा और कौतूहल का विषय बना रहता है.
पूरे साल चापाकल और कुएं से गर्म पानी: गया के अतरी प्रखंड के मोहड़ा गांव की कहानी अजीब है. मोहड़ा गांव में तकरीबन 50 से 60 घर हैं. 500 से अधिक की आबादी है. यहां के लोगों को ठंडा पानी नसीब नहीं हो पाता. कृत्रिम तरीके से ठंडा पानी किसी तरह से मिल जाए, वह अलग बात है, लेकिन प्राकृतिक तरीके से ठंडे पानी के लिए लोग सदियों से तरस गए हैं.

कृत्रिम तरीके से ठंडा किया जाता है पानी: यहां के पुश्त दर पुश्त लोग चापाकल और कुओं से निकलने वाले गर्म पानी का सेवन करने को विवश हैं. हालांकि, गर्म पानी को ठंडा करने की मशक्कत जरूर होती है. घंटे- दो घंटे तक बर्तन या घड़े में रखकर गर्म पानी को ठंडा किया जाता है. इसके बाद भी पूरी तरह से ठंडा नहीं होता. कुछ नॉर्मल होने पर लोग इसका उपयोग करते हैं. यह जानकर आश्चर्य होता है, कि यहां का पानी ठंडा बर्तनों में ठंडा करने में घंटों का समय लग जाता है.
गर्मी में आग की तरह झुलसाता है पानी: यह पानी गर्मी के दिनों में मोहड़ा गांव के सैकड़ों ग्रामीणों को खासतौर से झुलसाती है. पानी ऐसा कि लोग उस पर हाथ रखना भी नहीं चाहते. ग्रामीण मंटू कुमार बताते हैं, कि हमारे गांव में पानी इतना गर्म है, कि उसे छूना भी मुश्किल है.

"यदि हाथ चापाकल के मुंह से गिर रहे पानी के सामने रख दिया जाए, तो हाथ जलने लगेगा. पूर्व में भू वैज्ञानिक यहां आए और जांच किया तो पाया कि यहां राजगीर और तपोवन से भी ज्यादा गर्म पानी है. यहां का पानी 60 डिग्री से 65 डिग्री सेल्सियस वाला प्रतीत होता है. कुएं का पानी भी थोड़ा कम, लेकिन वह भी गर्म ही रहता है."-मंटू कुमार, ग्रामीण
भोजन जल्दी पक जाता है: ग्रामीण रामचंद्र प्रसाद बताते हैं, कि राजगीर के कुंड से भी ज्यादा गर्म पानी यहां के चापाकल, कुएं से निकलते हैं. बताते हैं, कि गर्मी के दिनों में बहुत कठिनाई होती है. पीने के पानी के लाले पड़ जाते हैं. ठंड के मौसम में यह गर्म पानी स्नान के लिए राहत दे जाती है, लेकिन गर्मी के दिनों में आग बरपाती है. गर्म पानी का एक फायदा है कि भोजन जल्दी पक जाता है.
"65 डिग्री सेल्सियस से कम यह गर्म पानी नहीं होता है. स्थिति यह होती है, कि यह पानी छूने लायक भी नहीं होता. खौलती आग की तरह होता है. हाथ जलना शुरू हो जाता है. मिट्टी का बर्तन या तसला में पानी को रखकर उसे घंटों ठंडा करने के लिए छोड़ा जाता है. तब जाकर उसका उपयोग कर पाते हैं."- रामचंद्र प्रसाद, ग्रामीण
'अधन की तरह पानी': मोहड़ा गांव की मीना देवी, राम अवतार प्रसाद बताते हैं, कि हम लोग ठंडे पानी के लिए तरसते हैं. कई पुश्त दर पुश्त से हमारे पूर्वजों को ठंडा पानी नसीब नहीं हो पाया है और आज हम लोगों को भी नहीं हो पा रहा है. यहां का पानी अधन (आग पर गर्म किया गया पानी) की तरह होता है.

"सालों भर यही स्थिति रहती है. चाहे वह बरसात का मौसम हो, गर्मी का मौसम हो या ठंड का मौसम हो, हर दिन गर्म पानी ही निकलता है. गर्मी के दिनों में परेशानियां भयावह हो जाती है."- मीना देवी, ग्रामीण
'महामारी नहीं फैली': ग्रामीण बताते हैं, कि हमें ठंडा जल भले ही न मिलता हो, लेकिन यह गर्म पानी सेहत की दृष्टि से कुछ न कुछ फायदेमंद भी है. यहां हम लोगों को कभी महामारी का सामना नहीं करना पड़ा. महामारियां तो आसपास के कई गांव में फैली, लेकिन इस गांव के लोगों को वह दिन नहीं देखना पड़ा.
"यहां के लोग ज्यादा बीमार भी नहीं पड़ते हैं. भूख भी खूब लगती है. अभी तक जो लोग आए उनका मानना है, कि यहां सल्फर ज्यादा है. सल्फर प्रचुर मात्रा में होने के कारण पानी गर्म आता है."- ग्रामीण
नल जल का नामोनिशान नहीं: ठंडे पानी की आस में जूझ रहे लोगों को कई दशकों से प्रशासनिक या जनप्रतिनिधियां का सपोर्ट नहीं मिला. यही वजह है, कि यहां आज तक नल जल का नामोनिशान नहीं है. यदि नल जल योजना यहां सफल होती, तो वैकल्पिक व्यवस्था और अच्छे जगह का चयन कर सैकड़ों ग्रामीणों को ठंडा पानी मुहैया कराया जा सकता था.
आस-पास के गांव में ठंडा पानी: यह भी एक अजब संयोग की बात है, कि इस गांव से थोड़ी दूरी पर ही रहे गांवों में ठंडा पानी आता है, लेकिन सिर्फ मोहड़ा गांव में ही गर्म पानी लोगों को मिलता है. आज तक लोग गर्म पानी के कारण को स्पष्ट तौर पर नहीं समझ पाए. लोगों का यह भी कहना है, कि यहां जांच करने लोग आते हैं, लेकिन बिना कुछ किए चले जाते हैं.
"इसे अभिशाप कहे, या कुछ और हम लोगों को सालों भर गर्म पानी ही नसीब हो पाता है. हमारे यहां के चापाकल हो या कुएं, उससे सालों भर गर्म पानी ही निकलते हैं. गर्मी के दिनों में खौलता हुआ पानी निकलता है, जिसे छूना भी दूभर होता है. यदि उसे पानी को शरीर पर डाल दिया जाए, तो चमड़े भी उधड़ सकती है. हम मांग करते हैं, कि सरकार नल जल की योजना के तहत यहां ठंडा पानी मुहैया कराए."- राम अवतार प्रसाद, ग्रामीण

क्या है गर्म पानी आने का कारण?: इस संबंध में गया काॅलेज से रिटायर्ड हेड, जॉग्रफी प्रोफेसर रामकृष्ण प्रसाद बताते हैं कि आर्कियन युग की रूपांतरित चट्टानों के संपर्क में आने से भूमिगत जल गर्म हो जाते हैं. इस कारण से मोहड़ा गांव में चापाकल या कुएं का पानी सालों भर गर्म निकलता है. प्रोफेसर रामकृष्ण बताते हैं, कि आर्कियन युग की रूपांतरित चट्टानें 300 करोड़ वर्ष पुरानी है. गया में ऐसी कई पहाड़ी उस काल की है और आर्कियन की रूपांतरित चट्टानों में जीवों के अवशेष नहीं मिलते हैं.
"दुनिया भर में अधिकांश बहुमूल्य खनिज ऐसे ही चट्टानों में मिलते हैं. इन चट्टानों में बहुमूल्य संपदा सोना चांदी व लौह अयस्क जैसे गंधक आदि खनिज मिलते हैं. आर्कियन की चट्टानों के संपर्क में आने से भूमिगत जल गर्म हो जाता है. सल्फर की बहुतायत मात्रा इसका मुख्य कारण हो सकती है."- प्रोफेसर रामकृष्ण यादव, रिटायर्ड हेड, जॉग्रफी गया कॉलेज
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