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पहाड़ों की एक ऐसी शैली, जिसका भूकंप भी नहीं बिगाड़ पाया कुछ, सैलानियों को भा रही लकड़ी-पत्थर से बनी ये इमारतें - Himachal Kath Kuni Architecture

Himachal Kath Kuni Shaili Building: हिमाचल प्रदेश में काष्ठकुणी शैली की बनी इमारतें सैकड़ों सालों से खड़ी हैं. इन इमारतों को भूकंप रोधी भी कहा जाता है, क्योंकि सीमेंट से बने घरों के मुकाबले काष्ठकुणी शैली से बने मकानों का भूकंप भी कुछ नहीं बिगाड़ पाता है. वहीं, पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से भी इस शैली से बने मकान अहम भूमिका निभाते हैं. इसके अलावा पर्यटकों को भी ये इस शैली से बने मकान खूब भा रहे हैं.

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Aug 8, 2024, 2:25 PM IST

Updated : Aug 8, 2024, 9:22 PM IST

Himachal Kath Kuni Shaili Building
हिमाचल में काष्ठकुणी शैली के भवन (ETV Bharat)
काष्ठकुणी शैली (ETV Bharat)

कुल्लू: भारत में कई ऐसी इमारतें हैं, जो कई सदियों से टिकी हुई हैं और उन्हें देखने के लिए देश-दुनिया से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. वहीं, भारत के पहाड़ी इलाकों में भी एक ऐसी शैली है, जिससे बने हुए मकान भी सैकड़ों सालों से अपनी जगह पर खड़े हुए हैं और आज भी इस शैली के मकानों का भूकंप भी कुछ नहीं बिगाड़ पाया है. ये मकान काष्ठकुणी शैली से बनाए गए हैं.

काष्ठकुणी शैली के मकानों के संरक्षण में आगे आया ये ट्रस्ट

काष्ठकुणी से बने मकान हालांकि अब काफी कम हो रहे हैं, लेकिन पहाड़ी इलाकों में अभी भी इसी शैली से भवनों का निर्माण हो रहा है. हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में हिमालय ब्रदर ट्रस्ट भी लोगों के पुराने काष्ठकुणी शैली के मकानों को बचाने की दिशा में काम कर रहा है. वहीं, अगली पीढ़ी को भी इस शैली से बने मकानों के महत्व के बारे में जानकारी दे रहा है, ताकि इस शैली से बनने वाले मकान पर्यावरण संरक्षण में भी अपनी भूमिका निभा सकें. जिला कुल्लू के पहाड़ी इलाकों में आज भी काष्ठकुणी शैली से बने मकान सैकड़ों सालों से खड़े हैं और इन मकानों की सुंदरता भी देखते ही बनती है.

Himachal Kath Kuni Shaili Building
भूकंप रोधी होती हैं काष्ठकुणी शैली की इमारतें (ETV Bharat)

सैलानियों की पसंद बने काष्ठकुणी शैली के मकान
हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य की अगर बात करें तो यहां पर काष्ठकुणी शैली के मकान की संख्या अब काफी कम रह गई है, लेकिन भूकंप जैसी आपदा में ये मकान नुकसान से बचाने में काफी सहायक सिद्ध हो सकते हैं, क्योंकि काष्ठकुणी शैली में बनाए गए मकान की संरचना इस तरह से होती है कि बारिश और भूकंप भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं. ऐसे में काष्ठकुणी शैली के मकान अब पहाड़ी इलाकों में सैलानियों की भी पसंद बनते जा रहे हैं. ऐसे मकानों में सैलानी भी रहना खूब पसंद कर रहे हैं.

क्यों कम हो रही काष्ठकुणी शैली के मकानों की संख्या ?
हिमाचल प्रदेश के कई इलाकों में पहले लकड़ी की उपलब्धता अधिक होती थी और ग्रामीण इलाकों में सड़कें न होने के चलते सीमेंट, रेत व अन्य निर्माण सामग्री गांवों तक पहुंचानी मुश्किल होती थी. ग्रामीण इलाकों में जंगल से पत्थर और मिट्टी आसानी से उपलब्ध होने के चलते लोग यहां काष्ठकुणी शैली के मकानों को प्राथमिकता देते थे, लेकिन आज के दौर में लकड़ी की पर्याप्त उपलब्धता न होने के कारण और आग से बचाव के कारण लोग पक्के मकान बनाने को प्राथमिकता दे रहे हैं. प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों में कई गांव ऐसे हैं, जहां काष्ठकुणी शैली के मकान देखने को मिल जाते हैं, लेकिन शहरों में इनकी संख्या नाम मात्र ही रह गई है.

Himachal Kath Kuni Shaili Building
पर्यटकों को पसंद आ रहे काष्ठकुणी शैली के बने मकान (ETV Bharat)

काष्ठकुणी शैली में नहीं इस्तेमाल होता सीमेंट
काष्ठकुणी शैली के मकानों में अधिकतर लकड़ी और पत्थर का इस्तेमाल होता है. इस शैली के मकान में सीमेंट का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं किया जाता है और दीवारों पर मिट्टी और गोबर के मिश्रण से बने पदार्थ का प्लास्टर किया जाता है. साथ में लकड़ी इस्तेमाल की जाती है. गांव में घर एक दूसरे से सटे होने और घर की निचली मंजिल में घास व लकड़ी रखने की वजह से आग की एक चिंगारी से पूरे घर को राख में बदलते देर नहीं लगती है. कुल्लू जिले में अब तक भीषण अग्निकांडों में काष्ठकुणी शैली से बने पूरे के पूरे गांव भी आग की भेंट चढ़े चुके हैं. मणिकर्ण घाटी का मलाणा गांव दो बार पूरी तरह से जल चुका है, लेकिन पर्यावरण के लिहाज से यह मकान काफी सहायक सिद्ध होते हैं.

एक बार फिर काष्ठकुणी शैली की ओर आकर्षित हो रहे लोग
हिमाचल प्रदेश के अलावा जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड के पहाड़ों पर बने लकड़ी के इन मकानों को देखकर पर्यटक भी उनकी ओर खींचे चले आते हैं. हालांकि, बीते कुछ दशकों से जिला कुल्लू में कंक्रीट के जंगल बनने शुरू हुए और लोगों ने सीमेंट के मकान बनाने शुरू कर दिए थे. वहीं, पर्यावरण में आए बदलाव के चलते अब एक बार फिर से लोग पत्थर और लकड़ी से बने मकानों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में लोग काष्ठकुणी जिन्हें कुल्लवी बोली में काठकुणी भी कहा जाता है, उसी शैली के भवनों का निर्माण कर रहे हैं.

Himachal Kath Kuni Shaili Building
कुल्लू में बने काष्ठकुणी शैली की इमारतें (ETV Bharat)

काष्ठकुणी शैली से बने मकानों का खासियत
इस शैली से बने मकानों की खासियत यह है कि गर्मियों में यह ठंडे और सर्दियों में गर्म होते हैं. गर्मियों के मौसम में भी ऐसे घरों में पंखों की जरूरत नहीं होती है. यह मकान भूकंपरोधी भी होते हैं, क्योंकि इसके निर्माण में सीमेंट का उपयोग नहीं होता. साथ ही इसकी दीवारों में थोड़ा गैप होता है. जिसकी वजह से भूकंप के समय तेज झटके इसे नुकसान नहीं पहुंचाते. जिसका प्रमाण जिला कुल्लू का नग्गर कैसल और चैहणी कोठी है. इस शैली के घर व मंदिर बनाने वाले कारीगर कई बार तो लोहे की कील का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं. लकड़ी को आपस में जोड़ने के लिए लकड़ी की ही कील तैयार कर उसे जोड़ा जाता है. इस शैली की खासियत लकड़ी पर की गई नक्काशी है, जो यहां की कला की एक विशेष पहचान है. इसे हाथ से उकेरा जाता है और इन्हें बनाने में बहुत समय लगता है.

बाहरी राज्यों के युवा भी ले रहे काष्ठकुणी शैली का प्रशिक्षण
जिला कुल्लू के नग्गर में इस शैली के मकान निर्माण का प्रशिक्षण दे रहे हिमालय ब्रदर ट्रस्ट के संचालक भृगु आचार्य ने बताया कि लकड़ी, पत्थर और मिट्टी से बने हुए मकानों का डिजाइन वह स्वयं तैयार करते हैं. इसके बाद इस पर कार्य कर मकान तैयार कर देते हैं. बाहरी राज्यों से भी युवा इस शैली का प्रशिक्षण ले रहे हैं. इसके अलावा पुराने मकानों को बचाने की दिशा में भी ट्रस्ट के द्वारा कार्य किया जा रहा है. वहीं, कुल्लू मनाली घूमने आए पर्यटक भी काष्ठकुणी शैली से बने मकानों को पसंद करते हैं. आज भी कुल्लू जिले में कई ऐसे मकान हैं, जो कई 100 सालों में भी जस के तस बने हुए हैं. इसमें नग्गर कैसल और चैहणी कोठी हैं, जहां कि बड़े से बड़ा भूकंप आने पर भी इनको कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. यह मकान भूकंप रोधी होते हैं.

Himachal Kath Kuni Shaili Building
हिमाचल की अद्भुत काष्ठकुणी शैली (ETV Bharat)

हिमालय नीति अभियान के राष्ट्रीय संयोजक गुमान सिंह का कहना है, "आज पूरे प्रदेश में कंक्रीट के भवन बनते जा रहे हैं. जिससे पर्यावरण को भी खासा नुकसान पहुंचा है. कंक्रीट के भवन बनने के चलते अब गर्मी बढ़ने लगी है और मौसम में भी काफी बदलाव हुआ है. पहले ग्रामीण इलाकों में काष्ठकुणी शैली से मकान बनाए जाते थे, क्योंकि इसके बनने से एक तो पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता था और ग्रामीण इलाकों के लिए भी यह काफी अनुकूल माने जाते थे. अब लोगों का रुझान एक बार फिर से इस शैली के मकान की ओर बढ़ा है, लेकिन अब इस तरह के मकान बनाने में भी काफी खर्च हो रहा है. ऐसे में इस मकान के निर्माण के लिए सरकार को लकड़ी हर जगह पर सही कीमत पर उपलब्ध करवानी चाहिए."

जिला कुल्लू के मणिकर्ण, मनाली और बंजार की बात करें तो वहां पर भी अब इसी शैली में कई भवनों का निर्माण किया जा रहा है. जिसे पर्यटक भी काफी पसंद कर रहे हैं. यहां पर ऐसे भवनों में रहने के लिए सैलानी एडवांस में बुकिंग कर रहे हैं. बंजार में पर्यटन कारोबार कर रहे हरी कृष्ण और दिलीप सिंह का कहना है, "अब सैलानी कंक्रीट के भवन के बजाय लकड़ी व पत्थर से बने मकानों को प्राथमिकता दे रहे हैं. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों को रोजगार मिल रहा है. होमस्टे के लिए भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अधिकतर इन्हीं भवन को रजिस्टर्ड कर रहे हैं."

Himachal Kath Kuni Shaili Building
काष्ठकुणी शैली में लकड़ी से बनाए जाते हैं मकान (ETV Bharat)

साहित्यकार डॉक्टर सूरत ठाकुर का कहना है, "हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में कई इमारतें आज भी बुलंद हैं. जिन्होंने 1905 में आए भूकंप का सामना किया है. इनमें जिला कुल्लू के बंजार में चेहनी कोठी और नग्गर का कैसल किला प्रमुख है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में भी कई ऐसे पुराने मंदिर हैं, जो इसी शैली से बने हुए हैं. अब फिर से लोगों का रुझान इस शैली से बने मकानों की ओर हो रहा है."

ये भी पढ़ें: भूकंप भी इन घरों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता!, 100 सालों से ज्यादा समय से खड़े हैं काष्ठकुणी शैली में बने मकान

ये भी पढ़ें: हिमाचल प्रदेश : पर्यटकों की पसंद बने पत्थर-लकड़ी के भवन, पर्यावरण के लिए है उपयोगी

काष्ठकुणी शैली (ETV Bharat)

कुल्लू: भारत में कई ऐसी इमारतें हैं, जो कई सदियों से टिकी हुई हैं और उन्हें देखने के लिए देश-दुनिया से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. वहीं, भारत के पहाड़ी इलाकों में भी एक ऐसी शैली है, जिससे बने हुए मकान भी सैकड़ों सालों से अपनी जगह पर खड़े हुए हैं और आज भी इस शैली के मकानों का भूकंप भी कुछ नहीं बिगाड़ पाया है. ये मकान काष्ठकुणी शैली से बनाए गए हैं.

काष्ठकुणी शैली के मकानों के संरक्षण में आगे आया ये ट्रस्ट

काष्ठकुणी से बने मकान हालांकि अब काफी कम हो रहे हैं, लेकिन पहाड़ी इलाकों में अभी भी इसी शैली से भवनों का निर्माण हो रहा है. हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में हिमालय ब्रदर ट्रस्ट भी लोगों के पुराने काष्ठकुणी शैली के मकानों को बचाने की दिशा में काम कर रहा है. वहीं, अगली पीढ़ी को भी इस शैली से बने मकानों के महत्व के बारे में जानकारी दे रहा है, ताकि इस शैली से बनने वाले मकान पर्यावरण संरक्षण में भी अपनी भूमिका निभा सकें. जिला कुल्लू के पहाड़ी इलाकों में आज भी काष्ठकुणी शैली से बने मकान सैकड़ों सालों से खड़े हैं और इन मकानों की सुंदरता भी देखते ही बनती है.

Himachal Kath Kuni Shaili Building
भूकंप रोधी होती हैं काष्ठकुणी शैली की इमारतें (ETV Bharat)

सैलानियों की पसंद बने काष्ठकुणी शैली के मकान
हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य की अगर बात करें तो यहां पर काष्ठकुणी शैली के मकान की संख्या अब काफी कम रह गई है, लेकिन भूकंप जैसी आपदा में ये मकान नुकसान से बचाने में काफी सहायक सिद्ध हो सकते हैं, क्योंकि काष्ठकुणी शैली में बनाए गए मकान की संरचना इस तरह से होती है कि बारिश और भूकंप भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं. ऐसे में काष्ठकुणी शैली के मकान अब पहाड़ी इलाकों में सैलानियों की भी पसंद बनते जा रहे हैं. ऐसे मकानों में सैलानी भी रहना खूब पसंद कर रहे हैं.

क्यों कम हो रही काष्ठकुणी शैली के मकानों की संख्या ?
हिमाचल प्रदेश के कई इलाकों में पहले लकड़ी की उपलब्धता अधिक होती थी और ग्रामीण इलाकों में सड़कें न होने के चलते सीमेंट, रेत व अन्य निर्माण सामग्री गांवों तक पहुंचानी मुश्किल होती थी. ग्रामीण इलाकों में जंगल से पत्थर और मिट्टी आसानी से उपलब्ध होने के चलते लोग यहां काष्ठकुणी शैली के मकानों को प्राथमिकता देते थे, लेकिन आज के दौर में लकड़ी की पर्याप्त उपलब्धता न होने के कारण और आग से बचाव के कारण लोग पक्के मकान बनाने को प्राथमिकता दे रहे हैं. प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों में कई गांव ऐसे हैं, जहां काष्ठकुणी शैली के मकान देखने को मिल जाते हैं, लेकिन शहरों में इनकी संख्या नाम मात्र ही रह गई है.

Himachal Kath Kuni Shaili Building
पर्यटकों को पसंद आ रहे काष्ठकुणी शैली के बने मकान (ETV Bharat)

काष्ठकुणी शैली में नहीं इस्तेमाल होता सीमेंट
काष्ठकुणी शैली के मकानों में अधिकतर लकड़ी और पत्थर का इस्तेमाल होता है. इस शैली के मकान में सीमेंट का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं किया जाता है और दीवारों पर मिट्टी और गोबर के मिश्रण से बने पदार्थ का प्लास्टर किया जाता है. साथ में लकड़ी इस्तेमाल की जाती है. गांव में घर एक दूसरे से सटे होने और घर की निचली मंजिल में घास व लकड़ी रखने की वजह से आग की एक चिंगारी से पूरे घर को राख में बदलते देर नहीं लगती है. कुल्लू जिले में अब तक भीषण अग्निकांडों में काष्ठकुणी शैली से बने पूरे के पूरे गांव भी आग की भेंट चढ़े चुके हैं. मणिकर्ण घाटी का मलाणा गांव दो बार पूरी तरह से जल चुका है, लेकिन पर्यावरण के लिहाज से यह मकान काफी सहायक सिद्ध होते हैं.

एक बार फिर काष्ठकुणी शैली की ओर आकर्षित हो रहे लोग
हिमाचल प्रदेश के अलावा जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड के पहाड़ों पर बने लकड़ी के इन मकानों को देखकर पर्यटक भी उनकी ओर खींचे चले आते हैं. हालांकि, बीते कुछ दशकों से जिला कुल्लू में कंक्रीट के जंगल बनने शुरू हुए और लोगों ने सीमेंट के मकान बनाने शुरू कर दिए थे. वहीं, पर्यावरण में आए बदलाव के चलते अब एक बार फिर से लोग पत्थर और लकड़ी से बने मकानों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में लोग काष्ठकुणी जिन्हें कुल्लवी बोली में काठकुणी भी कहा जाता है, उसी शैली के भवनों का निर्माण कर रहे हैं.

Himachal Kath Kuni Shaili Building
कुल्लू में बने काष्ठकुणी शैली की इमारतें (ETV Bharat)

काष्ठकुणी शैली से बने मकानों का खासियत
इस शैली से बने मकानों की खासियत यह है कि गर्मियों में यह ठंडे और सर्दियों में गर्म होते हैं. गर्मियों के मौसम में भी ऐसे घरों में पंखों की जरूरत नहीं होती है. यह मकान भूकंपरोधी भी होते हैं, क्योंकि इसके निर्माण में सीमेंट का उपयोग नहीं होता. साथ ही इसकी दीवारों में थोड़ा गैप होता है. जिसकी वजह से भूकंप के समय तेज झटके इसे नुकसान नहीं पहुंचाते. जिसका प्रमाण जिला कुल्लू का नग्गर कैसल और चैहणी कोठी है. इस शैली के घर व मंदिर बनाने वाले कारीगर कई बार तो लोहे की कील का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं. लकड़ी को आपस में जोड़ने के लिए लकड़ी की ही कील तैयार कर उसे जोड़ा जाता है. इस शैली की खासियत लकड़ी पर की गई नक्काशी है, जो यहां की कला की एक विशेष पहचान है. इसे हाथ से उकेरा जाता है और इन्हें बनाने में बहुत समय लगता है.

बाहरी राज्यों के युवा भी ले रहे काष्ठकुणी शैली का प्रशिक्षण
जिला कुल्लू के नग्गर में इस शैली के मकान निर्माण का प्रशिक्षण दे रहे हिमालय ब्रदर ट्रस्ट के संचालक भृगु आचार्य ने बताया कि लकड़ी, पत्थर और मिट्टी से बने हुए मकानों का डिजाइन वह स्वयं तैयार करते हैं. इसके बाद इस पर कार्य कर मकान तैयार कर देते हैं. बाहरी राज्यों से भी युवा इस शैली का प्रशिक्षण ले रहे हैं. इसके अलावा पुराने मकानों को बचाने की दिशा में भी ट्रस्ट के द्वारा कार्य किया जा रहा है. वहीं, कुल्लू मनाली घूमने आए पर्यटक भी काष्ठकुणी शैली से बने मकानों को पसंद करते हैं. आज भी कुल्लू जिले में कई ऐसे मकान हैं, जो कई 100 सालों में भी जस के तस बने हुए हैं. इसमें नग्गर कैसल और चैहणी कोठी हैं, जहां कि बड़े से बड़ा भूकंप आने पर भी इनको कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. यह मकान भूकंप रोधी होते हैं.

Himachal Kath Kuni Shaili Building
हिमाचल की अद्भुत काष्ठकुणी शैली (ETV Bharat)

हिमालय नीति अभियान के राष्ट्रीय संयोजक गुमान सिंह का कहना है, "आज पूरे प्रदेश में कंक्रीट के भवन बनते जा रहे हैं. जिससे पर्यावरण को भी खासा नुकसान पहुंचा है. कंक्रीट के भवन बनने के चलते अब गर्मी बढ़ने लगी है और मौसम में भी काफी बदलाव हुआ है. पहले ग्रामीण इलाकों में काष्ठकुणी शैली से मकान बनाए जाते थे, क्योंकि इसके बनने से एक तो पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता था और ग्रामीण इलाकों के लिए भी यह काफी अनुकूल माने जाते थे. अब लोगों का रुझान एक बार फिर से इस शैली के मकान की ओर बढ़ा है, लेकिन अब इस तरह के मकान बनाने में भी काफी खर्च हो रहा है. ऐसे में इस मकान के निर्माण के लिए सरकार को लकड़ी हर जगह पर सही कीमत पर उपलब्ध करवानी चाहिए."

जिला कुल्लू के मणिकर्ण, मनाली और बंजार की बात करें तो वहां पर भी अब इसी शैली में कई भवनों का निर्माण किया जा रहा है. जिसे पर्यटक भी काफी पसंद कर रहे हैं. यहां पर ऐसे भवनों में रहने के लिए सैलानी एडवांस में बुकिंग कर रहे हैं. बंजार में पर्यटन कारोबार कर रहे हरी कृष्ण और दिलीप सिंह का कहना है, "अब सैलानी कंक्रीट के भवन के बजाय लकड़ी व पत्थर से बने मकानों को प्राथमिकता दे रहे हैं. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों को रोजगार मिल रहा है. होमस्टे के लिए भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अधिकतर इन्हीं भवन को रजिस्टर्ड कर रहे हैं."

Himachal Kath Kuni Shaili Building
काष्ठकुणी शैली में लकड़ी से बनाए जाते हैं मकान (ETV Bharat)

साहित्यकार डॉक्टर सूरत ठाकुर का कहना है, "हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में कई इमारतें आज भी बुलंद हैं. जिन्होंने 1905 में आए भूकंप का सामना किया है. इनमें जिला कुल्लू के बंजार में चेहनी कोठी और नग्गर का कैसल किला प्रमुख है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में भी कई ऐसे पुराने मंदिर हैं, जो इसी शैली से बने हुए हैं. अब फिर से लोगों का रुझान इस शैली से बने मकानों की ओर हो रहा है."

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Last Updated : Aug 8, 2024, 9:22 PM IST
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