शिमला: हिमाचल हाईकोर्ट के पास रिट याचिका में ठेकेदारों के विवादित बिलों का भुगतान करने के आदेश जारी करने का क्षेत्राधिकार नहीं है. इसको लेकर स्थिति स्पष्ट करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक ठेकेदारों के लंबित बिल विवादित होंगे, तक तक रिट याचिका में बिलों का भुगतान करने के लिए सरकार को आदेश जारी नहीं किए जा सकते हैं.
न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने ठेकेदारों की ओर से दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि इन रिट याचिकाओं में उठाए जा रहे विवादों पर हाईकोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत अपने रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए निर्णय नहीं दे सकता.
हालांकि, कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून का हवाला देते हुए कहा कि उच्च न्यायालय अपने रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए किसी ऐसे अनुबंध से उत्पन्न विवादों पर विचार कर सकता है, जिनमें राज्य सरकार अनुबंध के मामले में मनमाने ढंग से कार्य करती है. याचिकाकर्ता ठेकेदारों की शिकायत कुछ राशि प्रतिवादी विभागों के पास बकाया होने को लेकर थी, जिसका भुगतान नहीं किया जा रहा है. इसलिए वर्तमान याचिकाएं विचार करने योग्य हैं.
हिमाचल हाईकोर्ट ने कहा कि जब प्रतिवादी यह स्वीकार नहीं करते हैं कि दावा की गई राशि याचिकाकर्ताओं को देय है, तब इन मुद्दों को सिविल न्यायालय द्वारा फैसला किए जाने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए, जिसमें पक्षकार अपने तर्कों को प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत कर सकते हैं.
कोर्ट ने इसलिए खारिज की याचिका
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि जब हर दूसरे वादी को वसूली के लिए मुकदमा दायर करने के उद्देश्य से सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है और यथामूल्य न्यायालय शुल्क जोड़ना पड़ता है, तो उन याचिकाकर्ताओं को कोई अपवाद नहीं दिया जा सकता है, जो सरकारी ठेकेदार हैं और जो केवल 250 रुपये का न्यायालय शुल्क लगाकर लाखों और करोड़ों की राशि का दावा कर रहे हैं.
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उनके और प्रतिवादियों के बीच किए गए अनुबंध के अनुसार कार्य निष्पादित किया है. वे कार्य पूरा करने पर देय राशि के भुगतान की मांग कर रहे हैं. दावा की गई राशि निर्विवाद है, इसलिए याचिकाओं को स्वीकार किया जाना चाहिए.
वहीं, सरकार का कहना था कि न तो प्रतिवादी यह स्वीकार करते हैं कि दावा की जा रही राशि याचिकाकर्ताओं को देय है, न ही ऐसे मुद्दों को रिट क्षेत्राधिकार में निर्धारित किया जा सकता है. रिट याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे मुख्य रूप से ऐसे विषय हैं, जिनके लिए पक्षों को अपने-अपने तर्कों के समर्थन में प्रस्तुत किए जा सकने वाले साक्ष्य के आधार पर निर्धारण की आवश्यकता है कि क्या याचिकाकर्ताओं को कोई राशि देय है और अगर है तो वह कितनी राशि है.
इन मुद्दों को इसलिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए उच्च न्यायालय द्वारा तय नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने सरकार की दलीलों से सहमति जताते हुए याचिकाओं को खारिज कर दिया और अपने विवाद को उपयुक्त फोरम के समक्ष उठाने की इजाजत दे दी.
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