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ऊना के अजय ने बनाया कमाल का टूथब्रश, चावल के रेशों से बना बैंबू ब्रश मुंह की सफाई को बनाता है आसान - Eco Friendly Bamboo Toothbrush - ECO FRIENDLY BAMBOO TOOTHBRUSH

प्लास्टिक टूथब्रश का विकल्प बैंबू टूथब्रश मंडी के शिल्प बाजार में आकर्षण का केंद्र बना है. इसमें चावल के रेशों का इस्तेमाल किया गया है.

Eco Friendly Bamboo Toothbrush
इको फ्रेंडली बांस का टूथब्रश (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Oct 6, 2024, 1:39 PM IST

Updated : Oct 6, 2024, 2:21 PM IST

मंडी: पिछले कई दशकों से दांतों को चमकाने के लिए हम प्लास्टिक से बने टूथब्रश का इस्तेमाल करते हैं. जब ये ब्रश खराब हो जाते हैं तो हम इन्हें फेंक देते हैं. प्लास्टिक से बने ये ब्रश फेंकने के बाद भी सैकड़ों सालों तक धरती से पूरी तरह से खत्म नहीं होते हैं. जिससे वातावरण में प्रदूषण फैलता है. वहीं, प्लास्टिक के ब्रश हमारे दांतों के लिए भी हानिकारक कहे जाते हैं. इसी समस्या के निवारण के लिए प्लास्टिक टूथब्रश का विकल्प बायोडिग्रेडेबल बैंबू टूथब्रश के रूप में तैयार किया गया है. इस ब्रेश के रेशे दांतों और मसूड़ों को नुकसान भी नहीं पहुंचाते और ये इको फ्रैंडली भी है.

पर्यावरण-अनुकूल और बायोडिग्रेडेबल

बैंबू विलेज ऊना में ऐसा टूथब्रश तैयार किया जा रहा है, जो पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है और मिट्टी में फेंकने के बाद खाद का रूप ले लेगा. साथ ही अगर आप इस ब्रश को जला देते हैं तो ये ब्रश पूरा जलकर राख में बदल जाएगा, जिससे वायु प्रदूषण भी नहीं होगा. इसके अलावा बांस से बने इस टूथब्रश के ब्रिसल में प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं किया गया है. ये ब्रिसल चावल के रेशे से बनाए गए हैं, जिन पर चारकोल की कोटिंग की जाती है.

चावल के रेशों संग बनाया बांस का टूथब्रश (ETV Bharat)

शिल्प बाजार में सजे बैंबू प्रोडक्ट्स

इन दिनों ये ब्रश मंडी शहर में लगाए गए गांधी शिल्प बाजार में पहुंचा हुआ और इस ब्रश को जिला ऊना के शिल्पकार अजय कुमार लेकर आएं हैं. इसके अलावा महिला समूहों द्वारा तैयार किए गए बांस से बने और भी उत्पाद अजय कुमार बिक्री के लिए लेकर आएं हैं. अजय कुमार ने बताया कि ऊना जिले में प्रशासन और डीआरडीए के सहयोग से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के साथ मिलकर वे बांस से बने उत्पाद बना रहे हैं. जिसकी डिमांड भी काफी ज्यादा और इन उत्पादों की गांधी शिल्प बाजार में खूब बिक्री हो रही है.

शार्क टैंक से जुड़ी है टूथब्रश की कहानी

शिल्पकार अजय कुमार ने बताया कि शार्क टैंक में गए पुणे के योगेश शिंदे के बांस का टूथब्रश के कॉन्सेप्ट से प्रेरित होकर उन्होंने जिला प्रशासन के सहयोग से प्लास्टिक के टूथब्रशों की जगह बांस के ब्रश बनाना शुरू किया. पहले उनके द्वारा बनाए गए ब्रश ज्यादा दिन तक काम नहीं कर रहे थे. बाद में उन्होंने जिला प्रशासन के सहयोग से योगेश शिंदे के साथ संपर्क किया और ऊना में उनका दौरा करवाया. जिसके बाद इस ब्रश को बनाने के लिए तत्कालीन उपायुक्त राघव शर्मा ने डीआरडीए के सहयोग से उनके गांव में टूथब्रश बनाने की मशीनरी लगवाई.

बैंबू ब्रश की कीमत

अजय कुमार बताते हैं, "आज हम इस मशीनरी से रोजाना 3 हजार के करीब ब्रश बनाकर तैयार कर रहे हैं. इन टूथब्रशों की हिमाचल के साथ-साथ बाहरी राज्यों में भी सप्लाई कर रहे हैं. इस कार्य में उनके साथ स्वयं सहायता समूह की 20 महिलांए भी जुड़ी हुई हैं, जो 8 से 10 हजार प्रति महीना कमा रही हैं. इसी साल मार्च महीने में टूथब्रश बनाना शुरू किया है और अभी तक 3 लाख के करीब टूथब्रश सेल कर चुके हैं. हम इस ब्रश को रिटेल रेट पर 50 व होलसेल पर 25 रुपये प्रति ब्रश बेच रहे हैं.

कोरोना काल में बंद हुई हर्बल शॉप, शुरू किया बैंबू क्राफ्ट

कहते हैं कि सफल उद्यमी बनने के लिए आप कई बार असफल होंगे, लेकिन जब आप एक बार सफल उद्यमी बन जाएंगे तो कामयाबी आपके कदम चूमेंगी. अजय कुमार ने बताया कि कोरोना काल में जब उनकी हर्बल की शॉप बंद हो गई तो उन्होंने रोजगार का नया अवसर तलाशना शुरू किया. जिसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया से बैंबू आर्ट एवं क्राफ्ट का काम सीखना शुरू किया. सबसे पहले उन्होंने समुद्री जहाज बनाना शुरू किया, जिसमें उनको कई बार असफलता भी मिली, लेकिन जब बार-बार अभ्यास करने बाद जब वे इस जहाज बनाने में कामयाब हुए तो सबने उनको प्रोत्साहित किया. जिसके बाद उन्होंने पीछे हटकर नहीं देखा और थोड़े से समय में ही उन्होंने इस काम में महारत हासिल कर ली.

शिल्पकार अजय कुमार ने बताया, "कोरोना काल में ही मैंने बैंबू आर्ट एवं क्राफ्ट से करीब 50 हजार रुपए कमाए. जिसके बाद डीआरडीए व ऊना जिला प्रशासन के सहयोग से साल 2020 में मैंने अपने गांव बंगाणा में बैंबू विलेज के नाम से कंपनी खोली और स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को बांस से बने उत्पाद बनाना सिखाना शुरू किए. आज दिन तक मैं करीब 150 महिलाओं के बांस का आर्ट एंड क्राफ्ट का प्रशिक्षण दे चुका हूं."

बैंबू टूथब्रश के अलावा इन उत्पादों की भी हो रही ब्रिकी

आज जब अजय कुमार सफल उद्यमी बन कर उभरे हैं तो उनके उत्पादों की हर कोई सराहना करते हुए नहीं थकता है. मंडी शहर के छोटा पड्डल मैदान में जारी गांधी शिल्प बाजार ब्रिकी व प्रदर्शनी में भी इनके उत्पाद लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं और लोग दिल खोलकर इन उत्पादों को पसंद करने के साथ-साथ खरीद भी रहे हैं. टूथब्रश के अलावा अजय कुमार गांधी शिल्प बाजार में सजावट से संबंधित आइटम, पेन स्टैंड, कप-गिलास ट्रे, जहाज, चरखा, चूड़ियां, टोकरियां, घर इत्यादि बांस से बने हुए आइटम लेकर पहुंचे हैं, जिन्हें हर कोई पसंद कर रहा है और इनकी खूब बिक्री भी हो रही है.

लोगों को पसंद आए बैंबू प्रोडक्ट्स

वहीं, खरीददार सोनाक्षी और अमिषा का कहना है कि, 'उन्हें ये हैंड क्राफ्ट चीजें बहुत पसंद आई हैं. बांस के टूथब्रश हैं, जो कि उन्हें बहुत पसंद आए हैं. इसके अलावा भी बांस की कंघी और चॉपस्टिक, बांस की बैंगल हैं, जो कि बहुत यूनिक है और सभी को बहुत पसंद आ रहे हैं.'

शिल्प बाजार में देशभर से पहुंचे 50 शिल्पकार

बता दें कि पिछले साल की तरह इस बार भी मंडी शहर के छोटा पड्डल मैदान में वस्त्र मंत्रालय की ओर से देश भर के हस्तशिल्पकारों के लिए गांधी शिल्प बाजार प्रदर्शनी एवं बिक्री का आयोजन किया गया है. 1 से 7 अक्टूबर तक चलने वाले इस शिल्प बाजार में पूरे देश भर से 50 के करीब शिल्पकार अपने-अपने उत्पाद लेकर यहां पहुंचे हैं.

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मंडी: पिछले कई दशकों से दांतों को चमकाने के लिए हम प्लास्टिक से बने टूथब्रश का इस्तेमाल करते हैं. जब ये ब्रश खराब हो जाते हैं तो हम इन्हें फेंक देते हैं. प्लास्टिक से बने ये ब्रश फेंकने के बाद भी सैकड़ों सालों तक धरती से पूरी तरह से खत्म नहीं होते हैं. जिससे वातावरण में प्रदूषण फैलता है. वहीं, प्लास्टिक के ब्रश हमारे दांतों के लिए भी हानिकारक कहे जाते हैं. इसी समस्या के निवारण के लिए प्लास्टिक टूथब्रश का विकल्प बायोडिग्रेडेबल बैंबू टूथब्रश के रूप में तैयार किया गया है. इस ब्रेश के रेशे दांतों और मसूड़ों को नुकसान भी नहीं पहुंचाते और ये इको फ्रैंडली भी है.

पर्यावरण-अनुकूल और बायोडिग्रेडेबल

बैंबू विलेज ऊना में ऐसा टूथब्रश तैयार किया जा रहा है, जो पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है और मिट्टी में फेंकने के बाद खाद का रूप ले लेगा. साथ ही अगर आप इस ब्रश को जला देते हैं तो ये ब्रश पूरा जलकर राख में बदल जाएगा, जिससे वायु प्रदूषण भी नहीं होगा. इसके अलावा बांस से बने इस टूथब्रश के ब्रिसल में प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं किया गया है. ये ब्रिसल चावल के रेशे से बनाए गए हैं, जिन पर चारकोल की कोटिंग की जाती है.

चावल के रेशों संग बनाया बांस का टूथब्रश (ETV Bharat)

शिल्प बाजार में सजे बैंबू प्रोडक्ट्स

इन दिनों ये ब्रश मंडी शहर में लगाए गए गांधी शिल्प बाजार में पहुंचा हुआ और इस ब्रश को जिला ऊना के शिल्पकार अजय कुमार लेकर आएं हैं. इसके अलावा महिला समूहों द्वारा तैयार किए गए बांस से बने और भी उत्पाद अजय कुमार बिक्री के लिए लेकर आएं हैं. अजय कुमार ने बताया कि ऊना जिले में प्रशासन और डीआरडीए के सहयोग से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के साथ मिलकर वे बांस से बने उत्पाद बना रहे हैं. जिसकी डिमांड भी काफी ज्यादा और इन उत्पादों की गांधी शिल्प बाजार में खूब बिक्री हो रही है.

शार्क टैंक से जुड़ी है टूथब्रश की कहानी

शिल्पकार अजय कुमार ने बताया कि शार्क टैंक में गए पुणे के योगेश शिंदे के बांस का टूथब्रश के कॉन्सेप्ट से प्रेरित होकर उन्होंने जिला प्रशासन के सहयोग से प्लास्टिक के टूथब्रशों की जगह बांस के ब्रश बनाना शुरू किया. पहले उनके द्वारा बनाए गए ब्रश ज्यादा दिन तक काम नहीं कर रहे थे. बाद में उन्होंने जिला प्रशासन के सहयोग से योगेश शिंदे के साथ संपर्क किया और ऊना में उनका दौरा करवाया. जिसके बाद इस ब्रश को बनाने के लिए तत्कालीन उपायुक्त राघव शर्मा ने डीआरडीए के सहयोग से उनके गांव में टूथब्रश बनाने की मशीनरी लगवाई.

बैंबू ब्रश की कीमत

अजय कुमार बताते हैं, "आज हम इस मशीनरी से रोजाना 3 हजार के करीब ब्रश बनाकर तैयार कर रहे हैं. इन टूथब्रशों की हिमाचल के साथ-साथ बाहरी राज्यों में भी सप्लाई कर रहे हैं. इस कार्य में उनके साथ स्वयं सहायता समूह की 20 महिलांए भी जुड़ी हुई हैं, जो 8 से 10 हजार प्रति महीना कमा रही हैं. इसी साल मार्च महीने में टूथब्रश बनाना शुरू किया है और अभी तक 3 लाख के करीब टूथब्रश सेल कर चुके हैं. हम इस ब्रश को रिटेल रेट पर 50 व होलसेल पर 25 रुपये प्रति ब्रश बेच रहे हैं.

कोरोना काल में बंद हुई हर्बल शॉप, शुरू किया बैंबू क्राफ्ट

कहते हैं कि सफल उद्यमी बनने के लिए आप कई बार असफल होंगे, लेकिन जब आप एक बार सफल उद्यमी बन जाएंगे तो कामयाबी आपके कदम चूमेंगी. अजय कुमार ने बताया कि कोरोना काल में जब उनकी हर्बल की शॉप बंद हो गई तो उन्होंने रोजगार का नया अवसर तलाशना शुरू किया. जिसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया से बैंबू आर्ट एवं क्राफ्ट का काम सीखना शुरू किया. सबसे पहले उन्होंने समुद्री जहाज बनाना शुरू किया, जिसमें उनको कई बार असफलता भी मिली, लेकिन जब बार-बार अभ्यास करने बाद जब वे इस जहाज बनाने में कामयाब हुए तो सबने उनको प्रोत्साहित किया. जिसके बाद उन्होंने पीछे हटकर नहीं देखा और थोड़े से समय में ही उन्होंने इस काम में महारत हासिल कर ली.

शिल्पकार अजय कुमार ने बताया, "कोरोना काल में ही मैंने बैंबू आर्ट एवं क्राफ्ट से करीब 50 हजार रुपए कमाए. जिसके बाद डीआरडीए व ऊना जिला प्रशासन के सहयोग से साल 2020 में मैंने अपने गांव बंगाणा में बैंबू विलेज के नाम से कंपनी खोली और स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को बांस से बने उत्पाद बनाना सिखाना शुरू किए. आज दिन तक मैं करीब 150 महिलाओं के बांस का आर्ट एंड क्राफ्ट का प्रशिक्षण दे चुका हूं."

बैंबू टूथब्रश के अलावा इन उत्पादों की भी हो रही ब्रिकी

आज जब अजय कुमार सफल उद्यमी बन कर उभरे हैं तो उनके उत्पादों की हर कोई सराहना करते हुए नहीं थकता है. मंडी शहर के छोटा पड्डल मैदान में जारी गांधी शिल्प बाजार ब्रिकी व प्रदर्शनी में भी इनके उत्पाद लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं और लोग दिल खोलकर इन उत्पादों को पसंद करने के साथ-साथ खरीद भी रहे हैं. टूथब्रश के अलावा अजय कुमार गांधी शिल्प बाजार में सजावट से संबंधित आइटम, पेन स्टैंड, कप-गिलास ट्रे, जहाज, चरखा, चूड़ियां, टोकरियां, घर इत्यादि बांस से बने हुए आइटम लेकर पहुंचे हैं, जिन्हें हर कोई पसंद कर रहा है और इनकी खूब बिक्री भी हो रही है.

लोगों को पसंद आए बैंबू प्रोडक्ट्स

वहीं, खरीददार सोनाक्षी और अमिषा का कहना है कि, 'उन्हें ये हैंड क्राफ्ट चीजें बहुत पसंद आई हैं. बांस के टूथब्रश हैं, जो कि उन्हें बहुत पसंद आए हैं. इसके अलावा भी बांस की कंघी और चॉपस्टिक, बांस की बैंगल हैं, जो कि बहुत यूनिक है और सभी को बहुत पसंद आ रहे हैं.'

शिल्प बाजार में देशभर से पहुंचे 50 शिल्पकार

बता दें कि पिछले साल की तरह इस बार भी मंडी शहर के छोटा पड्डल मैदान में वस्त्र मंत्रालय की ओर से देश भर के हस्तशिल्पकारों के लिए गांधी शिल्प बाजार प्रदर्शनी एवं बिक्री का आयोजन किया गया है. 1 से 7 अक्टूबर तक चलने वाले इस शिल्प बाजार में पूरे देश भर से 50 के करीब शिल्पकार अपने-अपने उत्पाद लेकर यहां पहुंचे हैं.

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Last Updated : Oct 6, 2024, 2:21 PM IST
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