पंचकूला: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार के मुख्य सचिव के खिलाफ जानबूझकर अदालत के आदेशों की अवहेलना करने पर अवमानना कार्यवाही शुरू की है. यह मामला अधीनस्थ न्यायालयों के कर्मचारियों को सरकारी आवास में 15 प्रतिशत आरक्षण देने से संबंधित है, जिसकी सिफारिश शेठी आयोग ने की थी. हाईकोर्ट ने कहा कि इस आदेश को लागू करने से रोकने के लिए सोची-समझी साजिश रची गई है.
22 वर्ष बीतने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं:
जस्टिस हरकेश मनूजा की एकल पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि शेठी आयोग ने 31 मार्च 2003 को सिफारिश की थी कि सरकारी आवास के सामान्य पूल में से 15 प्रतिशत आवास न्यायिक कर्मचारियों के लिए आरक्षित किए जाएं. इनका आवंटन संबंधित जिले के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश या स्थानीय वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी को सौंपा जाए. यह सिफारिश 1 अप्रैल 2003 से लागू की गई थी, लेकिन 22 वर्ष बीतने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
नाम बदलना, न्यायालय को गुमराह करने की कोशिश:
कोर्ट ने पाया कि मई और नवंबर 2022 में सरकार ने दो अधिसूचनाएं जारी कीं, जिनमें ‘जनरल पूल हाउस’ का नाम बदलकर ‘स्टेट हेडक्वार्टर पूल’ कर दिया गया. न्यायालय के अनुसार, यह बदलाव आदेशों को दरकिनार करने और अदालत को गुमराह करने की स्पष्ट कोशिश थी. जस्टिस मनूजा ने कहा कि इससे साफ है कि सरकार ने जानबूझकर न्यायालय के आदेशों को प्रभावहीन करने का प्रयास किया, जो अवमानना की श्रेणी में आता है.
7 सितंबर 2011 का एकल पीठ का आदेश:
गौरतलब है कि अवमानना याचिका राजेश चावला ने दायर की थी. याचिका में बताया गया कि 7 सितंबर 2011 को एकल पीठ ने हरियाणा न्यायिक कर्मचारी संघ बनाम हरियाणा राज्य मामले में शेठी आयोग की सिफारिशों को लागू करने का आदेश दिया था. इसके अतिरिक्त, 7 अक्टूबर 2009 को सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट निर्देश दिए थे कि सभी उच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करें कि 1 अप्रैल 2003 से आयोग की सिफारिशें लागू हों.
मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश:
हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार का यह व्यवहार स्पष्ट रूप से अदालत द्वारा दी गई राहत को विफल करने का प्रयास है, जो आदेश की अवहेलना और अवमानना है. कोर्ट ने मुख्य सचिव के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करते हुए उन्हें 26 मई 2025 को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया.
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