बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट में प्रदेश के हाथी और बाघ जैसे वन्य जीवों की मौत पर सुनवाई चल रही है. मंगलवार को भी इस मामले में जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की बैंच में सुनवाई हुई.
वन विभाग की ओर से पीसीसीएफ ने शासन के अधिवक्ता के माध्यम से हलफनामा पेश किया. उप महाधिवक्ता शशांक ठाकुर ने कोर्ट को सुनवाई के दौरान बताया कि 17 मार्च को एक उच्च स्तरीय बैठक आयोजित की गई. जिसमें बाघों की सुरक्षा के संबंध में विभिन्न कदम उठाए जाने पर चर्चा की गई. वहीं बेंच ने इस मामले को निगरानी में रखते हुए 14 जुलाई को सुनवाई रखी है.
पिछली सुनवाई में न्यायालय द्वारा पारित 21 नवंबर 2024 के आदेश के अनुपालन में अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यजीव, वन विभाग, छत्तीसगढ़ की तरफ से एक हलफनामा दायर किया गया था, जिसमें बाघों की मृत्यु को रोकने के लिए राज्य द्वारा उठाए गए कदम को बताया था. इन कदमों में उत्तर प्रदेश राज्य के "बाघ मित्र" मॉडल से प्रेरित होकर छत्तीसगढ़ के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक और अन्य अधिकारियों के नेतृत्व में एक टीम ने बाघ मित्र योजना की सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन करने के लिए उत्तर प्रदेश के विभिन्न बाघ अभयारण्यों और समीपवर्ती गांवों का दौरा का जिक्र था.
वहीं उत्तर प्रदेश में इस योजना के सफल क्रियान्वयन के आधार पर छत्तीसगढ़ में भी इसे लागू करने का निर्णय लिया जाने की बात कही गई थी, जिसका उद्देश्य मानव-बाघ संघर्ष को रोकना और राज्य में बाघों की प्रभावी सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करना है.
दरअसल, 8 नवंबर 2024 को कोरिया जिले के गुरू घासीदास नेशनल पार्क स्थित नदी किनारे एक बाघ का शव बरामद हुआ था. यह शव सोनहत-भरतपुर सीमा के देवशील कटवार गांव के पास मिला. शुरुआती जांच में बाघ के नाखून, दांत और आंख जैसे अंग गायब पाए गए. जिससे यह संदेह जताया गया कि, बाघ को जहर देकर मारा गया होगा. हालांकि, शपथपत्र में बताया गया था कि बाघ की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में जहर की पुष्टि नहीं हुई है और बीमारी से मौत की संभावना जताई गई है. बिसरा रिपोर्ट आने के बाद स्थिति और स्पष्ट होगी.
वहीं गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान कोरिया में बाघ की मौत पर हाईकोर्ट ने 11 नवंबर को सुनवाई करते हुए नाराजगी जताई थी. वन विभाग के उच्चाधिकारियों से जवाब-तलब किया था. चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने कहा था कि वन्य जीव नष्ट हो रहे हैं, पर्यावरण भी नष्ट हो रहे हैं, अब बचा क्या..? वन्य जीव नहीं बच पाएंगे, जंगल नहीं बचेंगे तो कैसे चलेगा? कोर्ट ने मामले में वन एवं पर्यावरण संरक्षण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को वन्यजीवों के संरक्षण के लिए उठाए गए कदम को लेकर 10 दिन के अंदर व्यक्तिगत शपथपत्र पर जवाब देने कहा था.