जयपुर. छोटी काशी जयपुर में घाट के बालाजी जयपुर के कुल देवता माने जाते हैं. घाट के बालाजी मंदिर जयपुर की बसावट से पहले का है. आगरा रोड पर गलता जी के पास स्थित घाट के बालाजी मंदिर में भक्तों की विशेष मान्यताएं भी हैं. यहां बालाजी की दक्षिण मुखी प्रतिमा है, जिन्हें सभी दुखों का नाश करने वाला माना जाता है. यहा बालाजी स्वयं प्रकट हुए थे. मान्यता है कि यहां पर बालाजी भक्तों की मन्नत पूरी करते हैं. दोपहर के समय दर्शन करने वाले भक्तों की बालाजी मनोकामना जल्दी पूरी करते हैं. बच्चों के जन्म से जुड़े मुंडन संस्कार, सवामणि, सुंदरकांड पाठ, भजन समेत विभिन्न आयोजन किए जाते हैं.
पूर्व महंत स्वामी सुदर्शनाचार्य ने बताया कि घाट के बालाजी मंदिर को प्राचीन काल से जयपुर के कुल देवता माना गया है. भगवान हनुमान जी का विग्रह स्वयं प्रकट है. यहां जलने वाली अखंड ज्योत के चलते इस जलती जोत का मंदिर भी कहा जाता है. घाट के बालाजी मंदिर काफी मशहूर है. प्राचीन समय में मंदिर के पास कई तालाब और पानी के घाट हुआ करते थे, जिसकी वजह से इस मंदिर को घाट के बालाजी के नाम से बोला जाने लगा. रोजाना मंदिर में बालाजी का श्रृंगार और आरती की जाती है. प्राचीन मान्यता है कि दोपहर के समय भगवान बजरंगबली स्वयं विराजमान होते हैं. दोपहर के समय बालाजी के दर्शन करने वाले भक्तों की जल्द मनोकामना पूरी होती है.
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मंदिर में ऊपर एक शिव मंदिर और पंच गणेश भी विराजमान : हनुमान जी की सिंदूरी चोला धारण करे विशाल प्रतिमा मंदिर में विराजमान है. रोजाना बालाजी का विशेष श्रृंगार किया जाता है. मीनाकारीयुक्त मुकुट पर श्रीराम लिखा हुआ है. मुख्य प्रतिमा के बाईं तरफ हनुमान जी की छोटी मूर्ति विराजमान है. मंदिर में ऊपर जाने पर एक शिव मंदिर और पंच गणेश भी विराजमान है. मंदिर की दीवारों पर भगवान राम और हनुमान जी का जीवन चरित्र प्राकृतिक रंगों से उगेरा गया है. कहीं पर रथ में राम लक्ष्मण के साथ जानकी, कहीं पर अंजना मां का दुलार पाते बाल हनुमान, कहीं पर्वत उठा उड़ रहे हनुमान, तो कहीं राम दरबार में सेवक की भूमिका निभाते बजरंगबली हैं.

दोपहर के दर्शन का विशेष महत्व : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने बताया कि घाट के बालाजी जयपुर के लिए अलग और अनूठा प्राचीन मंदिर है. घाट के बालाजी जयपुर के कुल देवता के रूप में माने जाते हैं. सभी जातियों के लोग बालाजी को कुल देवता के रूप में मानते हैं. चोटी- जात, जडूले और सवामणी कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. दूर-दूर से भक्त बालाजी के दरबार में आते हैं. घाट के बालाजी मंदिर में दक्षिण मुखी हनुमान जी विराजमान हैं. पुराने समय से लोगों की मान्यता रही है कि जो भी बालाजी से मन्नत मांगते हैं वह सभी कार्य सिद्ध होते हैं. घाट के बालाजी मंदिर में दोपहर के दर्शन की विशेष मान्यता है. दोपहर के दर्शन का विशेष महत्व होता है. दोपहर के समय बालाजी साक्षात भक्तों की सुनते हैं. लोगों की मनोकामना पूरी होने पर यहां सवामणि, जागरण, रामायण पाठ, भजन करते हैं.

मंदिर का इतिहास करीब 500 वर्ष पुराना : मंगलवार और शनिवार को भक्त नियमित रूप से बालाजी के दर्शन करने आते हैं. साल भर सभी विशेष उत्सव बालाजी के मंदिर में मनाए जाते हैं. हर साल पोषबड़ा महोत्सव मनाया जाता है. इसके अलावा हनुमान जन्मोत्सव, फाग उत्सव, शरद पूर्णिमा उत्सव, अन्नकूट और रूप चौदस का उत्सव भी मनाया जाता है. भक्त भी बड़ी खुशी के साथ भगवान के भजन गाते हैं. रामानुजी संप्रदाय अनुसार सेवा पूजा की जाती रही है. घाट के बालाजी मंदिर का इतिहास करीब 500 वर्ष पुराना है. भगवान बालाजी की दक्षिण मुखी प्रतिमा विराजमान है, जिसे जागती जोत के रूप में पूजते हैं. भगवान को जो भी बोला जाता है, वह कार्य सिद्ध होता है. ऊपर भगवान महादेव जी का मंदिर विराजमान है, यहां पहले लक्ष्मी नारायण जी का मंदिर था, किसी कालखंड में लक्ष्मी नारायण जी की प्रतिमा किसी गांव में चली गई थी, गर्भ ग्रह खाली हो गया था उसके बाद शिवजी की प्राण प्रतिष्ठा की गई.

मंदिर में सफेद संगमरमर का फर्श : मंदिर में सफेद संगमरमर का फर्श बना हुआ है. बीच-बीच में काले चौक लगे हुए हैं. सभी चौकों के बीच चांदी के पुराने झाड़साई सिक्के लगाए गए हैं. मंदिर के प्रवेश द्वार पर पीतल की बड़ी घंटियां लगी हुई है. घंटी बजाने की ध्वनि पहाड़ियों से टकराकर घाटी में गूंजने लगती है. घाट के बालाजी मंदिर का भवन प्राचीन नागर शैली में बनी हवेली जैसा प्रतीत होता है. मंदिर का मुख्य द्वार झरोखा युक्त शैली से बना हुआ है. यह पुरानी हवेलियां मुख्य द्वार की तरह है.

मंदिर हिंदू नागर शिल्प शैली का उदाहरण : पहाड़ी की तलहटी पर बना होने के कारण मंदिर परिसर दो भागों में बना हुआ है. मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर एक खुला कच्चा चौक मंदिर का पहला परिसर है. चौक परिसर की प्राचीरों के दोनों कोनों पर छतरियां बनी हुई है. चौक से सीढ़ियां हवेली नुमा मंदिर परिसर तक पहुंचती है. तीन मंजिला मंदिर के बीच के भाग में सिंहद्वार, हर मंजिल पर गोखोयुक्त झरोखों से सुसज्जित है. अंदर तिबारीनुमा जगमोहन में घाट के बालाजी विराजमान है. मुख्य मंदिर के तल वाले बरामदों को जाली से कवर किया गया है. मंदिर के मेहराब, झरोखे, कंगूरे, गोखे सभी हिंदू नागर शिल्प शैली का उदाहरण हैं.