जयपुर : राजधानी जयपुर के आमेर में देश का एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, जहां भगवान श्री बालाजी के साथ माता अंजनी और भगवान गणेश विराजमान हैं. प्राचीन श्री बालाजी मंदिर से कई चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी हुई हैं. आमेर के राजा भी युद्ध में जाने से पहले यहां बालाजी का आशीर्वाद लेते थे व विजयी होकर लौटते थे. हजारों वर्ष पुराने बालाजी मंदिर का सन 1548 में आमेर की राजा भारमल ने जीर्णोद्धार करवाया था. मंदिर की खास मान्यता यह भी है कि सात शनिवार को यहां आकर परिक्रमा लगाने से भक्तों की मुरादें पूरी होती हैं.
बालाजी मंदिर के महंत गोपी शर्मा ने बताया कि आमेर में वाराही दरवाजे के पास स्थित प्राचीन श्री बालाजी मंदिर का हजारों वर्ष पुराना इतिहास रहा है. सन 1548 में आमेर के राजा भारमल ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. आमेर नगर के चारों तरफ परकोटे का निर्माण करवाया गया था. आमेर में वाराही दरवाजा प्रवेश द्वार हुआ करता था. दरवाजे के पास आमेर के रक्षक के रूप में बालाजी की मान्यता रही है. दरवाजे में प्रवेश करते ही दाएं तरफ यह प्राचीन बालाजी का मंदिर है.
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बालाजी के साथ मां अंजनी और भगवान गणेश की प्रतिमा : मंदिर महंत ने बताया कि सन 1548 में राजा भारमल मंदिर में पूजा पाठ करने के लिए उनके पूर्वज बिहारी लाल को भानगढ़ से लेकर आए थे. करीब 10-11 पीढ़ियों से बालाजी की सेवा-पूजा कर रहे हैं. इस प्राचीन बालाजी मंदिर में मुख्य प्रतिमा बालाजी की विराजमान है. बालाजी के साथ मां अंजनी की प्रतिमा विराजमान है. साथ में भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान है. देश में ये पहला मंदिर है, जहां बालाजी के साथ मां अंजनी की प्रतिमा विराजमान है. मंदिर परिसर में भगवान महादेव का मंदिर भी है, जिसमें शिव परिवार विराजमान है.
राजा युद्ध में जाने से पहले लेते थे आशीर्वाद : इतिहास के अनुसार राजा भारमल समेत आमेर के सभी राजा युद्ध लड़ने के लिए जाने से पहले इस मंदिर में बालाजी के धोक लगाकर और आशीर्वाद लेकर जाते थे. मान्यता है कि बालाजी की आशीर्वाद से युद्ध में जीत होती थी. युद्ध में विजयी होकर वापस आते समय भी राजा बालाजी के धोक लगाते थे. नगर द्वार में प्रवेश करते ही महल में जाने से पहले बालाजी के मंदिर में पूजा-अर्चना करते थे. राज दरबार के लोग और सैनिक इस मंदिर से ही जुलूस के रूप में राजा को महल तक लेकर जाते थे. तभी से राज परिवार की इस बालाजी मंदिर से मान्यता जुड़ी हुई है. आज भी राज परिवार की तरफ से शीतलाष्टमी यानी बास्योड़ा के दिन बालाजी को भोग लगता है.

शादी के बाद वर-वधु बालाजी से लेते हैं आशीर्वाद : आमेर के लोग अपने घर में शादी समेत कोई भी शुभ कार्य होने पर बालाजी के मंदिर में पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं. शादी के बाद नव वर-वधु को गरजोड़े की जात (धोक) लगाने आते हैं. बालाजी से सफल दांपत्य जीवन का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. दूर-दूर से भक्त बालाजी के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. हनुमान जन्मोत्सव पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. बालाजी का विशेष श्रृंगार करके नव पोशाक धारण करवाई जाती है.

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बालाजी की सवा 6 फीट की प्रतिमा विराजित है : टूरिस्ट गाइड महेश कुमार शर्मा ने बताया कि मान्यता है कि आमेर का यह प्राचीन बालाजी का मंदिर काफी चमत्कारी है. हर मंगलवार और शनिवार को काफी संख्या में भक्त बालाजी के दरबार में पहुंचते हैं. यह एक ऐसा मंदिर है जहां बालाजी के साथ अंजनी माता और भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान है. प्राचीन काल में आमेर नगर के प्रवेश द्वार में एंट्री करते ही सभी बालाजी के धोक लगाकर जाते थे. राजा भी युद्ध में जाने से पहले बालाजी का आशीर्वाद लेकर जाते थे. युद्ध में विजयी होने के बाद राजा सबसे पहले इस बालाजी के मंदिर में पूजा-अर्चना करते थे और यहीं से लवाजमे के साथ महल तक जाते थे. मंदिर में अंदर आने के बाद बालाजी के पूर्ण स्वरूप के दर्शन होते हैं. बालाजी की सवा छः फीट की प्रतिमा विराजित है.
आमेर नगर के रक्षक के रूप में भी माने जाते हैं : बालाजी के मंदिर के पास वाराही माता का मंदिर है. इस बालाजी के मंदिर में शनिवार में भक्तों का विशेष तांता लगा रहता है. मंदिर की खास मान्यता है कि जो भी भक्त सात शनिवार को बालाजी के मंदिर में आकर तीन परिक्रमा करता है, तो बालाजी उसकी मनोकामना पूरी करते हैं. प्रवेश द्वार पर विराजमान बालाजी आमेर नगर के रक्षक के रूप में भी माने जाते हैं. शादी के बाद नव वर-वधु की गरजोड़े की जात यहां लगती है. बच्चों के चोटी-जडूले (मुंडन) के लिए भी लोग बालाजी के मंदिर में आते हैं. राज परिवार की तरफ से आज भी शीतलाष्टमी के दिन इस मंदिर में भोग (प्रसाद) चढ़ाया जाता है.
बालाजी के आशीर्वाद से राजा मानसिंह ने जीते 77 युद्ध : बालाजी मंदिर के पुजारी भास्कर महर्षि ने बताया कि आमेर के राजा मानसिंह ने 77 युद्ध लड़े थे. प्रत्येक युद्ध से पहले राजा यहां कर बालाजी का आशीर्वाद लेकर जाते थे. आस्था है कि राजा पर हमेशा बालाजी की कृपा रही. राजा मानसिंह ने अपने जीवन काल में 77 युद्ध लड़े थे और सभी में विजयी हुए थे. आज भी लोग अपने जीवन में कुछ भी नया काम शुरू करने से पहले बालाजी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर हर साल इस प्राचीन बालाजी मंदिर में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. सामूहिक हनुमान चालीसा पाठ, सुंदरकांड पाठ और भजन होते हैं. बालाजी का विशेष श्रंगार कर नवीन पोशाक धारण करवाई जाती है. हजारों की संख्या में भक्त बालाजी के धोक लगाने के लिए पहुंचते हैं. इसके अलावा त्योहार और रामनवमी के अवसर पर भी विशेष आयोजन होते हैं.