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किसानों का हीरा, नए किस्म का खीरा, महीने भर में लद जाते हैं फल, होती है नोटों की बारिश - GWALIOR NEW VARIETY OF CUCUMBER

मध्य प्रदेश की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने तैयार किया नए किस्म का खीरा. बिना केमिकल, खाद और कीटनाशकों के हो रही है बंपर खेती.

Agriculture University developed new variety of cucumber
एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने तैयार किया नए किस्म का खीरा (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : April 17, 2025 at 8:45 PM IST

5 Min Read

ग्वालियर (पीयूष श्रीवास्तव): गर्मियों का मौसम आते ही बाजार में खीरों की डिमांड बढ़ जाती है. सलाद हो रायता या अन्य डिशेज के साथ लोग कच्चे खीरे का स्वाद लेना नहीं भूलते हैं. खीरे में पानी और मिनरल्स की भरपूर मात्रा होती है, जो शरीर को हाइड्रेटेड रखता है और जरूरी पोषक तत्व प्रदान करता है. हालांकि 3 महीनों के बाद खीरा धीरे धीरे बाजार से गायब हो जाता है. लेकिन अब मध्य प्रदेश की राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ने खीरे की ऐसी पौध तैयार की है जो न सिर्फ स्वादिष्ट है बल्कि कम समय में फल देने लगती है और इसे साल भर लगाया जा सकता है.

बिना केमिकल तैयार हो रहा है स्वादिष्ट खीरा

राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय में एक पॉली हाउस लगाया गया है. जिसके अंदर खीरे के हजारों पौधे लगे हुए हैं, जो अभी 2 फुट की बेल है. लेकिन हर बेल में भरपूर खीरे लगे हैं. देखने में देसी खीरे से अलग और गहरे हरे रंग का यह खीरा कोई विदेशी किस्म का लगता है. लेकिन इसे कृषि विश्वविद्यालय ने ही तैयार किया है, वह भी बिना किसी केमिकल, खाद या कीटनाशकों के. इसका छिलका बेहद मुलायम होता है और इस खीरे को बिना छीले सीधे खाया जा सकता है, जो इसके स्वाद को और भी बढ़ाता है.

किसानों के लिए हीरा है ये नए किस्म का खीरा (ETV Bharat)

फसल को बनाया केमिकल फ्री

राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. अरविंद शुक्ला ने ईटीवी भारत को बताया कि "खीरे की यह नई किस्म किसानों के लिए कमाई का साधन बन सकती है. इस खीरे की पौध को विश्वविद्यालय ने केमिकल रहित और पूरी तरह ऑर्गेनिक खेती के जरिए तैयार किया है. खाद के लिए गोबर और अन्य जैविक खादों का उपयोग कर रहे हैं. इसमें किसी तरह के केमिकल पेस्टिसाइड या इंसेक्टिसाइड का प्रयोग नहीं किया जा रहा है. यदि किसी पौधे पर इन्सेक्ट अटैक समझ आता है तो इसे दूर करने के लिए नीम की पत्तियों का धुआं दिया जाता है. इससे कीड़े या तो बेहोश हो जाते हैं या पॉलीहाउस के बाहर निकल जाते हैं."

New Variety Cucumber Farming
2 फुट की बेल में भी लद जाते हैं इस पौधे में खीरा (ETV Bharat)

सिंचाई के लिए करते हैं आर्टिफिशियल बारिश

किसी भी फसल के लिए सिंचाई बड़ी जरूरी होती है. इस दशा में खीरे की पौध को पर्याप्त पानी मिले और पानी की बर्बादी न हो इसके लिए भी विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा 2 तरीके अपनाए जा रहे हैं. पहला तो खीरे की फसल में ड्रिप इरीगेशन सिस्टम के जरिए पानी दिया जा रहा है. दूसरा समय-समय पर जरूरत के अनुसार आर्टिफिशियल फॉगर के जरिए सिंचाई की जा रही है. इससे न सिर्फ पानी की बचत होती है बल्कि प्राकृतिक बरसात की तरह सिंचाई होती है.

new variety cucumber Poly house
नए किस्म के खीरे की फसल का पॉली हाउस (ETV Bharat)

देसी खीरे से कैसे बेहतर है ये नई किस्म

अब सवाल आता है कि, विश्वविद्यालय द्वारा तैयार खीरा और बाजार में आम किसानों द्वारा अभी उपलब्ध कराए जा रहे खीरे में क्या अंतर है. तो आपको बता दें कि खीरे में पोटेशियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज और फास्फोरस जैसे मिनरल्स पाए जाते हैं. लेकिन देसी खीरे की अपेक्षा खीरे की इस नई किस्म में इन खनिजों की मात्रा अधिक पाई गई है. इसके अलावा देसी खीरे को बिना छिलका उतारे नहीं खाया जाता, क्योंकि इसका छिलका सख्त होता है. जबकि विश्वविद्यालय के इस खीरे का छिलका बेहद पतला और मुलायम है. ऐसे में खीरे को छिलके सहित खाया जा सकता है. इसके अलावा इस नई किस्म के खीरे में बीज की मात्रा कम और पल्प ज्यादा होता है. साथ ही यह कड़वा नहीं निकलता, जिससे उसका स्वाद भी बढ़ जाता है.

New Variety Cucumber Farming
20 से 25 दिन में ही फल देने लगता है ये खीरा का पौधा (ETV Bharat)

कम समय में अधिक फल, 12 महीने फसल

देसी खीरे की पौध में बुवाई के बाद फल आने में लगभग एक से डेढ़ महीना लगता है. जब तक बेल 4-5 फीट की नहीं हो जाती देसी खीरे के बेल पर फल नहीं आता है. एक देसी पौधा करीब 15 किलो तक फल देता है. इसके उलट विश्वविद्यालय द्वारा तैयार खीरा का पौधा 20 से 25 दिन में ही फल देने लगता है और 27 से 30 दिनों में फल हार्वेस्टिंग के लिए तैयार हो जाता है. इसका हर पौधा देसी पौध के मुकाबले लगभग दोगुने फल यानी 25 से 30 किलो फल देता है. जहां देसी खीरे का सीजन सिर्फ 3 महीने का होता है, वहीं खीरे की यह नई किस्म 12 महीने लगाई जा सकती है.

Chemical free cucumber Farming
बिना केमिकल तैयार हो रहा है नए किस्म का खीरा (ETV Bharat)

बड़े किसानों के लिए फायदे की फसल

कुलगुरु अरविंद शुक्ला का मानना है कि "प्रदेश के किसान राजमाता कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किए गए खीरे की पौध का इस्तेमाल किसान अपने खेतों में भी कर सकते हैं. पॉलीहाउस की मदद से सुरक्षित और पूरी तरह ऑर्गेनिक खेती से अच्छी क्वालिटी का खीरा उगा सकते हैं. इससे मार्केट में किसानों को इसका अच्छा दाम मिलेगा और खेती में फायदा होगा. एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी द्वारा बड़े किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प तैयार किया गया है. साथ ही अगर आम शहर के लोग या कोई व्यक्ति ये ऑर्गेनिक खीरे खाना चाहे तो विश्वविद्यालय ने इसके लिए एक काउंटर भी लगवाया है. जहां वे निर्धारित दाम दे कर खीरा खरीद भी सकते हैं."

ग्वालियर (पीयूष श्रीवास्तव): गर्मियों का मौसम आते ही बाजार में खीरों की डिमांड बढ़ जाती है. सलाद हो रायता या अन्य डिशेज के साथ लोग कच्चे खीरे का स्वाद लेना नहीं भूलते हैं. खीरे में पानी और मिनरल्स की भरपूर मात्रा होती है, जो शरीर को हाइड्रेटेड रखता है और जरूरी पोषक तत्व प्रदान करता है. हालांकि 3 महीनों के बाद खीरा धीरे धीरे बाजार से गायब हो जाता है. लेकिन अब मध्य प्रदेश की राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ने खीरे की ऐसी पौध तैयार की है जो न सिर्फ स्वादिष्ट है बल्कि कम समय में फल देने लगती है और इसे साल भर लगाया जा सकता है.

बिना केमिकल तैयार हो रहा है स्वादिष्ट खीरा

राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय में एक पॉली हाउस लगाया गया है. जिसके अंदर खीरे के हजारों पौधे लगे हुए हैं, जो अभी 2 फुट की बेल है. लेकिन हर बेल में भरपूर खीरे लगे हैं. देखने में देसी खीरे से अलग और गहरे हरे रंग का यह खीरा कोई विदेशी किस्म का लगता है. लेकिन इसे कृषि विश्वविद्यालय ने ही तैयार किया है, वह भी बिना किसी केमिकल, खाद या कीटनाशकों के. इसका छिलका बेहद मुलायम होता है और इस खीरे को बिना छीले सीधे खाया जा सकता है, जो इसके स्वाद को और भी बढ़ाता है.

किसानों के लिए हीरा है ये नए किस्म का खीरा (ETV Bharat)

फसल को बनाया केमिकल फ्री

राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. अरविंद शुक्ला ने ईटीवी भारत को बताया कि "खीरे की यह नई किस्म किसानों के लिए कमाई का साधन बन सकती है. इस खीरे की पौध को विश्वविद्यालय ने केमिकल रहित और पूरी तरह ऑर्गेनिक खेती के जरिए तैयार किया है. खाद के लिए गोबर और अन्य जैविक खादों का उपयोग कर रहे हैं. इसमें किसी तरह के केमिकल पेस्टिसाइड या इंसेक्टिसाइड का प्रयोग नहीं किया जा रहा है. यदि किसी पौधे पर इन्सेक्ट अटैक समझ आता है तो इसे दूर करने के लिए नीम की पत्तियों का धुआं दिया जाता है. इससे कीड़े या तो बेहोश हो जाते हैं या पॉलीहाउस के बाहर निकल जाते हैं."

New Variety Cucumber Farming
2 फुट की बेल में भी लद जाते हैं इस पौधे में खीरा (ETV Bharat)

सिंचाई के लिए करते हैं आर्टिफिशियल बारिश

किसी भी फसल के लिए सिंचाई बड़ी जरूरी होती है. इस दशा में खीरे की पौध को पर्याप्त पानी मिले और पानी की बर्बादी न हो इसके लिए भी विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा 2 तरीके अपनाए जा रहे हैं. पहला तो खीरे की फसल में ड्रिप इरीगेशन सिस्टम के जरिए पानी दिया जा रहा है. दूसरा समय-समय पर जरूरत के अनुसार आर्टिफिशियल फॉगर के जरिए सिंचाई की जा रही है. इससे न सिर्फ पानी की बचत होती है बल्कि प्राकृतिक बरसात की तरह सिंचाई होती है.

new variety cucumber Poly house
नए किस्म के खीरे की फसल का पॉली हाउस (ETV Bharat)

देसी खीरे से कैसे बेहतर है ये नई किस्म

अब सवाल आता है कि, विश्वविद्यालय द्वारा तैयार खीरा और बाजार में आम किसानों द्वारा अभी उपलब्ध कराए जा रहे खीरे में क्या अंतर है. तो आपको बता दें कि खीरे में पोटेशियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज और फास्फोरस जैसे मिनरल्स पाए जाते हैं. लेकिन देसी खीरे की अपेक्षा खीरे की इस नई किस्म में इन खनिजों की मात्रा अधिक पाई गई है. इसके अलावा देसी खीरे को बिना छिलका उतारे नहीं खाया जाता, क्योंकि इसका छिलका सख्त होता है. जबकि विश्वविद्यालय के इस खीरे का छिलका बेहद पतला और मुलायम है. ऐसे में खीरे को छिलके सहित खाया जा सकता है. इसके अलावा इस नई किस्म के खीरे में बीज की मात्रा कम और पल्प ज्यादा होता है. साथ ही यह कड़वा नहीं निकलता, जिससे उसका स्वाद भी बढ़ जाता है.

New Variety Cucumber Farming
20 से 25 दिन में ही फल देने लगता है ये खीरा का पौधा (ETV Bharat)

कम समय में अधिक फल, 12 महीने फसल

देसी खीरे की पौध में बुवाई के बाद फल आने में लगभग एक से डेढ़ महीना लगता है. जब तक बेल 4-5 फीट की नहीं हो जाती देसी खीरे के बेल पर फल नहीं आता है. एक देसी पौधा करीब 15 किलो तक फल देता है. इसके उलट विश्वविद्यालय द्वारा तैयार खीरा का पौधा 20 से 25 दिन में ही फल देने लगता है और 27 से 30 दिनों में फल हार्वेस्टिंग के लिए तैयार हो जाता है. इसका हर पौधा देसी पौध के मुकाबले लगभग दोगुने फल यानी 25 से 30 किलो फल देता है. जहां देसी खीरे का सीजन सिर्फ 3 महीने का होता है, वहीं खीरे की यह नई किस्म 12 महीने लगाई जा सकती है.

Chemical free cucumber Farming
बिना केमिकल तैयार हो रहा है नए किस्म का खीरा (ETV Bharat)

बड़े किसानों के लिए फायदे की फसल

कुलगुरु अरविंद शुक्ला का मानना है कि "प्रदेश के किसान राजमाता कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किए गए खीरे की पौध का इस्तेमाल किसान अपने खेतों में भी कर सकते हैं. पॉलीहाउस की मदद से सुरक्षित और पूरी तरह ऑर्गेनिक खेती से अच्छी क्वालिटी का खीरा उगा सकते हैं. इससे मार्केट में किसानों को इसका अच्छा दाम मिलेगा और खेती में फायदा होगा. एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी द्वारा बड़े किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प तैयार किया गया है. साथ ही अगर आम शहर के लोग या कोई व्यक्ति ये ऑर्गेनिक खीरे खाना चाहे तो विश्वविद्यालय ने इसके लिए एक काउंटर भी लगवाया है. जहां वे निर्धारित दाम दे कर खीरा खरीद भी सकते हैं."

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