गोरखपुर: कॉपरेटिव सोसाइटी एक्ट के तहत देश के अंदर संचालित होने वाले सहकारी बैंक हों या कोई अन्य संस्थाएं, अधिकांश आर्थिक तंगी, दिवालिया और घोटाले के शिकार हो जाने की बातें सामने आती हैं. लेकिन गोरखपुर का रेलवे कॉपरेटिव बैंक, जो अंग्रेजी शासनकाल से अब तक न कभी आर्थिक तंगी का शिकार हुआ और न ही दिवालिया होने की नौबत आई. यहां रेलवे कर्मचारी ही नहीं आम आदमी भी अपना बैंक खाता खोल सकते हैं.
24 घंटे में मिलता है लोनः वर्ष 1921 में रेलवे के महिला और पुरुष कर्मचारियों के छोटे से समूह द्वारा इसकी स्थापनी हुई. मौजूदा दौर में आरबीआई के गाइडलाइन के अनुसार संचालित होने वाला ऐसा बैंक है, जो अपने 200 कर्मचारियों को वेतन देने के साथ अपने खाता धारकों को अन्य बैंकों की तुलना में अधिक ब्याज उपलब्ध कराता है. 24 घंटे के भीतर लोन की सुविधा उपलब्ध कराता है. बैंक में करीब 25000 खाता धारक हैं. यह एक संचालक मंडल द्वारा संचालित होता है. इसमें अध्यक्ष और संचालक मंडल की पूरी टीम बैंक के आय-व्यय और सारी व्यवस्था का देखभाल किया जाता है.
सरकार से नहीं लिया कभी अनुदान: अपनी स्थापना के 104 वर्षों में इस बैंक ने कभी भी भारत सरकार से कोई अनुदान प्राप्त नहीं किया है. सहकारी बैंकों में पूर्वी उत्तर प्रदेश की यह सबसे खूबसूरत दूसरी बिल्डिंग है. बैंक की यह बिल्डिंग रेलवे की महिला- पुरुष कर्मचारियों द्वारा अवकाश के दिनों में श्रमदान से बनाई गई थी. इसका उद्घाटन वर्ष 1958 में तत्कालीन रेल मंत्री जगजीवन राम के हाथों हुआ था.
रिटायर्ड कर्मचारियों को लेनी होती है एनओसी: बैंक के अध्यक्ष अरविंद कुमार चंद ने ईटीवी भारत को बताया कि इस बैंक की स्थापना ने रेलवे कर्मचारियों को कई तरह के आर्थिक संकट से उबारा है. जब अन्य बैंकों से उन्हें बेटे- बेटी की पढ़ाई और शादी के लिए, घर बनाने के लिए लोन नहीं मिलता था और वे सूदखोरों के चंगुल में फंस जाते थे. तब यहां से लोन की सुविधा पाकर संकट से उबर चुके हैं. रेलवे का कोई भी कर्मचारी रिटायर्ड होता है, तो उसे कोऑपरेटिव बैंक से इस बात की एनओसी लेनी होती है कि वह बैंक का कर्जदार नहीं है. इस बैंक का दायरा काफी लंबा है. यह उत्तराखंड से लेकर बिहार तक अपनी सेवाएं देता है. खाता धारकों के हित का ख्याल रखता है. बहुत लोगों को भ्रम था कि इसमें आम लोगों का खाता नहीं खुलता लेकिन उनके बैंक में आमजन का भी खाता है. हां, यह जरूर है कि इसकी वृहद चर्चा हो तो खाता धारकों की संख्या और बढ़ सकती है.
10 लाख रुपए तक का आसान लोन: अपने बनाए नियमों और व्यवस्था से वह बैंकिंग सेक्टर में एक मिसाल है. 10 लाख तक का लोन आसानी से मिलता है और हर खाते पर ₹5,00,000 का बीमा निश्चित है. रेलवे कर्मचारी और बैंक के खाताधारक विजय शंकर श्रीवास्तव कहते हैं कि उनकी सभी जरूरतें इस बैंक में खाता होने से पूरी होती हैं. जमा और निकासी आसानी से होती है और 24 घंटे में लोन की सुविधा मिलती है. खाताधारक सनी सिंह कहते हैं कि सरकारी बैंकों में किसी भी जरूरत के लिए काफी उलझन से गुजरना पड़ता है. यहां आइए और फटाफट अपना काम करते हुए घर निकल जाइए. यहां अधिक ब्याज की सुविधा मिलने की जानकारी होने से उनके समेत परिवार के कई खाता यहां खोले जा चुके हैं.
संचालक मंडल देखता है बैंक का कामकाज: इस बैंक के संचालक मंडल में सभापति के अलावा उपसभापति और 9 सदस्य शामिल होते हैं. पहले यह जिम्मेदारी रेलवे के महाप्रबंधक और वित्त नियंत्रक देखते थे, लेकिन 1990 में कॉपरेटिव सोसाइटी में संशोधन के बाद बैंक और अन्य संस्थाओ में यह पद सृजित किए गए. बैंक के सभापति ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री, सहकारिता मंत्री के रूप में ऐसे बैंकों और संस्थाओं की सेहत सुधारने का लगातार प्रयास कर रहे हैं. शुरुआती दौर में यह बैंक अवध एवं तिरहुत रेलवे के कार्य क्षेत्र में कार्यरत रहने के कारण अवध एवं तिरहुत रेलवे कॉपरेटिव सोसाइटी के नाम से जाना जाता था. इसका मुख्यालय गोरखपुर था. वर्ष 1967 में रेल का नाम परिवर्तित होकर NE रेलवे हो जाने के बाद इस बैंक का नाम भी परिवर्तित हो गया और NE रेलवे इंप्लाइज कॉपरेटिव बैंकिंग सोसाइटी लिमिटेड के नाम से जाना जाने लगा.