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गोरखपुर जंक्शन : 133 वर्षों में तय किया भाप के इंजन से वंदे भारत तक का ऐतिहासिक सफर - HISTORY OF GORAKHPUR JUNCTION

पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्यालय की स्थापना 14 अप्रैल 1952 को हुई थी. देश की पहली ट्रेन "हमसफर" गोरखपुर जंक्शन से चलाई गई थी.

गोरखपुर रेलवे जंक्शन का इतिहास.
गोरखपुर रेलवे जंक्शन का इतिहास. (Photo Credit : ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : April 14, 2025 at 10:43 AM IST

Updated : April 14, 2025 at 6:01 PM IST

7 Min Read

गोरखपुर : देश में रेलवे के प्रमुख मुख्यालयों में गोरखपुर जंक्शन का महत्वपूर्ण स्थान है. यह पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय है जिसकी स्थापना 14 अप्रैल 1952 को की गई थी. तब इसे तिरहुत रेलवे के नाम से जाना जाता था. उस समय इसका विस्तार 7660 किलोमीटर के क्षेत्र में था जो बाद में दो भागों में बंट गया. अब भी यह 3402 किलोमीटर की सीमा में है. बहरहाल गोरखपुर जंक्शन कई मायनों में देश स्तर पर अलग पहचान कायम कर चुका है. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने वर्ष 1952 में पूर्वोत्तर रेलवे के गठन की औपचारिकता पूरी की थीं.

गोरखपुर जंक्शन का ऐतिहासिक "सफर"

छोटी लाइन के नाम से मशहूर पूर्वोत्तर रेलवे को बड़ी लाइन में परिवर्तन करने के लिए वर्ष 1981 में गोरखपुर में ऑफिस बनाया गया. जिसे आज भी बीजी ऑफिस (ब्रॉड गेज अर्थात बड़ी लाइन) के नाम से जाना जाता है. इसी वर्ष छपरा- कचहरी, गोरखपुर- गोंडा खंड को बड़ी लाइन में परिवर्तित किया गया. वर्ष 2013 में गोरखपुर यार्ड की रीमॉडलिंग की गई और मुख्य प्लेटफार्म लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दुनिया के सबसे लंबे प्लेटफार्म के रूप में दर्ज हुआ. 2015-16 में पूर्वोत्तर रेलवे का पहला एस्केलेटर गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर लगाया गया.

देखें : गोरखपुर जंक्शन के ऐतिहासिक सफर की खास रिपोर्ट. (Video Credit : ETV Bharat)

22 नवंबर 2015 को पहली विद्युत चालित ट्रेन यहां से चलाई गई. छोटी लाइन के नाम से प्रसिद्ध पूर्वोत्तर रेलवे नानपारा- मैलानी मीटर गेज लाइन जो दुधवा नेशनल पार्क से होकर गुजरती है. जिसे इको टूरिज्म के लिए संरक्षित किया गया है. इसे छोड़कर पूरी तरह से बड़ी लाइन हो चुकी है. बहराइच-नानपारा-नेपालगंज रोड को गेज परिवर्तन के लिए यातायात बंद किया गया है और कार्य प्रगति पर है. सभी प्रमुख मार्गों को दोहरीकृत कर दिया गया है और कार्य भी चल रहा है. शत प्रतिशत विद्युतीकरण हो चुका है और 100 किलोमीटर से ज्यादा ऑटोमेटिक सिगनलिंग सिस्टम, 100 से ज्यादा स्टेशनों की इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग की जा चुकी है. गोरखपुर रेलवे स्टेशन को अमृत भारत स्टेशन योजना के अंतर्गत विकसित किया जा रहा है जिस पर करीब 500 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं.

गोरखपुर रेलवे स्टेशन.
गोरखपुर रेलवे स्टेशन. (Photo Credit : ETV Bharat)

राप्ती नदी पर रेल पुल बनाने की थी सबसे बड़ी चुनौती

पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह कहते हैं कि लगभग 140 वर्ष पूर्व जब बंगाल नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे कंपनी को, वर्ष 1985 में अवध से सोनपुर के बीच गोरखपुर होते हुए मीटर गेज रेलवे लाइन बनाने की जिम्मेदारी मिली. तभी यह क्षेत्र रेलवे से जुड़ गया था. हालांकि यह निर्णय आसान नहीं था. यहां सबसे बड़ी चुनौती राप्ती नदी पर रेल पुल बनाने की थी जो नदी लगातार अपना धारा बदलती रहती थी. हालांकि यह संभव हुआ.

गोरखपुर रेलवे स्टेशन.
गोरखपुर रेलवे स्टेशन. (Photo Credit : ETV Bharat)

रेलवे से मिली क्षेत्र के विकास को गति

रेलवे के प्रादुर्भाव के साथ ही इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव शुरू हुए. 20वीं शताब्दी की शुरुआत में इस क्षेत्र में औद्योगिक परिवर्तन शुरू हुआ. वर्ष 1903 में रेल कारखाना की स्थापना हुई, जहां रेल डिब्बों और भाप से चलने वाले रेल इंजनों का मेंटिनेंस किया जाने लगा. धीरे- धीरे यह क्षेत्र रेलवे के अधिकारियों को बहुत पसंद आने लगा. हरियाली और आध्यात्मिक वातावरण की वजह से यहां आवासीय काॅलोनियां विकसित हुईं जो यूरोपियन कल्चर में बनाई गईं. करीब 100 साल पहले यहां के अधिकारियों के बंगले में इलेक्ट्रिक सप्लाई थी. गोरखपुर लंबे समय तक बंगाल नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे का मुख्यालय रहा.

गोरखपुर रेलवे स्टेशन के ऐतिहासिक पल. फाइल फोटो
गोरखपुर रेलवे स्टेशन के ऐतिहासिक पल. फाइल फोटो (Photo Credit : ETV Bharat)

पांच रेल मंडलों के गठन के बाद हुआ चौमुखी विस्तार

1 जनवरी 1943 से बीएनडब्ल्यूआर और आरकेआर अन्य रेलवे यूनिटों को मिलाकर अवध तिरहुत रेलवे बना दिया गया. इसका मुख्यालय गोरखपुर में ही रखा गया. देश की स्वतंत्रता के पश्चात 14 अप्रैल 1952 को भारतीय रेल में छह क्षेत्रीय रेलवे का गठन किया गया. जिनमें से एक पूर्वोत्तर रेलवे बना जिसका मुख्यालय गोरखपुर रखा गया. जिसकी सीमाएं उत्तर पूर्वी राज्यों तक फैली थीं. आगे चलकर 15 जनवरी 1958 में पूर्वोत्तर रेलवे का एक हिस्सा पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के रूप में अलग हुआ. जिसमें कटिहार के पूर्व की सभी रेलवे लाइन आती हैं. रेलवे के विस्तार और विकास के क्रम में 1969 को पांच रेल मंडलों वाराणसी, इज्जतनगर, लखनऊ, सोनपुर और समस्तीपुर का गठन किया गया. 1 अक्टूबर 2002 को पूर्वोत्तर रेलवे के सोनपुर और समस्तीपुर मंडल को अलग कर एक नया क्षेत्रीय रेलवे पूर्व मध्य रेलवे का गठन किया गया.

गोरखपुर रेलवे स्टेशन के ऐतिहासिक पल. फाइल फोटो
गोरखपुर रेलवे स्टेशन के ऐतिहासिक पल. फाइल फोटो (Photo Credit : ETV Bharat)

विकास की ओर अग्रसर है गोरखपुर रेलखंड

पंकज कुमार कहते हैं कि रेलवे सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से गोरखपुर के विकास और विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहा है. गोरखपुर रेलवे स्टेशन की सिग्नल इंटरलॉकिंग वर्ष 1926-1927 में हो चुकी थी. पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय गोरखपुर देश का पहला सेंट्रलाइज्ड ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम वर्ष 1965 में छपरा- गोरखपुर खंड में शुरू किया गया था. खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए वर्ष 1956 में रेलवे स्टेडियम बनाया गया. जिसकी वजह से कई नामचीन खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धियां प्राप्त कीं. 15 अप्रैल 1964 को गोरखपुर स्टेशन परिसर में एक काफी हाउस प्रारंभ किया गया. जिसकी चर्चा आज भी यहां के लोग बड़े गर्व से करते हैं. रेलवे की ऐतिहासिक जानकारी साझा करने के उद्देश्य से 9 अप्रैल 2005 में रेल म्यूजियम की स्थापना की गई. इसमें पहला रेल इंजन वॉटर कॉलम क्रेन, टॉय ट्रेन, स्थित है.


प्रमुख धार्मिक स्थलों से जोड़ता है पूर्वोत्तर रेलवे

पूर्वोत्तर रेलवे के पूर्व मुख्य वाणिज्य प्रबंधक राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि यह अवध तिरहुत और असम रेलवे से अलग होकर जोन बना. पहले इस क्षेत्र को माल ढुलाई के लिए रेलवे लाइन की सुविधा से जोड़ा गया था. जिसके लिए सोनपुर से मनकापुर तक रेलवे लाइन बिछाई गई थी. इन दोनों रेलवे से अलग होने के बाद भी इसकी सीमा कम नहीं हुई. आज भी इसका 3402 किलोमीटर का रेल रूट क्षेत्र है. इसके तहत 498 रेलवे स्टेशन हैं. यह पूरी तरह से ऑटोमेटिक सिंगनलिंग से जुड़ता जा रहा है. सबसे बड़ी बात है कि रेलवे में ट्रेनों के आमने-सामने की भिड़ंत को कम करने के लिए कवच सुरक्षा प्रणाली अपनाई गई है. उस तकनीक पूर्वोत्तर रेलवे के तमाम रेलवे स्टेशन लैस हो रहे हैं. पूर्वोत्तर रेलवे की खासियत यह है कि यह तमाम प्रमुख धार्मिक स्थलों से होकर गुजरती है. जिसमें अयोध्या, लुंबिनी, प्रयागराज, मथुरा जैसे प्रमुख स्टेशन शामिल हैं.

ऐतिहासिक क्षणों का गवाह है गोरखपुर रेलवे स्टेशन

गोरखपुर रेलवे स्टेशन कई बड़ी हस्तियों के आगमन का गवाह रहा है. वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान ट्रेन से महात्मा गांधी गोरखपुर रेलवे स्टेशन आए थे. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद वर्ष 1958 में यहां आए थे. देश के पहले रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री वर्ष 1954 में यहां आए. 7 जुलाई 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर आए और वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया.

यह भी पढ़ें : पूर्वोत्तर रेलवे की 122 से अधिक ट्रेनें 12 अप्रैल से 3 मई तक कैंसिल, जानिए क्या है कारण

यह भी पढ़ें : पूर्वोत्तर रेलवे के अफसरों से सांसदों की डिमांड; फिर से चलाई जाए सेंचुरी और इंटरसिटी एक्सप्रेस, भोजन भी अच्छा मिलना चाहिए

गोरखपुर : देश में रेलवे के प्रमुख मुख्यालयों में गोरखपुर जंक्शन का महत्वपूर्ण स्थान है. यह पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय है जिसकी स्थापना 14 अप्रैल 1952 को की गई थी. तब इसे तिरहुत रेलवे के नाम से जाना जाता था. उस समय इसका विस्तार 7660 किलोमीटर के क्षेत्र में था जो बाद में दो भागों में बंट गया. अब भी यह 3402 किलोमीटर की सीमा में है. बहरहाल गोरखपुर जंक्शन कई मायनों में देश स्तर पर अलग पहचान कायम कर चुका है. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने वर्ष 1952 में पूर्वोत्तर रेलवे के गठन की औपचारिकता पूरी की थीं.

गोरखपुर जंक्शन का ऐतिहासिक "सफर"

छोटी लाइन के नाम से मशहूर पूर्वोत्तर रेलवे को बड़ी लाइन में परिवर्तन करने के लिए वर्ष 1981 में गोरखपुर में ऑफिस बनाया गया. जिसे आज भी बीजी ऑफिस (ब्रॉड गेज अर्थात बड़ी लाइन) के नाम से जाना जाता है. इसी वर्ष छपरा- कचहरी, गोरखपुर- गोंडा खंड को बड़ी लाइन में परिवर्तित किया गया. वर्ष 2013 में गोरखपुर यार्ड की रीमॉडलिंग की गई और मुख्य प्लेटफार्म लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दुनिया के सबसे लंबे प्लेटफार्म के रूप में दर्ज हुआ. 2015-16 में पूर्वोत्तर रेलवे का पहला एस्केलेटर गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर लगाया गया.

देखें : गोरखपुर जंक्शन के ऐतिहासिक सफर की खास रिपोर्ट. (Video Credit : ETV Bharat)

22 नवंबर 2015 को पहली विद्युत चालित ट्रेन यहां से चलाई गई. छोटी लाइन के नाम से प्रसिद्ध पूर्वोत्तर रेलवे नानपारा- मैलानी मीटर गेज लाइन जो दुधवा नेशनल पार्क से होकर गुजरती है. जिसे इको टूरिज्म के लिए संरक्षित किया गया है. इसे छोड़कर पूरी तरह से बड़ी लाइन हो चुकी है. बहराइच-नानपारा-नेपालगंज रोड को गेज परिवर्तन के लिए यातायात बंद किया गया है और कार्य प्रगति पर है. सभी प्रमुख मार्गों को दोहरीकृत कर दिया गया है और कार्य भी चल रहा है. शत प्रतिशत विद्युतीकरण हो चुका है और 100 किलोमीटर से ज्यादा ऑटोमेटिक सिगनलिंग सिस्टम, 100 से ज्यादा स्टेशनों की इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग की जा चुकी है. गोरखपुर रेलवे स्टेशन को अमृत भारत स्टेशन योजना के अंतर्गत विकसित किया जा रहा है जिस पर करीब 500 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं.

गोरखपुर रेलवे स्टेशन.
गोरखपुर रेलवे स्टेशन. (Photo Credit : ETV Bharat)

राप्ती नदी पर रेल पुल बनाने की थी सबसे बड़ी चुनौती

पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह कहते हैं कि लगभग 140 वर्ष पूर्व जब बंगाल नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे कंपनी को, वर्ष 1985 में अवध से सोनपुर के बीच गोरखपुर होते हुए मीटर गेज रेलवे लाइन बनाने की जिम्मेदारी मिली. तभी यह क्षेत्र रेलवे से जुड़ गया था. हालांकि यह निर्णय आसान नहीं था. यहां सबसे बड़ी चुनौती राप्ती नदी पर रेल पुल बनाने की थी जो नदी लगातार अपना धारा बदलती रहती थी. हालांकि यह संभव हुआ.

गोरखपुर रेलवे स्टेशन.
गोरखपुर रेलवे स्टेशन. (Photo Credit : ETV Bharat)

रेलवे से मिली क्षेत्र के विकास को गति

रेलवे के प्रादुर्भाव के साथ ही इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव शुरू हुए. 20वीं शताब्दी की शुरुआत में इस क्षेत्र में औद्योगिक परिवर्तन शुरू हुआ. वर्ष 1903 में रेल कारखाना की स्थापना हुई, जहां रेल डिब्बों और भाप से चलने वाले रेल इंजनों का मेंटिनेंस किया जाने लगा. धीरे- धीरे यह क्षेत्र रेलवे के अधिकारियों को बहुत पसंद आने लगा. हरियाली और आध्यात्मिक वातावरण की वजह से यहां आवासीय काॅलोनियां विकसित हुईं जो यूरोपियन कल्चर में बनाई गईं. करीब 100 साल पहले यहां के अधिकारियों के बंगले में इलेक्ट्रिक सप्लाई थी. गोरखपुर लंबे समय तक बंगाल नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे का मुख्यालय रहा.

गोरखपुर रेलवे स्टेशन के ऐतिहासिक पल. फाइल फोटो
गोरखपुर रेलवे स्टेशन के ऐतिहासिक पल. फाइल फोटो (Photo Credit : ETV Bharat)

पांच रेल मंडलों के गठन के बाद हुआ चौमुखी विस्तार

1 जनवरी 1943 से बीएनडब्ल्यूआर और आरकेआर अन्य रेलवे यूनिटों को मिलाकर अवध तिरहुत रेलवे बना दिया गया. इसका मुख्यालय गोरखपुर में ही रखा गया. देश की स्वतंत्रता के पश्चात 14 अप्रैल 1952 को भारतीय रेल में छह क्षेत्रीय रेलवे का गठन किया गया. जिनमें से एक पूर्वोत्तर रेलवे बना जिसका मुख्यालय गोरखपुर रखा गया. जिसकी सीमाएं उत्तर पूर्वी राज्यों तक फैली थीं. आगे चलकर 15 जनवरी 1958 में पूर्वोत्तर रेलवे का एक हिस्सा पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के रूप में अलग हुआ. जिसमें कटिहार के पूर्व की सभी रेलवे लाइन आती हैं. रेलवे के विस्तार और विकास के क्रम में 1969 को पांच रेल मंडलों वाराणसी, इज्जतनगर, लखनऊ, सोनपुर और समस्तीपुर का गठन किया गया. 1 अक्टूबर 2002 को पूर्वोत्तर रेलवे के सोनपुर और समस्तीपुर मंडल को अलग कर एक नया क्षेत्रीय रेलवे पूर्व मध्य रेलवे का गठन किया गया.

गोरखपुर रेलवे स्टेशन के ऐतिहासिक पल. फाइल फोटो
गोरखपुर रेलवे स्टेशन के ऐतिहासिक पल. फाइल फोटो (Photo Credit : ETV Bharat)

विकास की ओर अग्रसर है गोरखपुर रेलखंड

पंकज कुमार कहते हैं कि रेलवे सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से गोरखपुर के विकास और विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहा है. गोरखपुर रेलवे स्टेशन की सिग्नल इंटरलॉकिंग वर्ष 1926-1927 में हो चुकी थी. पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय गोरखपुर देश का पहला सेंट्रलाइज्ड ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम वर्ष 1965 में छपरा- गोरखपुर खंड में शुरू किया गया था. खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए वर्ष 1956 में रेलवे स्टेडियम बनाया गया. जिसकी वजह से कई नामचीन खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धियां प्राप्त कीं. 15 अप्रैल 1964 को गोरखपुर स्टेशन परिसर में एक काफी हाउस प्रारंभ किया गया. जिसकी चर्चा आज भी यहां के लोग बड़े गर्व से करते हैं. रेलवे की ऐतिहासिक जानकारी साझा करने के उद्देश्य से 9 अप्रैल 2005 में रेल म्यूजियम की स्थापना की गई. इसमें पहला रेल इंजन वॉटर कॉलम क्रेन, टॉय ट्रेन, स्थित है.


प्रमुख धार्मिक स्थलों से जोड़ता है पूर्वोत्तर रेलवे

पूर्वोत्तर रेलवे के पूर्व मुख्य वाणिज्य प्रबंधक राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि यह अवध तिरहुत और असम रेलवे से अलग होकर जोन बना. पहले इस क्षेत्र को माल ढुलाई के लिए रेलवे लाइन की सुविधा से जोड़ा गया था. जिसके लिए सोनपुर से मनकापुर तक रेलवे लाइन बिछाई गई थी. इन दोनों रेलवे से अलग होने के बाद भी इसकी सीमा कम नहीं हुई. आज भी इसका 3402 किलोमीटर का रेल रूट क्षेत्र है. इसके तहत 498 रेलवे स्टेशन हैं. यह पूरी तरह से ऑटोमेटिक सिंगनलिंग से जुड़ता जा रहा है. सबसे बड़ी बात है कि रेलवे में ट्रेनों के आमने-सामने की भिड़ंत को कम करने के लिए कवच सुरक्षा प्रणाली अपनाई गई है. उस तकनीक पूर्वोत्तर रेलवे के तमाम रेलवे स्टेशन लैस हो रहे हैं. पूर्वोत्तर रेलवे की खासियत यह है कि यह तमाम प्रमुख धार्मिक स्थलों से होकर गुजरती है. जिसमें अयोध्या, लुंबिनी, प्रयागराज, मथुरा जैसे प्रमुख स्टेशन शामिल हैं.

ऐतिहासिक क्षणों का गवाह है गोरखपुर रेलवे स्टेशन

गोरखपुर रेलवे स्टेशन कई बड़ी हस्तियों के आगमन का गवाह रहा है. वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान ट्रेन से महात्मा गांधी गोरखपुर रेलवे स्टेशन आए थे. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद वर्ष 1958 में यहां आए थे. देश के पहले रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री वर्ष 1954 में यहां आए. 7 जुलाई 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर आए और वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया.

यह भी पढ़ें : पूर्वोत्तर रेलवे की 122 से अधिक ट्रेनें 12 अप्रैल से 3 मई तक कैंसिल, जानिए क्या है कारण

यह भी पढ़ें : पूर्वोत्तर रेलवे के अफसरों से सांसदों की डिमांड; फिर से चलाई जाए सेंचुरी और इंटरसिटी एक्सप्रेस, भोजन भी अच्छा मिलना चाहिए

Last Updated : April 14, 2025 at 6:01 PM IST
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