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चारधाम यात्रा से पहले बड़ी टेंशन! घोड़े-खच्चरों में ग्लैंडर्स संक्रमण का खतरा, ग्रसित पशु को दी जा सकती है इच्छा मृत्यु - CHARDHAM YATRA 2025

चारधाम यात्रा की तैयारियों में जुटे शासन-प्रशासन के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई.

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घोड़े-खच्चरों में ग्लैंडर्स संक्रमण का खतरा (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : April 12, 2025 at 4:17 PM IST

Updated : April 12, 2025 at 4:28 PM IST

5 Min Read

रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड चारधाम यात्रा मार्गों पर यात्रियों की सुविधा के लिए संचालित हो रहे घोड़े-खच्चरों में एक गंभीर बीमारी का खतरा मंडरा रहा है. ये बीमारी इतनी खतरनाक है कि संक्रमित पशु के संपर्क में आने वाले दूसरा पशु भी संक्रमित हो जाएंगे. यही नहीं इससे संक्रमित पशु के संपर्क में आने से इंसानों के भी बीमार होने की पूरी आशंका है. जी हां, हम बात कर रहे है घोड़े-खच्चरों में होने वाले ग्लैंडर्स संक्रमण की. ये इतनी गंभीर बीमारी है कि इससे ग्रसित घोड़े-खच्चरों को आइसोलेट करना या फिर इच्छा मृत्यु देना मजबूरी हो जाती है.

उत्तराखंड चारधाम यात्रा की तैयारियां जोरों शोरों पर चल रही हैं. तमाम विभाग व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की कवायद में जुट हुए हैं. इसी क्रम में पशुपालन विभाग भी घोडे़-खच्चरों के स्वास्थ्य परीक्षण में जुट गया है. क्योंकि घोड़े-खच्चरों में ग्लैंडर्स और इक्वाइन इन्फ्लुएंजा (ईआई) या हॉर्स फ्लू संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है, जिसके चलते पशुपालन विभाग की रोग अनुसंधान प्रयोगशाला श्रीनगर की ओर से यात्रा में आने वाले घोड़े-खच्चरों के ब्लड सीरम की जांच की जा रही है.

चारधाम में हर साल हजारों घोड़े-खच्चरों का इस्तेमाल होता है: इस प्रयोगशाला में ग्लैंडर्स और इक्वाइन इन्फ्लुएंजा (ईआई) या हॉर्स फ्लू संक्रमण की जांच हो रही है. 11 अप्रैल की शाम तक 5662 सैंपल जांच के लिए आ चुके हैं. बता दें उत्तराखंड के दो धाम केदारनाथ और यमुनोत्री के साथ ही हेमकुंड साहिब की यात्रा पैदल करनी पड़ती है. ऐसे में श्रद्धालुओं के आवाजाही और सामान ले जाने का मुख्य साधन घोड़े-खच्चर हैं. ऐसे में हर साल हजारों की संख्या में तमाम जगहों से घोड़े-खच्चर यात्रा के दौरान धामों में पहुंचते हैं.

पशुपालन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार हर साल यात्रा के दौरान केदारनाथ धाम में करीब आठ हजार, यमुनोत्री धाम में करीब तीन हजार और हेमकुंड साहिब में करीब एक हजार घोड़े-खच्चर आते हैं. पशुओं की अधिक संख्या होने के चलते पशुओं में संक्रमण का खतरा बना रहता है, जिसके चलते यात्रा के प्रमुख पड़ावों में पशुपालन विभाग की ओर से पशुओं की फिटनेस देखी जाती है.

एक्वाइन इन्फ्लुएंजा संक्रमण: पशुपालन विभाग का कहना है कि कुछ साल पहले से ही घोड़े-खच्चरों में ग्लैंडर्स और एक्वाइन इन्फ्ल्यूजा संक्रमण के मामले सामने आए हैं. ग्लैंडर्स संक्रमण से ग्रसित पशु को आइसोलेट (पृथक) करना या फिर यूथनाइज (इच्छा मृत्यु) मजबूरी हो जाती है, ताकि अन्य पशुओं में ये संक्रमण न फैले. इसको देखते हुए पशुपालन विभाग तमाम स्थानों पर घोड़े-खच्चरों के खून का सैंपल ले रहा है, जिनकी जांच के लिए पौड़ी जिले के श्रीनगर स्थित रोग अनुसंधान प्रयोगशाला भेजा जा रहा है.

एनआरसीई विशेषज्ञ भी जांच में लगे: पशुपालन विभाग के अपर निदेशक गढ़वाल डॉ‌‌‌. भूपेंद्र जंगपांगी ने बताया कि पहले खून सैंपल की जांच के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई) हिसार भेजा जाता था, लेकिन अब यह सुविधा उत्तराखंड में ही उपलब्ध है. ऐसे में चारधाम यात्रा को देखते हुए लैब में युद्धस्तर पर सीरम सैंपल की जांच की जा रही है. साथ ही एनआरसीई के दो विशेषज्ञ जांच में सहयोग कर रहे हैं.

लैब में बागेश्वर, चमोली, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून समेत अन्य जिलों से सैंपल भेजे जा रहे हैं. अभी तक लैब में जांच के लिए 5662 सैंपल भेजे जा चुके हैं. इनमें से 3,392 सैंपल की जांच की जा चुकी है. इस जांच में अगर कोई सैंपल ग्लैंडर्स संक्रमण पॉजिटिव निकलता है, तो इसकी दोबारा पुष्टि के लिए रिपीट सैंपल एनआरईसी भेजा जाएगा. एनआरईसी में जांच होने पर भी किसी घोड़े-खच्चरों में ग्लैंडर्स संक्रमण की पुष्टि होती है तो उसे इच्छा मृत्यु दी जानी पड़ेगी.

वहीं, इक्वाइन इन्फ्लुएंजा (ईआई) पाए जाने पर बीमार पशु को अन्य से अलग (क्वारंटाइन) कर दिया जाएगा. 14 दिन बाद उसकी दोबारा जांच होगी. स्वस्थ होने पर घोड़े-खच्चर का यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन होगा.

बता दे कि ग्लैंडर्स एक संक्रामक बीमारी है, जो खासकर घोड़ों में होती है. ग्लैंडर्स बीमारी बुर्कहोल्डरिया मेलेई नामक जीवाणु के कारण पशु में होती है. इस बीमारी से संक्रमित पशु से कोई स्वस्थ पशु संपर्क में आता है तो उसे भी ग्लैंडर्स बीमारी होने की पूरी आशंका रहती है. इसके साथ ही इस बीमारी से ग्रसित पशु के संपर्क में आने से इंसानों में भी फैलने की संभावना रहती है. बता दें कि बीते साल इस गंभीर बीमारी से चार मामले सामने आए थे.

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रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड चारधाम यात्रा मार्गों पर यात्रियों की सुविधा के लिए संचालित हो रहे घोड़े-खच्चरों में एक गंभीर बीमारी का खतरा मंडरा रहा है. ये बीमारी इतनी खतरनाक है कि संक्रमित पशु के संपर्क में आने वाले दूसरा पशु भी संक्रमित हो जाएंगे. यही नहीं इससे संक्रमित पशु के संपर्क में आने से इंसानों के भी बीमार होने की पूरी आशंका है. जी हां, हम बात कर रहे है घोड़े-खच्चरों में होने वाले ग्लैंडर्स संक्रमण की. ये इतनी गंभीर बीमारी है कि इससे ग्रसित घोड़े-खच्चरों को आइसोलेट करना या फिर इच्छा मृत्यु देना मजबूरी हो जाती है.

उत्तराखंड चारधाम यात्रा की तैयारियां जोरों शोरों पर चल रही हैं. तमाम विभाग व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की कवायद में जुट हुए हैं. इसी क्रम में पशुपालन विभाग भी घोडे़-खच्चरों के स्वास्थ्य परीक्षण में जुट गया है. क्योंकि घोड़े-खच्चरों में ग्लैंडर्स और इक्वाइन इन्फ्लुएंजा (ईआई) या हॉर्स फ्लू संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है, जिसके चलते पशुपालन विभाग की रोग अनुसंधान प्रयोगशाला श्रीनगर की ओर से यात्रा में आने वाले घोड़े-खच्चरों के ब्लड सीरम की जांच की जा रही है.

चारधाम में हर साल हजारों घोड़े-खच्चरों का इस्तेमाल होता है: इस प्रयोगशाला में ग्लैंडर्स और इक्वाइन इन्फ्लुएंजा (ईआई) या हॉर्स फ्लू संक्रमण की जांच हो रही है. 11 अप्रैल की शाम तक 5662 सैंपल जांच के लिए आ चुके हैं. बता दें उत्तराखंड के दो धाम केदारनाथ और यमुनोत्री के साथ ही हेमकुंड साहिब की यात्रा पैदल करनी पड़ती है. ऐसे में श्रद्धालुओं के आवाजाही और सामान ले जाने का मुख्य साधन घोड़े-खच्चर हैं. ऐसे में हर साल हजारों की संख्या में तमाम जगहों से घोड़े-खच्चर यात्रा के दौरान धामों में पहुंचते हैं.

पशुपालन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार हर साल यात्रा के दौरान केदारनाथ धाम में करीब आठ हजार, यमुनोत्री धाम में करीब तीन हजार और हेमकुंड साहिब में करीब एक हजार घोड़े-खच्चर आते हैं. पशुओं की अधिक संख्या होने के चलते पशुओं में संक्रमण का खतरा बना रहता है, जिसके चलते यात्रा के प्रमुख पड़ावों में पशुपालन विभाग की ओर से पशुओं की फिटनेस देखी जाती है.

एक्वाइन इन्फ्लुएंजा संक्रमण: पशुपालन विभाग का कहना है कि कुछ साल पहले से ही घोड़े-खच्चरों में ग्लैंडर्स और एक्वाइन इन्फ्ल्यूजा संक्रमण के मामले सामने आए हैं. ग्लैंडर्स संक्रमण से ग्रसित पशु को आइसोलेट (पृथक) करना या फिर यूथनाइज (इच्छा मृत्यु) मजबूरी हो जाती है, ताकि अन्य पशुओं में ये संक्रमण न फैले. इसको देखते हुए पशुपालन विभाग तमाम स्थानों पर घोड़े-खच्चरों के खून का सैंपल ले रहा है, जिनकी जांच के लिए पौड़ी जिले के श्रीनगर स्थित रोग अनुसंधान प्रयोगशाला भेजा जा रहा है.

एनआरसीई विशेषज्ञ भी जांच में लगे: पशुपालन विभाग के अपर निदेशक गढ़वाल डॉ‌‌‌. भूपेंद्र जंगपांगी ने बताया कि पहले खून सैंपल की जांच के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई) हिसार भेजा जाता था, लेकिन अब यह सुविधा उत्तराखंड में ही उपलब्ध है. ऐसे में चारधाम यात्रा को देखते हुए लैब में युद्धस्तर पर सीरम सैंपल की जांच की जा रही है. साथ ही एनआरसीई के दो विशेषज्ञ जांच में सहयोग कर रहे हैं.

लैब में बागेश्वर, चमोली, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून समेत अन्य जिलों से सैंपल भेजे जा रहे हैं. अभी तक लैब में जांच के लिए 5662 सैंपल भेजे जा चुके हैं. इनमें से 3,392 सैंपल की जांच की जा चुकी है. इस जांच में अगर कोई सैंपल ग्लैंडर्स संक्रमण पॉजिटिव निकलता है, तो इसकी दोबारा पुष्टि के लिए रिपीट सैंपल एनआरईसी भेजा जाएगा. एनआरईसी में जांच होने पर भी किसी घोड़े-खच्चरों में ग्लैंडर्स संक्रमण की पुष्टि होती है तो उसे इच्छा मृत्यु दी जानी पड़ेगी.

वहीं, इक्वाइन इन्फ्लुएंजा (ईआई) पाए जाने पर बीमार पशु को अन्य से अलग (क्वारंटाइन) कर दिया जाएगा. 14 दिन बाद उसकी दोबारा जांच होगी. स्वस्थ होने पर घोड़े-खच्चर का यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन होगा.

बता दे कि ग्लैंडर्स एक संक्रामक बीमारी है, जो खासकर घोड़ों में होती है. ग्लैंडर्स बीमारी बुर्कहोल्डरिया मेलेई नामक जीवाणु के कारण पशु में होती है. इस बीमारी से संक्रमित पशु से कोई स्वस्थ पशु संपर्क में आता है तो उसे भी ग्लैंडर्स बीमारी होने की पूरी आशंका रहती है. इसके साथ ही इस बीमारी से ग्रसित पशु के संपर्क में आने से इंसानों में भी फैलने की संभावना रहती है. बता दें कि बीते साल इस गंभीर बीमारी से चार मामले सामने आए थे.

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Last Updated : April 12, 2025 at 4:28 PM IST
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