जोधपुर: गणगौर को पीहर से ससुराल भेजने की रस्म भोळावणी के उपलक्ष्य में सोमवार रात को भीतरी शहर में मेला भरेगा. महिलाओ के इस पर्व की समाप्ति के दिन आकर्षण एक पुरुष होगा जो महिला का वेश धरे मेले में चलेगा. पहली बार देखने वाला कोई यह नहीं कह सकता कि वह पुरुष है. सोलह श्रृंगार और सोने-चांदी के गहनों ले लखदख सजा युवक मेले के सबसे पीछे चलेगा.
महिला स्वांग धर होने वाले इस मेले को फगडा घुड़ला का मेला कहा जाता है, जो 1969 से चल रहा है. हर साल इसके लिए किसी एक युवक का चयन होता है, लेकिन इस बार गत वर्ष स्वांग धरने वाले माधव को ही दोबारा मौका मिला है. सेामवार दोपहर बाद उसके स्वांग धरने की तैयारियां शुरू हो गईं. उसके हाथों पर मेहंदी लगाइ गई है. इससे पहले तीन-चार दिनों से उसे उबटन भी लगाया जा रहा था.
माधव ने बताया कि उसे दूसरी बार मौका मिला है. मेला कमेटी के उपाध्यक्ष संजय आसोपा ने बताया कि मेला 56 साल से चल रहा है. इस बार दूसरी बार माधव को मौका दिया गया है. वहीं, मेले के झांकी इंचार्ज सुनील धारीवाल ने बताया कि इस बार कई अनोखी झांकियां देखने को मिलेंगीं.
10 युवक थे कतार में, फिर माधव : मेला कमेटी के पास 10 युवकों ने इस बार फगड़ा बनने के लिए अपनी तस्वीरें भेजी, लेकिन कमेटी को कोई जंचा नहीं जो 2024 में बने माधव सोनी की बराबरी कर सके. इस चयन के दौरान ही माधव ने भी अपनी फोटो दूसरी बार बनने के लिए भेजी, तो कमेटी ने तय किया कि इस बार भी माधव को दूसरी बार मौका दिया जाए. जिसके बाद उसे बताया गया कि वह दूसरी बार तैयारी शुरू कर दे. यह मेला जालोरी के गेट के बाहर से शुरू होकर भीतरी शहर मे जाएगा और देर रात को भोलावणी के साथ समाप्त हो जाएगा.
महिलाओं को देख पुरुषों ने शुरू किया अपना घुड़ला : दरअसल, घुड़ला निकालने की महिलाओं की पंरपरा को देखते हुए 1969 में जोधपुर में कुछ पुरुषों ने तय किया कि सारे त्योहार महिलाओं के होते हैं. हमारा भी कुछ होना चाहिए. तब किसी ने कहा कि इसके लिए महिला बनना पड़ता है, तब यह तय हुआ कि एक पुरुष को महिला बनाकर फगड़ा करवाते हैं, जो घुड़ला उठाएगा. इसके बाद भीतरी शहर में फगड़ा घुड़ला कमेटी का गठन किया गया. पहले साल छोटा आयोजन हुआ. इसके बाद पुरुषों ने जोर-शोर से इसे मनाने के लिए इसमें झांकियां जोड़नी शुरू कर दी और अंत में सोने के गहनों से सजा-धजा युवक जो महिला बना होता है, वह चलता है.
इसलिए निकाला जाता है घुड़ला : 1578 में अजमेर की शाही सेना ने जोधपुर रियासत के पीपाड़ के पास गणगौर पूजा कर रहीं कुछ महिलाओं का अपहरण कर लिया था. यह काम सेनापति घुड़ले खां ने किया था. इसका पता लगने पर राव जोधा के पुत्र राव सातल ने वहां जाकर मोर्चा संभाला. घुड़ले खां का सिर काट दिया.
इससे पहले उसके सिर पर कई तीर मारे गए थे. उसका सिर महिलाओं को दे दिया. महिलाएं इसे अपनी विजय के रूप में लेकर घूमी थीं. संदेश दिया था कि महिलाओं के साथ बुरा करने का अंजाम बुरा होता है. इसके बाद से धींगा गवर से पहले महिलाएं कई छेद वाले मिट्टी के मटके में दीपक लगाकर घूमती हैं. छेद वाला मटका घुड़ले खां का प्रतीक बन गया.