गया: बिहार के गया की एक ऐसी शिक्षिका जिसने 50 हजार की प्राइवेट नौकरी छोड़ी और 8 हजार की सैलरी पर सरकारी शिक्षका बन गई. उन्होंने समाज के बच्चों को अपनी शैक्षिक योग्यता से लाभान्वित करने के लिए इतना बड़ा कदम उठाया, यही नहीं अब तो वो अपनी रचनात्मकता से जिले और राज्य का नाम भी रोशन कर रही हैं. उनके एक आविष्कार ने राष्ट्रीय स्तर पर बिहार के शिक्षकों की अलग पहचान दी है, असल में हम जिस शिक्षिका की बात कर रहे हैं वो सुष्मिता सान्याल हैं.
निजी नौकरी को छोड़कर बनी शिक्षिका: सुष्मिता सान्याल का जन्म और पालन-पोषण बिहार के गया में हुआ. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एक कॉन्वेंट स्कूल से प्राप्त की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री हासिल की. सुष्मिता के पास एक मजबूत शैक्षिक पृष्ठभूमि है, लेकिन उनके जीवन ने एक अलग दिशा में मोड़ लिया जब उन्होंने अपनी निजी नौकरी को छोड़कर सरकारी शिक्षक बनने का निर्णय लिया. सुष्मिता के स्कूल में जब बच्चों के लिए पंखा नहीं था तो उन्होंने बच्चों के लिए मटका कूलर बना दिया.
सुष्मिता के पास विजुअल मर्चेंडाइजिंग का अनुभव: सुष्मिता बताती हैं कि निजी नौकरी और दिल्ली में रहने के अनुभव ने उन्हें शिक्षा में नई सोच और दृष्टिकोण प्रदान किया. उनके पास विजुअल मर्चेंडाइजिंग का अनुभव था, जो उत्पादों को आकर्षक तरीके से प्रदर्शित करने की कला है. उन्होंने इसे शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों को नई चीजें सिखाने में इस्तेमाल किया. इस अनुभव के कारण उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल की और राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त किया.
बच्चों के लिए किया आविष्कार: सुष्मिता सान्याल का सबसे उल्लेखनीय योगदान उनका एक अविष्कार मिट्टी का 'मटका कुलर' है. यह कुलर गर्मी से बचने के लिए वेस्टेज सामानों और मिट्टी के घड़े का उपयोग करके तैयार किया गया है. उनके इस आविष्कार को भारत सरकार और विभिन्न संस्थाओं ने सराहा है. यह आविष्कार न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि यह उनकी रचनात्मकता और विज्ञान के प्रति उनके प्यार को भी दिखाता है.
शिक्षिका बनने की दिलचस्प कहानी: सुष्मिता की शिक्षक बनने की यात्रा काफी दिलचस्प है. शादी के बाद, जब वह मैटरनिटी लीव पर गयीं, तो परिवार के कहने पर वह गया लौट आईं. शुरू में उनका इरादा स्थाई रूप से यहां रहने का नहीं था, लेकिन बच्चे की देखभाल में उनका इरादा पूरी तरह से बदल गया. इसके बाद उन्होंने मगध विश्वविद्यालय से बीएड किया और 2013 में नियोजित शिक्षक के लिए वैकेंसी का फॉर्म भरा, जिसमें उनका चयन हुआ.

शिक्षक बनने का शौक: सुष्मिता सान्याल बताती हैं कि जब उन्होंने 50 हजार की नौकरी छोड़कर 8 हजार की सैलरी वाली सरकारी नौकरी शुरू की, तो उन्हें नहीं लगता था कि यह स्थाई रूप से उनका पेशा बनेगा. उन्होंने यह सोचा था कि कुछ सालों तक नौकरी करने के बाद वह किसी और काम में जुट जाएंगी. लेकिन बच्चों को पढ़ाने का शौक उन्हें इतना भाया कि वह इसे अपनी ड्रीम जॉब मानने लगीं. उनकी मां भी शिक्षिका थीं और इसलिए उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में काफी रुचि थी.
विज्ञान के क्षेत्र में मिला कई पुरस्कार: सुष्मिता सान्याल विज्ञान की शिक्षिका हैं और उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स बनाए हैं. उनके इन प्रोजेक्ट्स में उनके आविष्कार, जैसे कि मिट्टी का मटका कुलर, राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आया है. उनकी मेहनत और रचनात्मकता के कारण उन्हें राज्य स्तर पर श्रेष्ठ शिक्षिका का अवार्ड मिला और उन्होंने राष्ट्रीय विज्ञान प्रदर्शनी में तीसरा स्थान प्राप्त किया.
मटका कुलर है खास: मिट्टी के घड़े और पेंट की बाल्टी से तैयार किए गए मटका कुलर के संबंध में बात करते हुए सुष्मिता कहती हैं कि वो क्रिएटिविटी वाली व्यक्तिव हैं. वो विज्ञान की छात्रा रही हैं जिसकी वजह से उन्हें छात्र जीवन से ही तरह-तरह की चीजें बनाने का शौक था. 2013 में उनकी पहली सरकारी नौकरी मारवाड़ी उच्च विद्यालय में हुई थी. वहां स्कूल का भवन जर्जर अवस्था में था. बिजली का कनेक्शन सही नहीं था, बच्चों के लिए पंखे भी नहीं थे. वह गर्मी में परेशान होकर पढ़ाई करते थे. यह देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगा और उन्हेंने मटका कूलर बनाकर तैयार कर दिया.
"स्कूल में बच्चों के लिए पंखे भी नहीं थे. वह गर्मी में परेशान होकर पढ़ाई करते थे. यह देखकर मैंने तभी सोचा कि कुछ करना है, पहले तो पंखा लगाने के लिए सोचा पर इसी दौरान घर में पड़े खराब कुलर का पंप और मोटर पड़ा हुआ दिखा. जिसे देख कर मुझे कुलर बनाने का आइडिया आया. मैंने घर के वेस्ट सामानों का प्रयोग कर 15 दिनों की मेहनत से मिट्टी का कुलर बना कर तैयार कर दिया है." -सुष्मिता सान्याल, शिक्षिका

आवश्यकता ही आविष्कार की जननी: शिक्षिका सुष्मिता का मानना है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है. टीचर बनने के शुरुआती दौर में समस्याएं भी हुईं लेकिन उस से घबरा कर पीछे नहीं हटी बल्कि उस समस्या का मुकाबला किया. जब उन्होंने मिट्टी के मटका से कुलर बनाया था उस वक्त परेशानी हुई, कई बार बना और बिगड़ भी गया, घर के लोग भी कहते थे कि यह सक्सेस नहीं होगा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.
पहले था वर्किंग मॉडल: सुष्मिता ने कहा के शुरू में हमने इस को वर्किंग मॉडल के रूप में ही विकसित किया था लेकिन बाद में हमने सोचा कि इसका फीड बैक लोगों से लें. तभी उन्होंने ठेले वाले, सब्जी बेचने वाले पुरुष-महिलाओं को मिट्टी के घड़े का कूलर बनाकर दिया ताकि कि वो इस को उपयोग कर गर्मी से राहत पाएं और इस पर फीड बैक भी दें. उन्हों ने बताया कि वो 40 पीस ऐसे मिट्टी के मटके और प्लास्टिक की बाल्टी के कुलर को बनाकर वितरित किया. लोगों ने इस का उपयोग किया और खूब प्रशंसा भी की. यह उनका सफल प्रोडक्ट रहा.
क्या था प्रोजेक्ट का उद्देश्य: सुष्मिता सान्याल ने अपनी रचनात्मकता से छात्रों के लिए कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट तैयार किए हैं. उनमें से एक प्रमुख प्रोजेक्ट है – लड़कियों की सुरक्षा के लिए एक टार्च, जो कलम की तरह दिखती है और उसकी रोशनी से करंट का एहसास होता है. इसके अलावा, उन्होंने गर्मी से बचने के लिए देसी जुगाड़ से एक कुलर तैयार किया, जो वेस्ट मटेरियल से बनाया जा सकता है और इसमें खर्चा बहुत कम आता है.
क्या है इस मटका कूलर की कीमत: सुष्मिता का यह कुलर बनाने में बहुत कम खर्च आता है. अगर घर में वेस्ट मटेरियल मौजूद हो तो इसे आसानी से तैयार किया जा सकता है. यह कुलर बनाने में सिर्फ 200 से 300 रुपये का खर्च आता है. अगर अच्छी क्वालिटी का बनाना हो तो 400 रुपये से ज्यादा की कीमत नहीं होती है. खास बात यह है कि इस कुलर को बनाने के लिए पेंट की प्लास्टिक बाल्टी की जरूरत नहीं है, कोई भी साधारण बाल्टी जिसे ढक्कन से ढका जा सके, उसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

नहीं है ये कमर्शियल प्रोजेक्ट: सुष्मिता सान्याल ने यह साफ किया कि उनका यह प्रोजेक्ट एक कमर्शियल प्रोजेक्ट नहीं है. इसलिए उन्होंने इसे अपने नाम से पेटेंट नहीं कराया है. उनका उद्देश्य केवल एक विचार को धरातल पर लाना था. वह चाहती हैं कि छात्रों और अन्य लोग इस विचार में अपना योगदान डालें और इसे और बेहतर बनाएं. उन्होंने इस प्रोजेक्ट को कई छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए इस्तेमाल किया है, खासकर उन बच्चों को जिन्होंने झुग्गी-झोपड़ियों में रहकर अपनी शिक्षा पूरी की है, लेकिन उनमें अपार टैलेंट है.
मिट्टी के घड़े पर शोध: सुष्मिता ने अपने कुलर के डिजाइन को बनाने के लिए खासकर मिट्टी के घड़े पर शोध किया है. यह कुलर विशेष रूप से मध्यवर्गीय परिवारों के लिए लाभकारी साबित हो रहा है, क्योंकि बाजार में मिलने वाले कुलरों की कीमत 5000 रुपये से कम नहीं होती. इसके अलावा, बिजली का खर्च भी बहुत अधिक होता है, जो हर किसी के लिए किफायती नहीं होता. सुष्मिता ने बताया कि कचरे से भी अच्छा सामान तैयार किया जा सकता है, यदि हम नए आइडिया के साथ सोचें तो संभव है. उनका मानना है कि अगर आविष्कार सही दिशा में किया जाए, तो वह प्रसिद्धि दिला सकता है.
कैसे करता है ये कूलर काम: सुष्मिता के आविष्कारित कूलर में एक प्लास्टिक बाल्टी का उपयोग किया जाता है. इस बाल्टी के अंदर एक मिट्टी का घड़ा रखा जाता है और उसमें पानी भरा जाता है. घड़े में एक मोटर और पाइप होता है, जो पानी को बाल्टी के ऊपर के ढक्कन से जोड़ता है. ढक्कन के अंदर एक प्लास्टिक पंखा लगाया जाता है. जब पंखा चलता है, तो पानी का ठंडा प्रभाव हवा को ठंडा बना देता है और इससे बाहर के छिद्र से ठंडी हवा निकलती है. यह कुलर 1.5 से 2.5 मीटर तक की दूरी पर ठंडी हवा पहुंचाता है और इसकी चलने की अवधि 3 से 4 घंटे होती है. हालांकि, पानी को हर दो घंटे में डालना पड़ता है. इस कुलर का उपयोग दो लोगों के लिए आरामदायक होता है.
स्कूल में सुष्मिता सान्याल का योगदान: स्कूल के सीनियर शिक्षक शैलेंद्र कुमार ने कहा कि सुष्मिता जैसी शिक्षिकाएं स्कूल और जिले का नाम रोशन करती हैं. वह बताते हैं कि पहले प्रधान अध्यापक ने इन्हें सहयोग दिया था, लेकिन अब फंड की कमी के कारण और कुछ बड़ा करने के लिए सोचना पड़ता है. सुष्मिता ने सरकारी प्रदर्शनी में भी भाग लिया है और दिल्ली के आइआइटी में उनके कुलर की प्रदर्शनी हो चुकी है. इसके साथ ही, उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं.

"शिक्षा विभाग को ऐसे शिक्षकों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि बिहार में कई ऐसे शिक्षक हैं. जो नए आइडिया और आविष्कारों के साथ देश और दुनिया में नाम रोशन कर सकते हैं."-शैलेंद्र कुमार, वरीय शिक्षक
2017 में मिला था पुरस्कार: सुष्मिता के अविष्कार को नवंबर 2017 में भोपाल में आयोजित जवाहरलाल नेहरू नेशनल साइंस एवं मैथमेटिक्स सेमिनार में राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत किया गया था. यहां सुष्मिता के मटका कुलर को सबसे अच्छे तीन आविष्कारों में भी जगह मिली थी.
नौकरी की शुरुआत और चुनौतियां: सुष्मिता सान्याल 2013 में नियोजित शिक्षिका के रूप में बहाल हुई थीं, हालांकि इससे पहले वह टीआरई 2 बीपीएससी परीक्षा में भी सफल हो चुकी थीं. लेकिन उनकी पोस्टिंग नवादा जिले में होने के कारण, वह वहां जाकर जॉइन नहीं कर सकीं. इसके बाद उन्होंने टीआरई 3 का फॉर्म भी भरा, लेकिन परीक्षा देने जाते वक्त उनका एक्सीडेंट हो गया, जिससे वह इस परीक्षा में भाग नहीं ले सकीं. फिर भी सुष्मिता ने हार नहीं मानी और नियोजित शिक्षक बनने के बाद सक्षम परीक्षा भी पास की.
साइंस एग्जीबिशन में भागीदारी: अपने 12 साल के शिक्षक करियर में, सुष्मिता ने 10 साइंस एग्जीबिशन में भाग लिया है, जो राज्य और देश के कई शहरों में आयोजित किए गए थे. इन प्रदर्शनी में उनका योगदान शानदार रहा है. उन्होंने चार बार राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया है और जिला स्तर पर भी कई बार पुरस्कृत हो चुकी हैं. यह उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण का परिणाम है.
कड़ी मेहनत और लगन: सुष्मिता सान्याल का मानना है कि वह अधिक महत्वाकांक्षी नहीं हैं, लेकिन जो भी काम करती हैं, वह पूरी लगन और ईमानदारी से करती हैं. उनके द्वारा बनाए गए प्रोजेक्ट्स में पुराने फटे कपड़ों से गुलदस्ते, सेब के छिलके और उस पर फोम के गुलदस्ते जैसे सृजनात्मक आइडियाज शामिल हैं. उन्होंने हमेशा अपनी रचनात्मकता से प्रदर्शनी में हिस्सा लिया है और विभिन्न प्रकार के नए विचार प्रस्तुत किए हैं.
संसाधनों की कमी और नकारात्मक प्रतिक्रियाएं: सुष्मिता ने यह भी बताया कि उनके पास कभी भी उतने संसाधन नहीं रहे हैं, जितने इन कार्यों के लिए होने चाहिए थे. इसके बावजूद, उन्होंने अपने काम को हमेशा पूरे दिल से किया. हालांकि वह यह भी महसूस करती हैं कि उनके प्रयासों को कभी-कभी नकारात्मक प्रतिक्रियाओं का सामना भी करना पड़ा है, जिससे मायूसी होती है लेकिन सुष्मिता का कहना है कि वह फिर भी अपनी पूरी ईमानदारी के साथ अपने काम को अंजाम देती हैं और कभी हार नहीं मानतीं.
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