गया: कभी स्लम बस्तियों की तंग गलियों में घूम-घूम कर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने वाला एक साधारण युवक आज पूरे देश के सामने एक मिसाल बन गए हैं. बिहार के गया जी के एक छोटे से गांव से निकलकर समाज सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले शैलेंद्र कुमार ने यह साबित कर दिया कि यदि इरादे नेक हों और दिल में जुनून हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं.
राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित हैं शैलेंद्र कुमार: शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण, नशा मुक्ति, और सामाजिक जागरूकता जैसे क्षेत्रों में उनके योगदान के लिए शैलेंद्र कुमार महज 22 साल की उम्र में राष्ट्रपति से सम्मानित हो चुके हैं. उन्हें 24 सितंबर 2022 को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सम्मानित किया था. शैलेंद्र की इस सफलता की एक बड़ी कहानी है.
गया के खुखाड़ी गांव में रहते हैं शैलेंद्र: शैलेंद्र कुमार गया के अतरी प्रखंड के सुदूरवर्ती गांव खुखड़ी के रहने वाले हैंं. गांव के लोग कृषि पर निर्भर हैं और पत्थर की मूर्तियां भी बनाते हैं. शैलेंद्र ने मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद करीब 16-17 साल की उम्र में जगजीवन कॉलेज में एडमिशन लिया था.
कॉलेज में एनएसएस के बारे में मिली जानकारी: शैलेंद्र जब वह यहां पढ़ने को आए तो देखा कि छात्र ही कॉलेज कैंपस में झाड़ू लगा रहे हैं. फिर देखा कि 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के दिन हो रहे कार्यक्रम को लीड भी कर रहे हैं. शैलेंद्र को समझ में नहीं आया तो उन्होंने अपने एक शिक्षक से इसके बारे में जाना तो पता चला कि ये युवा राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) जो कि भारत सरकार के खेल एवं युवा मंत्रालय द्वारा संचालित है उससे जुड़े हुए हैं.

शिक्षा, स्वास्थ्य, पौधरोपण में दिया योगदान: शैलेंद्र कुमार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, वृक्षारोपण समेत अन्य क्षेत्रों में कई ऐसे काम करने शुरू किए जो कि सुर्खियों में आ गए. शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने स्लम बस्तियों में जाकर न सिर्फ बच्चों को प्रेरित किया, बल्कि उन्हें स्कूलों तक पहुंचे. जहां भी शिक्षा का प्रतिशत कम था उसे बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश की.
एनएसएस का सर्वोच्च पुरस्कार: वे पर्यावरण को बचाने के लिए पौधरोपण, प्रौढ़ शिक्षा, एड्स, रक्तदान, नशा मुक्ति, शिक्षा से बच्चों को जोड़ना जैसे सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहे. उनके द्वारा शिक्षा के साथ-साथ समाज सेवा का जो प्रारूप दिखाया गया. उसके आधार पर शैलेंद्र का चयन राष्ट्रपति अवार्ड के लिए हुआ और फिर 24 सितंबर 2022 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों एनएसएस का सर्वोच्च पुरस्कार मिला.

30 बच्चों में शैलेंद्र का हुआ चयन: 40 लाख एनएसएस में शैलेंद्र ने यह बड़ी उपलब्धि हासिल की. 30 बच्चों को पूरे भारत से इस अवार्ड के लिए चयनित किया गया था जिसमें बिहार के गया जी के रहने वाले शैलेंद्र भी शामिल थे.
2016 से एनएसएस में दिया योगदान: शैलेंद्र कुमार बताते हैं कि वर्ष 2016 में एनएसएस में योगदान दे रहे थे. हमारी टीम के द्वारा वर्ष 2016 से 2022-23 तक हजारों पेड़ लगाए गए. सीता कुंड, जगजीवन कॉलेज समेत अन्य कई स्थान थे, जहां पौधरोपण किया. अब गर्व होता है कि यह पेड़ बड़े हो गए हैं.

स्लम एरिया के बच्चों में जलाई शिक्षा की अलख: स्लम एरिया के बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में प्रेरित किया. वहीं कोरोना में सैनिटाइजर बांटे. जब घर में सभी लोग रह रहे थे तब सड़कों पर वह निकलकर काम कर रहे थे. हजारों पेड़ लगाए. वहीं, पितृपक्ष मेले में भी योगदान दिया. प्रौढ़ शिक्षा पर भी काम किया. इसके अलावा एड्स रक्तदान पर भी काम कर चुके हैं.
अब गांव के 100% बच्चे जाते हैं स्कूल: शैलेंद्र कुमार बताते हैं कि अब हमारे गांव में 100 प्रतिशत बच्चे स्कूल जाते हैं. पहले खिचड़ी खाने के लिए ही दो-तीन बच्चे स्कूल को जाते थे. तब खुखड़ी गांव में शिक्षा की स्थिति एकदम से बदतर थी, लेकिन उन्होंने जब एनएसएस ज्वाइन किया तो फिर यह बदलाव किया और अपने गांव को 100% शिक्षा की ओर प्रेरित किया. अब गांव के कई बच्चे सरकारी जॉब में है.

15 राज्यों में कर चुके हैं कैंप: शैलेंद्र कुमार अब तक 15 राज्यों में कैंप कर चुके हैं. इन 15 राज्यों में स्लम एरिया, स्वास्थ्य, संबंधित राज्य की संस्कृति व रहन-सहन और वहां की समस्याओं को दूर करने का प्रयास सामाजिक स्तर पर किया गया. अभी हरियाणा के नूंह जिले में जहां की शिक्षा दर एकदम कम और वहां आज भी लोग टीकाकरण से कोसों दूर भागते हैं, लेकिन वहां एक बड़ा बदलाव किया. जहां पहले 30 प्रतिशत टीकाकरण था वहां 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी की.

"एनएसएस शिक्षा के साथ समाज सेवा के लिए काम करती है. ताकि बच्चे अपने अंदर के हुनर को निखार सके. इसके बाद मैं भी टीम लीडर बना. एनएसएस का टीम लीडर बना और सामाजिक कार्य शुरू किया. हम लोग एनएसएस के लिए समर्पित होते हैं. मेरे कार्यों को देखकर सीनियर्स को लगा कि राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चयन हो सकता है. 2016 से एनएसएस में योगदान दिया. 2022 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथे सम्मानित हुआ."- शैलेंद्र कुमार, राष्ट्रपति से सम्मानित एनएसएस

यहां भी कर चुके हैं सामाजिक कार्य: शैलेंद्र बिहार के अलावा अरुणाचल प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, हैदराबाद, तेलंगाना, गुजरात में समाज सेवा के कई कार्य कर चुके हैं. बताते हैं, कि उनकी सामाजिक सेवा में उत्तम और बेहतर योगदान की कोशिश होती है और यही वजह है कि हम जहां काम करते हैं.

शैलेंद्र के पिता चलते हैं दुकान: शैलेंद्र बताते हैं, कि वह मिडिल क्लास फैमिली से हैं. मेरे पिता छोटे दुकानदार हैं. कहते हैं, संघर्ष ही जीवन है. आईपीएस-आईएएस का सपना जरूर हर किसी के लिए होता है पर कई तरह की स्थितियां होती है. मेरा लक्ष्य राष्ट्र समर्पित एक बड़ा समाज सेवक बनकर दिखाना है. देश का बड़ा समाज सेवक बनना चाहता हूं. वहीं, युवाओं से अपील करता हूं कि युवा राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें.