देहरादून (धीरज सजवाण): कुमाऊं की गौला में खनन का अजब गजब गणित निकलकर सामने आया है. यहां के वन निगम के क्षेत्रीय प्रबंधक महेश चंद आर्य ने इसका गणित बताया है, जिसके बाद इस पर कई तरह के सवाल खड़े होने लगे हैं. वन निगम के मुख्यालय क्षेत्रीय प्रबंधक महेश चंद आर्य ने बताया है कि गौला नदी में हाथों से माइनिंग होती है. इसके लिए मजदूर लगाये जाते हैं. यहां अधिकतम डेढ़ मीटर से ज्यादा गड्ढा करने की अनुमति नहीं है. इसके बाद भी यहां हर दिन खनन से हजारों ट्रक भरे जा रहे हैं. पर्यावरणविदों के हिसाब से इस गणित का हिसाब कुछ गड़बड़ सा नजर आता है.
गौला नदी में हर दिन उतरते हैं हजारों ट्रक: दरअसल, उत्तराखंड में खनन की चर्चाओं के बीच गौला नदी में हो रहे खनन की सेटेलाइट तस्वीरें सामने आई हैं. हालांकि ये तस्वीरें साल 2021-22 की बताई जा रही हैं. इन तस्वीरों में जिसमें हजारों की संख्या में ट्रक दिखाई दे रहे हैं. बता दें कि, गौला नदी में उत्तराखंड वन निगम खनन को रेगुलेट करता है. इसके बाद हमने गौला नदी में खनन करवा रहे उत्तराखंड वन विकास निगम से बात की. वन विकास निगम ने भी इस बात की पुष्टि की है कि गौला में रोजाना 7 हजार के अधिक ट्रक खनन के लिए उतरते हैं. यही नहीं, अधिकारी ने बताया पिछले वित्तीय वर्ष में गौला नदी से 106 करोड़ का राजस्व मिला है.
क्षेत्रीय प्रबंधक महेश चंद्र आर्य ने बताया कि आरक्षित वन क्षेत्र में वन निगम खनन की कार्यवाही करता है. वन निगम वर्तमान में 10 वन आरक्षित क्षेत्र में पड़ने वाली नदियों पर खनन की कार्यवाही कर रहा है, जिसमें से कुमाऊं में पड़ने वाली गौला नदी भी एक है. यह वन निगम के पास मौजूद खनन की सबसे बड़ी नदी है.
उन्होंने बताया कि, गौला 1497 हेक्टेयर क्षेत्रफल की 29 किलोमीटर नदी है. किसी भी वन आरक्षी क्षेत्र में खनन की कार्यवाही के लिए उन्हें कुछ क्लीयरेंस लेनी पड़ती है. ये राज्य और केंद्र से ली जाती है. क्लीयरेंस के बाद ही खनन की कार्रवाई को आगे बढ़ाया जाता है. इन क्लियरेंस में फॉरेस्ट, एनवायरनमेंट जैसी परमिशन लेनी पड़ती है.
गौला नदी से आया 106 करोड़ का राजस्व: अधिकारी महेश चंद्र आर्य ने बताया कि गौला नदी में 7430 वाहन वर्तमान में पंजीकृत हैं. ये प्रतिदिन खनन के लिए वन निगम द्वारा अधिकृत किए गए सात गेट्स से होकर जाते हैं. इस कार्रवाई के तहत प्रतिदिन 35 से 40 हजार क्यूबिक मीटर उप खनिज (खनन) निकाला जा रहा है. इस साल 31 मई 2025 तक गौला नदी में वन निगम को 39 लाख घन मीटर उप खनिज (खनन) निकालने की परमिशन मिली है. उन्होंने बताया कि गौला नदी में होने वाले खनन से प्राप्त होने वाला राजस्व पिछले वित्तीय वर्ष में 31 मार्च 2025 तक रॉयल्टी के साथ-साथ अन्य भुगतान मिलाकर कुल 106 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ है.
हाथों से होती है माइनिंग, नियम भी तय: वन निगम के मुख्यालय क्षेत्रीय प्रबंधक महेश चंद आर्य ने बताया कि कुमाऊं की गौला नदी में पंजीकृत खनन वाहन हर रोज नदी में खनन के लिए अलग-अलग 13 गेट्स से होकर गुजरते हैं. इसके अलावा, बुग्गी गेट भी अलग से बनाए गए हैं. एक-एक वाहन 5 से 7 क्यूबिक मीटर खनन नदी से लेकर आता है. इस तरह से एक गाड़ी से तकरीबन ₹800 रॉयल्टी और सारे बिल टैक्स लगाकर 2200 से 2300 रुपए का राजस्व वन निगम को प्राप्त होता है.
खनन के नियमों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि-
माइनिंग प्लान के अनुसार खनन के मेथड के अनुसार कार्रवाई की जाती है. गौला नदी में किसी भी तरह की मशीन का प्रयोग नहीं किया जाता है. यहां केवल हाथ से ही उप खनिज निकाला जाता है. अधिकतम डेढ़ मीटर से ज्यादा गड्ढा करने की अनुमति यहां नहीं है. इसके साथ ही खनन का नियम है कि सूर्यास्त के बाद इसका काम नहीं किया जाता है.
- महेश चंद्र आर्य, क्षेत्रीय प्रबंधक, वन विकास निगम -
वहीं, अधिकारी के इन दावों को लेकर पर्यावरणविद आशीष गर्ग ने कुछ सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि नदी किनारे इस मात्रा में खनन होना सही नहीं है. उन्होंने मैनुअली काम होने के दावे पर भी सवाल किए हैं. साथ ही उन्होंने स्थानीय मजदूरों की आय का मुद्दा भी उठाया.
गौला नदी में नि:संदेह बड़ी मात्रा में खनन हो रहा है. अत्यधिक खनन रिवर बेल्ट के लिए अच्छा नहीं है, इससे उसके आसपास की खेती और मिट्टी भी प्रभावित होती है. वहीं ज्यादा मशीन लगाने से लोकल इम्प्लाइमेंट है जो लेबर्स को मिलना चाहिए वो भी उनको नहीं मिलता. जैसा अधिकारी बता रहें कि वहां पर मशीनें नहीं लगी है और केवल मैनुअल यानी हाथ से काम हो रहा है लेकिन जिस तरह सरकार का रेवेन्यू बढ़ रहा है, ये केवल मशीन से ही काम हो सकता है, ये मैनुअल काम संभव नहीं है.
- आशीष गर्ग, पर्यावरणविद -
पर्यावरणविद गर्ग आगे कहते हैं कि, सरकार जुर्माना भी वसूल रही है यानी कहीं ना कहीं अवैध खनन भी चल रहा है. नदियों के संरक्षण और उनको बचाने के लिए हमको एक सही तरीके से उनका खनन करना चाहिए. उत्तराखंड की जो माइनिंग और मिनरल पॉलिसी है उसको देखते हुए काम करना चाहिए. सैटेलाइट के जरिए इसको ट्रेस किया जाना चाहिए. उसका रिकॉर्ड रखना चाहिए ताकि रिवेन्यू का भी नुकसान न हो और नदियों को भी नुकसान न पहुंचे.
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