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राष्ट्रीय स्तर का फुटबॉलर बना मजदूर! मेडल जीतने के बावजूद मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर - NALANDA FORMER FOOTBALLER

जिस फुटबॉलर ने कभी अपने खेल से बिहार का नाम रोशन किया था, आज वह मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर है. पढ़ें खास रिपोर्ट..

former footballer Kunal Banerjee
बदहाली में पूर्व फुटबॉलर कुणाल बनर्जी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : April 16, 2025 at 4:15 PM IST

Updated : April 16, 2025 at 4:24 PM IST

6 Min Read

नालंदा: बिहार सरकार के 'मेडल लाओ नौकरी पाओ' नीति के तहत भले ही राज्य के खिलाड़ियों को नौकरी देने का दावा किया जा रहा हो लेकिन नालंदा में यह दावा खोखला साबित होता दिख रही है. जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से 45 किमी दूर स्थित एकंगरसराय प्रखंड के केसोपुर गांव निवासी कुणाल बनर्जी ने दो-दो बार ने केवल बिहार फुटबॉल टीम का नेतृत्व किया, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर जीत भी दिलाई लेकिन इसके बावजूद उनको सरकारी स्तर पर कोई सुविधा नहीं मिली. आलम ये है कि आज 65 वर्ष की आयु में मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं.

दो बार राष्ट्रीय स्तर जिताया मैच: कुणाल बनर्जी का आज भी फुटबॉल के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ है. वह कहते हैं कि बचपन में गांव-घर के लोगों को फुटबॉल खेलते देखकर उनके अंदर भी रुचि जगी. साल 1975 में जब वह 7वीं कक्षा के छात्र थे, तब पिता (रामेश्वर प्रसाद) ने उनको बेहतर शिक्षा के लिए गांव से शहर भेज दिया. उसी दौरान जिला फुटबॉल संघ के अध्यक्ष मोहम्मद वसीम अहमद से उनकी मुलाकात हुई. उसके बाद पढ़ाई के साथ ही उनके नेतृत्व में राज्य से लेकर राष्ट्र स्तर तक फुटबॉल खेला. वे बताते हैं कि दो बार नेशनल लेवल पर 1981 में कर्नाटक और 1983 में पश्चिम बंगाल के खिलाफ बिहार टीम का नेतृत्व करते हुए जीत दिलाई थी.

खेती-मजदूरी के भरोसे पूर्व फुटबॉलर का परिवार (ETV Bharat)

क्यों नहीं की नौकरी?: कुणाल बनर्जी बताते हैं कि उनकी खेल प्रतिभा को देखते हुए उनको लगातार मौका मिला. वह पहले जिला और फिर राज्य फुटबॉल टीम के भी कप्तान बने. हालांकि उनके साथ खेलने वाले कई खिलाड़ियों को रेलवे, आर्मी और बैंकिंग की नौकरी मिल गई लेकिन उन्होंने अवसर मिलने के बावजूद प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इसके पीछे की वजह बताते हुए वे कहते हैं कि वह फुटबॉल को ही अपना पैशन और प्रोफेशन बनाना चाहते थे.

former footballer Kunal Banerjee
बेटी और पत्नी के साथ कुणाल बनर्जी (ETV Bharat)

युवाओं को प्रशिक्षण दे रहे हैं कल्याण: फुटबॉल खेल के प्रति अपने समर्पण के कारण युवाओं को प्रशिक्षण देने का फैसला किया. 1990 में उन्होंने फुटबॉल संघ की स्थापना की, जहां आसपास के गांवों के खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देते हैं. अब तक 50 लड़कियों और 300 से अधिक लड़कों को वह प्रशिक्षण दे चुके हैं. उनसे प्रशिक्षण पाकर 3 लड़का वर्ग से और 12 लड़की वर्ग से खिलाड़ियों का चयन राष्ट्रीय फुटबॉल टीम में हुआ है.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

खिलाड़ियों को नहीं मिली सरकारी मदद: हालांकि किसी भी प्लेयर को सरकारी नौकरी नहीं मिली. कल्याण बताते हैं कि सभी महिला खिलाड़ी शादीशुदा हैं और परिवार के साथ अपने घरों में रह रही हैं. वहीं जिन 3 लड़के अभी विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षा के लिए तैयारी कर रहे हैं. सभी को उन्होंने ही प्रशिक्षण दिया था.

संघर्ष में गुजरा जीवन लेकिन नहीं छोड़ा फुटबॉल: कुणाल बनर्जी पर उस समय दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, जब उनके 4 साल के इकलौते बेटे (त्रिपोलिया बनर्जी) की अचानक मौत हो गई. बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी. फुटबॉल खेलने और प्रशिक्षण देने का ऐसा जुनून है कि सन 2002-03 में पहले 6 कट्ठा 6 धुर दमीन बेची, फिर प्रशिक्षु फुटबॉलर लड़के-लड़कियों को जर्सी और किट मुहैया कराया. उसके बाद नौबत यहां तक आ गई कि 2008-09 में पत्नी के आभूषणों को भी बेचना पड़ा था. हालांकि 6 वर्ष पहले उन्होंने लड़कियों के फुटबॉल क्लब को खत्म कर दिया. इसके पीछे की वजह लोगों की वह गंदी सोच थी, जिसमें वह लड़कियों को ताना मारते थे.

former footballer Kunal Banerjee
परिवार के साथ पूर्व फुटबॉलर कुणाल बनर्जी (ETV Bharat)

दोनों बेटियां भी जीत चुकी हैं पदक: कल्याण बनर्जी की दो बेटियां हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल खेल चुकी हैं. वे बताते हैं कि मेरी बेटियां वैशाली गोयल और कल्याणी गोयल 2016 और 2017 में नेशनल गेम्स में मेडल जीती थी. साथ में पढ़ाई भी कर रही है लेकिन पैसों के अभाव में पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई. नौकरी नहीं मिलने के कारण अब वह भी घर पर ही बैठी हैं.

"अन्य बच्चों को खेलते देखकर मुझे भी फुटबॉल खेल में रुचि बढ़ी और राष्ट्रीय स्तर तक फुटबॉल खेला लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. 5 से 6 जगह नेशनल फुटबॉल खेली हूं. जिसमें ब्रॉन्ज, सिल्वर और एक गोल्ड मेडल भी जीती हूं, फिर भी खाली हाथ बैठी हूं."- वैशाली गोयल, पूर्व फुटबॉलर और कुणाल बनर्जी की बेटी

former footballer Kunal Banerjee
कुणाल बनर्जी की बेटी वैशाली (ETV Bharat)

मुफलिसी में गुजर रही जिंदगी: कल्याण बनर्जी कहते हैं कि 1995 में स्टेट रेफरी की परीक्षा में उनका चयन जरूर हुआ लेकिन सरकार की ओर से एक रुपये भी नहीं मिलता. वे कहते हैं कि उनको अपनी चिंता नहीं है, बल्कि अपनी बेटियों और अन्य खिलाड़ियों को देखकर दुख होता है. न तो इनको सरकारी मदद मिलती है और न ही संसाधन मिलते हैं. जिस वजह से प्रतिभा होने के बावजूद बच्चे आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं. वे कहते हैं कि 1995 में कुणाल बनर्जी का स्टेट रेफरी की परीक्षा में चयन हुआ और आज भी जारी है. कल्याण के मुताबिक सरकारी स्तर पर सिर्फ आश्वासन मिलता है, सहायता नहीं मिलती है.

former footballer Kunal Banerjee
पूर्व फुटबॉलर कुणाल बनर्जी (ETV Bharat)

"खेल के दौरान रेलवे, पटना सचिवालय और हैदराबाद में नौकरी का अवसर प्रदान हुआ लेकिन फुटबॉल खेल से दूर न हो जाएं, जिसके चलते नौकरियां छोड़ दी. जिसका आज पैसों के अभाव के कारण बच्चे को खोने का पछतावा हो रहा है. आज खेती और मजदूरी करके परिवार का गुजर-बसर कर रहा हूं. हालांकि मुझे अपनी नहीं, बच्चों की चिंता हो रही है. सरकार कम से कम युवा खिलाड़ियों को जरूरी संसाधन उपलब्ध करवा दे, ताकि वे आगे बढ़े सके."- कुणाल बनर्जी, फुटबॉल रेफरी सह पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी

former footballer Kunal Banerjee
कुणाल बनर्जी का घर (ETV Bharat)

क्या है 'मेडल लाओ नौकरी पाओ' योजना?: फरवरी 2023 में बिहार सरकार ने खेल को बढ़ावा देने के लिए मेडल लाओ नौकरी पाओ योजना की घोषणा की थी. इसके तहत अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को नौकरी दी जाती है. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को बिहार प्रशासनिक सेवा (एसडीएम), बिहार पुलिस सेवा (डीएसपी) या समकक्ष नौकरी प्रदान की जाती है.

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ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

ये भी पढ़ें: शर्मनाक! बिहार के सिस्टम की 'हवा' निकालती रिपोर्ट, सड़क पर पंक्चर बना रहा ये इंटरनेशनल खिलाड़ी

नालंदा: बिहार सरकार के 'मेडल लाओ नौकरी पाओ' नीति के तहत भले ही राज्य के खिलाड़ियों को नौकरी देने का दावा किया जा रहा हो लेकिन नालंदा में यह दावा खोखला साबित होता दिख रही है. जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से 45 किमी दूर स्थित एकंगरसराय प्रखंड के केसोपुर गांव निवासी कुणाल बनर्जी ने दो-दो बार ने केवल बिहार फुटबॉल टीम का नेतृत्व किया, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर जीत भी दिलाई लेकिन इसके बावजूद उनको सरकारी स्तर पर कोई सुविधा नहीं मिली. आलम ये है कि आज 65 वर्ष की आयु में मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं.

दो बार राष्ट्रीय स्तर जिताया मैच: कुणाल बनर्जी का आज भी फुटबॉल के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ है. वह कहते हैं कि बचपन में गांव-घर के लोगों को फुटबॉल खेलते देखकर उनके अंदर भी रुचि जगी. साल 1975 में जब वह 7वीं कक्षा के छात्र थे, तब पिता (रामेश्वर प्रसाद) ने उनको बेहतर शिक्षा के लिए गांव से शहर भेज दिया. उसी दौरान जिला फुटबॉल संघ के अध्यक्ष मोहम्मद वसीम अहमद से उनकी मुलाकात हुई. उसके बाद पढ़ाई के साथ ही उनके नेतृत्व में राज्य से लेकर राष्ट्र स्तर तक फुटबॉल खेला. वे बताते हैं कि दो बार नेशनल लेवल पर 1981 में कर्नाटक और 1983 में पश्चिम बंगाल के खिलाफ बिहार टीम का नेतृत्व करते हुए जीत दिलाई थी.

खेती-मजदूरी के भरोसे पूर्व फुटबॉलर का परिवार (ETV Bharat)

क्यों नहीं की नौकरी?: कुणाल बनर्जी बताते हैं कि उनकी खेल प्रतिभा को देखते हुए उनको लगातार मौका मिला. वह पहले जिला और फिर राज्य फुटबॉल टीम के भी कप्तान बने. हालांकि उनके साथ खेलने वाले कई खिलाड़ियों को रेलवे, आर्मी और बैंकिंग की नौकरी मिल गई लेकिन उन्होंने अवसर मिलने के बावजूद प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इसके पीछे की वजह बताते हुए वे कहते हैं कि वह फुटबॉल को ही अपना पैशन और प्रोफेशन बनाना चाहते थे.

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बेटी और पत्नी के साथ कुणाल बनर्जी (ETV Bharat)

युवाओं को प्रशिक्षण दे रहे हैं कल्याण: फुटबॉल खेल के प्रति अपने समर्पण के कारण युवाओं को प्रशिक्षण देने का फैसला किया. 1990 में उन्होंने फुटबॉल संघ की स्थापना की, जहां आसपास के गांवों के खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देते हैं. अब तक 50 लड़कियों और 300 से अधिक लड़कों को वह प्रशिक्षण दे चुके हैं. उनसे प्रशिक्षण पाकर 3 लड़का वर्ग से और 12 लड़की वर्ग से खिलाड़ियों का चयन राष्ट्रीय फुटबॉल टीम में हुआ है.

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खिलाड़ियों को नहीं मिली सरकारी मदद: हालांकि किसी भी प्लेयर को सरकारी नौकरी नहीं मिली. कल्याण बताते हैं कि सभी महिला खिलाड़ी शादीशुदा हैं और परिवार के साथ अपने घरों में रह रही हैं. वहीं जिन 3 लड़के अभी विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षा के लिए तैयारी कर रहे हैं. सभी को उन्होंने ही प्रशिक्षण दिया था.

संघर्ष में गुजरा जीवन लेकिन नहीं छोड़ा फुटबॉल: कुणाल बनर्जी पर उस समय दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, जब उनके 4 साल के इकलौते बेटे (त्रिपोलिया बनर्जी) की अचानक मौत हो गई. बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी. फुटबॉल खेलने और प्रशिक्षण देने का ऐसा जुनून है कि सन 2002-03 में पहले 6 कट्ठा 6 धुर दमीन बेची, फिर प्रशिक्षु फुटबॉलर लड़के-लड़कियों को जर्सी और किट मुहैया कराया. उसके बाद नौबत यहां तक आ गई कि 2008-09 में पत्नी के आभूषणों को भी बेचना पड़ा था. हालांकि 6 वर्ष पहले उन्होंने लड़कियों के फुटबॉल क्लब को खत्म कर दिया. इसके पीछे की वजह लोगों की वह गंदी सोच थी, जिसमें वह लड़कियों को ताना मारते थे.

former footballer Kunal Banerjee
परिवार के साथ पूर्व फुटबॉलर कुणाल बनर्जी (ETV Bharat)

दोनों बेटियां भी जीत चुकी हैं पदक: कल्याण बनर्जी की दो बेटियां हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल खेल चुकी हैं. वे बताते हैं कि मेरी बेटियां वैशाली गोयल और कल्याणी गोयल 2016 और 2017 में नेशनल गेम्स में मेडल जीती थी. साथ में पढ़ाई भी कर रही है लेकिन पैसों के अभाव में पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई. नौकरी नहीं मिलने के कारण अब वह भी घर पर ही बैठी हैं.

"अन्य बच्चों को खेलते देखकर मुझे भी फुटबॉल खेल में रुचि बढ़ी और राष्ट्रीय स्तर तक फुटबॉल खेला लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. 5 से 6 जगह नेशनल फुटबॉल खेली हूं. जिसमें ब्रॉन्ज, सिल्वर और एक गोल्ड मेडल भी जीती हूं, फिर भी खाली हाथ बैठी हूं."- वैशाली गोयल, पूर्व फुटबॉलर और कुणाल बनर्जी की बेटी

former footballer Kunal Banerjee
कुणाल बनर्जी की बेटी वैशाली (ETV Bharat)

मुफलिसी में गुजर रही जिंदगी: कल्याण बनर्जी कहते हैं कि 1995 में स्टेट रेफरी की परीक्षा में उनका चयन जरूर हुआ लेकिन सरकार की ओर से एक रुपये भी नहीं मिलता. वे कहते हैं कि उनको अपनी चिंता नहीं है, बल्कि अपनी बेटियों और अन्य खिलाड़ियों को देखकर दुख होता है. न तो इनको सरकारी मदद मिलती है और न ही संसाधन मिलते हैं. जिस वजह से प्रतिभा होने के बावजूद बच्चे आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं. वे कहते हैं कि 1995 में कुणाल बनर्जी का स्टेट रेफरी की परीक्षा में चयन हुआ और आज भी जारी है. कल्याण के मुताबिक सरकारी स्तर पर सिर्फ आश्वासन मिलता है, सहायता नहीं मिलती है.

former footballer Kunal Banerjee
पूर्व फुटबॉलर कुणाल बनर्जी (ETV Bharat)

"खेल के दौरान रेलवे, पटना सचिवालय और हैदराबाद में नौकरी का अवसर प्रदान हुआ लेकिन फुटबॉल खेल से दूर न हो जाएं, जिसके चलते नौकरियां छोड़ दी. जिसका आज पैसों के अभाव के कारण बच्चे को खोने का पछतावा हो रहा है. आज खेती और मजदूरी करके परिवार का गुजर-बसर कर रहा हूं. हालांकि मुझे अपनी नहीं, बच्चों की चिंता हो रही है. सरकार कम से कम युवा खिलाड़ियों को जरूरी संसाधन उपलब्ध करवा दे, ताकि वे आगे बढ़े सके."- कुणाल बनर्जी, फुटबॉल रेफरी सह पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी

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कुणाल बनर्जी का घर (ETV Bharat)

क्या है 'मेडल लाओ नौकरी पाओ' योजना?: फरवरी 2023 में बिहार सरकार ने खेल को बढ़ावा देने के लिए मेडल लाओ नौकरी पाओ योजना की घोषणा की थी. इसके तहत अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को नौकरी दी जाती है. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को बिहार प्रशासनिक सेवा (एसडीएम), बिहार पुलिस सेवा (डीएसपी) या समकक्ष नौकरी प्रदान की जाती है.

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Last Updated : April 16, 2025 at 4:24 PM IST
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