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गिरिडीह के तुकतुको गांव में मन को मोह रहे हैं घने जंगल, ग्रामीणों की सजगता से हरा-भरा हुआ इलाका - FOREST CONSERVATION AWARENESS

वन संरक्षण की दिशा में गिरिडीह के तुकतुको गांव के ग्रामीणों ने मिसाल पेश की है. जिसकी चहुंओर प्रशंसा हो रही है. पढ़ें रिपोर्ट.

Forest Conservation In Giridih
गिरिडीह के तुकतुको गांव में हरे-भरे पेड़. (फोटो-ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : June 9, 2025 at 7:55 PM IST

5 Min Read

गिरिडीह: जिले के बगोदर प्रखंड की अड़वारा पंचायत के तुकतुको गांव में हरियाली ही हरियाली है. चारों तरफ घने जंगल हैं. जंगल में विशालकाय पेड़ हैं. यहां जंगली जानवर का भी बसेरा है. कई तरह की पक्षियों का आश्रयस्थली है. जंगल से निकलकर गांव-घरों तक पशु-पक्षियों का कौतूहल देखने को मिलता है. आपको बता दें कि आज से तीन दशक पूर्व ऐसी स्थिति नहीं थी. यहां सिर्फ झाड़ियां थीं. लेकिन वन विभाग के साथ मिलकर ग्रामीणों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए खूब मेहनत की. जिसका परिणाम है कि आज यहां 2200 एकड़ भूमि पर पेड़ लगे हुए हैं.

वन प्रबंधन समिति का प्रयास

यहां 35 सालों से वन प्रबंधन समिति जंगल की रखवाली के लिए सजग है और इसी का परिणाम है कि जहां पहले झाड़-झंखाड़ रहता था, आज वहां घने जंगल हैं. बगैर कोई लोभ-लालच के वन प्रबंधन समिति के सदस्यों के द्वारा यहां जंगल की रखवाली के लिए पहरेदारी की जाती है. जंगल की रखवाली के लिए पहरेदारी करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक है. इतना ही नहीं जंगल की पहरेदारी से होने वाले इनकम से गरीबों का कल्याण तक किया जाता है.

जानकारी देते वन प्रबंधन समिति के अध्यक्ष और सदस्य. (वीडियो-ईटीवी भारत)

पहरेदारी के दौरान जंगल की कटाई करते पकड़े जाने वालों, पहरेदारी के लिए नहीं जाने वाले सदस्यों और साप्ताहिक बैठक में शामिल नहीं होने वाले सदस्यों से जुर्माना वसूला जाता है और फिर जुर्माना की राशि गरीबों के कल्याण में लगाई जाती है. जुर्माना की राशि से गरीब परिवार को बेटियों की शादी में सहयोग में किया जाता है.

1993 में हुआ था वन बचाव समिति का गठन

इस संबंध में वन प्रबंधन समिति के अध्यक्ष भुवनेश्वर महतो बताते हैं कि 1993 में वन बचाव समिति का गठन हुआ था, तब से समिति सक्रिय है. उन्होंने बताया कि जंगल की रखवाली के लिए वन बचाव समिति के सदस्यों के द्वारा हर रोज पहरा दिया जाता है. इसमें महिलाएं भी शामिल रहती हैं. भुवनेश्वर महतो ने कहा कि समिति की बैठक प्रत्येक रविवार को होती है. जिसमें एक सप्ताह के जंगल की पहरेदारी करने वालों के नामों की घोषणा की जाती है. पहरेदारी करने जो सदस्य नहीं जाते हैं उनपर जुर्माना लगाया जाता है. साथ ही साप्ताहिक बैठक में अनुपस्थित रहने वाले सदस्यों से भी फाइन वसूला जाता है. इसके अलावा जंगल में पेड़ों की कटाई करते पकड़े जाने पर भी जुर्माना का प्रावधान है. उन्होंने बताया कि जुर्माने की राशि से गरीब परिवारों की बेटियों की शादी में सहयोग किया जाता है. साथ ही आकस्मिक दुर्घटनाओं में घायल लोगों के इलाज में सहयोग किया जाता है.

वन विभाग ने समिति को किया है पुरस्कृत

समिति के अध्यक्ष भुवनेश्वर महतो बताते हैं कि समिति के कार्यों और जंगलों की हरियाली को देखकर वन विभाग के द्वारा 8 साल पूर्व समिति को पुरस्कृत किया गया था. समिति को 5 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि दी गई थी. उस राशि से वन बचाव समिति के द्वारा समिति के लिए एक भवन बनाया गया है. इसके अलावा वन विभाग के द्वारा 40 हेक्टेयर भूमि पर पौधरोपण किया गया था. इंट्री प्वाइंट के तहत जंगल में एक चेकडैम का निर्माण कराया गया है.

हिरण से अजगर तक का है बसेरा

स्थानीय समिति के सदस्य बताते हैं कि जब जंगल का विस्तार हुआ तो जंगली जानवरों का बसेरा भी होने लगा. अभी यहां हिरण, नीलगाय, जंगली सुअर, अजगर, मोर यहां देखे जाते हैं. जबकि पक्षियों की संख्या बहुत है.

Forest Conservation In Giridih
गिरिडीह के तुकतुको गांव के समीप घना जंगल. (फोटो-ईटीवी भारत)

बैलेट पेपर से किया जाता है वन प्रबंधन समिति का चुनाव

पंचायत चुनाव की तर्ज पर बैलेट पेपर के माध्यम से वन कर्मियों की उपस्थिति में यहां चुनाव भी कराया जाता है. इसी 1 जून को यहां वन प्रबंधन समिति का पुनर्गठन के लिए चुनाव हुआ था. समिति के सदस्यों ने लाइन में लगकर अपने चहेते उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान किया था. मतदान करने के बाद वोटरों के अंगूठे में स्याही का निशान भी लगाया गया था.

वन बचाव समिति का पुनर्गठन के लिए वोट जरूर डाले गए, मगर निवर्तमान अधिकारियों को ही एक बार फिर से मौका दिया गया है. अध्यक्ष पद के लिए सर्वसम्मति से भुनेश्वर महतो, उपाध्यक्ष पद के लिए गायत्री देवी और सह सचिव पद के लिए रामदेव महतो एक बार फिर से चुने गए हैं.

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वन प्रबंधन समिति का प्रयास

यहां 35 सालों से वन प्रबंधन समिति जंगल की रखवाली के लिए सजग है और इसी का परिणाम है कि जहां पहले झाड़-झंखाड़ रहता था, आज वहां घने जंगल हैं. बगैर कोई लोभ-लालच के वन प्रबंधन समिति के सदस्यों के द्वारा यहां जंगल की रखवाली के लिए पहरेदारी की जाती है. जंगल की रखवाली के लिए पहरेदारी करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक है. इतना ही नहीं जंगल की पहरेदारी से होने वाले इनकम से गरीबों का कल्याण तक किया जाता है.

जानकारी देते वन प्रबंधन समिति के अध्यक्ष और सदस्य. (वीडियो-ईटीवी भारत)

पहरेदारी के दौरान जंगल की कटाई करते पकड़े जाने वालों, पहरेदारी के लिए नहीं जाने वाले सदस्यों और साप्ताहिक बैठक में शामिल नहीं होने वाले सदस्यों से जुर्माना वसूला जाता है और फिर जुर्माना की राशि गरीबों के कल्याण में लगाई जाती है. जुर्माना की राशि से गरीब परिवार को बेटियों की शादी में सहयोग में किया जाता है.

1993 में हुआ था वन बचाव समिति का गठन

इस संबंध में वन प्रबंधन समिति के अध्यक्ष भुवनेश्वर महतो बताते हैं कि 1993 में वन बचाव समिति का गठन हुआ था, तब से समिति सक्रिय है. उन्होंने बताया कि जंगल की रखवाली के लिए वन बचाव समिति के सदस्यों के द्वारा हर रोज पहरा दिया जाता है. इसमें महिलाएं भी शामिल रहती हैं. भुवनेश्वर महतो ने कहा कि समिति की बैठक प्रत्येक रविवार को होती है. जिसमें एक सप्ताह के जंगल की पहरेदारी करने वालों के नामों की घोषणा की जाती है. पहरेदारी करने जो सदस्य नहीं जाते हैं उनपर जुर्माना लगाया जाता है. साथ ही साप्ताहिक बैठक में अनुपस्थित रहने वाले सदस्यों से भी फाइन वसूला जाता है. इसके अलावा जंगल में पेड़ों की कटाई करते पकड़े जाने पर भी जुर्माना का प्रावधान है. उन्होंने बताया कि जुर्माने की राशि से गरीब परिवारों की बेटियों की शादी में सहयोग किया जाता है. साथ ही आकस्मिक दुर्घटनाओं में घायल लोगों के इलाज में सहयोग किया जाता है.

वन विभाग ने समिति को किया है पुरस्कृत

समिति के अध्यक्ष भुवनेश्वर महतो बताते हैं कि समिति के कार्यों और जंगलों की हरियाली को देखकर वन विभाग के द्वारा 8 साल पूर्व समिति को पुरस्कृत किया गया था. समिति को 5 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि दी गई थी. उस राशि से वन बचाव समिति के द्वारा समिति के लिए एक भवन बनाया गया है. इसके अलावा वन विभाग के द्वारा 40 हेक्टेयर भूमि पर पौधरोपण किया गया था. इंट्री प्वाइंट के तहत जंगल में एक चेकडैम का निर्माण कराया गया है.

हिरण से अजगर तक का है बसेरा

स्थानीय समिति के सदस्य बताते हैं कि जब जंगल का विस्तार हुआ तो जंगली जानवरों का बसेरा भी होने लगा. अभी यहां हिरण, नीलगाय, जंगली सुअर, अजगर, मोर यहां देखे जाते हैं. जबकि पक्षियों की संख्या बहुत है.

Forest Conservation In Giridih
गिरिडीह के तुकतुको गांव के समीप घना जंगल. (फोटो-ईटीवी भारत)

बैलेट पेपर से किया जाता है वन प्रबंधन समिति का चुनाव

पंचायत चुनाव की तर्ज पर बैलेट पेपर के माध्यम से वन कर्मियों की उपस्थिति में यहां चुनाव भी कराया जाता है. इसी 1 जून को यहां वन प्रबंधन समिति का पुनर्गठन के लिए चुनाव हुआ था. समिति के सदस्यों ने लाइन में लगकर अपने चहेते उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान किया था. मतदान करने के बाद वोटरों के अंगूठे में स्याही का निशान भी लगाया गया था.

वन बचाव समिति का पुनर्गठन के लिए वोट जरूर डाले गए, मगर निवर्तमान अधिकारियों को ही एक बार फिर से मौका दिया गया है. अध्यक्ष पद के लिए सर्वसम्मति से भुनेश्वर महतो, उपाध्यक्ष पद के लिए गायत्री देवी और सह सचिव पद के लिए रामदेव महतो एक बार फिर से चुने गए हैं.

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