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राजाजी नेशनल पार्क में लौटेगी रौनक, कॉर्बेट से भेजे जाएंगे पांच और बाघ, जानिये क्या है प्लानिंग - RAJAJI PARK TIGER RELOCATION

नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी को भेजा गया प्रस्ताव, मंजूरी मिलते ही स्थानांतरित करने की प्रक्रिया होगी शुरू

RAJAJI PARK TIGER RELOCATION
कॉर्बेट से राजाजी भेजे जाएंगे पांच और बाघ (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : May 28, 2025 at 1:03 PM IST

4 Min Read

रामनगर: उत्तराखंड के जंगलों में बाघों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में एक और बड़ा कदम उठाया जा रहा है. राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (CTR) से पांच और बाघों को स्थानांतरित किया जाएगा. इस पहल का उद्देश्य राजाजी में न केवल बाघों की संख्या बढ़ाना है, बल्कि कॉर्बेट जैसे घने बाघ बाहुल क्षेत्र में बढ़ती ह्यूमन-टाइगर कॉन्फ्लिक्ट की स्थिति को भी नियंत्रित करना है.

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के अधिकारियों ने तीन बाघिन और दो बाघों को राजाजी टाइगर रिजर्व भेजने का प्रस्ताव नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी (NTCA) को भेजा है. जैसे ही यह प्रस्ताव मंजूर होगा, इन्हें स्थानांतरित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी. यह कदम राजाजी में चल रहे बाघ पुनर्स्थापन योजना के फेज-2 के अंतर्गत लिया जा रहा है.

कॉर्बेट से राजाजी भेजे जाएंगे पांच और बाघ (ETV BHARAT)

पिछली सफलता से मिली प्रेरणा: वर्ष 2022 में भी इसी योजना के तहत कॉर्बेट से पांच बाघ (तीन बाघिन और दो बाघ) राजाजी भेजे जाने की योजना बनी थी. जिस क्रम में लास्ट 5वां बाघ पिछले माह भेजा गया था. वन विभाग ने इन बाघों की लगातार निगरानी की. जिसमें पाया कि उन्हें राजाजी का नया परिवेश रास आ रहा है. बड़े क्षेत्रफल, आसान शिकार और पर्याप्त संसाधनों के कारण इन बाघों ने वहां खुद को सहज रूप से ढाला. इसके सकारात्मक परिणामों को देखते हुए अब पांच और बाघों को भेजने की तैयारी की जा रही है. वन विभाग की मानें तो कॉर्बेट की केरिंग कैपेसिटी (क्षमता) पहले ही फुल हो चुकी है.


बाघों की रिलोकेशन से कम होगा संघर्ष: वन्यजीव विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता गणेश रावत इस कदम को सराहते हैं. उनके अनुसार,कॉर्बेट टाइगर रिजर्व दुनिया के सबसे अधिक बाघ घनत्व वाले क्षेत्रों में शामिल है. यहां कई बार मानव-बाघ संघर्ष की स्थितियां बनती हैं. जब किसी क्षेत्र में बाघों की संख्या उसकी प्राकृतिक सीमा से अधिक हो जाती है, तो उनके बीच क्षेत्र को लेकर संघर्ष होता है. वे इंसानी बस्तियों की ओर भी जाने लगते हैं.


बाघों का वैज्ञानिक तरीके से रिलोकेट किया जाना न केवल संघर्ष को कम करेगा, बल्कि इनकी सुरक्षा और प्राकृतिक जीवन चक्र को बनाए रखने में भी मददगार साबित होगा. यह कॉर्बेट प्रशासन की दूरदर्शी और प्रकृति-संवेदनशील नीति है.

गणेश रावत, वन्यजीव विशेषज्ञ

राजाजी पार्क में लौट रही है बाघों की रौनक: राजाजी टाइगर रिजर्व, विशेष रूप से इसकी पूर्वी रेंज, कभी बाघों की मजबूत उपस्थिति के लिए जानी जाती थी, लेकिन समय के साथ यहां उनकी संख्या में गिरावट आई. ऐसे में कॉर्बेट से आए बाघ इस क्षेत्र में जीवन का नया संचार कर रहे हैं. इनसे न केवल जंगल का जैविक संतुलन बहाल होगा, बल्कि भविष्य में यहां इकोटूरिज्म और शोध की संभावनाएं भी बढ़ेंगी.

वन विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि यह पहल राजाजी पार्क को फिर से बाघों की स्थायी निवासस्थली के रूप में स्थापित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी. कॉर्बेट से राजाजी तक बाघों के इस वैज्ञानिक सफर से एक ओर जहां घने जंगलों का भार संतुलित होगा. दूसरी ओर नए जंगलों को फिर से बाघों से आबाद किया जा सकेगा. यह न केवल वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि मानव-वन्यजीव संघर्ष को भी कम करने का प्रभावी उपाय है.

पढ़ें- अभी पूरा नहीं हुआ राजाजी का मिशन टाइगर, संख्या बढ़ाने के लिए जल्द होगा अध्ययन

पढ़ें- प्रोजेक्ट टाइगर में लेपर्ड बने चिंता, राजाजी टाइगर रिजर्व में ये हैं चुनौती

पढ़ें- राजाजी नेशनल पार्क की शोभा बढ़ाएंगे कॉर्बेट के 5 टाइगर, तालियों की गड़गड़ाहट के साथ भेजा गया आखिरी नर बाघ

पढ़ें- कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से राजाजी नेशनल पार्क भेजा जाएगा पांचवां बाघ, अच्छी तरह से ढल चुके चार टाइगर

रामनगर: उत्तराखंड के जंगलों में बाघों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में एक और बड़ा कदम उठाया जा रहा है. राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (CTR) से पांच और बाघों को स्थानांतरित किया जाएगा. इस पहल का उद्देश्य राजाजी में न केवल बाघों की संख्या बढ़ाना है, बल्कि कॉर्बेट जैसे घने बाघ बाहुल क्षेत्र में बढ़ती ह्यूमन-टाइगर कॉन्फ्लिक्ट की स्थिति को भी नियंत्रित करना है.

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के अधिकारियों ने तीन बाघिन और दो बाघों को राजाजी टाइगर रिजर्व भेजने का प्रस्ताव नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी (NTCA) को भेजा है. जैसे ही यह प्रस्ताव मंजूर होगा, इन्हें स्थानांतरित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी. यह कदम राजाजी में चल रहे बाघ पुनर्स्थापन योजना के फेज-2 के अंतर्गत लिया जा रहा है.

कॉर्बेट से राजाजी भेजे जाएंगे पांच और बाघ (ETV BHARAT)

पिछली सफलता से मिली प्रेरणा: वर्ष 2022 में भी इसी योजना के तहत कॉर्बेट से पांच बाघ (तीन बाघिन और दो बाघ) राजाजी भेजे जाने की योजना बनी थी. जिस क्रम में लास्ट 5वां बाघ पिछले माह भेजा गया था. वन विभाग ने इन बाघों की लगातार निगरानी की. जिसमें पाया कि उन्हें राजाजी का नया परिवेश रास आ रहा है. बड़े क्षेत्रफल, आसान शिकार और पर्याप्त संसाधनों के कारण इन बाघों ने वहां खुद को सहज रूप से ढाला. इसके सकारात्मक परिणामों को देखते हुए अब पांच और बाघों को भेजने की तैयारी की जा रही है. वन विभाग की मानें तो कॉर्बेट की केरिंग कैपेसिटी (क्षमता) पहले ही फुल हो चुकी है.


बाघों की रिलोकेशन से कम होगा संघर्ष: वन्यजीव विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता गणेश रावत इस कदम को सराहते हैं. उनके अनुसार,कॉर्बेट टाइगर रिजर्व दुनिया के सबसे अधिक बाघ घनत्व वाले क्षेत्रों में शामिल है. यहां कई बार मानव-बाघ संघर्ष की स्थितियां बनती हैं. जब किसी क्षेत्र में बाघों की संख्या उसकी प्राकृतिक सीमा से अधिक हो जाती है, तो उनके बीच क्षेत्र को लेकर संघर्ष होता है. वे इंसानी बस्तियों की ओर भी जाने लगते हैं.


बाघों का वैज्ञानिक तरीके से रिलोकेट किया जाना न केवल संघर्ष को कम करेगा, बल्कि इनकी सुरक्षा और प्राकृतिक जीवन चक्र को बनाए रखने में भी मददगार साबित होगा. यह कॉर्बेट प्रशासन की दूरदर्शी और प्रकृति-संवेदनशील नीति है.

गणेश रावत, वन्यजीव विशेषज्ञ

राजाजी पार्क में लौट रही है बाघों की रौनक: राजाजी टाइगर रिजर्व, विशेष रूप से इसकी पूर्वी रेंज, कभी बाघों की मजबूत उपस्थिति के लिए जानी जाती थी, लेकिन समय के साथ यहां उनकी संख्या में गिरावट आई. ऐसे में कॉर्बेट से आए बाघ इस क्षेत्र में जीवन का नया संचार कर रहे हैं. इनसे न केवल जंगल का जैविक संतुलन बहाल होगा, बल्कि भविष्य में यहां इकोटूरिज्म और शोध की संभावनाएं भी बढ़ेंगी.

वन विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि यह पहल राजाजी पार्क को फिर से बाघों की स्थायी निवासस्थली के रूप में स्थापित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी. कॉर्बेट से राजाजी तक बाघों के इस वैज्ञानिक सफर से एक ओर जहां घने जंगलों का भार संतुलित होगा. दूसरी ओर नए जंगलों को फिर से बाघों से आबाद किया जा सकेगा. यह न केवल वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि मानव-वन्यजीव संघर्ष को भी कम करने का प्रभावी उपाय है.

पढ़ें- अभी पूरा नहीं हुआ राजाजी का मिशन टाइगर, संख्या बढ़ाने के लिए जल्द होगा अध्ययन

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