कुल्लू: हिमाचल सरकार 17 मार्च को वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए अपना वार्षिक बजट पेश करने जा रही है. हिमाचल के लाखों किसानों और बागबानों के उम्मीदें भी सरकार पर टिक गई हैं. किसानों और बागबान बजट में सरकार से राहत की उम्मीद लगाए हुए हैं. ऐसे में किसान और बागवान मक्की, गेहूं के अलावा अन्य फल सब्जियों पर भी न्यूनतम मूल्य और नर्सरी में मिलने वाले पौधों पर भी सब्सिडी की डिमांड कर रहे हैं.
कुल्लू के सैंज निवासी बागवान नरेंद्र ठाकुर का कहना हैं नर्सरी से किसानों और बागवानों को कुछ पौधों पर सब्सिडी मिलती हैं. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वो नर्सरी में मिलने वाले सभी किस्म के पौधों पर सब्सिडी का प्रावधान करे. इसके अलावा बाजार में बढ़ते खादों के दामों में भी कमी होनी चाहिए. पंचायत स्तर पर सभी किसानों और बागवानों को नई योजनाओं के बारे में बताने के लिए समय समय पर कार्यशालाएं आयोजित की जानी चाहिए.
फल सब्जियों पर एमएसपी की मांग
बंजार की बागवान भावना चौहान का कहना है कि जिस तरह से हिमाचल में सरकार ने मक्की और गेहूं का न्यूनतम मूल्य जारी किया है. वैसे ही अन्य फलों और सब्जियों का भी किया जाना चाहिए, क्योंकि कई बार फसल अच्छी होने के चलते उसके बाजार में उचित दाम नहीं मिल पाता, तो कई बार प्राकृतिक आपदा के चलते भी फसलों को नुकसान होता है. ऐसे में अगर अन्य फल-सब्जियों का भी न्यूनतम मूल्य सरकार लागू करती है, तो इससे किसानों और बागवानों को काफी फायदा होगा.
प्रोसेसिंग यूनिट के लिए सब्सिडी की मांग
मनाली की महिला किसान मीरा आचार्य का कहना है कि आज महिलाएं भी कृषि क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रही है. ऐसे में कई फलों-सब्जियों को प्रोसेसिंग करके उसके उत्पाद बनाए जाने चाहिए इससे उन्हें काफी आमदनी होगी, इसलिए सरकार को अपने बजट में प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए अच्छी सब्सिडी का प्रावधान करे, ताकि घर द्वार पर ही महिलाएं अपने कृषि व बागवानी उत्पादों की प्रोसेसिंग कर उन्हें बाजार में उतार सकें और उन्हें इसका अच्छा दाम बाजार में मिल सके.
खाद-दवाइयों पर सब्सिडी की मांग
भुंतर के बागवान मेघ सिंह कश्यप का कहना है कि आज कृषि क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली दवाई और खाद के दाम भी बाजार में काफी अधिक हो गए हैं. आधुनिक तरीके से अगर कोई भी बागवानी करता है तो इसके लिए खाद और दवाई का होना आवश्यक है.तभी फसलें अच्छी होती हैं. सरकार खाद और दवाइयों पर भी सब्सिडी का प्रावधान करे. इसके अलावा प्राकृतिक खेती के लिए भी सरकार को जगह-जगह पर शिविर लगाने चाहिए और इसके लिए विशेष रूप से बजट का प्रावधान करना चाहिए, ताकि जहरीली खेती को छोड़कर किसान और बागबान प्राकृतिक खेती की ओर मुड़ सकें.
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