लखनऊ: बिना विशेषज्ञ के एंटीबायोटिक दवाओं का बेहिसाब सेवन आईसीयू के मरीजों के लिए परेशानी का सबब बन रहा है. लोहिया संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक, इस तरह के मामलों में काफी मरीजों में आवश्यक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है.
गंभीर रूप से बीमार होने या आईसीयू में भर्ती होने पर जरूरी दवाएं मरीज पर बेअसर साबित होती हैं. लोहिया संस्थान में माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रो. ज्योत्सना अग्रवाल ने बताया कि बैक्टीरिया को समाप्त करने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं.
एंटीबायोटिक्स का अंधाधुंध उपयोग अदृश्य महामारी की तरह है. संस्थान की आईसीयू में भर्ती मरीजों की जांच में देखा जा रहा है कि सामान्य रूप से मिलने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ उनके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है. एंटीबायोटिक दवाएं सीमित संख्या में हैं. इनका बेतहाशा इस्तेमाल रोगियों के लिए उम्मीद समाप्त करने जैसा है.
12 साल में 100 करोड़ खर्च करने के बाद विकसित होती है नई दवा: केजीएमयू में माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ. शीतल वर्मा के मुताबिक, एक एंटीबायोटिक बनाने में लगभग 100 करोड़ रुपये का खर्च होते हैं और 12 साल का समय लगता है. दूसरी ओर कैंसर की दवाएं इससे कम समय में और कम लागत में विकसित हो रही हैं.
इसकी वजह से दवा कंपनियों ने अपना ध्यान एंटीबायोटिक्स के बजाय कैंसर की दवाएं विकसित करने में लगा दिया है. इससे स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा पैदा हो रहा है. इसलिए दवाई के इस्तेमाल से पहले बैक्टीरिया की जांच करनी जरूरी है.
विशेषज्ञ की सलाह के बिना न करें इस्तेमाल: प्रो. ज्योत्सना अग्रवाल के मुताबिक, बिना विशेषज्ञ की सलाह के एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. डॉक्टरों को भी जरूरी होने पर ही एंटीबायोटिक दवाएं लिखनी चाहिए.
ये भी पढ़ें- अयोध्या में 76 सीढ़ियां चढ़कर होते हैं हनुमान जी के सबसे छोटे रूप के दर्शन; जानिए कैसे पड़ा हनुमानगढ़ी नाम