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दिव्यांगों के लिए मिसाल बने बिहार के उदय, बिन आंखों के 20 सालों से चला रहे दुकान - DIVYANG UDAY GUPTA

दिव्यांग उदय 20 सालों से दुकान चलाकर आज लोगों के लिए मिसाल बन गए हैं. वो साधरण लोगों की तरह जीवन जी रहे हैं.

DIVYANG UDAY GUPTA
बिहार के दिव्यांग उदय बने मिसाल (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : April 15, 2025 at 1:25 PM IST

4 Min Read

गया: कहते हैं कि मन के हारे हार और मन के जीते जीत. ये पक्तियां बिहार के गया निवासी 41 वर्षीय दिव्यांग उदय गुप्ता पर बिलकुल सटीक बैठती हैं. उदय की दोनों आंखों की रोशनी 20 साल पहले चली गई थी. आंखों की रोशनी गई थी, लेकिन हौसला अभी भी बरकरार था. यही कारण है कि उन्होंने हार नहीं मानी और दुकान चलाकर वो दूसरों के लिए नायाब उदाहरण बन गए. उदय नोटों-सिक्कों को छूकर पहचान लेते हैं.

दूसरों के लिए प्रेरणा बने उदय: उदय गया के शाहमीर तक्या-गेवालबिगहा निवासी हैं. ये दुनिया नहीं देख सकते हैं. खास बात ये है कि उदय अपनी जीवन की गाड़ी चलाने के लिए किसी भी पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि वो खुद अपने हौसलों के दम पर अपनी जिंदगी की गाड़ी चला रहे हैं. उदय की कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है, जो शरीर के स्वस्थ रहते हुए भी बेरोजगार हैं.

देखें वीडियो (ETV Bharat)

साल 2003 में उदय की बदली जिंदगी: उदय के लिए 2003 का साल अंधेरा लेकर आया. दरअसल इससे पहले उदय के जीवन में सब कुछ ठीक-ठाक था. एक आंख उनकी खराब हुई थी, लेकिन उन्हें दिखता था. एक आंख खराब होने का प्रभाव दूसरी आंख पर ना पड़े, इसलिए उनके पिता आंख दिखाने के लिए यूपी के अलीगढ़ लेकर गए.

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ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

डॉक्टर की लापरवाही से उदय हुए दिव्यांग: अलीगढ़ में उदय के आंखों का ऑपरेशन हुआ, लेकिन ऑपरेशन होने के बाद 5 जुलाई 2003 से उदय को कुछ भी नहीं दिखाई दिया. डॉक्टर की लापरवाही के कारण उदय की दोनों आंखों की रोशनी जा चुकी थी, जिससे उदय पूरी तरह से दिव्यांग हो गए.

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सामान्य इंसान की तरह सभी काम करते हैं दिव्यांग उदय (ETV Bharat)

उदय ने देहरादून में लिया प्रशिक्षण: उदय की आंखों से रोशनी गई थी, लेकिन हिम्मत अभी भी थी. उदय अपने पिता के साथ देहरादून गए, जहां दिव्यांगों को ट्रेनिंग दी जाती है, वहां पर 3 माह का प्रशिक्षण लिया. इसके बाद उन्होंने साल 2003 में ही एक दुकान खोली. दुकान चलने भी लगी. उदय सारे सामानों को अंदाज से समझने लगे.

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उदय अपनी दुकान के लिए मिठाइयां खुद तैयार करते हैं. (ETV Bharat)

दुकान खोलने के बाद खुशियों ने दी दस्तक: कौन सा सामान खाने का है, कहां अगरबत्ती है, कहां मिठाइयां हैं. सारी चीज धीरे-धीरे वह समझ चुके थे. उदय ने शादी की और फिर उनके घर में दो बच्चों ने जन्म लिया. दिव्यांग पति के हौसलों का साथ पत्नी खुशी देवी भी दे रही हैं. वो भी अगरबत्ती बनाकर घर को संभालने में अपने पति का सहयोग करती हैं.

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20 सालों से दिव्यांग उदय चला रहे दुकान (ETV Bharat)
''2003 में मेरी दोनों आंखें खराब होने के बाद भी हौसले को टूटने नहीं दिया. पिछले 20 सालों से दुकान चला रहा हूं. नोट, सिक्कों और सामान को छूकर और अंदाजे से समझता हूं. अपनी कमाई से मैं घर चला रहा हूं. अब पत्नी भी थोड़ा कमाने लगी है. देहरादून में 3 महीने की ट्रेनिंग ली थी, इस दौरान चलने-फिरने आदि के बारे में जानकारी ली. मैं खुद ही रोटी बनाता हूं और अधिकांश काम भी खुद ही करता हूं''. उदय गुप्ता,दिव्यांग
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नोटों को छूकर पहचानते हैं उदय (ETV Bharat)

खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे उदय: बहरहाल आज दिव्यांग उदय अपनी पत्नी खुशी देवी और दो बच्चों के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं. वो सभी काम कर रहे हैं, जो एक साधारण व्यक्ति करता है. अपवाद को छोड़ दे, तो उन्हें दुकान चलाने में कोई परेशानी नहीं होती है.

''उदय गुप्ता दिव्यांग हैं, लेकिन वो अपनी दुकान को 20 साल से अच्छी तरह चला रहे हैं. वो खुद मिठाइयां बना रहे हैं. आज वो दूसरों के लिए मिसाल बन गए हैं. विकास कुमार, स्थानीय निवासी

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दूसरों के लिए प्रेरणा बने उदय: उदय गया के शाहमीर तक्या-गेवालबिगहा निवासी हैं. ये दुनिया नहीं देख सकते हैं. खास बात ये है कि उदय अपनी जीवन की गाड़ी चलाने के लिए किसी भी पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि वो खुद अपने हौसलों के दम पर अपनी जिंदगी की गाड़ी चला रहे हैं. उदय की कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है, जो शरीर के स्वस्थ रहते हुए भी बेरोजगार हैं.

देखें वीडियो (ETV Bharat)

साल 2003 में उदय की बदली जिंदगी: उदय के लिए 2003 का साल अंधेरा लेकर आया. दरअसल इससे पहले उदय के जीवन में सब कुछ ठीक-ठाक था. एक आंख उनकी खराब हुई थी, लेकिन उन्हें दिखता था. एक आंख खराब होने का प्रभाव दूसरी आंख पर ना पड़े, इसलिए उनके पिता आंख दिखाने के लिए यूपी के अलीगढ़ लेकर गए.

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ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

डॉक्टर की लापरवाही से उदय हुए दिव्यांग: अलीगढ़ में उदय के आंखों का ऑपरेशन हुआ, लेकिन ऑपरेशन होने के बाद 5 जुलाई 2003 से उदय को कुछ भी नहीं दिखाई दिया. डॉक्टर की लापरवाही के कारण उदय की दोनों आंखों की रोशनी जा चुकी थी, जिससे उदय पूरी तरह से दिव्यांग हो गए.

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सामान्य इंसान की तरह सभी काम करते हैं दिव्यांग उदय (ETV Bharat)

उदय ने देहरादून में लिया प्रशिक्षण: उदय की आंखों से रोशनी गई थी, लेकिन हिम्मत अभी भी थी. उदय अपने पिता के साथ देहरादून गए, जहां दिव्यांगों को ट्रेनिंग दी जाती है, वहां पर 3 माह का प्रशिक्षण लिया. इसके बाद उन्होंने साल 2003 में ही एक दुकान खोली. दुकान चलने भी लगी. उदय सारे सामानों को अंदाज से समझने लगे.

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उदय अपनी दुकान के लिए मिठाइयां खुद तैयार करते हैं. (ETV Bharat)

दुकान खोलने के बाद खुशियों ने दी दस्तक: कौन सा सामान खाने का है, कहां अगरबत्ती है, कहां मिठाइयां हैं. सारी चीज धीरे-धीरे वह समझ चुके थे. उदय ने शादी की और फिर उनके घर में दो बच्चों ने जन्म लिया. दिव्यांग पति के हौसलों का साथ पत्नी खुशी देवी भी दे रही हैं. वो भी अगरबत्ती बनाकर घर को संभालने में अपने पति का सहयोग करती हैं.

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20 सालों से दिव्यांग उदय चला रहे दुकान (ETV Bharat)
''2003 में मेरी दोनों आंखें खराब होने के बाद भी हौसले को टूटने नहीं दिया. पिछले 20 सालों से दुकान चला रहा हूं. नोट, सिक्कों और सामान को छूकर और अंदाजे से समझता हूं. अपनी कमाई से मैं घर चला रहा हूं. अब पत्नी भी थोड़ा कमाने लगी है. देहरादून में 3 महीने की ट्रेनिंग ली थी, इस दौरान चलने-फिरने आदि के बारे में जानकारी ली. मैं खुद ही रोटी बनाता हूं और अधिकांश काम भी खुद ही करता हूं''. उदय गुप्ता,दिव्यांग
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नोटों को छूकर पहचानते हैं उदय (ETV Bharat)

खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे उदय: बहरहाल आज दिव्यांग उदय अपनी पत्नी खुशी देवी और दो बच्चों के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं. वो सभी काम कर रहे हैं, जो एक साधारण व्यक्ति करता है. अपवाद को छोड़ दे, तो उन्हें दुकान चलाने में कोई परेशानी नहीं होती है.

''उदय गुप्ता दिव्यांग हैं, लेकिन वो अपनी दुकान को 20 साल से अच्छी तरह चला रहे हैं. वो खुद मिठाइयां बना रहे हैं. आज वो दूसरों के लिए मिसाल बन गए हैं. विकास कुमार, स्थानीय निवासी

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