ETV Bharat / state

दोनों पैरों से दिव्यांग "मोनी" सबके लिए बनीं 'मिसाल', चुनौतियों से लड़कर DU से हासिल की PhD की डिग्री - DU DISABLED STUDENT GOT PHD DEGREE

गलत इलाज के कारण हुई दिव्यांग ,बैसाखियों के सहारे चलकर हासिल किया मुक़ाम आइए जानते हैं मोनी का सफर.

दिव्यांग मोनी ने  हासिल की डीयू से पीएचडी डिग्री
दिव्यांग मोनी ने हासिल की डीयू से पीएचडी डिग्री (Etv Bharat)
author img

By ETV Bharat Delhi Team

Published : February 23, 2025 at 12:08 PM IST

Updated : February 24, 2025 at 11:45 AM IST

5 Min Read

नई दिल्ली: अगर कोई व्यक्ति मन में कुछ बनने की ठान ले तो शारीरिक अक्षमता भी उसके मार्ग में बाधा नहीं बन सकती. इसकी वजह से आने वाली तमाम बाधाओं को पार कर इंसान कड़ी मेहनत से सफलता को प्राप्त कर सकता है. यह साबित कर दिखाया है दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में पीएचडी पूरी करने वाली मोनी ने, जो बचपन से ही दोनों पैरों से दिव्यांग हैं.

मोनी ने बताया कि बचपन में जब वह 9 से 10 महीने की थीं, तभी से वह इस स्थिति का सामना कर रही हैं. उनकी मां ने उन्हें बताया था कि बचपन में डॉक्टर के द्वारा गलत इलाज के कारण उन्हें इसका सामना करना पड़ा. वर्तमान में वह बैसाखियों के सहारे चलती हैं. उनके पिता नगर निगम में माली की पोस्ट पर नौकरी करते थे, जिसकी वजह से उनका परिवार दिल्ली के बुराड़ी में ही शिफ्ट हो गया. वैसे उनका परिवार यूपी के हापुड़ जिले के पिलखुवा के पास का रहने वाला है.

पिता की इच्छा से मिला हौसला: उन्होंने बताया कि बचपन से उनके पिता की इच्छा थी कि उनका कोई बच्चा डॉक्टर बने. लेकिन, मेरे भाई को पढ़ाई में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं था तो पिता ने मुझसे डॉक्टर बनने की उम्मीद लगाई. हालांकि दिव्यांग होने के चलते वह डॉक्टर के पेशे में होने वाली भाग दौड़ और ज्यादा मेहनत नहीं कर सकती थी. इसलिए उन्होंने एकैडमिक्स में जाने का निर्णय लिया और पीएचडी करके विषय विशेषज्ञ के रूप में डॉक्टर बनकर पिता का सपना पूरा करने का संकल्प लिया.

मोनी ने बताया अपना चुनौतीपूर्ण सफर (ETV BHARAT)

आईपी कॉलेज से की ग्रेजुएशन की पढ़ाई: उन्होंने बताया, ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए मैंने डीयू के ही आईपी कॉलेज में दाखिला लिया. मेरे पिताजी की इतनी आमदनी नहीं थी कि वह मेरे आने जाने के लिए कोई वाहन या कॉलेज बस लगा पाते. इसलिए, मैंने हॉस्टल के लिए अप्लाई किया, लेकिन मुझे पहले साल में हॉस्टल नहीं मिल पाया. मेरे कॉलेज के शिक्षकों ने मदद की और अपने प्रयास से उन्होंने मुझे स्पेशल कैटिगरी में हॉस्टल दिलाया, जिससे मैं कैंपस में रहकर पढ़ाई कर सकी. एक-दो साल कुछ-कुछ महीने के लिए हॉस्टल मिला और इस तरह से ही संघर्ष चलता रहा. इसके बाद फिर मैंने मास्टर्स के लिए मिरांडा हाउस कॉलेज में दाखिला लिया और एमए की पढ़ाई पूरी की.

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की थी इच्छा: मोनी ने आगे बताया, मास्टर्स कंप्लीट करने के बाद मैं भी दूसरे बच्चों की तरह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना चाहती थी. इसके लिए मैं कोचिंग लेना चाहती थी. लेकिन, ज्यादातर कोचिंग सेंटर उपरी मंजिल या बेसमेंट में होते थे, जहां जाने के सीढ़ियों का इस्तेमाल करना पड़ता था. मैं ये नहीं कर सकती थी, इसलिए मैंने एकैडमिक्स में जाने का निर्णय लिया और पीएचडी में दाखिला लिया. उस दौरान कुलपति ने घोषणा की थी कि जितने भी दिव्यांग छात्र हैं, उन सभी को मुफ्त शिक्षा दी जाएगी. इसके चलते मेरी फीस माफ हो गई और मुझे हॉस्टल के भी ज्यादा पैसे नहीं देने पड़े.

ऐसे पूरा हुआ पीएचडी का सफर: उन्होंने बताया, मुझे वर्ष 2018 में पीएचडी में दाखिला मिल गया. मैंने पीएचडी का विषय 'आधुनिक भारत में विकलांगता और कानून' विषय को चुना. पीएचडी कंप्लीट करने का मेरे ऊपर थोड़ा दबाव था. इसके लिए मैंने बहुत मेहनत की. वैसे तो दिव्यांग छात्रों के लिए पीएचडी कंप्लीट करने का समय 10 साल का होता है, लेकिन दबाव के चलते मैंने इसे जल्दी पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत की. इस दौरान मेरे गाइड ने मेरी बहुत मदद की. अक्टूबर 2024 में मेरी पीएचडी पूरी हो गई और डीयू के 101वें दीक्षांत समारोह में मैं डिग्री लेने के लिए आई.

अब प्रोफेसर बनने की जंग: मोनी का कहना है कि वह पीएचडी कंप्लीट होने के बाद अब प्रोफेसर बनना चाहती हैं. अब उनका अगला लक्ष्य किसी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में नौकरी पाना और करियर की शुरुआत करना है. उन्होंने बताया कि अब सहायक प्रोफेसर बनने की योग्यता पूरी हो गई है. अब नौकरी के लिए लड़ाई शुरू करनी है. पीएचडी पूरी करके डॉक्टर बनने का एक सपना पूरा कर लिया है और अब आगे करियर के लिए और मेहनत करनी है.

ये भी पढ़ें :

दिल्ली की "मसाला क्वीन" की संघर्ष भरी दास्तां, मसाला मार्केट में लिखी कामयाबी की इबारत

प्रेरणादायी: दिव्यांग कर्णजीत ने कायम की मिसाल, फसल के साथ सब्जी उगाकर पूरे परिवार का उठा रहे खर्च

पैरालंपिक में बिना हाथ के तैराकी से दुनिया को किया हैरान, दिग्गजों को पीछे छोड़कर जीता स्वर्ण पदक - Swimming Without Hands

नई दिल्ली: अगर कोई व्यक्ति मन में कुछ बनने की ठान ले तो शारीरिक अक्षमता भी उसके मार्ग में बाधा नहीं बन सकती. इसकी वजह से आने वाली तमाम बाधाओं को पार कर इंसान कड़ी मेहनत से सफलता को प्राप्त कर सकता है. यह साबित कर दिखाया है दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में पीएचडी पूरी करने वाली मोनी ने, जो बचपन से ही दोनों पैरों से दिव्यांग हैं.

मोनी ने बताया कि बचपन में जब वह 9 से 10 महीने की थीं, तभी से वह इस स्थिति का सामना कर रही हैं. उनकी मां ने उन्हें बताया था कि बचपन में डॉक्टर के द्वारा गलत इलाज के कारण उन्हें इसका सामना करना पड़ा. वर्तमान में वह बैसाखियों के सहारे चलती हैं. उनके पिता नगर निगम में माली की पोस्ट पर नौकरी करते थे, जिसकी वजह से उनका परिवार दिल्ली के बुराड़ी में ही शिफ्ट हो गया. वैसे उनका परिवार यूपी के हापुड़ जिले के पिलखुवा के पास का रहने वाला है.

पिता की इच्छा से मिला हौसला: उन्होंने बताया कि बचपन से उनके पिता की इच्छा थी कि उनका कोई बच्चा डॉक्टर बने. लेकिन, मेरे भाई को पढ़ाई में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं था तो पिता ने मुझसे डॉक्टर बनने की उम्मीद लगाई. हालांकि दिव्यांग होने के चलते वह डॉक्टर के पेशे में होने वाली भाग दौड़ और ज्यादा मेहनत नहीं कर सकती थी. इसलिए उन्होंने एकैडमिक्स में जाने का निर्णय लिया और पीएचडी करके विषय विशेषज्ञ के रूप में डॉक्टर बनकर पिता का सपना पूरा करने का संकल्प लिया.

मोनी ने बताया अपना चुनौतीपूर्ण सफर (ETV BHARAT)

आईपी कॉलेज से की ग्रेजुएशन की पढ़ाई: उन्होंने बताया, ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए मैंने डीयू के ही आईपी कॉलेज में दाखिला लिया. मेरे पिताजी की इतनी आमदनी नहीं थी कि वह मेरे आने जाने के लिए कोई वाहन या कॉलेज बस लगा पाते. इसलिए, मैंने हॉस्टल के लिए अप्लाई किया, लेकिन मुझे पहले साल में हॉस्टल नहीं मिल पाया. मेरे कॉलेज के शिक्षकों ने मदद की और अपने प्रयास से उन्होंने मुझे स्पेशल कैटिगरी में हॉस्टल दिलाया, जिससे मैं कैंपस में रहकर पढ़ाई कर सकी. एक-दो साल कुछ-कुछ महीने के लिए हॉस्टल मिला और इस तरह से ही संघर्ष चलता रहा. इसके बाद फिर मैंने मास्टर्स के लिए मिरांडा हाउस कॉलेज में दाखिला लिया और एमए की पढ़ाई पूरी की.

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की थी इच्छा: मोनी ने आगे बताया, मास्टर्स कंप्लीट करने के बाद मैं भी दूसरे बच्चों की तरह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना चाहती थी. इसके लिए मैं कोचिंग लेना चाहती थी. लेकिन, ज्यादातर कोचिंग सेंटर उपरी मंजिल या बेसमेंट में होते थे, जहां जाने के सीढ़ियों का इस्तेमाल करना पड़ता था. मैं ये नहीं कर सकती थी, इसलिए मैंने एकैडमिक्स में जाने का निर्णय लिया और पीएचडी में दाखिला लिया. उस दौरान कुलपति ने घोषणा की थी कि जितने भी दिव्यांग छात्र हैं, उन सभी को मुफ्त शिक्षा दी जाएगी. इसके चलते मेरी फीस माफ हो गई और मुझे हॉस्टल के भी ज्यादा पैसे नहीं देने पड़े.

ऐसे पूरा हुआ पीएचडी का सफर: उन्होंने बताया, मुझे वर्ष 2018 में पीएचडी में दाखिला मिल गया. मैंने पीएचडी का विषय 'आधुनिक भारत में विकलांगता और कानून' विषय को चुना. पीएचडी कंप्लीट करने का मेरे ऊपर थोड़ा दबाव था. इसके लिए मैंने बहुत मेहनत की. वैसे तो दिव्यांग छात्रों के लिए पीएचडी कंप्लीट करने का समय 10 साल का होता है, लेकिन दबाव के चलते मैंने इसे जल्दी पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत की. इस दौरान मेरे गाइड ने मेरी बहुत मदद की. अक्टूबर 2024 में मेरी पीएचडी पूरी हो गई और डीयू के 101वें दीक्षांत समारोह में मैं डिग्री लेने के लिए आई.

अब प्रोफेसर बनने की जंग: मोनी का कहना है कि वह पीएचडी कंप्लीट होने के बाद अब प्रोफेसर बनना चाहती हैं. अब उनका अगला लक्ष्य किसी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में नौकरी पाना और करियर की शुरुआत करना है. उन्होंने बताया कि अब सहायक प्रोफेसर बनने की योग्यता पूरी हो गई है. अब नौकरी के लिए लड़ाई शुरू करनी है. पीएचडी पूरी करके डॉक्टर बनने का एक सपना पूरा कर लिया है और अब आगे करियर के लिए और मेहनत करनी है.

ये भी पढ़ें :

दिल्ली की "मसाला क्वीन" की संघर्ष भरी दास्तां, मसाला मार्केट में लिखी कामयाबी की इबारत

प्रेरणादायी: दिव्यांग कर्णजीत ने कायम की मिसाल, फसल के साथ सब्जी उगाकर पूरे परिवार का उठा रहे खर्च

पैरालंपिक में बिना हाथ के तैराकी से दुनिया को किया हैरान, दिग्गजों को पीछे छोड़कर जीता स्वर्ण पदक - Swimming Without Hands

Last Updated : February 24, 2025 at 11:45 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.