जोधपुर: शहर में बरसों से आयोजित हो रहे धींगा गवर मेले की अस्मिता को लेकर महिलाएं इस बार काफी मुखर हैं. महिलाओं ने साफ तौर पर कह दिया है कि जब यह उत्सव महिलाओं का है, तो इसमें राज भी महिलाओं का ही चलेगा. वे मेले के सांस्कृतिक महत्व को बचाए रखने की जद्दोजहद कर रही हैं. 16 अप्रैल को आयोजित होने वाले मेले की व्यवस्थाओं को लेकर पुलिस के साथ हुई बैठक में एक महिला ने तो यहां तक कह दिया कि 16 दिन व्रत के साथ पूजन करती हैं और आखिरी दिन इसका मजाक बना दिया जाता है. बैठक में मौजूद एडीसीपी वीरेंद्र सिंह ने सभी महिलाओं को आश्वस्त किया कि उनकी मंशा के अनुरूप व्यवस्था की जाएगी.
धींगा गवर मेले का आयोजन सदियों से अपनी पारंपरिक रंगत और सांस्कृतिक गौरव के लिए प्रसिद्ध रहा है. परंतु पिछले कुछ वर्षों में इस मेले का मूल स्वरूप ही खो गया. मनचले सबसे बड़ी परेशानी बन रहे हैं. साथ ही महिलाएं मेले में अनावश्यक आयोजन भी वो नहीं चाहती हैं.
छड़ी की मार से शादी नहीं होती: धींगा गवर मेले को लेकर यह बात प्रसिद्ध है कि जब महिलाएं रात को सड़कों पर आती हैं, तो उनके हाथ में बैंत होती है. मान्यता है कि अगर किसी कुंवारे लड़के को एक बैंत की मार पड़ जाए, तो उसकी शादी हो जाती है. इसी कारण मेले के दौरान रात को बड़ी भारी भीड़ जमा होती है. मेले की व्यवस्थाओं को लेकर बैठक के दौरान एक महिला ने साफ शब्दों में कहा कि यह यूटयूबर्स और सोशल मीडिया की बनाई हुई बात है. मेरे चार भाई कुंवारे बैठे हैं, औसत उम्र 40 साल है. हम खुद वर्षों से पूजन कर रहे हैं. बैंत की मार से किसी की शादी नहीं होती. इस गलत बात के कारण मनचले एकत्र होते हैं.
पूजन के बाद बन जाता है मजाक: एक महिला ने कहा कि 16 दिन का त्योहार होता है. लगातार हम व्रत करती हैं. 15 दिन पूजन के बाद अंतिम दिन जब हम गवर माता को लेकर निकलते हैं और स्वांग रचते हैं, तो हमारा मजाक बन जाता है. यह भगवान का उत्सव है. धींगा गवर शक्ति का रूप है. भगवान के उत्सव को उत्सव की तरह मानना चाहिए. इसका बाजारीकरण नहीं होना चाहिए. जो महिलाएं व्रत नहीं करती हैं, वो हाथ में डंडे लेकर आ जाती हैं. उनको रोकना होगा.
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स्टेज संस्कृति का हुआ पुरजोर विरोध: इस बार हर घर से स्टेज संस्कृति का विरोध भी उमड़ रहा है. पारंपरिक मंचों पर अब पुरुष प्रधान कलाकारों की जगह महिलाओं की आवाज और उनकी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को प्रमुखता दी जाएगी. महिलाएं कहती हैं कि जब हमारी संस्कृति में महिलाओं का राज होगा, तभी इसकी सार्थकता बनी रहेगी. कई महिलाओं ने इस बार यह मांग भी उठाई कि मनचलों पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगाई जाए. ताकि महिला कलाकार पूर्ण स्वतंत्रता के साथ अभिनय कर सकें और कोई बाहरी दबाव उनके कलात्मक निर्णयों में हस्तक्षेप न कर सके.
इसलिए होती है परेशानी: मेले की रात पूरे शहर से लोग भीतरी शहर में पहुंचते हैं. हजारों की भीड़ सड़क पर रहती है. इसमें बड़ी संख्या ने मनचले होते हैं, जो महिलाओं पर फब्तियां कसते हैं, छेड़खानी करते हैं. कई जगह पर सम्मान समारोह के स्टेज लगे होने से भीड़ जमा होने से तिजानियां उसमें फंस जाती हैं. इस दौरान स्थिति विकट हो जाती है. इसके चलते विगत कुछ सालों से व्यवस्थाओं में बदलाव की मांग हो रही है.